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Updated: 10 अप्रिल, 2019 11:14 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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वो दौर तो सभी को याद ही होगा जब राहुल गांधी हर गली-चौराहे और रैलियों में 'चौकीदार चोर है' के नारे लगाते और लगवाते नजर आते थे. राहुल कहीं पर भी ये बताना नहीं भूलते थे कि पीएम मोदी ने राफेल डील में घोटाला किया है और अनिल अंबानी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने की कोशिश की है. उनका आरोप रहता था कि मोदी ने सेना का पैसा चुराकर अनिल अंबानी को दिया, इसलिए 'चौकीदार चोर है.' इन आरोपों का तोड़ भाजपा ने 'मैं भी चौकीदार' कैंपेन से निकाला और देखते ही देखते राहुल गांधी ने 'चौकीदार चोर है' कहना छोड़ दिया. मोदी हर सभा में लोगों से नारे लगवाने लगे कि 'मैं भी चौकादार.' धीरे-धीरे 'चौकीदार चोर है' कहने के राहुल गांधी के सारे रास्ते ही बंद हो गए और राफेल का मुद्दा भी कहीं दबकर रह गया.

अब राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है कि इस पर दोबारा सुनवाई की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने राफेल मुद्दे का दूसरा दौर चला दिया है. राहुल गांधी को फिर से चौकीदार चोर है कहने का मौका मिल गया है. साथ ही, पूरे विपक्ष को चुनावों के इस माहौल में राफेल मुद्दे के दम पर पीएम मोदी को घेरने का मौका मिल गया है. लेकिन जिस तरह से विपक्ष पीएम मोदी पर हमले कर रहा है, उससे विपक्ष एकजुट होने के बजाय और भी बिखरता जा रहा है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? तो चलिए बात करते हैं इसके जवाब पर.

राफेल डील, विपक्ष, लोकसभा चुनाव 2019जिस तरह से विपक्ष पीएम मोदी पर हमले कर रहा है, उससे विपक्ष एकजुट होने के बजाय और भी बिखरता जा रहा है.

विपक्ष में नेता तो बहुत हैं, लेकिन 'लीडर' कोई नहीं

विपक्ष में दरअसल एक 'नेता' की कमी है. यहां नेता से मतलब लीडर से है. वो जिसके पीछे लोग चलें, जिसकी बात मानें. जैसे नरेंद्र मोदी. जो कह दिया उस पर पूरी पार्टी ही नहीं, उनकी सहयोगी पार्टियां भी एकजुट दिखती हैं. ये लीडर की कमी ही है, जिसकी वजह से विपक्षी दलों ने मोदी को सत्ता के बाहर करने के लिए महागठबंधन तक बनाने से परहेज किया. सोनिया गांधी ने महागठबंधन बनाने की शुरुआत तो की, लेकिन कोई भी राहुल गांधी को अपना लीडर मानने को तैयार नहीं हुआ. हर नेता खुद को लीडर मानने लगा और हुआ ये कि विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया. अभी भी वैसा ही हो रहा है. राफेल के मुद्दे पर भी विपक्षी एकजुटता नहीं दिख रही, बल्कि दिख रहा है तो बिखराव.

सबकी अपनी ढपली, अपना राग

जितने नेता हैं, उन सबके अपने तर्क हैं. बात तो सारे एक ही चीज के बारे में कर रहे हैं, लेकिन सबकी बात एक बिल्कुल नहीं है. राफेल डील पर भी सारे मोदी को तो घेर रहे हैं, लेकिन एकजुट होकर नहीं, बल्कि अलग-अलग. इसी वजह से सबकी बात जनता तक पहुंचेगी भी अलग-अलग, जिसका मतलब समझना भी शायद जनता के लिए मुश्किल हो जाए. वो कहते हैं ना, एक ही बार में सारे लोग बोलेंगे तो कुछ समझ नहीं आएगा, लेकिन अगर कोई एक यानी लीडर सबकी बात बोल दे तो समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी. जैसा भाजपा में होता है. जो बात पीएम मोदी कहते हैं, वही पूरी पार्टी और सहयोगी पार्टियों का भी मत होता है.

दोबारा राफेल डील पर बहस टेढ़ी खीर

अब वो वक्त नहीं रहा जब राहुल गांधी हर जगह 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवाते थे. हर जगह लोगों को ये बताते थे कि राफेल डील में मोदी ने चोरी की है. उस वक्त राफेल की हर ओर चर्चा थी, लेकिन जब से भाजपा की ओर से 'मैं भी चौकीदार' कैंपेन चलाया गया है, तब से चौकीदार को देश के हर व्यक्ति से जोड़ दिया गया है. यानी अब अगर राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' कहते हैं तो इसका मतलब ये निकलेगा कि वह जनता को चोर कह रहे हैं. ऐसे में दोबारा राफेल डील को बहस का मुद्दा बनाना टेढ़ी खीर साबित होगा. इतना ही नहीं, इस चुनावी माहौल में अब और भी कई मुद्दे गरम हैं, जिनमें राहुल का वायनाड जाना, कमलनाथ के सहयोगी पर आयकर का छापा, पुलवामा आतंकी हमला, बालाकोट एयरस्ट्राइक भी शामिल हैं.

मोदी ने खड़ी कर दी एयरस्ट्राइक/पाकिस्तान पर बड़ी बहस

पुलवामा हमले के बाद एकाएक पूरे देश में बहस का मुद्दा ही बदल गया. पहले भाजपा-कांग्रेस एक दूसरे के घोटालों की बातें करते थे, कांग्रेस की ओर से राम मंदिर को लेकर भी भाजपा को घेरा जाता था, लेकिन 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने पूरा माहौल ही बदल दिया. सारी बातें देशभक्ति और पाकिस्तान को सब सिखाने पर होने लगीं. इस बीच कांग्रेस भी दूसरे मुद्दों को उठाकर जनता के बीच बुरी नहीं बनना चाह रही थी. कांग्रेस सोच रही थी कि कुछ दिन रुक जाएं फिर उन मुद्दों पर दोबारा मोदी को घेरेंगे, लेकिन तभी मोदी सराकर ने 26 फरवरी को पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी और सबसे बड़ी बहस को खड़ा कर दिया. अब देश में बात रोजगार, मंदिर, राफेल जैसे मुद्दों पर नहीं, बल्कि एयर स्ट्राइक पर होने लगी. राहुल गांधी जिस राफेल के मुद्दे को लेकर पीएम मोदी को घेरने निकले थे, उस पर भी मानो मोदी की एयर स्ट्राइक हो गई हो.

विपक्ष में एकजुटता नहीं होने की सबसे बड़ी वजह है राजनीतिक पार्टियों का निजी स्वार्थ. जब महागठबंधन की बात शुरू हुई थी, तो इसके मकसद था मोदी सरकार को सत्ता से हटाना. लेकिन इससे पहले की महागठबंधन अपना रूप ले पाता, सभी पार्टियों का निजी स्वार्थ सामने आने लगा. महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राहुल गांधी को लगा कि अगर मोदी हार जाते हैं और महागठबंधन जीता तो पीएम वही बनेंगे. लेकिन उनकी लीडरशिप ना तो मायावती को पसंद आई, ना ममता बनर्जी को ना ही अखिलेश यादव को. सारे के सारे पीएम बनने का सपना देख रहे हैं. विपक्ष में एकजुटता इसलिए बिखर गई, क्योंकि मकसद मोदी सरकार को सत्ता से हटाना नहीं रह गया और नया मकसद सत्ता हासिल करना हो गया. यही स्वार्थ विपक्ष को ले डूबेगा और मोदी सरकार को इसी का फायदा होगा, क्योंकि भाजपा में सबके मन में ये साफ है कि पीएम किसे बनना है, हर कोई पीएम बनने का सपना नहीं देख रहा.

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