New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 26 सितम्बर, 2019 02:38 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

शरद पवार के खिलाफ केस दर्ज किये जाने के बाद NCP कार्यकर्ताओं ने मुंबई में ED दफ्तर के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया है. मुंबई पुलिस बड़ी मेहनत से एनसीपी कार्यकर्ताओं को हटा पायी.

शरद पवार ने कहा कि वो जांच एजेंसियों को सहयोग तो करेंगे लेकिन झकने वाले नहीं हैं. एनसीपी नेता ने कहा, 'महाराष्ट्र का इतिहास ने हमें दिल्ली की सत्ता के आगे झुकना नहीं सिखाया है... शिवाजी के आदर्शों पर चलता हूं कि उन्होंने हमें बचपन से ही सिखाया है कि दिल्ली की ताकत के आगे नहीं झुकना है.'

केस दर्ज होने के बाद शरद पवार ने कहा था कि उन्हें जेल भेजे जाने की तैयारी हो रही है - लेकिन बाद में मीडिया के सामने आकर शरद पवार ने 27 सितंबर, 2019 को ED के सामने पेश होने की बात कही. प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने कहा - 'ये मेरे जीवन में दूसरी बार हुआ है. इससे पहले 1980 में मुझे एक आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था.'

हाल फिलहाल कदम कदम पर विजेता की तरह व्यवहार कर रहे बीजेपी नेता अगर बयानबाजी नहीं भी करते तो भी एनसीपी का हाल ऐसा ही होता - लेकिन लगता है बीजेपी का कुछ और ही इरादा है.

NCP को तो अपनों ने ही लूटा, वरना...

BJP के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान का सबसे ज्यादा असर महाराष्ट्र में ही नजर आ रहा है - और इसमें राहुल गांधी या उनके करीबी कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई भी रोल नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया तो चुनाव समिति के अध्यक्ष बनाये गये हैं जिसके जिम्मे बचे खुचे नेताओं में से ही उम्मीदवारों के नाम तय करने की जिम्मेदारी बची है. राहुल गांधी तो महाराष्ट्र को लेकर तभी गंभीर होते हैं जब RSS के खिलाफ मानहानि के मुकदमों कोर्ट जाना होता है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी नेतृत्व राष्ट्रवादी कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक मुक्ति यज्ञ करा रहा है. असर ये हुआ है कि दोनों दलों के एक दर्जन से ज्यादा विधायक और करीब तीन दर्जन नेता बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का शिकार होकर दोनों दलों में शिफ्ट हो चुके हैं - और यही वजह है कि अमित शाह कहते हैं कि अगर वो ओपन एंट्री कर दें तो NCP में शरद पवार और कांग्रेस में सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण ही बचेंगे. मतलब ये कि कम से कम ये दोनों नेता कभी भी टस से मस नहीं होने वाले.

कुछ दिन पहले शरद पवार ने इल्जाम लगाया था कि NCP नेताओं को जांच एजेंसियों के जरिये डरा-धमका कर बीजेपी पाला बदलने को मजबूर कर रही है. ऐसे कई किस्से भी वो सुना चुके हैं. देवेंद्र फडणवीस की इस बारे में अपनी दलील है, कहते हैं कि नेताओं को पता है कि अब भविष्य तो गठबंधन में ही. वैसे उनके मन में गठबंधन की जगह बीजेपी ही चल रहा होगा, गठबंधन तो राजनीतिक धर्म के पालन पर बचा है.

एनसीपी नेताओं को कौन कहे, अब तो शरद पवार, उनका परिवार और कई रिश्तेदार भी जांच एजेंसियों के दायरे में आ चुके हैं. स्टेट कोऑपरेटिव बैंक स्कैम केस में ED ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार के साथ ही अजित पवार, आनंद राव और जयंत पाटिल को भी FIR में नामजद किया है. दरअसल, 22 अगस्त को बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार सहित 70 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया था. 26 अगस्त को अजित पवार और अन्य के खिलाफ केस दर्ज भी हो गया था. अजित पवार 10 नवंबर 2010 से 26 सितंबर 2014 तक महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी सरकार में डिप्टी सीएम रहे हैं. अजित पवार एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे हैं.

लोक सभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में एनसीपी का हाल भी करीब करीब वैसा ही हो गया था जैसा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी का रहा.

पवार फेमिली में राजनीतिक विरासत की जंग की पहली झलक लोकसभा चुनाव के वक्त देखने को मिली थी. जंग के मुख्य किरदार शरद पवार के दो पोते रहे. एक, पार्थ पवार हैं जिन्हें शरद पवार ने अपनी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. दूसरे, रोहित पवार जो शरद पवार के बड़े बाई अप्पा साहेब पवार के पोते हैं. उसी दौरान शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की जिसमें एक ही मैसेज देने की कोशिश भी रही - हम सब साथ साथ हैं.

supriya sule family picNCP को तो अपनों ने ही... वरना गैरों में कहां दम था!

चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ पार्थ पवार ने पवार फेमिली में पहली बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है. शरद पवार की ही सीट से वो दो लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गये.

परिवार की राजनीति का वैसे तो फायदा ही फायदा है, लेकिन शरद पवार की इसकी वजह से फजीहत भी खूब हुई है. एक वाकया 2013 का है. तब शरद पवार केंद्र की यूपीए सरकार में कृषि मंत्री थे और उनके भतीजे और पार्थ पवार के पिता अजित पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम. सूखे से परेशान किसान हंगामा कर रहे थे जिसे देखकर अजित पवार आपे से बाहर हो गये और बोल पड़े कि जब बारिश नहीं हो रही है तो वो पानी कहां से लाएंगे, पेशाब करके डैम तो नहीं भर सकते ना?

शरद पवार के पास माफी मांगने के अलावा कोई चारा भी न था. आम चुनाव तो जैसे तैसे बीत गये लेकिन अजित पवार अपनी लाइन पर ही चलते रहे हैं. अभी 23 अगस्त को परभणी में एक चुनावी रैली में अजित पवार ने अजीबोगरीब बात कही - 'अब से पार्टी के सभी कार्यक्रमों में दो-दो झंडे लहराए जाएंगे.' अजित पवार ने समझाया कि एक झंडा पार्टी का होगा जो तिरंगे के बीच घड़ी निशान वाला है और दूसरा झंडा भगवा होगा, जिसके ऊपर मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की तस्वीर होगी.'

कन्फ्यूजन दूर करने के लिए शरद पवार को साफ करना पड़ा कि दो झंडे लागू करने का फैसला पार्टी ने नहीं लिया है, बल्कि अजित पवार का ये निजी फैसला है.

हाल ही में इंडिया टुडे कॉनक्लेव में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था - 'महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीति का युग खत्म हो चुका है... उन्होंने पार्टियां तोड़ीं... मरोड़ीं... कालचक्र का खेल देखिये... अब उनके साथ वैसे ही हो रहा है.'

क्या NCP की राजनीति खत्म हो चुकी है?

अब तक शरद पवार को सिर्फ थप्पड़ कांड के वक्त सबसे ज्यादा परेशान देखा गया था, लेकिन 30 अगस्त को अहमद नगर में मीडिया के एक सवाल पर एनसीपी नेता इतने नाराज हो गये कि प्रेस कांफ्रेंस छोड़ कर जाने लगे. दरअसल, शरद पवार से सवाल ही उनके रिश्तेदारों के पार्टी छोड़ने को लेकर हुआ था. शरद पवार समझ गये कि उनके रिश्तेदार पद्मसिंह पाटिल और उनके बेटे राणा जगजीत को लेकर ही सवाल पूछा गया है.

सवाल था - 'काफी नेता आपकी पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. अब आपके रिश्तेदार भी आपको छोड़ रहे हैं. आपकी क्या राय है?'

सवाल सुनते ही शरद पवार भड़क गये और उठ कर जाने लगे, ये कहते हुए कि ऐसे सवाल पूछना कोई सभ्य बात नहीं है. बाद में सीनियर पत्रकारों के समझाने बुझाने पर शरद पवार मान भी गये.

1999 में विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गांधी के विरोध के चलते 20 मई को शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया - और पांच दिन बाद ही 25 मई, 1999 को तीनों नेताओं ने मिल कर एक नयी राजनीतिक पार्टी एनसीपी बनायी. बाद में सोनिया गांधी के साथ सुलह हो जाने पर एनसीपी कांग्रेस में लौटी तो नहीं लेकिन शरद पवार यूपीए में जरूर शामिल हो गये. पीए संगमा का तो 2016 में ही निधन हो चुका था, 2018 में तारिक अनवर ने भी राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के मुद्दे पर तारिक अनवर ने एनसीपी छोड़ कर कांग्रेस में लौट गये. 2014 की मोदी लहर में भी बिहार से अकेले एनसीपी के टिकट पर संसद पहुंचे तारिक अनवर 2019 में कांग्रेस के टिकट पर कटिहार से ही चुनाव लड़े लेकिन हार गये.

जब से शरद पवार महाराष्ट्र में राजनीति शुरू किये ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी. एनसीपी के भी दो दशक की राजनीति में ऐसा कभी नहीं हुआ कि नेताओँ में 'तू चल मैं आता हूं' जैसी होड़ मची हो. उनके सबसे ज्यादा करीबी रहे नेता साथ छोड़ चुके हैं - और परिवार भी विरासद की जंग में पानी डालने को तैयार नहीं नजर आ रहा है.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे ऐसे तो नहीं कहे जा सकते जैसे 2019 वाले कांग्रेस के लिए रहे, लेकिन 2014 जैसे रहे तो देवेंद्र फडणवीस के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी - और बीजेपी के साथ महाराष्ट्र की राजनीति की नयी पीढ़ी में आदित्य ठाकरे का उदय हो सकता है.

इन्हें भी पढ़ें :

महाराष्‍ट्र चुनाव से पहले कांग्रेस-एनसीपी का जहाज डूबने के कगार पर क्यों?

महाराष्ट्र में कांग्रेस मरी नहीं है सिर्फ बीजेपी में जीवित रहने का प्रयास कर रही है

BJP-शिवसेना गठबंधन की भेंट चढ़े आदित्य ठाकरे के सपने

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय