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Updated: 16 नवम्बर, 2016 04:56 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
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बीजेपी जिसे अपना मास्टरस्ट्रोक मानती है, नरेंद्र मोदी जिसे लागू करने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहे हैं, पूरी बीजेपी सरकार जिस नोटबंदी को सफल बनाने के लिए रोज नए नए उपाय ला रही है, और जिसके लिए पूरा देश लाइन में खड़ा हो गया है, दिन हो या रात, उस मास्टरस्ट्रोक के खिलाफ बीजेपी की सहयोगी और महाराष्ट्र सरकार में उसकी सहभागी शिवसेना विपक्ष से जा मिली है और ममता बनर्जी के साथ नोटबंदी के मुद्दे पर बीजेपी सरकार को घेरने जा रही है. वो भी तब जबके कांग्रेस, लेफ्ट और अरविन्द केजरीवाल ने ममता बनर्जी के इस शक्ति प्रदर्शन में शामिल होने से इंकार कर दिया है.

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 शिवसेना ने नरेंद्र मोदी सरकार को 500 और 1000 के नोटों को अवैध करार देने पर आड़े हाथ लिया है

शिवसेना का कहना है कि नोटबंदी के मुद्दे पर उसके 21 सांसद ममता बनर्जी की टीएमसी के 44 सांसदों के साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगे क्योंकि ये मसला अब सरकार और विपक्ष का नहीं रह गया है. शिवसेना ने नरेंद्र मोदी सरकार को 500 और 1000 के नोटों को अवैध करार देने पर आड़े हाथ लिया है. पार्टी का मानना है कि ये कदम जन-विरोधी है और इसने आम आदमी की जान को सांसत में डाल दिया है.  

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अब ये नोटबंदी जन-विरोधी है या मास्टरस्ट्रोक इस पर हमेशा बहस होती रहेगी और समय ही इसका फैसला करेगा. फिलहाल जो सच्चाई है वो ये के लोगों को काफी परेशानी हो रही है और समाज रुक सा गया लगता है.  

लेकिन शिवसेना का ये रुख इस मुद्दे पर दलगत राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं लगता क्योंकि 2014 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने और जोड़ने के बाद शिवसेना हमेशा इस ताक में रहती है कि किस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा जाए. बीजेपी और शिवसेना का महाराष्ट्र में 1989 से गठबंधन चला आ रहा था जो 2014 में चुनावों से पहले टूट गया. मसला सीट-शेयरिंग का था. शिवसेना गठबंधन में हमेशा सीनियर पार्टनर रही थी जबकि बीजेपी बदली हुई परिस्थितियों का हवाला देकर ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी. चुनाव के बाद बीजेपी की मांग सही साबित हुई जब पार्टी ने शिवसेना से काफी ज्यादा सीटें जीतीं और इसके बिना सहयोग के ही महाराष्ट्र में सरकार बना ली. बाद में शिवसेना को अपमान का घूंट पीकर एनडीए में फिर से शामिल होना पड़ा और बीजेपी का जूनियर पार्टनर बनना पड़ा.

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लेकिन रिश्ते कभी सुधर नहीं पाए 

बीजेपी-शिवसेना में वाकयुद्ध रोज की बात हो गयी, आये दिन शिवसेना के मुखपत्र सामना में बीजेपी की आलोचना आम हो गयी, और शिवसेना के ये बयान कि पार्टी जन-मुद्दों पर सरकार से अलग होने से भी गुरेज नहीं करेगी, हमेशा ही ये इंगित करते रहे कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन अब बेमेल हो चला है और इन्हें कायदे से अब अलग हो जाना चाहिए. बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) के चुनाव अगले साल होने हैं. शिवसेना यहाँ सीनियर पार्टनर है लेकिन दोनों पार्टियां चुनाव अलग अलग लड़ने का मन बना रही हैं. शिवसेना ने ऐसे हिंट दिए हैं तो बीजेपी भी अपने आतंरिक सर्वेक्षणों पर जाने का मन बना रही है जिनके अनुसार बीजेपी के अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी, जैसा की महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में हुआ था.  

दोनों पार्टियों में तल्खी इतनी बढ़ चुकी है कि दोनों बात-बात में अलग होने की बात करती हैं. नोटबंदी के भी मुद्दे पर शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि इसे रोल-बैक करना पड़ेगा नहीं तो पूरी सरकार ही रोल-बैक कर दी जाएगी. अब जबके बीजेपी सरकार ने भी ये स्पष्ट कर दिया है कि सरकार इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी तो क्या शिवसेना को अपनी बात पर कायम नहीं रहना चाहिए? इतने मतभेदों और मनभेदों के बाद अब तो दोनों पार्टियों के साथ रहने का कोई तुक नहीं बनता !

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लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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