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Updated: 26 अप्रिल, 2016 05:26 PM
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'नसीबवाला' खुली चर्चाओं का हिस्सा तब बना जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार तेल की कीमतों के प्रसंग में इसका जिक्र किया. उसके बाद अक्सर अच्छे दिनों के किस्मत कनेक्शन के अलग अलग मतलब निकाले जाने लगे.

अब नीतीश कुमार भी किस्मत की बात करने लगे हैं. नीतीश ने भी प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए किस्मत कनेक्शन की बात कही है.

क्या नीतीश कुमार को पक्का यकीन हो गया है कि मोदी सिर्फ किस्मत की बदौलत ही प्रधानमंत्री बन पाये, वरना मैदान में तो वो थे.

किस्मत कनेक्शन!

जेडीयू का अध्यक्ष बनने के बाद कार्यकर्ताओं के बीच नीतीश कुमार ने हाल ही में कहा - 'अगर किसी इंसान की किस्मत में पीएम बनना लिखा होगा तो वो एक दिन पीएम जरूर बनेगा, चाहे उसके नाम का एलान हो या न हो.'

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ये नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने सबसे पहले एनडीए की ओर से 2014 के लिए पीएम कैंडिडेट घोषित करने की मांग रखे. तब नीतीश को पूरी उम्मीद रही कि आडवाणी के आउटडेटेड होने और मोदी पर गोधरा के दाग होने की हालत में मौका उन्हें ही मिलेगा. इस मांग के साथ ही नीतीश ने मोदी के प्रति हमलावर रुख अख्तियार कर लिया और नतीजा ये हुआ कि इसी बात पर एनडीए से 17 साल पुराना रिश्ता भी तोड़ लिया.

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ये तो बस किस्मत की बात है, वरना...

बात इतनी भर ही नहीं रही, लोक सभा चुनाव में नीतीश को करारी हार मिली और उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक छोड़ने का फैसला किया. चर्चा तो ये भी थी कि मुख्यमंत्री होने पर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात न करनी पड़े इसलिए नीतीश ने वो कदम उठाया था.

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बहरहाल, बिहार चुनाव ही एकमात्र मौका था जिसमें नीतीश मोदी से बदला ले सकते थे. इसके लिए नीतीश ने दो दशक पुरानी दुश्मनी भुला कर लालू से हाथ मिलाया और मोदी से ढंग से बदला लिया.

मोदी जैसी मुहिम

बिहार में चाणक्य के नाम से शोहरत हासिल कर चुके नीतीश ने बिहार चुनाव में सियासत के सारे दांव पेंच लगा दिये. मोदी को शिकस्त देने के लिए नीतीश ने मोदी के ही दांव इस्तेमाल किये. इस रणनीति में कोई चूक न हो जाए इसलिए नीतीश ने मोदी के ही इलेक्शन कैंपेनर प्रशांत किशोर को भी झटक लिया - और येन केन प्रकारेण अब भी साथ जोड़े हुए हैं.

नीतीश का चुनाव अभियान ज्यादातर मामलों में बिलकुल मोदी के साल 2014 के लोक सभा चुनाव जैसा ही था. बिलकुल वैसे ही स्लोगन और वैसे ही कार्यक्रम.

मोदी जैसा नारा

बिहार चुनाव में मोदी को खुलेआम चैलेंज करने और कोने कोने से ललकार कर शिकस्त देने के बाद नीतीश का मनोबल सातवें आसमान पहुंचा. शायद उन्हें अब पक्का यकीन हो गया कि आगे का रास्ता भी मोदी स्टाइल में ही पक्के तौर पर तय किया जा सकता है और कामयाबी भी तभी मिल सकती है. यही वजह है कि नीतीश ने नया नारा भी मोदी स्टाइल में ही दिया.

लोक सभा चुनाव में मोदी का स्लोगन था - 'कांग्रेस मुक्त भारत'. अब नीतीश कुमार ने 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया है.

इस पर बिहार चुनाव में एनडीए के साथ उतरे राम विलास पासवान ने कहा है कि नीतीश जैसा कलाकार उन्होंने नहीं देखा. ये बात वो शख्स कह रहा है जो 17 साल तक संघ के ही साथ रहा.

चाय तो नहीं बेचा

बात उन्हीं दिनों की है जब मोदी लोक सभा चुनाव की तैयारी कर रहे थे - और किसी सभा में खुद के चाय वाला होने और चाय बेचने की बात शेयर की.

जब इस बारे में मीडिया ने नीतीश की राय जाननी चाही तो उन्होंने हंसते हुए कहा था - आते तो हम लोग भी साधारण परिवार से ही हैं. अब चाय बेचने का कोई तजुर्बा तो नहीं है.

हो न हो - कभी न कभी, मन में ये अफसोस भी हो कहीं चाय बेचने का मौका मिला होता तो किस्मत और मजबूत होती.

मन की बात

बहाने से ही सही, नीतीश ने एक बार फिर पीएम कैंडीडेट की बात छेड़ दी है - और उसके साथ किस्मत का तड़का भी है.

इसी बीच बीजेडी नेता भर्तृहरि महताब ने टिप्पणी की है, "कांग्रेस उपाध्यक्ष विश्वविद्यालय जा रहे हैं और फोटो खिंचवाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. वो क्या वोट बैंक तैयार कर रहे हैं? क्या वो साल 2024 के बारे में सोच रहे हैं? मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं."

कहीं नीतीश भी ऐसा ही तो नहीं सोच रहे हैं कि जब राहुल के पास मौका था तो बने नहीं. भला अब 45 पर क्या ख्वाब देख रहे हैं?

ऐसा क्यों लगता है कि एकलव्य की तरह तो नहीं लेकिन कुछ वैसे ही मोदी को मन ही मन नीतीश रोल मॉडल मानने लगे हैं! अब तो उन्हें लालू का भी सपोर्ट मिल चुका है. आखिर नीतीश के बिहार छोड़ने पर ही तो लालू के बच्चों को और फलने फूलने का मौका मिलेगा. लेकिन कहीं ऐसा न हो कि नीतीश का भी हेगड़े जैसा हाल हो जाए. करीब तीस साल पहले रामकृष्ण हेगड़े भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो चले थे लेकिन हाल ये हुआ कि न दिल्ली की सल्तनत मिली न कर्नाटक की कुर्सी बची.

क्या वाकई सारा खेल नसीब का ही है? अगर हां, तो क्या पता किसी दिन नीतीश भी मोदी की तरह ही खुद को 'नसीबवाला' बता सकें.

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