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Updated: 02 मई, 2022 10:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) कोई नयी घोषणा करने वाले हैं. कुछ नया करने के लिए प्रशांत किशोर ने साल भर का वक्त लिया था. अव्वल तो ये पूरा एक साल उनके लिए छुट्टी जैसा होना चाहिये था, लेकिन नहीं हो सका.

पंजाब चुनाव के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह का ठेका रद्द करते वक्त भी प्रशांत किशोर ने कुछ ऐसी ही बातें कही थी. लेकिन त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस के लिए तैयारियां और गोवा चुनाव कैंपेन के लिए भी समय निकालना पड़ा - और कांग्रेस के लिए 2024 के आम चुनाव का ब्लू प्रिंट भी तो इसी दौरान तैयार किया है. जितना लंबा प्रजेंटेशन रहा, बनाने में भी काफी वक्त लगा ही होगा.

नतीजों के हिसाब से प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल चुनाव की कामयाबी को कहीं ज्यादा महत्व दे रहे हैं. सबसे बड़ी बात रही बंगाल चुनाव में बीजेपी की सीटों को लेकर प्रशांत किशोर के दावे का सौ फीसदी सच होना.

प्रशांत किशोर ने पहले ही बोल दिया था कि बीजेपी बंगाल चुनाव में 100 सीटों तक भी नहीं पहुंचने वाली. ये भी कहा था कि अगर ऐसा हुआ तो वो इलेक्शन कैंपेन का काम छोड़ देंगे. और जब बीजेपी की ताकत की बात चली तो ये भी बोले कि तीन बार तो शिकस्त दे चुके. कुछ कुछ डंके की चोट पर वाले अंदाज में. असल में बीजेपी नेता अमित शाह को लेकर रिएक्ट कर रहे थे. ये तीन चुनाव थे - 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव, 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव और 2021 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव.

शायद इसीलिए 2 मई की तारीख को वो अपने लिए शुभ और ऐतिहासिक मान कर चल रहे हैं. बंगाल चुनाव के नतीजे आये तो प्रशांत किशोर को चुनाव कैंपेन का काम छोड़ने की जरूरत नहीं रह गयी थी, क्योंकि बीजेपी को लेकर उनकी भविष्यवाणी सही साबित हो चुकी थी - लेकिन, तब भी प्रशांत किशोर ने ऐलान कर दिया कि आगे से वो चुनाव रणनीतिकार के तौर पर काम नहीं करेंगे.

फिर सवाल उठा कि कौन सा काम करेंगे? सवाल के जवाब में प्रशांत किशोर ने जो कुछ भी बताया उससे कोई साफ तस्वीर नहीं निकल कर आ सकी. प्रशांत किशोर ने ये संकेत जरूर दिया था कि वो मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बनना चाहेंगे, लेकिन इसके लिए कोई पार्टी ज्वाइन करेंगे या फिर अपना कोई राजनीतिक दल बनाएंगे - ये भी स्पष्ट नहीं हो सका था.

एक दिन अचानक जब कांग्रेस की तरफ से बताया गया कि प्रशांत किशोर को पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर दिया गया है, तो लगा प्रशांत किशोर साल भर पहले अलग अलग तरीके से यही समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन जब प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर बता दिया कि कांग्रेस का ऑफर वो ठुकरा चुके हैं तो बात घूम फिर कर फिर उसी मोड़ पर आ गयी, जहां से चली थी.

सवाल ये है कि 2024 के आम चुनाव (2024 General Election) के लिए प्रशांत किशोर ने एक्शन प्लान का जो ब्लूप्रिंट तैयार किया है, उसका समय रहते कोई इस्तेमाल हो पाएगा भी क्या? तब भी जब प्रशांत किशोर किसी पार्टी से जुड़ते हैं - और तब भी जब ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता.

सवाल ये भी है कि प्रशांत किशोर की भूमिका से अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को कोई चुनौती मिलेगी भी क्या - क्योंकि प्रशांत किशोर हाथ पर हाथ धरे बैठ गये, फिर तो बीजेपी को खुला मैदान ही मिल जाएगा.

हाल फिलहाल प्रशांत किशोर ने हर बार पूछे जाने पर एक ही बात समझाने की कोशिश की है - 2 मई को एक साल पूरा हो रहा है और वो उस खास मौके पर ही अपने बारे में भविष्यवाणी करना चाहेंगे.

अगले आम चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका

बंगाल के चुनाव नतीजे आने के दिन प्रशांत किशोर इंडिया टुडे टीवी पर थे, जब उनके फ्यूचर प्लान को लेकर कई सवाल पूछे गये. प्रशांत किशोर जिस बात पर ज्यादा जोर रहा, वो था - आगे से वो चुनाव कैंपेन का काम तो नहीं करने वाले. दरअसल, ऐसा बोल कर वो ये संकेत देने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में ही दिलचस्पी है, इसलिए वो कोई और काम नहीं करना चाहेंगे.

prashant kishorप्रशांत किशोर के पिटारे में नया क्या है?

करीब एक साल बाद बीबीसी से बातचीत में भी प्रशांत किशोर ने अपने अगले कदम की जानकारी तो 2 मई के बाद ही देने को कही है, लेकिन इतना इशारा जरूर कर दिया है कि 2024 के लोक सभा चुनाव में देश उनको चुनाव रणनीतिकार के तौर पर नहीं, बल्कि - एक नेता के रूप में ही देखेगा.

अब अगर पूरे एक साल तक वो अपनी बात पर टिके हुए हैं तो बगैर किसी शक शुबहे के मान कर चलना चाहिये कि प्रशांत किशोर अगले आम चुनाव में नये अवतार में ही देखने को मिलेंगे. ये बात अलग है कि अगर कोई पार्टी उनको अपने साथ लेगी तो भी उनसे अपेक्षा तो यही रहेगी कि वो दल विशेष का हिस्सा बन कर भी वैसा ही चमत्कार दिखायें जैसा अब तक क्लाइंट के लिए सलाहकार बन कर प्रदर्शित करते रहे हैं.

ऐसी सूरत में भी प्रशांत किशोर को लेकर भी पहले वही दो सवाल हैं जो साल भर पहले हुआ करते थे - राजनीति के लिए वो किसी पार्टी में शामिल होंगे या फिर अपनी नयी पार्टी बनाएंगे? अगर राजनीतिक दल बनाएंगे तो उसका कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय होगा या क्षेत्रीय?

नया ठिकाना कहां हो सकता है: एक साल पहले की ही बात है, जब प्रशांत किशोर ने कहा था कि चाहे जो भी काम वो भविष्य में करेंगे, उसका कार्यक्षेत्र बिहार के इर्द गिर्द ही होगा - तो क्या प्रशांत किशोर बिहार से भी राजनीति की नयी शुरुआत कर सकते हैं?

अगर ऐसा वो करते हैं और सफल रहते हैं तो जाहिर है वो बेहद खुश होंगे. इसलिए भी क्योंकि जेडीयू ज्वाइन करने के पीछे भी बिहार में ही काम करने जैसा मकसद रहा होगा. एक तरीके से खोया हुआ सम्मान पाने जैसा भी होगा. जेडीयू एंट्री तो प्रशांत किशोर की शानदार रही, लेकिन बाहर का रास्ता बहुत ही बुरी तरह से दिखाया गया था.

बिहार को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है, ये कांग्रेस को दिये गये सुझावों से भी मालूम होता है. प्रशांत किशोर का सुझाव था कि कांग्रेस बिहार में अपने बूते खड़े होने की कोशिश करे, न कि आरजेडी के साथ चुनावी गठबंधन के जरिये. ये भी यही बता रहा है कि वो बिहार में अपने तरीके से संगठन तैयार करना चाहते हैं. पूरी तरह अपनी टीम बनाने की कोशिश लगती है.

जहां तक कोई पार्टी ज्वाइन करने का सवाल है, अब भी ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस के दरवाजे बंद हो चुके हैं. देखा जाये तो जब से प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी की मीटिंग हुई है, कांग्रेस लगातार चर्चा में बनी हुई है. प्रशांत किशोर के नाम पर ही सही, प्रशांत किशोर के इंटरव्यू के बहाने ही सही - चर्चा तो कांग्रेस की ही हो रही है. ये भी तो हो सकता है, कांग्रेस को चर्चा में बनाये रखने का ये भी कोई तरीका ही हो.

हर इंटरव्यू में प्रशांत किशोर समझा तो यही रहे हैं कि कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनकी न तो कोई अनबन थी, न है. कांग्रेस की तरफ से भी नहीं कहा गया है कि प्रशांत किशोर के प्लान में कोई बुराई थी.

बल्कि, कांग्रेस की तरफ से बताया गया है कि प्रशांत किशोर के सुझावों में से कुछ पर कांग्रेस अमल भी करने जा रही है. और प्रशांत किशोर को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं है - मतलब, दोनों की नये सिरे से मीटिंग भी हो सकती है और बात आगे भी बढ़ सकती है.

ये पूछे जाने पर कि दोनों के बीच जब इतनी सहमति रही, तो दिक्कत कहां आई? प्रशांत किशोर बताते हैं कि मतभेद इस बात पर हुआ कि प्लान पर अमल कैसे किया जाएगा. जो बॉडी प्लान को एग्जीक्यूट करेगी उसकी पार्टी के संविधान के हिसाब से हैसियत क्या होगी? ये बता रहा है कि अगर कांग्रेस और प्रशांत किशोर थोड़ा थोड़ा समझौता करें तो रिश्ता कभी भी पक्का हो सकता है.

अब सवाल ये है कि अगर कांग्रेस से फिर भी बात नहीं बन पायी तो? ये इस बात पर निर्भर करता है कि प्रशांत किशोर की महत्वाकांक्षा कितनी बड़ी है? प्रशांत किशोर की जो काबिलियत है, कोई भी पार्टी उनको अपने साथ ले सकती है, बशर्ते वो सब कुछ अपने मनमाफिक करने की जिद छोड़ दें.

एक चर्चा है कि प्रशांत किशोर जल्दी ही पटना का दौरा करने वाले हैं. अब पटना जाएंगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात होगी ही - और वहां भी स्कोप उनके लिए पूरी तरह तो खत्म नहीं ही हुआ है.

क्या मोदी को कोई चैलेंज नहीं कर पाएगा

विपक्षी दलों के जो आपसी मतभेद हैं, ऐसा नहीं लगता कि प्रशांत किशोर जैसे किसी कनेक्टिंग लिंक के बगैर वे एकजुट हो पाएंगे. वैसे तो ऐसा काम प्रशांत किशोर के लिए भी हद से ज्यादा मुश्किल ही होगा, लेकिन कोशिश करने में क्या जाता है.

फर्ज कीजिये, प्रशांत किशोर कोई वैसा फोरम नहीं खड़ा कर पाते जो 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर पाये तो समझ लीजिये, बीजेपी के लिए एक बार और खुला मैदान मिलेगा - और तीसरी पारी भी निश्चित हो जाएगी.

अपने इंटरव्यू में प्रशांत किशोर खुद भी यही चीज समझाने की कोशिश कर रहे हैं. ये तो है कि प्रशांत किशोर पहले भी कह चुके हैं कि 2024 में बीजेपी को चैलेंज करना नामुमकिन नहीं है. हालांकि, प्रशांत किशोर के ऐसे भी बयान आये हैं जिसमें वो कहते हैं कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए धैर्य से काम लेना होगा. मतलब, ये काम 2024 में हो ही जाएगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता.

प्रशांत किशोर ये भी समझा रहे हैं कि बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने में कोई तीसरा मोर्चा कामयाब नहीं हो सकता. हालांकि, टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं. प्रशांत किशोर की कंपनी का टीआरएस के साथ ताजा करार भी हुआ है और कांग्रेस के उनके प्रति अविश्वास की एक वजह वो भी समझी गयी है.

एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर कहते हैं, 'मैंने कभी नहीं माना कि कोई तीसरा या चौथा मोर्चा चुनाव जीत सकता है... अगर बीजेपी को पहला मोर्चा मान लिया जाये तो उसे हराने के लिए दूसरा मोर्चा होना चाहिये - अगर कोई पार्टी बीजेपी को हराना चाहती है तो उसे दूसरे मोर्चे के रूप में मजबूती से खड़ा होना होगा.'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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