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Updated: 17 फरवरी, 2019 04:35 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नवजोत सिंह सिद्धू की कपिल शर्मा के शो से तो छुट्टी हो ही गयी, कैप्टन अमरिंदर सिंह के कैबिनेट से भी निकाले जाने की मांग जोर पकड़ रही है. बावजूद इन सबके सिद्धू हैं कि मानते नहीं. सिद्धू अपनी बात पर कायम हैं और कहते फिर रहे हैं कि उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. पुलवामा अटैक के बाद संवेदनशीलता की हदें लांघ जाने के बाद भी नवजोत सिंह सिद्धू का दावा है कि उनके लिए देश सबसे ऊपर है.

पाकिस्तान में नयी इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही सिद्धू विवादों में हैं. चाहे इमरान खान के शपथग्रहण का मौका हो या फिर करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन का या ताजा पुलवामा अटैक - सिद्धू ने अपनी लाइन गढ़ ली है जो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से पूरी तरह उलटा है. तेलंगाना में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी को अपना कैप्टन बताने के बाद सिद्धू अपने बयान से पलट जरूर गये थे, लेकिन उनकी एंटी-अमरिंदर एक्टिविटी लगातार जारी है.

पुलवामा के शहीदों के अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मंत्रियों की मौजूदगी का ऐलान किया था लेकिन सिद्धू ने उसमें भी मनमानी कर डाली.

हो सकता है सिद्धू की गतिविधियां पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी का नमूना पेश कर रही हों, लेकिन क्या ऐसी बातों को राहुल गांधी का भी सपोर्ट हासिल है? ये बात भी तो राहुल गांधी ही बता सकते हैं. राहुल गांधी ने तो पुलवामा अटैक के बाद सुरक्षा बलों और सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की बात की है. तो सिद्धू के कदम राहुल गांधी की टांग खींच रहे हैं या कैप्टन अमरिंदर की - सवाल का जवाब मिलना बाकी है.

पाकिस्तान पर कैप्टन VS सिद्धू

पाकिस्तान को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का हमेशा ही फौजी अंदाज दिखा है. करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर पाकिस्तान की इमरान खान सरकार की ओर से बुलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी था. मगर कैप्टन अमरिंदर सिंह का फैसला भी वही रहा जो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का. सुषमा स्वराज और कैप्टन अमरिंदर सिंह की विचारधारा अलग अलग है लेकिन पाकिस्तान के मामले में दोनों का व्यवहार एक जैसा रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू सदस्य तो कैप्टन की कैबिनेट के ही हैं लेकिन पाकिस्तान के मामले में उनकी लाइन बिलकुल जुदा होती है. इमरान खान के शपथग्रहण और करतारपुर के उद्घाटन भर की बात नहीं है, पुलवामा हमले के बाद भी सिद्धू का नजरिया बदला नहीं है.

पुलवामा हमले को लेकर पंजाब विधानसभा में निंदा प्रस्ताव पेश किया गया और उसके बाद सदन को स्थगित कर दिया गया. सभी विधायकों ने सदन में दो मिनट का मौन रख कर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि भी दी.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान पर दोहरा खेल खेलने का आरोप लगया - 'उनके प्रधानमंत्री शांति की बात करते हैं और जनरल युद्ध की.' कैप्टन के भाषण में इमरान खान निशाने पर रहे, ‘बाजवा कमांडर इन चीफ हैं और बाजवा की सेना ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया और आईएसआई भी बाजवा के मातहत आती है...'

कैप्टन ने पूरे फौजी अंदाज में बाजवा को ललकारते हुए आगाह भी किया, ‘बाजवा ये जान लें. मैं खुलेआम कहता हूं कि आप एक पंजाबी हैं और हम लोग भी पंजाबी हैं. अगर आपने पंजाब में कुछ भी करने की हिमाकत की तो हम आपको ठीक कर देंगे.’

पुलवामा हमले पर कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू की बातें 180 डिग्री अलग नजर आयीं. पुलवामा पर सिद्धू की प्रतिक्रिया रही, 'कुछ लोगों की वजह से क्या आप पूरे मुल्क को गलत ठहरा सकते हैं? और क्या एक इंसान को दोषी ठहरा सकते हैं?'

क्या सिद्धू को पॉलिटिक्स और कॉमेडी का कॉकटेल पसंद है?

लुधियाना में प्रेस कांफ्रेंस कर नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने बयान पर हो रहे विवाद को लेकर जो सफाई दी वो उसी घिसे-पिटे अंदाज में. सिद्धू यही समझाने की कोशिश करते रहे कि उनके बयान की सिर्फ एक ही लाइन दिखाई जा रही है और अगर उनका पूरा स्टेटमेंट सुना जाए तो मालूम होगा कि उनके कहे का मतलब गलत तरीके से दिखाया जा रहा है. बयानबाजी भी राजनीति के कोर-बिजनेस में ही शामिल है और सिद्धू का तो पूरा तामझाम उसी के इर्द-गिर्द घूमता है. चाहे कॉमेडी शो की हॉट सीट हो या फिर चुनाव प्रचार का कोई मौका, सिद्धू के शेरो-शायरी का अंदाज शायद ही कभी बदलता हो - 'ठोको ताली'.

sidhu, madhuri dixitआखिर सिद्धू किस तरफ हैं?

फ्यूजन और कॉकटेल में बुनियादी फर्क होता है. फ्यूजन संगीत को खूबसूरत बनाता है, लेकिन राजनीति और कॉमेडी का घालमेल कॉकटेल बन जाता है. कपिल शर्मा के एक शो में माधुरी दीक्षित फिल्म के प्रमोशन के लिए पहुंची तो सिद्धू ने कहा, 'जब बात होगी डांस की सबसे पहले आपका नाम आएगा... आपकी खूबसूरती को देखकर चांद भी शरमा जाएगा... अगर आप राजनीति में आ जाएं तो सारा विपक्ष आपके पक्ष में आ जाए.'

क्या सिद्धू पॉलिटिक्स और कॉमेडी के कॉकटेल का भरपूर रस लेने की कोशिश करते हैं? कई बार समझना मुश्किल होता है कि सिद्धू को अपनी ही बातें समझ में नहीं आतीं या फिर वो जानबूझ कर ऐसा करते हैं? कॉमेडी शो में राजनीति को डाल देते हैं और राजनीति में फूहड़ कॉमेडी से भी घटिया बातें करने लगते हैं.

सिद्धू के कॉमेडी शो के बाद उनकी सियासी जिम्मेदारियों के कुछ नमूने भी देख लीजिए. सिद्धू की एक हरकत से नया विवाद खड़ा हो गया है. अब क्या सिद्धू ये भी कहेंगे कि उनकी हरकतों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है?

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तय किया था कि पुलवामा के शहीद जवानों के अंतिम संस्कार में एक कैबिनेट मंत्री की मौजूदगी सुनिश्चित की जाएगी. हमले में पंजाब के चार जवान शहीद हुए हैं. सिद्धू की ड्यूटी मोगा में शहीद जयमल सिंह के अंतिम संस्कार में लगी थी.

सिद्धू को जाना तो मोगा था लेकिन पहले उन्होंने लुधियाना का रूख कर लिया और अपने विभाग के एक कार्यक्रम में शामिल हुए. बाद में सिद्धू मोगा भी गये लेकिन अंतिम संस्कार के तीन घंटे बाद. सिद्धू किस कार्यक्रम को कितनी तरजीह देते हैं ये जवान के पिता और भाई ने भी महसूस की और रस्मअदायगी से ज्यादा नहीं समझा. आखिर समझें भी तो क्या?

सिद्धू पर राहुल गांधी की लाइन क्या है?

पाकिस्तान के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की दाद देते हैं. 2018 की चुनावी रैलियों में तो मोदी पंजाब की सरकार को कांग्रेस की जगह कैप्टन की ही सरकार की तरह पेश करते रहे. वैसे भी पंजाब में कांग्रेस की सरकार तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही बदौलत बनी भी है. कैप्टन अमरिंदर सिंह तो कभी राहुल गांधी की पसंद भी नहीं रहे. राहुल गांधी की पसंद तो प्रताप सिंह बाजवा रहे हैं जिनके हाथों में पंजाब कांग्रेस की कमान रही. यही वजह रही कि कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते थे कि कांग्रेस की कमान राहुल गांधी की जगह सोनिया गांधी खुद अपने ही हाथों में रखें. बाजवा को हटा कर अपने हाथ में कमान लेने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को संघर्ष भी काफी करने पड़े. जब तक कांग्रेस को ये यकीन नहीं हुआ कि कैप्टन अमरिंदर सिंह नयी पार्टी बना सकते हैं और उससे कांग्रेस पंजाब में बंट जाएगी तब तक फैसला टलता रहा. बहरहाल, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कमान संभालते ही तब के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद ली और अपने बूते कांग्रेस का राज कायम किया. गोवा और मणिपुर में तो वैसे भी तब सत्ता कांग्रेस के हाथ से फिसल ही गयी.

आखिर ऐसा क्या है कि जो लाइन कैप्टन अमरिंदर सिंह की होती है, सिद्धू ठीक उसके उलटे रास्ते पर रफ्तार पकड़ लेते हैं. तेलंगाना की चुनावी रैली में सिद्धू ने ही तो कहा था कि उनके कैप्टन राहुल गांधी हैं, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह नहीं. मुद्दा भी कोई और नहीं बल्कि सिद्धू के पाकिस्तान दौरे को लेकर हो रहा विवाद ही रहा. पहले तो सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर ने भी सुर में सुर मिलाया लेकिन बाद में दोनों पलट गये. तब लगा था कि आलाकमान से डांट पड़ी होगी, लेकिन अब तो वैसा भी नहीं लगता.

शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया का इस बारे में कहना है कि अगर कांग्रेस ने सिद्धू को बर्खास्त नहीं किया तो माना जाएगा कि सिद्धू ने राहुल गांधी के निर्देश पर ये बयान दिया है. राहुल गांधी ने पुलवामा हमले के बाद सरकार को पूरा सपोर्ट देने की घोषणा की है. फिर सिद्धू की बातों पर कांग्रेस नेतृत्व मौन क्यों है?

amrinder, rahul, sidhuक्या सिद्धू को राहुल गांधी का सपोर्ट हासिल है?

बिक्रम सिंह मजीठिया कहते हैं, 'मैं राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं कि क्या वह चुप बैठे रहेंगे? हर देशभक्त भारतीय पूछ रहा है कि राहुल उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए राजनीति से ऊपर उठेंगे कि नहीं?

सिद्धू जिन बातों को लेकर विवादों में हैं क्या उन्हें राहुल गांधी का समर्थन हासिल है? ऐसा भी तो नहीं किसी ने सिद्धू की बातों को निजी राय के रूप में समझाने की कोशिश की हो. वैसे भी अगर ये सब सिद्धू की निजी राय है फिर तो बहुत ही खतरनाक बात है.

क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच मौजूदा तकरार का कांग्रेस के अंदरूनी पुराने वाकयों से कोई कनेक्शन है? क्या ये सब बदले की पार्टी पॉलिटिक्स की कोई मिसाल है? क्या राहुल गांधी की शह पर ही सिद्धू कैप्टन अमरिंदर को चैलेंज कर रहे हैं? अगर ऐसा कुछ नहीं है, फिर तो नवजोत सिंह सिद्धू अपनी बातों और हरकतों से राहुल गांधी की ही फजीहत करा रहे हैं? तस्वीर तो साफ तभी होगी जब राहुल गांधी चाहेंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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