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सोनिया गांधी की बात वाजिब है लेकिन दिवालिया हो चुके कांग्रेस नेता कर्ज कैसे चुका पाएंगे?
कांग्रेस के चिंतन शिविर (Nav Sankalp Chintan Shivir) में देश भर से पहुंचे नेताओं से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने वो सब लौटाने को कहा है जो पार्टी से अब तक उनको मिला है. कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders) की मुश्किल है कि वो सब लौटाया कैसे जाये - हालत तो दिवालिये जैसी हो चुकी है.
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कांग्रेस नेताओं को बड़े असमंजस में डाल दिया है. सोनिया गांधी ने एक तरह से कांग्रेस नेताओं से कुर्बानी देने की अपील कर डाली है. सोनिया गांधी ने कांग्रेस में बड़े बदलाओं की जरूरत बतायी है, लेकिन इसके लिए बड़े प्रयास भी करने होंगे तभी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी को खड़ा करने के लिए सुधारों की जरूरत बतायी है, लेकिन उसके लिए सबको सुधर जाने की भी हिदायत दे डाली है. सोनिया गांधी ये तो मानती हैं कि ऐसा कुछ करने के लिए साहस की जरूरत होती है, लिहाजा कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders) के लिए सलाह है कि वो एक बार फिर से साहस का परिचय देते हुए आगे आयें.
राजस्थान के उदयपुर में आयोजित तीन दिन के नव संकल्प चिंतन शिविर (Nav Sankalp Chintan Shivir) में सोनिया गांधी कहती हैं, 'हर संगठन को जीवित रहने के लिए परिवर्तन लाने की जरूरत होती है. हमें सुधारों की सख्त जरुरत है. ये सबसे बुनयादी मुद्दा है.' यहां तक तो ठीक है, लेकिन उसके आगे कांग्रेस नेताओं से सोनिया गांधी को जो अपेक्षा हो रही है, वो बहुत मुश्किल लगती है.
देखा जाये तो सोनिया गांधी कांग्रेस नेताओं से वो सब वापस मांगने लगी हैं, जो अब तक किस्तों में वे लेते रहे हैं - 'पार्टी ने हम सभी को बहुत कुछ दिया है अब समय है कर्ज उतारने का.'
कुर्बानी कांग्रेस नेता ही क्यों दें?
सबसे बड़ा सवाल है कि सोनिया गांधी कांग्रेस नेताओं से जो वापस मांग रही हैं, वो सब उनके पास बचा भी है क्या?
चिंतन शिविर से पहले सचिन पायलट मीडिया से बातचीत और इंटरव्यू के जरिये बड़े बड़े दावे कर रहे थे - मसलन, 'कांग्रेस में अब ज्यादा महत्व युवाओं को मिलने वाला है', लेकिन चिंतन शिविर की जो तस्वीरें देखने को मिली हैं उससे तो ऐसा कुछ नहीं लगता.
कांग्रेस नेताओं ने एक स्थायी अध्यक्ष मांगा - और सोनिया गांधी ने पार्टी का कर्ज ही मांग लिया!
युवाओं की भागीदारी बढ़ाये जाने के पीछे दलील ये रही कि चिंतन शिविर में बुलाये गये ज्यादातर डेलीगेट्स 40 साल से कम उम्र के ही हैं, लेकिन मंच पर सोनिया के साथ साथी नेताओं को देख कर तो ऐसा बिलकुल नहीं लगा. हो सकता है, मंच के सामने बैठने में युवा नेताओं को ज्यादा सीटें दी गयी हों.
ऐसे युवा नेताओं में से एक हार्दिक पटेल तो पहुंचे नहीं. हां, गुलाम नबी आजाद जैसे नेता जरूर देखे गये जो कांग्रेस के G-23 के बागी नेताओं के नेता के तौर पर देखे जाने लगे हैं. अगर ऐसे नेताओं से सोनिया गांधी कुर्बानी देने को कह रही हैं तो बात और है.
बीजेपी ज्वाइन करने की चर्चाओं को तो हार्दिक पटेल अफवाह कह कर खारिज कर दे रहे हैं, लेकिन ये भी बता चुके हैं कि राहुल गांधी ने 15 दिन पहले मैसेज करके कहा था कि जो भी मामला है बेझिझक बतायें. फिर निराशा भरे भाव से बताते हैं कि जब भी वो फ्री होंगे उनके कॉल करेंगे. राहुल गांधी के हाल के गुजरात दौरे की बात पर हार्दिक पटेल कहते हैं कि वो काफी व्यस्त थे. व्यस्तता तो सबने देखी ही, लेकिन ऐसा जिग्नेश मेवाणी के मामले में तो नहीं ही दिखा.
कर्ज उतारने के लिए बचा क्या है: करीब 15 मिनट के अपने भाषण में सोनिया गांधी ने बहुत सारी बातें की, लेकिन जिस एक चीज ने सबका ध्यान खींचा, बल्कि कांग्रेस नेताओं को अंदर से झकझोर कर रख दिया वो रहा - कर्ज लौटाने की अपील.
सोनिया गांधी ने कहा, 'हम विशाल प्रयासों से ही बदलाव ला सकते हैं... हमें निजी अपेक्षा को संगठन की जरूरतों के अधीन रखना होगा... पार्टी ने बहुत दिया है - अब कर्ज उतारने की जरूरत है.'
ये तो ऐसा लगता है कि जो अपेक्षा कांग्रेस नेता गांधी परिवार से कर रहे हैं, सोनिया गांधी पहले उनसे ही मांग बैठी हैं - और बात तो ये है कि गांधी परिवार के पास तो बहुत कुछ है भी लेकिन उनके पास तो लौटाने लायक कुछ बचा भी नहीं है. महसूस तो वे ऐसा ही कर रहे हैं.
एक अध्यक्षीय भाषण!
नव संकल्प चिंतन शिविर में सोनिया गांधी का संबोधन बिलकुल वैसा ही रहा जैसा कांग्रेस के लिए फिलहाल जरूरी है - सारी नाकामियों को कबूल करते हुए और निराश हो चुके कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई का मकसद लिये.
हाल फिलहाल कर्नाटक और गुजरात में आयोजित कांग्रेस के कुछ चिंतन शिविरों को देखें तो राहुल गांधी ने जिस तरीके से कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने की कोशिश की थी, सोनिया गांधी एक तरीके से उसी पहल को अपने हिसाब से आगे बढ़ाने की कोशिश करती लगती है.
बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार पर सोनिया गांधी के हमले में कोई नयी बात सुनने को नहीं मिली है. वही नफरत फैलाने और केंद्रीय एजेंसियों के दुरूपयोग और लोकतंत्र की सभी संस्थाओं की स्वतंत्रता को खत्म करने जैसी बातें सोनिया गांधी के भाषण में सुनने को मिली हैं. हो सकता है, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के बहाने विपक्षी खेमे के नेताओं को भी ये मैसेज देने की कोशिश हो कि बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने वाली एक ही पार्टी है, और वो है कांग्रेस.
चिंतन शिविर की अहमियत समझाते हुए सोनिया गांधी ने कहा, 'नव संकल्प चिंतन शिविर बीजेपी की नीतियों, आरएसएस और उसके सहयोगियों के कारण देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उस पर हमें चर्चा करने का मौका देता है... ये हमारे सामने मौजूद कामों को लेकर विचार-विमर्श करने का मौका भी है - ये राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चिंतन करने और पार्टी को लेकर आत्मचिंतन करने दोनों का मौका है.'
CWC की एक विशेष बैठक में तो सोनिया गांधी सिर्फ दावा किया था कि कांग्रेस अध्यक्ष फिलहाल वो ही हैं और सारे फैसले भी खुद ले रही हैं, लेकिन राजस्थान के उदयपुर में चल रहे चिंतन शिविर में ने अपने हाव-भाव और बातों से भी इसे साबित करने की कोशिश की - कांग्रेस नेताओं से निजी तौर पर अपील भी की और एक्शन लिये जाने के संकेत भी दिये.
सोनिया गांधी के कांग्रेस में सुधार पर जोर देने और अजय माकन के 'एक परिवार, एक टिकट' को लेकर कांग्रेस के भीतर चल रहे मंथन की जानकारी मिलने के बाद - ये तो लगने लगा है कि कांग्रेस नेतृत्व बड़े बदलावों को लेकर गंभीरता से विचार कर रहा है. ये बात अलग है कि व्यावहारिक तौर पर ये बातें कहां तक हकीकत बन पाती हैं.
'एक परिवार, एक टिकट' की चर्चा कांग्रेस में कुछ दिन पहले ही शुरू हुई है और इसका मकसद और संकेत दोनों साफ लगते हैं. थोड़ा अलग हट कर सोचें तो इसमें चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाहियत का असर भी देखा जा सकता है.
प्रशांत किशोर के साथ बात भले न बन पायी हो, लेकिन कांग्रेस नेताओं की तरफ से ये संकेत तो दिये ही जा चुके हैं कि उनकी तरफ से सुझाये गये कुछ उपायों पर अमल जरूर किया जाएगा. ऐसे कदम उठाये जाने का मकसद तो बीजेपी के हमलों का काउंटर मेकैनिज्म ही लगता है. जैसे राहुल गांधी ने गैर-गांधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष की पैरवी शुरू की थी, इसे उसी चीज को आगे बढ़ाये जाने की कोशिश भी समझी जा सकती है.
एक चर्चा तो पहले से ही चल रही है कि कांग्रेस नेता चिंतन शिविर में राहुल गांधी के फिर से अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के लिए दबाव बना सकते हैं - और आगे की चर्चा ये भी सुनी गयी है कि राहुल गांधी शायद अब न कहें, 'वो देखने वाली बात होगी.'
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