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Updated: 25 जून, 2021 07:02 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश अप्रत्याशित रूप से ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा था. इसी दौरान केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच ऑक्सीजन संकट को लेकर विवाद अपने चरम पर पहुंच गया था. केंद्र आरोप लगा रहा था कि दिल्ली सरकार जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन मांग रही है. वहीं, दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट जाकर ऑक्सीजन का कोटा बढ़ावाया था. वहीं, अब टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई ऑडिट टीम के पैनल की अंतरिम रिपोर्ट के हवाले से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के 'ऑक्सीजन घोटाला' की कहानी सामने लाकर रख दी है.

ऑडिट पैनल की इस अंतरिम रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 25 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ऑक्सीजन की मांग को चार गुना बढ़ा दिया था. साथ ही दिल्ली को अतिरिक्त ऑक्सीजन की आपूर्ति की वजह से कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित 12 राज्यों के लिए परेशानी वाले हालात पैदा हो सकते थे. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बेड फॉर्मूला के अनुसार ऑक्सीजन की खपत 289 से 372 मीट्रिक टन के बीच थी. लेकिन, केजरीवाल सरकार ने 1,140 मीट्रिक टन का दावा किया था. इस अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई में असर पड़ा था, जो अन्य राज्यों को प्रभावित कर सकता था. आइए जानते हैं दिल्ली में केजरीवाल सरकार के 'ऑक्सीजन घोटाला' से जुड़ी कुछ जरूरी बातें.

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर छिड़ी जंग सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर छिड़ी जंग सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.

दिल्ली सरकार ने किया था ऑडिट का विरोध

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर छिड़ी जंग सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि दिल्ली सरकार द्वारा ऑक्सीजन की जितनी मांग की जा रही है, उसे तत्काल पूरा किया जाए. ऑक्सीजन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि दिल्ली के अस्पतालों की स्टोरेज क्षमता करीब 400 मीट्रिक टन ही है. इसके बावजूद दिल्ली को 730.7 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दिया गया है, जो केजरीवाल सरकार अनलोड नहीं करवा पा रही है. तुषार मेहता ने दिल्ली के वितरण सिस्टम पर सवाल उठाते हुए ऑक्सीजन ऑडिट करवाने की मांग की थी. दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने ऑक्सीजन ऑडिट की मांग का विरोध किया था. राहुल मेहरा का कहना था कि पंजाब, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों को दिल्ली की मांग के बराबर या ज्यादा ऑक्सीजन दिया जा रहा है. दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार कह रही है कि दूसरे राज्यों से कटौती कर ऑक्सीजन देनी पड़ रही है. राहुल मेहरा ने कोर्ट में मांग की थी कि केंद्र सरकार इस मामले पर लिखित में हलफनामा दे और अगर ऑडिट होना है, तो पूरे देश का हो.

टास्क फोर्स के गठन के 5वें दिन बाद ही घट गई ऑक्सीजन की मांग!

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को ऑक्सीजन संकट को लेकर 12 सदस्यों वाले नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट ने ऑडिट टीम को इस बात की भी जांच करने को कहा था कि मुंबई में 92000 कोरोना संक्रमितों के लिए 275 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी. वहीं, दिल्ली में 3 मई को 95000 कोरोना के मामलों पर केजरीवाल सरकार ने 900 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर राज्य की मांग और वहां की वितरण सिस्टम का आंकलन करने के लिए ऑक्सीजन ऑडिट करवाया जाएगा. टास्क फोर्स के गठन के बाद 13 मई को दिल्ली में ऑक्सीजन की मांग घट गई थी. दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस मामले पर कहा था कि दिल्ली की ऑक्सीजन की मांग 700 मीट्रिक टन से घटकर 582 मीट्रिक टन रह गई है. मनीष सिसोदिया ने दिल्ली सरकार की पीठ थपथपाते हुए जिम्मेदारी भरे व्यवहार की बात कही थी. सिसोदिया ने कहा था कि अब केंद्र सरकार उन्हें जरूरत भर का ऑक्सीजन मुहैया कराए और अतिरिक्त ऑक्सीजन की आपूर्ति जरूरतमंद राज्यों को करे.

किस फॉर्मूला से सामने आई गड़बड़ी

ऑडिट पैनल ने ऑक्सीजन की मांग को जांचने के लिए तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया था. जिसमें ऑक्सीजन की वास्तविक खपत, केंद्र सरकार के फॉर्मूले के अनुसार आवश्यकता और दिल्ली सरकार के फॉर्मूले के अनुसार आवश्यकता का एनालिसिस किया गया था. दिल्ली सरकार के अनुसार 183 अस्पतालों में 1,140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी. लेकिन, अस्पतालों द्वारा दी गई जानकारी में यह 209 मीट्रिक टन ही निकली. वहीं, केंद्र सरकार के फॉर्मूला के हिसाब से 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत सामने आई और दिल्ली सरकार के फार्मूला पर 391 मीट्रिक टन की आवश्यकता दिखी. दिल्ली के सभी अस्पतालों के 16,272 नॉन आईसीयू और 5,866 आईसीयू बेड्स पर केंद्र सरकार के फॉर्मूला पर 415 मीट्रिक टन और दिल्ली सरकार के फॉर्मूले पर 568 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत ही सामने आई. पैनल की रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली के चार अस्पतालों ने कम बेड होने के बाद भी ज्यादा ऑक्सीजन की खपत की है. जिनसे जवाब मांगा गया है. दरअसल, केंद्र सरकार के फॉर्मूले में नॉन आईसीयू के 50 फीसदी बेड्स पर ही ऑक्सीजन की सप्लाई की गणना की जाती है. वहीं, दिल्ली सरकार के फॉर्मूला में 100 फीसदी बेड्स की संख्या को जोड़ा जाता है.

ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात पर केजरीवाल की चुप्पी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अप्रैल महीने में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने राजनीति करने का मंच बना दिया था. नरेंद्र मोदी के साथ हुई इस मीटिंग का केजरीवाल ने लाइव प्रसारण भी किया था. उन्होंने इस दौरान अपने चिर-परिचित अंदाज में 'ब्लेम गेम' की राजनीति कर केंद्र सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश की थी. अरविंद केजरीवाल ने मीटिंग के दौरान सवाल उठाते हुए कहा था कि दिल्ली में ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रही है. अगर दिल्ली में ऑक्सीजन के प्लांट नहीं हैं, तो क्या यहां के लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी? मीटिंग का लाइव प्रसारण करने पर टोके जाने के बाद उन्होंने माफी मांग ली थी. लेकिन, केंद्र सरकार द्वारा पीएम केयर्स फंड के तहत लगाए जाने वाले आठ ऑक्सीजन प्लांट्स के बारे में अरविंद केजरीवाल की ओर से चुप्पी साध ली गई थी. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उन्होंने एक महीने के अंदर 44 ऑक्सीजन प्लांट लगवाने का दावा भी किया था. लेकिन, अभी तक इस विषय में केजरीवाल सरकार की ओर से कोई विज्ञापन नहीं जारी किया गया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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