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Updated: 24 दिसम्बर, 2017 04:58 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के अंतर्गत सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 4 नवंबर को एक ही झटके में 11 राजकुमारों, कई वरिष्ठ मंत्रियों, अधिकारियों समेत 200 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लेने का आदेश जारी किया था. सऊदी अरब की राजधानी रियाद का आलीशान रिट्ज-कार्लटन होटल 4 नवंबर से ही एक सुनहरी (गोल्डन पिंजरा जैसा) जेल बना हुआ है. सरकार ने हिरासत में लिए गए लोगों के बैंक खाते भी सील कर दिए और उनकी संपत्तियां जब्त करने की चेतावनी भी दी. इनमें राजकुमार अलवलीद बिन तलाल भी हैं, जो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार होते हैं. प्रिंस अलवलीद का ट्विटर, एपल, सिटिग्रुप और फॉरसीजन होटल चेन जैसी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में निवेश है. रुपर्ड मर्डोक के न्यूज कॉरपोरेशन में बड़े शेयर होल्डर हैं. एक समय इन्हें भी गद्दी का दावेदार माना जाता था.

इसके अलावा प्रिंस मोहम्मद ने शाही सेना के 'नेशनल गार्ड' के प्रमुख मुतैब बिन अब्दुल्ला को भी पद से हटा दिया. इस पूरे घटनाक्रम के द्वारा क्राउन प्रिंस ने सत्ता पर अपनी पकड़ काफी मजबूत कर ली. ताजा कार्रवाई के बाद 32 वर्षीय प्रिंस मोहम्मद ने खुद को बेहद ताकतवर बना लिया है और सऊदी अरब में हालिया दशकों में कोई भी क्राउन प्रिंस कभी इतना मजबूत नहींं रहा है. व्यावहारिक रूप से प्रिंस मोहम्मद इस समय रियासत की नीतियों से जुड़े तमाम फैसलों को सीधे प्रभावित करने की स्थिति में हैं. उनके पास अब सऊदी अरब की तमाम सुरक्षा इकाइयों-सेना,आंतरिक सुरक्षा बल और नेशनल गार्ड की कमान आ चुकी है. मोहम्मद बिन सलमान क्राउन प्रिंस होने के अलावा उप-प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी हैं. इसके अलावा तेल और आर्थिक मंत्रालय भी उनके निगरानी में है, जिसमें दिग्गज सरकारी तेल कंपनी "आरामको"  का नियंत्रण भी शामिल है.

गैर-लोकतांत्रिक देशों में सत्ता पर पकड़ मजबूत करने का यह प्रयास नया बिल्कुल नहीं है. अभी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के नाम पर उन्हें चुनौती दे रहे सभी वरिष्ठ नेताओं को जेल में डाल दिया. इतना ही नहीं 2022 में उनके उत्तराधिकारी बनने वाले नेता सू चंगसाए को पिछले ही माह सभी पदों से हटा दिया गया था. क्राउन प्रिंस शी जिनपिंग के इसी फार्मूले का सफलतापूर्वक प्रयोग सऊदी अरब में कर रहे हैं.

एक छोटे से समयांतराल में ही वे एक साथ कई  मोर्चे खोल रहे हैं. जहाँ शाही खानदान के सदस्यों पर कार्रवाई के नतीजे दिखना तो अभी बाकी है. सऊदी अरब में परंपरागत रूप से सत्ता के केंद्र शाही परिवार के अलग-अलग सदस्यों के हाथ में होते हैं, ताकि इसके लिए कोई संघर्ष की स्थिति नहीं बने. इन सदस्यों को जो भी फैसले करने होते हैं, उनकी पहले उलेमा(धार्मिक नेताओं की परिषद) से मंजूरी ली जाती है.

प्रिंस मोहम्मद के कदम इस परंपरा को पलटते दिख रहे हैं. राजकुमारों और कुछ धार्मिक नेताओं की गिरफ्तारी करवाकर उन्होंने सऊदी अरब में दशकों से कायम सत्ता संतुलन को हिला दिया है. जनता में एक बड़ा तबका उनके भ्रष्टाचार निरोधक अभियान का समर्थन करता है और वे इसके जरिए अपने बाकी बचे विरोधियों को भी ठिकाने लगा सकते हैं. इसी बीच सऊदी के दो अन्य शहजादों मंसूर बिन मुकरिन और अब्दुल अजीज की दुर्घटना में हुई मौत से ऐसी अटकलों को और बल मिलता है. इनके मौत के बाद सऊदी अरब के एक प्रिंस 'तुर्की बिन मोहम्मद बिन फहद' ने सऊदी अरब के धुर विरोधी ईरान में शरण ले ली है. इससे स्थिति के गंभीरता को समझा जा सकता है.

रुपये देकर छूटते सऊदी शहजादे---  

सऊदी अरब के अटर्नी जनरल का कहना है कि भ्रष्टाचार निरोधक अभियान में गिरफ्तार किए गए ज्यादातर लोग माफी के बदले सरकार के साथ समझौता करने को तैयार हो गए हैं. नवंबर अंत में ही सऊदी प्रिंस मितब बिन अब्दुल्ला जो कभी सिंहासन के दावेदार थे, को करीब एक बिलियन डॉलर से भी अधिक के अदायगी लेकर हिरासत से रिहा कर दिया गया है. अब तक सऊदी अरब के खजाने में 100 अरब डॉलर की राशि लाई जा चुकी है. माना जाता है कि इतनी ही अवैध राशि क्राऊन प्रिंस के निकटस्थ भी वसूल चुके हैं. ऐसे में क्राउन प्रिंस के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की वास्तविकता को समझा जा सकता है.. उम्मीद है कि जनवरी-फरवरी तक अधिकांश शहजादे भारी-भरकम अदायगी करके छूट जाएंगे.

साजिश करके मोहम्मद बिन सलमान क्राउन प्रिंस बने--

इस साल 20 जून को क्राउन प्रिंस मोहम्मद ने अपने रिश्तेदार भाई प्रिंस मोहम्मद बिन नाएफ को शाही प्रिंस के तख्त से उतारकर खुद उसपर कब्जा किया. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार 20 जून की रात वरिष्ठ शहजादे और वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी मक्का स्थित सफा पैलेस में मिले. उन्हें बताया गया कि किंग सलमान उनसे मिलना चाहते हैं. आधी रात को महल पहुँचने पर मोहम्मद बिन नाएफ को बताया गया कि शाह सलमान उनसे अकेले में बात करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें अलग कमरे में ले जाया गया. उस कमरे में उनका मोबाइल फोन ले लिया गया और उन पर गद्दी का हक छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया. शुरु में उन्होंने विरोध किया, लेकिन बाद में राजी हो गए. इस दौरान दूसरे राजकुमारों को भरोसे में लेने के लिए यह बात फैलाई गई कि मोहम्मद बिन नाएफ को नशे की लत है और वह किंग बनने के लायक नहीं है.

क्राउन प्रिंस के इतने अप्रत्याशित फैसलों के पीछे आखिर कौन सी शक्ति खड़ी है?

माना जा रहा है कि क्राउन प्रिंस को ट्रंप का खुला समर्थन प्राप्त है. ज्ञात हो दुनिया के सबसे बड़े अमीर लोगों में शामिल प्रिंस अलवलीद बिन तलाल के साथ ट्रंप के कारोबारी शत्रुतापूर्ण संबंध रहे हैं. ऐसे में उनकी गिरफ्तारी से ट्रंप को प्रसन्नता अवश्य हुई होगी. सीरिया में तमाम कोशिशों के बावजूद अमेरिका मजबूत उपस्थिति नहीं दर्ज करा पाया. इसलिए सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस सलमान के माध्यम से खाड़ी में अपनी स्थिति मजबूत करना चाह रहा है. इजराइल भी सऊदी के क्राउन प्रिंस का समर्थन कर रहा है.

अरब स्प्रिंग से सबक लेते क्राउन प्रिंस :  महिलाओं एवं युवाओं को लुभाने में सफल क्राउन प्रिंस--

मोहम्मद बिन सलमान 2011 के अरब स्प्रिंग को देख चुके हैं, जिसमें पूरे अरब क्षेत्र में युवाओं ने लोकतंत्र के लिए आंदोलन प्रारंभ कर दिया था. इसलिए क्राउन प्रिंस सलमान काफी चतुराई पूर्ण ढंग से घरेलू राजनीति में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान, कट्टरपंथी मुस्लिम छवि के स्थान पर उदारवादी चेहरा तथा आक्रामक विदेश नीति द्वारा राष्ट्रवाद को भी नए ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं. प्रिंस मोहम्मद का कहना है कि उन्होंने अपने मुल्क को कट्टरपंथी छवि से मुक्त कर सऊदी अरब को आधुनिक देशों की कतार में लाने का संकल्प लिया है. सऊदी अरब दुनिया का अंतिम देश था, जहाँ महिलाओं को ड्राईविंग करने की अनुमति नहीं थी, अब ये प्रतिबंध अगले जून मे खत्म हो जाएगा और सऊदी महिलाओंं का सपना पूर्ण हो जाएगा. इसी मंगलवार को सऊदी अरब ने महिलाओं को बाइक तथा ट्रक चलाने की भी छूट दे दी.

चंद दिनों पहले सऊदी अरब की राजधानी रियाद में लेबनानी गायिका हिबा तवाजी का कंसर्ट हुआ. सऊदी इतिहास में यह पहली बार हो रहा था. युवाओं एवं महिलाओं को लुभाने के लिए देश भर में सैकड़ों सिनेमा और कंसर्ट हॉल खोले जा रहे हैं. सऊदी अरब में करीब तीन दशकों से व्यावसायिक सिनेमा घरों पर चल रहे प्रतिबंधों को हटा लिया है. उम्मीद है कि पहला सिनेमाघर मार्च 2018 से प्रारंभ हो जाएगा.

यही कारण है कि अभी जब क्राउन प्रिंस अपने सत्ता के सभी कांटों को हटा रहे हैं, तो उन्हें युवाओं के विरोध का नहीं अपितु भारी समर्थन प्राप्त हो रहा है. ज्ञात हो कि सऊदी अरब की 65% आबादी 30 वर्ष से कम की है.

तेल की अर्थव्यवस्था--

अपने सुधार कार्यक्रमों के द्वारा क्राउन प्रिंस सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता वाले छवि को भी समाप्त करना चाहते हैं.इसके लिए मोहम्मद बिन सलमान ने विजन 2030 नाम से देश में एक नई परियोजना शुरु की है, जिसके तहत 2020 तक सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता खत्म हो जाएगी. उन्होंने इसके लिए रेगिस्तान में आधे खरब डॉलर का एक बड़ा शहर बसाने की योजना बनाई है. कहा जा रहा है कि इस शहर में महिलाओं और पुरुषों को एक दूसरे से मिलने जुलने की आजादी होगी. इससे पहले इस रूढ़िवादी समाज में ऐसी बातें कभी नहीं सुनी गई थी.

क्राउन प्रिंस सलमान की आक्रामक विदेश नीति--

4 नवंबर को ही एक विचित्र घटनाक्रम में लेबनान के प्रधानमंत्री साद-अल-हरीरी ने सऊदी अरब से ही टेलीविजन पर अपने इस्तीफे का ऐलान कर सबको चौका दिया था. यहाँ तक की उनके करीबी भी सन्न रह गए थे. सऊदी अरब में प्रधानमंत्री को इस्तीफे का आदेश दिया गया था और उन्हें नजरबंद कर लिया गया है. हालांकि, सऊदी अरब ने हरीरी को नजरबंद करने के आरोपों को खारिज किया .तब लेबनान ने सऊदी अरब से माँग की थी कि हमारा प्रधानमंत्री हमें वापस कर दो.

अंततः इस विवाद को सुलझाने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों को रियाद करनी पड़ी और उनके हस्तक्षेप से लेबनानी प्रधानमंत्री की रिहाई का रास्ता निकाला गया.इसके बाद  सऊदी अरब ने अपने नागरिकों को जल्द से जल्द लेबनान छोड़ने का आग्रह किया है.लेकिन इस घटनाक्रम से प्रिंस के अति आक्रामक विदेश नीति को देखा जा सकता है.

अरब दुनिया के ईरान और सऊदी अरब दोनों ही बेहद महत्वपूर्ण देश है. ईरान शिया बहुल देश है और सऊदी अरब सुन्नी बहुल. सऊदी अरब द्वारा प्रमुख शिया धर्म गुरु शेख अल निम्र को फाँसी दिए जाने के कारण ईरान के साथ उसका तनाव तीन दशकों में सबसे खराब दौर में पहुँच गया है. एक तरह से सऊदी क्राउन प्रिंस के आक्रामक विदेश नीति के कारण दोनों देश युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं. वह भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की तरह ईरान को मध्यपूर्व में अस्थिरता की जड़ मानते हैं.उन्हें ईरान के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं है.

पिता के गद्दी संभालते ही प्रिंस सलमान को देश का रक्षा मंत्री बनाया गया था.इसके बाद उन्होंने कई अरब देशों के साथ मिलकर यमन में शिया हूती विद्रोहियों के खिलाफ जंग शुरु कर दी.इसके प्रत्युत्तर में सऊदी सेना के ही अनुसार अब तक राजधानी रियाद पर हूती विद्रोहियों ने 83 से ज्यादा बैलेस्टिक मिसाइल हमले किए हैं.2-3 पहले तो हूती विद्रोहियों ने रियाद के उस यमामा पैलैस पर बैलस्टिक मिसाइल से हमला किया,जहाँ क्राउन प्रिंस बजट पेश करने वाले थे.यमन में हस्तक्षेप सऊदी विदेश नीति में आक्रामकता का संकेत है.इसके लिए अरबों डॉलर के हथियार झोंके गए हैं.

आक्रामक विदेश नीति के अंतर्गत ही जून में सऊदी अरब ने संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन,यमन और लीबिया के साथ मिलकर कतर से राजनयिक संबंध तोड़ लिए और कतर के लिए हवाई,जमीनी और समुद्री रास्ते भी बंद कर दिए हैं.

आक्रामक विदेश नीति के अंतर्गत ही ही ईरान को चुनौती देने के लिए क्राउन प्रिंस सऊदी अरब के परंपरागत दुश्मन इजराइल से भी मित्रता कर रहे हैं.इन दोनों देशों के बीच अब तक कोई औपाचारिक राजनयिक रिश्ता नहीं है.लेकिन पर्दे की पीछे की गतिविधियाँ तीव्र हैं.

सऊदी उथल पुथल का भारत पर प्रभाव-

खाड़ी में जब भी तनाव फैलता है, तो वहाँ के विभिन्न देशों में काम करने वाले 80 लाख भारतीयों के जीवन पर असर पड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाता है.ये भारतीय हर वर्ष लगभग 40 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भेजते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में काफी मदद करती है. क्राउन प्रिंस सलमान के कारण सऊदी अरब और  ईरान के बीच बढ़ रहा तनाव अगर युद्ध का रूप लेता है, तो यह भारत के लिए केवल कूटनीतिक चुनौती नहीं होगी,अपितु आर्थिक चुनौती भी होगी. बढ़ते तनाव का असर क्रूड ऑयल पर पहले से ही दिख रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा बहुत हद तक क्रूड से तय होती है, क्योंकि हम अपनी आवश्यकता का 82% आयात करते है. वहीं सऊदी अरब और ईरान न केवल दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं, बल्कि भारत अपनी जरूरत का लगभग एक तिहाई इन दोनों देशों से ही खरीदता है. प्रधानमंत्री मोदी इन दोनों देशों की सफल यात्रा कर चुके हैं. ऐसे में दोनों देशों के बीच यदि तनाव गंभीर मोड़ लेता है तो भारत के लिए किसी एक देश के पक्ष में खड़ा होना मुश्किल होगा. भारत तटस्थ रहकर दोनों देशों को आपसी समझबूझ से विवाद सुलझाने की अपील करने की नीति पर कायम रहेगा.

यद्यपि प्रिंस मोहम्मद की विदेश नीति के सभी  दांव  उल्टे पड़ रहे हैं. यमन में अरब नेतृत्व वाली सेना शिया हूती विद्रोहियों पर काबू पाने में नाकाम रही है. सीरिया में जारी गृह युद्ध में भी राष्ट्रपति बसर अल असद का पलड़ा भारी हो चुका है. कतर पर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद कोई दबाव नहीं बन रहा. अलजजीरा लगातार अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण जारी रखे हुए है. इसी तरह अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उन्होंने जो महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी, उसमें अब तक कुछ नहीं हुआ है. प्रिंस मोहम्मद अगर ऐसी गलतियाँ दोहराते रहे तो फिर सत्ता का यह खेल उनके ऊपर ही भारी पड़ सकता है. इसके परिणामस्वरूप सऊदी शाही घराने में सत्ता का संघर्ष खुलकर सामने आ सकता है.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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