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Updated: 26 सितम्बर, 2018 05:29 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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राजनीति में अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश तो नहीं दिया लेकिन तल्ख टिप्पणी करते हुए कुछ दिशा निर्देश ज़रूर दिए. सुप्रीम कोर्ट ने गेंद केंद्र के पाले में डालते हुए कहा कि केंद्र को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे ऐसे लोग जिन पर गंभीर आपराधिक मामलों में मुकदमा चल रहा है उन्हें चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने से रोका जाए. इस प्रकार फिर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दागी जनप्रतिनिधियों को राहत भी मिल गई.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया लेकिन दिशा-निर्देश ज़रूर जारी किए. मसलन निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए फॉर्म में बड़े-बड़े अक्षरों में अपने ऊपर चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी देनी होगी. राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में सारी जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी होगी. अखबार और टीवी चैनलों द्वारा ऐसे आपराधिक उम्मीदवारों के बारे में जानकारी को मतदाताओं तक पहुंचाना होगा.

सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद एक बार फिर से आपराधिक मामलों में फंसे और जेल जा चुके नेताओं की कहानियां चर्चा में आ गई हैं. पांच-सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा कि पैसा, बाहुबल को राजनीति से दूर रखना संसद का कर्तव्य है और राजनीतिक अपराध लोकतंत्र की राह में बाधा हैं.

supreme courtजब सुप्रीम कोर्ट अपराधियों को राजनीति में आने से नहीं रोक सकता तो किससे उम्मीद की जाए

अभी तक देश में ऐसा कानून है जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जिसपर हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य मामले दर्ज़ हैं और कोर्ट में मामले लंबित हैं लेकिन आरोप सिद्ध नहीं हुआ है तो वो व्यक्ति चुनाव लड़कर विधानसभा या संसद में चुनकर माननीय जनप्रतिनिधि वहां की शोभा बढ़ा सकते हैं.

आखिर ऐसा क्यों होता है कि राजनीतिक पार्टियां अपने चुनाव घोषणापत्रों में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के खिलाफ लड़ने का वादा तो करती हैं लेकिन चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को ही टिकट देती हैं. आखिर ऐसा क्यों होता है कि एक पार्टी को दूसरी पार्टी वाला नेता अपराधी तो नज़र आता है, लेकिन उसे सदस्यता देने में जरा भी देर नहीं लगाती और सदस्य बनाते ही उसके अपराधों को भी भूल जाते हैं?

वर्तमान संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या करीब 230 है जिसमें लोकसभा में 179 और राज्य सभा में 51 सदस्य हैं. ऐसे में क्या कोई उम्मीद कर सकता है कि हमारे सांसद कोई ऐसा कानून बना पाएंगे जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति चुनकर विधानसभाओं या सांसद में न पहुंचें. आखिर क्यों वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारें?  

लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या इससे समस्या का समाधान हो जाएगा? क्या राजनीतिक पार्टियां इस पर अक्षरसः अमल करेंगी? क्या आने वाले चुनावों में इसका पालन किया जायेगा? क्या इसे रोकने केलिए राजनीतिक पार्टियां इच्छाशक्ति दिखा पाएंगी या फिर पार्टियां इसका कोई काट निकल लेंगी? हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जब तक इन पार्टियों में इसे खत्म करने के लिए अपेक्षित इच्छाशक्ति नहीं होगी तब तक इससे निजात पाना मुश्किल ही होगा.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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