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Updated: 07 अक्टूबर, 2021 03:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने दावा किया था कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में अब इतिहास हो चुके हैं. देखा जाए, तो सुशील कुमार मोदी की बात काफी हद तक सही भी नजर आती है. क्योंकि, जेल से छूटने के बाद लालू प्रसाद यादव लंबे समय से दिल्ली में बेटी मीसा भारती के घर पर आराम कर रहे हैं. सक्रिय राजनीति से दूर नजर आ रहे लालू प्रसाद यादव ट्विटर पर एक्टिव नजर आते हैं. लेकिन, ये बात अब किसी से छिपी नहीं है कि तकरीबन हर नेता के ट्विटर अकाउंट की देखभाल एक कुशल टीम करती है. वहीं, हालिया हुए आरजेडी (RJD) के प्रशिक्षण शिविर में भी लालू यादव की वर्चुअल उपस्थिति केवल आरजेडी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए ही रही. इस कार्यक्रम में जमीनी स्तर पर सक्रिय होने को लेकर उन्होंने साफ किया कि डॉक्टर ने उन्हें दिन भर में सिर्फ एक लीटर पानी पीने के लिए कहा है. तो. जब डॉक्टर इजाजत देंगे, वह तभी पटना आ पाएंगे. महागठबंधन में टूट और बेटे तेज प्रताप यादव द्वारा उन्हें बंधक बनाने की बात पर बिहार की राजनीति में मचे घमासान के बावजूद लालू प्रसाद यादव की इतनी ठंडी प्रतिक्रिया बहुत बड़ा इशारा कर रही है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बिहार की राजनीति में सचमुच इतिहास बन चुके है लालू प्रसाद यादव?

बिहार की राजनीति में मचे घमासान के बावजूद लालू प्रसाद यादव का चुप रहना बहुत बड़ा इशारा है.बिहार की राजनीति में मचे घमासान के बावजूद लालू प्रसाद यादव का चुप रहना बहुत बड़ा इशारा है.

घर का झगड़ा संभालने में नाकाम रहे लालू

कुछ दिनों पहले ही आरजेडी नेता तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को दिल्ली में बंधक बनाने की बात कह दी थी. हालांकि, इस मामले पर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सफाई दी थी कि राजनीति में बड़े-बड़े काम करने वाले लालू यादव को बंधक बनाने की बात उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाती है, तो ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताने वाले तेज प्रताप यादव का आरजेडी से मोह छूटता जा रहा है. दरअसल, बीते महीने तेज प्रताप यादव छात्र जनशक्ति परिषद नाम के संगठन की घोषणा की थी. इस संगठन को बनाते समय तेज प्रताप ने कहा था कि यह आरजेडी की बैकबोन की तरह काम करेगा. लेकिन, अब इसका राजनीतिक तौर पर रजिस्ट्रेशन होने के बाद ये तय हो चुका है कि ये संगठन आरजेडी के बैकबोन में दर्द पैदा करने वाला है. और, इसका असर भी सामने आने लगा है.

आरजेडी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari) ने तेज प्रताप यादव पर बड़ा बयान देते हुए कहा है कि नया संगठन बनाकर पार्टी के सिंबल का इस्‍तेमाल करने पर उन्‍हें रोक दिया गया था. तो, उन्‍हें निष्‍कासित करने की जरूरत ही नहीं रही, वह खुद ही निष्‍कासित हो चुके हैं. कहना गलत नहीं होगा कि जिस परिवार को लालू प्रसाद यादव लंबे समय तक एक रखने की कोशिश कर रहे थे. वो कहीं न कहीं अब बिखराव के रास्ते पर आ चुका है. आरजेडी के स्थापना दिवस पर जब तेज प्रताप ने अपनी अपेक्षा को लेकर तेजस्वी पर निशाना साधा था, तो भी लालू ने तेजस्वी और तेज प्रताप दोनों की बड़ाई करते हुए उनके बीच की खटास को मिटाने की कोशिश की थी. लेकिन, तेज प्रताप की ये पीड़ा अब खुलकर जाहिर होने लगी है. क्योंकि, आरजेडी में तेजस्वी यादव के एकछत्र राज्य के आगे उनकी एक नहीं चल रही है.

उलटा आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह द्वारा छात्र आरजेडी के अध्यक्ष पद पर फेरबदल के बाद शिकायत लेकर तेजस्वी यादव के पास पहुंचे तेज प्रताप यादव को छोटे भाई से 'थोड़ा और अनुशासित' होने का ज्ञान मुफ्त में मिल गया. पार्टी में लगातार हो रही अपने उपेक्षा से परेशान हो रहे तेज प्रताप को लेकर शिवानंद तिवारी का बयान बता रहा है कि आरजेडी में उनकी उलटी गिनती कभी भी शुरू हो सकती है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस तरह का बयान शिवानंद तिवारी बिना लालू प्रसाद यादव की सहमति के नहीं दे सकते हैं. तो, क्या इस बयान के जरिये तेज प्रताप यादव पर दबाव बनाकर उन्हें शांत रखने की कोशिश की जा रही है या सचमुच लालू यादव के हाथ पार्टी और परिवार दोनों की कमान निकल चुकी है.

क्योंकि, ये बयान तो एक तरह से सुशील कुमार मोदी की उस बात पर मुहर लगाने जैसा है. जब उन्होंने हाल ही में कहा था कि लालू यादव का परिवार उनकी बात नहीं सुन रहा है और पार्टी पर पकड़ भी कमजोर हो गई है, तो उन्हें कोई गंभीरता से कैसे लेगा? हालांकि, लालू यादव के साथ समस्या ये भी है कि ज्यादा एक्टिव दिखने पर बीमारी के नाम मिली बेल के कैंसिल होने का भी खतरा बना हुआ है. तो, इस मामले में भी वह शांत ही नजर आ रहे हैं. कहना गलत नहीं होगा कि लालू अपने परिवार का झगड़ा निपटाने में पूरी तरह से चूक गए हैं.

क्या सचमुच लालू यादव के हाथ से पार्टी और परिवार दोनों की कमान निकल चुकी है?क्या सचमुच लालू यादव के हाथ से पार्टी और परिवार दोनों की कमान निकल चुकी है?

विरासत नहीं दे सकते, तो 'कद' ही बराबर कर देते

लालू प्रसाद यादव पहले ही आरजेडी सुप्रीमो पद को लेकर तेजस्वी यादव के तौर पर अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर चुके हैं. तो, तेज प्रताप यादव आरजेडी की विरासत पर अपना हक जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं, ये कहना बेमानी होगा. पार्टी में अपनी उपेक्षा से त्रस्त तेज प्रताप लगातार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर हमलावर रहे हैं. वहीं, आरजेडी के स्थापना दिवस पर भी तेज प्रताप यादव ने अपने 'मन की बात' पिता लालू प्रसाद यादव तक पहुंचाने की कोशिश की थी. लेकिन, लालू यादव इसे समझने में पूरी तरह से नाकाम रहे. आरजेडी के स्थापना दिवस पर तेज प्रताप ने कहा था कि तेजस्वी यादव देश-दुनिया में व्यस्त रहते हैं. वो जब बाहर होते हैं, तो यहां का मोर्चा हम संभाल लेते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि तेज प्रताप ने इशारों-इशारों में बिहार के प्रदेश अध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोंका था. लेकिन, लालू प्रसाद यादव इस इशारे को पढ़ने में नाकाम रहे हैं.

पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव को घोषित किया गया था. जिस पर तेज प्रताप यादव ने कोई सवाल नहीं उठाया था. वह यहां तक कहते नजर आए थे कि तेजस्वी बिहार का भावी मुख्यमंत्री है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेज प्रताप यादव आरजेडी में अपने छोटे भाई तेजस्वी की छत्रछाया के भरोसे नहीं रहना चाहते हैं. अगर तेजस्वी यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर मुख्यमंत्री भी बनें, तो शायद ही तेज प्रताप को इससे कोई दिक्कत होगी. लेकिन, कम से कम आरजेडी में उन्हें तेजस्वी के कद के बराबर का पद तो दिया ही जा सकता है. लेकिन, आरजेडी में तेज प्रताप यादव का क्या भविष्य होगा, इसे लेकर संशय बरकरार है. इस मामले पर लालू यादव की चुप्पी से स्पष्ट है कि दोनों बेटों के बीच वर्चस्व की जंग में फंसे लालू अब बिहार की राजनीति में इतिहास हो चुके हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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