New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 10 अगस्त, 2018 02:40 PM
अरिंदम डे
अरिंदम डे
  @arindam.de.54
  • Total Shares

करूणानिधि डीएमके के अध्यक्ष के रूप में उनकी स्वर्ण जयंती से सिर्फ एक वर्ष पीछे थे. 49 साल लंबा समय होता है. पार्टी की राजनैतिक विरासत और विचारधारा करूणानिधि की विचारधारा से इतने लंबे समय तक प्रभावित रही. करूणानिधि सीएन अन्नदुराई की राजनीतिक विरासत को आगे ले गए - साथ में पार्टी को भी एक मजबूती दी. करूणानिधि की कमी की तुरंत भरपाई करना मुश्किल है. पार्टी की जनरल काउंसिल जल्द ही उत्तराधिकारी चुनेगी. एमके स्टालिन का चुनाव होना बस औपचारिकता है. जितनी तेजी से उत्तराधिकारी का चुनाव हो जाये उतना अच्छा. इससे किसी भी संभावित शरारत को रोकना आसान होगा. सिर्फ एक मजबूत उत्तराधिकारी द्रमुक कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण कर पायेगा और उनको आगे की दिशा दिखा पायेगा.

एमके स्टालिन पहले से ही कार्यवाहक प्रभारी हैं. यह उत्तराधिकार का मुद्दा शायद 2017 की शुरुआत में ही कलाइनार के लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए किया गया था. स्टालिन का पार्टी पर पूरा नियंत्रण है. 2013 से ही स्टालिन की स्थिति पार्टी में काफी मजबूत है. अलागिरी के प्रति निष्ठा रखने वाले पार्टी के नेताओं को या तो दरवाजा दिखाया गया था या उनको पद से हटा दिया गया. स्टालिन ने 2016 के द्रमुक के चुनावी अभियान की अगुवाई की थी, हालांकि वह जयललिता के सामने कुछ खास कर नहीं पाए. दशकों बाद जयललिता लगातार दूसरी बार एआईएडीएमके को सत्ता में वापस लाने में सफल रहीं - एक ऐसा कारनामा जो तमिलनाडु में कई साल बाद हुआ. लेकिन स्टालिन का समय आएगा.

स्टालिन, करुणानिधि, तमिलनाडु, एआईएडीएमकेDMK की कमान स्टालिन के पास आ सकती है बशर्ते...

जयललिता के निधन के बाद स्टालिन के लिए राजनीतिक राह कुछ आसान हो गयी है. अगले चुनावी दौर में उन्हें, उनसे कमज़ोर, अपेक्षाकृत आसान राजनीतिक प्रतिस्पर्धी मिलेंगे. हालांकि राजनीति के जानकर मानते हैं कि स्टालिन के लिए मुसीबतें किसी भी विरोधी राजनीतिक ताकत के बजाय परिवार के भीतर से आ सकती हैं.

बुधवार 8 अगस्त को राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों चेन्नई में थे. उनके साथ दर्जनों राजनीतिक दलों के और अन्य दिग्गज नेता भी थे. कलाइनार को सम्मान और श्रद्धांजलि के साथ उनकी मौजूदगी स्टालिन के लिए एक सशक्त इंडोर्समेंट भी था. लेकिन जैसे समय बीतता जायेगा, आने वाले हफ़्तों में - उन्हें कुछ प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है. आमतौर पर यह माना जाता है कि कनिमोझी स्टालिन के नजदीक हैं और उनकी तरफ से स्टालिन को कोई चुनौती मिलने का संभावना ना के बराबर है.

हालांकि, अलागिरी से चुनौती मिल सकती है. 2014 से अलागिरी राजनीतिक चुप्पी साधे हुए हैं, इसका कारण करुणानिधि थे. उनके निधन से बड़े बेटे के लिए विकल्प खुल जाने की संभावना है. एक ज़माने में द्रमुक के स्ट्रांगमैन माने जाने वाले अलागिरी, एआईएडीएमके सरकार को हटाने में नाकामी को स्टालिन की 'कमजोर' शैली से जोड़ कर राजनैतिक हमला कर सकते हैं. विधान सभा का आंकड़ा जो भी कहता हो यह एक भावनात्मक मुद्दा है.

देखना यह है कि द्रमुक में अलागिरी के वफादार कुछ बचे भी है या नहीं. किसी भी चुनाव में पहली बार पहल करने वाली पार्टियों को कोई ज़्यादा अहमियत नहीं देता है, लेकिन 2019 में शायद तमिलनाडु, रजनीकांत और कमल हासन के रूप में दो सुपरस्टार की राजनितिक एंट्री देख सकता है. कमल हासन ने उनके और रजनीकांत के एक साथ आने के बारे में जो भी कहा वह शायद एक टिपण्णी ही था - कम से कम एमके स्टालिन ऐसे ही उम्मीद करते होंगे - 2019 तय करेगा कि स्टालिन के राजनितिक कैरियर और तमिल नाडु के द्रविड़ विचारधारा का रुख क्या होगा.

ये भी पढ़ें-

हरिवंश की जीत सिर्फ विपक्ष की हार नहीं - 2019 के लिए बड़ा संदेश भी है

तमिलनाडु में करुणा-जया का उत्तराधिकारी कौन?

लेखक

अरिंदम डे अरिंदम डे @arindam.de.54

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय