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Updated: 24 अगस्त, 2021 10:27 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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तालिबान की कथनी और करनी में कितना फर्क है यह तो आप देख ही चुके हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अफगानिस्तान में तालिबान राज को मान्यता दी जानी चाहिए या नहीं...तालिबानी लड़ाकों के दहशत की हर रोज नई-नई खबरें सामने आ रही हैं जो वहां की हालात बयां करने के लिए काफी हैं.

दरअसल, तालिबान को लेकर अमेरिका और उसके अन्य सहयोगी देशों की ओर से बड़ा फैसला लिया जा सकता है. जिसमें यह साफ हो जाएगा कि तालिबान को दुनियां में अलग-थलग करने के लिए कई तरह के प्रतिबंध लागू किए जाएंगे या फिर उसे मान्यता दी जाएगी.

असल में जी-7 देशों की बैठक के बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों का कहना है कि जो बाइडेन जी-7 के नेताओं के साथ वर्चुअल मीटिंग करके तालिबान को मान्यता दिए जाने के बारे में बात कर सकते हैं. वैसे भारत के लिए तालिबान को लेकर फैसला लेना सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस मामले में चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान का एक अलग ही चेहरा देखने को मिला है. दरअसल, इन चारों देशों का रूख तालिबान को लेकर नर्म है. ऐसे में तालिबानियों की ओछी हरकतों के बावजूद भारत तालिबान को मान्यता देगा या नहीं, इस फैसले पर दुनियां की नजर है. हालांकि भारत ने इससे पहले कभी भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है.

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दूसरी ओर तालिबान की वजह से भारत की सुरक्षा को भी खतरा है क्योंकि तालिबानी हुकूमत भले ही यह कहें कि वह अफगानिस्तान की जमीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करेंगे लेकिन चीन और पाकिस्तान की नजरें इसी पर हैं. तालिबान की हरकतों को देखकर लगता है कि उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता है. भारत ने हमेशा खुद को इनसे दूर ही रखा है.

जी-7 देशों की मीटिंग में यह भी तय किया जा सकता है कि अमेरिका और नाटो देशों की सेनाओं को 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान में कुछ दिनों तक रहना होगा. हालांकि तालिबान के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने अपने धमकी भरे बयान में कहा कि अगर अमेरिका 31 अगस्त तक अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाता है तो उसको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

जी-7 देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और जापान शामिल हैं. होने को तो शायद यह भी हो सकता है कि महिला अधिकार और अंतरराष्ट्रीय नियमों के पालन के लिए तालिबान को बाध्य कर कुछ प्रतिबंधों को लागू करने के साथ सहमति बनें. आखिर तालिबान को कैसे डील किया जाए क्योंकि उनकी आंखों पर तो धर्म के नाम पर कट्टरता की पट्टी की बधी हुई है.

मान्यता देने या बैन लगाने का फैसला तालिबान की बड़ी-बड़ी बातों से नहीं बल्कि वह क्या कर रहा है यह देखने के बाद लेना सही है, क्योंकि तालिबानी पहले भी लोकतंत्र लागू करने के खिलाफ थे और आज भी लोकतंत्र के खिलाफ हैं. तालिबानी बदलने वाले नहीं है, ऐसे में क्या थोड़ा इंतजार करना ही सही रहेगा.

तालिबान को मान्यता देने के मामने में विशेषज्ञों की राय भी दो भागों में बटी हुई है, उनका कहना है कि भारत को अभी कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखानी चाहिए क्योंकि तालिबान की विचारधारा में कोई बदलाव नजर नहीं आया है. यह प्रेस कॉन्फ्रेंस में दुनियां को दिखाने के लिए भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर लें कि हम महिलाओं को आजादी देंगे, शिक्षा की आजादी देंगे, काम करने की आजादी देंगे, उन्हें हमसे डरने की जरूरत नहीं, बुर्का पहनने की जरूरत नहीं लेकिन हकीकत इससे परे है.

वहां पुरुषों को जींस पहनने पर मारा जा रहा है, महिलाओं को बुर्का ना पहनने पर मारा जा रहा है, लड़कियों को पढ़ते जाते हुए देख मारा जा रहा है, लड़कियों को जबरदस्ती घरों से खींच कर ले जाया जा रहा है. पुरुषों की दाढ़ी जरूरी है वहीं बच्चों का बचपन दहशत में चला गया है.

ये कैसी आजादी है, जहां महिला एंकरों को नौकरी से निकाल कर उनकी एंकरिंग पर बैन लगा दिया गया, जहां लड़का-लड़की एक साथ कक्षा में नहीं पढ़ सकते, जहां कोई महिला अकेली सड़क पर जाने से डरती है. असल में ये आजादी की बड़ी-बड़ी बाते हैं महज एक छलावा है जो दुनियां को धोखे में रखने के लिए अपनाई गईं. आखिर यह कौन सा धर्म हैं जो लोगों की जिंदगी उनसे छीन लेता है?

कोई भी धर्म इंसान के लिए बनाया गया है या उनके नुकसान के लिए. असल में कट्टर धर्म पर तो बैन ही लगना चाहिए चाहिए. धर्म तो वह है जो हर इंसान को बराबरी का दर्जा देता है. तालिबान ने तो अफगानिस्तान के लोगों का जीना मुश्किल कर दिय है, उन्हें दो दशक पीछे करके गुलाम की तरह जीने पर मजबूर कर दिया है. तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान को शरिया कानून के हिसाब से ही चलना चाहते हैं. ऐसे में वे ही तय करेंगे कि महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकार क्यो होंगे. वे अधिकार भी बस नाम के लिए होंगे या दिखावे के लिए...

इस बीच भारत में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो तालिबान का समर्थन कर रहे हैं, हालाकि उन्हेंं इतिहास का अता-पता कुछ है नहीं. तालिबान के हकीकत का पता तो इससे ही चलता है कि कब्जे के बाद से हजारों लोग रोज अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं. वे डरे-सहमें हुए हैं. अमेरिका और सहयोगी देश वहां से किसी भी तरह अपने लोगों को निकालने में लगे हैं. अब आप बताइए इस माहौल में क्या तालिबानी हुकूमत को मान्यता देना चाहिए, आपकी राय क्या है?

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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