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Updated: 12 दिसम्बर, 2020 03:09 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर शरद पवार (Sharad Pawar) के बयान में ऐसी कोई बात नहीं थी जिसे पहले किसी ने सुना, कहा या समझा न हो. एनसीपी नेता शरद पवार का ऑब्जर्वेशन भी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसा ही रहा, जिसकी खुद राहुल गांधी को भी परवाह नहीं होती. वो तो कब के ऐसी बातों के आदी हो चुके हैं. हालांकि, शरद पवार ने बराक ओबामा की टिप्पणी पर आपत्ति भी जतायी थी.

वैसे भी शरद पवार ने भी तकरीबन वैसी ही राय जाहिर की थी, जैसा कांग्रेस का G-23 सोचता है, वरना ये मांग क्यों की जाती कि कांग्रेस में ऐसा अध्यक्ष बनाया जाये जो वास्तव में काम करता हुआ नजर भी आये. सोनिया गांधी को लेकर तो ऐसी शिकायत किसी की भी कभी भी नहीं रही, कम से कम सार्वजनिक तौर पर तो किसी ने ऐसे विरोध तो नहीं ही किया - और शरद पवार भी तो वहीं राय जाहिर किये जो कांग्रेस में भी कई सीनियर नेताओं को लगता है.

बिहार चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर भी कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठियों की बातें याद दिलाने की कोशिश की थी.

एक इंटरव्यू में शरद पवार से पूछा गया था - 'क्या देश राहुल गांधी को नेता मानने के लिए तैयार है?'

जाहिर है ये सवाल कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर उठते सवाल और चुनावी प्रदर्शनों के बाद की परिस्थितियों के प्रसंग में पूछे गये थे. वो भी तब जबकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि अगले साल की शुरुआत में ही राहुल गांधी फिर से कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल सकते हैं.

सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष का कामकाज देखने के साथ ही, यूपीए चेयरपर्सन की भी जिम्मेदारी उठाती आ रही हैं. बल्कि, सोनिया गांधी यूपीए के गठन से ही उसका नेतृत्व कर रही हैं. ये तो हर कोई समझ रहा है कि सेहत ठीक नहीं होने के बावजूद सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले रखी है, ताकि कहीं राहुल गांधी की गैर-गांधी परिवार अध्यक्ष की जिद के चलते कमान हाथ से निकल न जाये.

शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाये जाने की चर्चा भी ऐसी ही परिस्थितियों में चली है. ये बाद अलग है कि एनसीपी की तरफ से ऐसी चर्चाओं को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है - लेकिन इस बात से तो कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि जितनी जरूरत कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व की है, उतनी ही जरूरत यूपीए को भी एक सर्व स्वीकार्य नेतृत्व की है.

अब जरा ये भी समझना जरूरी है कि राहुल गांधी पर शरद पवार के बयान के बाद एनसीपी नेता को यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस का चेयरमैन बनाये जाने की चर्चा के बीच कोई सीधा कनेक्शन भी है क्या?

कौन बनेगा UPA का अगला चैयरमैन?

राहुल गांधी की राजनीति में निरंतरता की कमी बताने के बाद किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करने शरद पवार, राहुल गांधी के साथ ही राष्ट्रपति भवन गये थे. माना जा सकता है, राहुल गांधी के मन में भी शरद पवार की टिप्पणी को लेकर कोई नाराजगी नहीं है, वरना जैसी नाराजगी आम चुनाव के बाद अमेठी वालों के साथ देखने को मिली थी, कांग्रेस नेता का चेहरा देख कर शरद पवार को भी समझ में आ ही जाता.

sharad pawar, rahul gandhiकिसानों को लेकर विपक्षी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल में शरद पवार और राहुल गांधी साथ ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात किये.

NCP ने शरद पवार Sharad Pawar को यूपीए अध्यक्ष बनने की चर्चा को लेकर आयी खबरों को खारिज कर दिया है. एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता महेश तापसे ने इसे किसान आंदोलन से भी जोड़ने की कोशिश की है.

एनसीपी प्रवक्ता का कहना है, 'मीडिया में जो खबरें आ रही हैं, उनको किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने के मकसद से कुछ लोगों ने फैलाया है.' अच्छी बात है. ये एनसीपी का अपना पक्ष हो सकता है, लेकिन मीडिया में भी खबरें यूं ही नहीं आयी हैं - और महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार में सहयोगी पार्टी शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने अपनी राय जाहिर कर बात को आगे बढ़ा दिया है.

संजय राउत का ये कहना कि कभी भी कुछ भी हो सकता है, ऐसी चर्चाओं को खारिज करने की जगह और हवा ही दे रहा है. संजय राउत कहते हैं, शरद पवार में देश का नेतृत्व करने के सारे गुण हैं... पवार के पास बहुत अनुभव है और उन्हें देश के मुद्दों का ज्ञान है - वो जनता की नब्ज भी पहचानते हैं.

बहरहाल, एनसीपी अपनी बात पर कायम है - महेश तापसे कह रहे हैं, 'शरद पवार के UPA अध्यक्ष बनने को लेकर किसी तरह की कोई चर्चा अभी नहीं हुई है. हमारी पार्टी स्पष्ट करना चाहती है कि यूपीए के सहयोगियों की तरफ एनसीपी के पास ऐसा कोई प्रपोजल नहीं आया है.'

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जब पहली बार ये खबर आयी तो कोई भी न तो आधिकारिक तौर पर पुष्टि करने को तैयार था न ही, आगे बढ़ कर खारिज ही कर रहा था. एनसीपी ने भी खबर को खारिज तब किया है जब ये बात सबको मालूम हो गयी है - मतलब तो ये भी हुआ कि सभी चाहते थे कि अंदर की चर्चा पर बाहर भी चर्चा हो और ये समझने को मिले कि लोगों का रिएक्शन क्या है?

कुछ सहज और स्वाभाविक सवाल भी हैं - अगर शरद पवार नहीं हैं यूपीए चैयरमैन के पद की रेस में तो कौन है?

और सवाल ये भी है कि अगर यूपीए चेयरमैन की रेस में शरद पवार नहीं हैं तो क्यों नहीं हैं?

शरद पवार नहीं तो कौन लेगा सोनिया गांधी की जगह?

2017 में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी सौंपने के बाद सोनिया गांधी ने भी उनको अपना नेता मान लिया था, लेकिन यूपीए नेतृत्व की जिम्मेदारी अपने पास ही रखी रहीं. असल बात तो ये है कि सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से संन्यास न लेने का एक तरीके से ये संकेत भी था. चूंकि राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व ज्यादा दिन संभाल नहीं सके और पुरखों की पार्टी को किसी के भी हवाले करने पर तुले नजर आये तो मन मार कर सोनिया गांधी को फिर से पार्टी का मास्टर स्वीच अपने पास रखना पड़ा. सोनिया गांधी के पास जो मास्टर स्वीच है, उसे इस्तेमाल तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी कर सकते हैं या कहें कि करते ही हैं, लेकिन फिंगर इम्प्रेशन तो वहां सोनिया गांधी की ही चलती है.

राहुल गांधी की दोबारा होने जा रही ताजपोशी के बीच अब ऐसी भी खबरें आने लगी हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ यूपीए चेयरपर्सन का पद भी छोड़ कर कागजी जिम्मेदारियों से उबरना चाहती हैं - हालांकि, इसका मतलब व्यावहारिक राजनीति से रिटायरमेंट कतई नहीं समझा जाना चाहिये. सेहत ठीक न होने के साथ साथ सोनिया गांधी के सामने ये चीजें इसलिए भी चैलेंज की शक्ल लेने लगी हैं क्योंकि न तो अहमद पटेल अब साथ हैं, न ही उनकी जगह लेने वाला कोई दूर दूर दिखायी ही पड़ रहा है.

ये ठीक है कि शरद पवार के यूपीए चेयरमैन बनने की खबरों को लेकर एनसीपी ने अपना पक्ष रख दिया है - लेकिन ये ऐसी बात भी नहीं है कि पार्टी प्रवक्ता के बयान जारी कर देने भर से ये मामला खत्म हो जाएगा. हां, ये बात अगर खुद शरद पवार कहें या राहुल गांधी सामने आकर बोलें या फिर सोनिया गांधी की तरफ से कोई मैसेज आये तो निश्चित तौर पर गंभीरता से लेने के साथ साथ अंतिम भी मान लिया जाएगा- लेकिन तब अगला सवाल ये भी होगा कि अगर शरद पवार नहीं तो सोनिया गांधी की जगह कौन लेगा?

आम चुनाव के दौरान शरद पवार और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भूमिका एक तरीके से यूपीए चेयरमैन वाली ही महसूस की जा रही थी - ये रोल वैसे किसी भी नेता पर फिट बैठता है जो प्रधानमंत्री बनने का ख्वाहिशमंद न हो और सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की स्वीकार्यता के साथ साथ उसमें नेतृत्व की भी क्षमता हो.

शरद पवार और एचडी देवगौड़ा के बारे में तब कहा जाता रहा कि दोनों में दो ऐसी खास बातें हैं जिन पर विपक्ष के किसी तरह के ऑब्जेक्शन का सवाल पैदा नहीं होतान - पहला, दोनों में से कोई भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं है - और दोनों ही सीनियर हैं. ऊपर से, एजडी देवगौड़ा तो साल भर प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं.

महाराष्ट्र में सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही शरद पवार ने संकेत दिये थे कि समान विचार वाले राजनैतिक दलों को एक साथ मिल कर एक मंच तैयार करना जरूर चाहिये - और पहल भी की थी कि वो ऐसा नेताओं से संपर्क कर उनकी राय जानने और फिर उसको लेकर आगे की रणनीति तैयार करेंगे - हालांकि, बाद में इस प्रसंग में कोई अपडेट नहीं आया.

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