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Updated: 14 फरवरी, 2022 07:46 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पूरा देश पुलवामा हमले की तीसरी बरसी पर जवानों की शहादत पर श्रद्धांजलि दे रहा है. तो, इस बरसी की पूर्व संध्या पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के लिए भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम पर भरोसा करना मुमकिन नहीं हो रहा है. के चंद्रशेखर राव ने सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि 'मैं आज भी सबूत मांग रहा हूं. सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने में कुछ भी गलत नहीं है. भारत सरकार को सबूत दिखाने दो. भाजपा सरकार झूठा प्रचार करती है, इसलिए लोग इसके लिए पूछ रहे हैं. सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय भारतीय सेना को मिलना चाहिए, नाकि भाजपा को. भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक रूप से इस्तेमाल कर रही है.' सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक का जिक्र छिड़ने पर यूं तो पाकिस्तान को मिर्ची लगती है. लेकिन, भारत में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक का मुद्दा हमेशा से ही राजनीतिक चश्मे से देखा जाता रहा है.

K chandrashekhar rao Surgical Strikeकई राजनीतिक विश्लेषकों को लग सकता है कि के चंद्रशेखर राव भाजपा के फेंके गए जल में फंस गए हैं.

भाजपा के जाल में फंसे या खुद गलती कर गए केसीआर?

कई राजनीतिक विश्लेषकों को लग सकता है कि के चंद्रशेखर राव भाजपा के फेंके गए जाल में फंस गए हैं. क्योंकि, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने उत्तराखंड के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े करने को लेकर निशाना साधते हुए एक आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. जिसके बाद के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर हिमंता बिस्वा सरमा को बर्खास्त करने की मांग की थी. वहीं, अब इसी मामले से जुड़े सवाल पर के चंद्रशेखर राव ने सर्जिकल स्ट्राइक के ही सबूत मांग लिए. तो, यहां पर गलती किसकी मानी जाएगी, भाजपा की या के चंद्रशेखर राव की? 

भारतीय सेना से जुड़े मामले देश के हर नागरिक के लिए किसी भी चीज से बढ़कर होते हैं. यह भावनाओं से कहीं आगे की बात होती है. तो, इन राजनेताओं के सामने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने की नौबत क्यों आ जाती है? के चंद्रशेखर राव अगर हिमंता बिस्वा सरमा की बर्खास्तगी की मांग पर ही टिके रहते, तो शायद ही उनका किसी तरह का कोई नुकसान होता. इन राजनेताओं का मानना है कि सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के जरिये भाजपा अपना राजनीतिक हित साधती है. तो, एक सीधा सा सवाल है कि मान भी लिया जाए कि भाजपा इससे फायदा उठाने की कोशिश करती है, तो सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के सबूत मांगकर ये राजनेता उनकी मदद क्यों करने बैठ जाते हैं?

एक ही गलती को कितनी बार दोहराएंगे ये राजनेता?

आमतौर पर बच्चों के गलती करने पर यही कहा जाता है कि 'बच्चे हैं...माफ कर दीजिए.' किसी कमजोर या अल्पबुद्धि वाले शख्स से गलती हो जाने पर भी अधिकांश लोग उस पर तरस खाकर छोड़ने की नसीहत देते ही नजर आते हैं. लेकिन, अगर यही गलती कोई बच्चा बार-बार करे, तो क्या उसे हर बार माफ किया जाना या उस पर तरस खाकर छोड़ देने की अपील काम करेगी? भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के अंधविरोध में अपनी बुद्धि खो चुके राजनेताओं के साथ सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि वह गलती खुद करते हैं और उसका जिम्मेदार देश की जनता को बता देते हैं. पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के सबूत दुनिया के सामने हैं. लेकिन, राजनेताओं को ये सबूत नजर नहीं आते हैं. जबकि, खुद भारतीय सेना की ओर से इसके सबूत पेश किए गए हैं.

सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त उस पर सवाल उठाए गए. और, पुलवामा हमले को तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी के ही इशारे पर पाकिस्तान द्वारा किया गया हमला करार दे दिया था. क्योंकि, ये 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हुआ आतंकी हमला उसी साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले हुआ था. राहुल गांधी ने पुलवामा हमले की पहली बरसी पर 'इस हमले से किसे फायदा मिला' जैसे सवाल उठा रहे थे. अगर राजनीति के लिहाज से ही देखा जाए, तो सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगने पर केवल रोक लगाने से इन नेताओं को कहीं ज्यादा फायदा मिल सकता है. लेकिन, पहले ये अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारेंगे और फिर उसका दोष भाजपा को देंगे. 

राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं, अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के सीएम बने हैं, के चंद्रशेखर राव जैसे नेता तेलंगाना में दिग्गज राजनेता माने जाते हैं. इसके बावजूद अगर ये राजनेता किसी मामले से होने वाले अपने सियासी नफे-नुकसान के बारे में नहीं सोच सकते हैं. तो, इन लोगों की बुद्धि पर बिल्कुल भी तरस नहीं आता है. अपने सियासी स्वार्थ को साधने के लिए भारतीय सेना पर सवाल खड़ा करना सिर्फ और सिर्फ क्षुद्र राजनीतिक मानसिकता का ही परिचायक है. क्योंकि, बड़े पद पर होने के साथ ऐसे लोगों से राष्ट्रीय मुद्दों पर समझदारी भरे बयान की ही अपेक्षा की जाती है. वैसे तो इन राजनेताओं को सियासी दांव-पेंच की सीख देना, 'सूरज को दिया दिखाना' कहा जा सकता है. लेकिन, एक आम सा शख्स भी इन्हें ये बता सकता है कि सर्जिकल स्ट्राइक के सबूतों की मांग कर कहीं न कहीं लोगों के मन में इनके लिए गुस्सा भर ही जाता है. 

बावजूद इसके ये बार-बार पुरानी गलतियों को ही दोहराते रहते हैं. पुलवामा की तीसरी बरसी पर भी राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि 'पुलवामा के शहीदों को हम कभी भुला नहीं सकते. उनका व उनके परिवारों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा- हम जवाब लेके रहेंगे…' इतना सब कुछ जानने-समझने के बाद भी अगर ये राजनेता इसमें सुधार नहीं ला सकते हैं, तो सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वालों पर तरस नहीं आना चाहिए. 

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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