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Updated: 26 अगस्त, 2022 07:29 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पेगासस जासूसी कांड को लेकर बनाए गए पैनल ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. जिसमें कहा गया है कि 'पेगासस स्पायवेयर को खोजने के लिए 29 मोबाइल फोन्स की जांच की गई थी. लेकिन, इन फोन्स में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया हो. हालांकि, 5 फोन्स में कोई मालवेयर पाया गया है. लेकिन, ये पेगासस स्पायवेयर नहीं है.' पैनल ने ये भी कहा है कि 'केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कमेटी का सहयोग नहीं किया.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में सियासी दलों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिस पेगासस जासूसी कांड का हौव्वा खड़ा किया था. वह पेगासस स्पायवेयर सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट में भी कहीं नजर नहीं आया है.

Supreme Court Pegasus Snooping Caseकांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने पेगासस जासूसी कांड को जोर-शोर से उठाया. लेकिन, पेगासस मिला ही नहीं.

कहां से आया था पेगासस स्पायवेयर का मुद्दा?

बीते साल जुलाई में अमेरिकी मीडिया संस्थान वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट के साथ दावा किया था कि दुनियाभर में 50,000 लोगों के फोन में पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिनमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, देशों की सरकार के मंत्री और विपक्षी दलों के नेताओं के नाम थे. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ये भी दावा किया गया कि भारत में 300 से फोन नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया है. जिनमें दो केंद्रीय मंत्री, 40 से ज्यादा पत्रकार, 3 विपक्षी नेता, एक्टिविस्ट्स और एक जज भी शामिल थे.

मीडिया वेबसाइट 'द वायर' ने दावा किया कि जिन लोगों की पेगासस स्पायवेयर से जासूसी का अंदेशा है, उस लिस्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद पटेल के मोबाइल नंबर शामिल थे. इसके इतर मोदी सरकार के खिलाफ लिखने वाले कई पत्रकारों के नाम भी इस लिस्ट में थे. हालांकि, इन दावों को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नकार दिया था. आईटी मंत्रालय ने इसके जवाब में कहा था कि पेगासस स्पायवेयर के जरिये कोई भी अवैध निगरानी नहीं की जा रही है.

कोरोना से हुई मौतों पर बहस की जगह पेगासस में बर्बाद हुआ मानसून सत्र

मोदी सरकार के खिलाफ मौके की तलाश में रहने वाले कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने पेगासस स्पायवेयर मामले को लपक लिया. जबकि, देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों पर बहस की जानी थी. विपक्षी राजनीतिक दलों से यही उम्मीद की जा रही थी कि वे मोदी सरकार को कोरोना से हुई मौतों पर बोलने को मजबूर कर देंगे. लेकिन, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को पेगासस जासूसी कांड में ही ज्यादा सियासी लाभ नजर आया.

ये सबकुछ तब हो रहा था, जब कुछ ही समय पहले कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में तबाही मचाई थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिस समय कोरोना महामारी और तेजी से टीकाकरण जैसी चीजों पर विपक्षी दलों का ध्यान होना चाहिए था. ये सियासी दल उस दौरान पेगासस स्पायवेयर को लेकर अपनी छाती पीट रहे थे. और, दुनियाभर के कई मीडिया संस्थानों में केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बड़े-बड़े लेखों के जरिये माहौल बनाया जाने लगा.

उस दौरान राहुल गांधी को ने मोदी सरकार पर लोकतंत्र की हत्या जैसे तमाम आरोप लगाए. इन आरोपों को मजबूत करने के लिए उस दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो अपने फोन के कैमरे पर स्टीकर तक लगा दिया था. पेगासस स्पायवेयर को लेकर किया जा रहा सियासी दलों का ये बवाल सड़क से लेकर संसद तक नजर आया. तमाम विपक्षी दलों के विरोध की वजह से संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था.

इस दौरान राहुल गांधी का कहना था कि नरेंद्र मोदी सरकार पेगासस जासूसी कांड पर पारदर्शिता नहीं बरत रही है. और, तथ्यों को छिपा रही है. जबकि, इस बवाल के बढ़ने पर पेगासस स्पायवेयर बनाने वाली इजरायल की कंपनी एनएसओ ग्रुप ने कहा था कि इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल सरकारी एजेंसियां सिर्फ आतंक और संगठित अपराधों के खिलाफ ही करती हैं. लेकिन, कांग्रेस ने पेगासस स्पायवेयर कांड के सहारे पूरे देश में पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाकर राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिश की.

NYT की रिपोर्ट पर राहुल गांधी ने मोदी सरकार को बता डाला देशद्रोही

इसी साल जनवरी में अमेरिका के एक अखबार 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपनी एक खबर में दावा किया कि 2017 में इजरायल और भारत के बीच हुए करीब दो अरब डॉलर के रक्षा सौदे में इजरायली पेगासस स्पायवेयर खरीदा गया था. 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी एफबीआई ने भी पेगासस स्पायवेयर को खरीदा था. लेकिन, इस रिपोर्ट के केंद्र में एफबीआई न होकर भारत की सरकार थी. इस रिपोर्ट को भारत के कुछ मीडिया संस्थानों ने जोर-शोर से उठाया. और, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुआ कहा था कि 'मोदी सरकार ने हमारे लोकतंत्र की प्राथमिक संस्थाओं, राज नेताओं व जनता की जासूसी करने के लिए पेगासस खरीदा था. फोन टैप करके सत्ता पक्ष, विपक्ष, सेना, न्यायपालिका सब को निशाना बनाया है. ये देशद्रोह है. मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है.' 

सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने फोन मांगे, तो सिर्फ 29 लोगों ने ही दिये

ये चौंकाने वाली बात ही कही जा सकती है कि 'द वायर' ने 300 लोगों के मोबाइल नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल की आशंका जाहिर की थी. जब विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं. तो, सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी कांड की जांच के लिए एक हाई प्रोफाइल टेक्निकल कमेटी का गठन कर दिया. लेकिन, बात जब इसकी जांच की ओर आगे बढ़ी. तो, केवल 29 लोगों ने ही अपने मोबाइल कमेटी को सौंपे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिस तरीके से ये साबित हो सकता था कि पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल हुआ है या नही. उसे करने के लिए खुद राहुल गांधी जैसे नेता ही आगे नहीं आए. हां, मोदी सरकार पर आरोप लगाने में कोई कमी नहीं रखी गई.

और, अंत में आरोप का 'बुलबुला' फट गया

पेगासस जासूसी कांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भाजपा ने कांग्रेस समेत तमाम लोगों पर पलटवार किया है. भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ झूठा कैंपेन चलाने वाले, राजद्रोह का आरोप लगाने वाले वाले, मोटिवेटेड कैंपेन चलाने वाले, राहुल गांधी और कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए. पेगासस जासूसी कांड पर भाजपा को वो कांग्रेस नसीहत दे रही थी. जिसकी यूपीए सरकार के दौरान हर महीने 9 हजार फोन और 5 सौ ईमेल खाते की निगरानी होती थी. राहुल गांधी और सोनिया गांधी को यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र लोकलाज से चलता है. और, झूठ की खेती बहुत दिन नहीं चलती है. ये लोग राफेल, सेंट्रल विस्टा जैसे झूठे मामलों का सहारा लेकर कांग्रेस के विस्तार की कोशिश करते हैं. लेकिन, सच सामने आते ही इनकी पार्टी और सिकुड़ जाती है.' 

देखा जाए, तो सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट सामने आने के बाद ये तय हो चुका है कि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की ओर से उठाया गया ये मुद्दा सिर्फ एक बुलबुला था. जो छूते ही फूट गया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों ने पेगासस स्पायवेयर के जरिये पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ जो माहौल बनाने की कोशिश की थी. वो एक झटके में ही धरातल पर आ गया है. और, इस विरोध की वजह से अब इन सियासी दलों पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है. क्योंकि, जिस तरह से पेगासस का हौव्वा बनाया गया था. वो कहीं नजर ही नहीं आया.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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