New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 24 नवम्बर, 2022 08:59 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

राजस्थान के प्रभारी पद से अजय माकन के इस्तीफा के बाद कई तरह की चर्चाओं ने जोर पकड़ा. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन गहलोत के बीच चल रहा विवाद इतनी आसानी से शांत होने वाला नहीं है. क्योंकि, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने न अजय माकन की गहलोत गुट के 3 बागियों पर कार्रवाई करने की बात पर ध्यान दिया. और, न ही कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार के करीबी सचिन गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने को लेकर की जा रही मांगों पर कुछ कहा है. इस बीच खबर है कि हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान पहुंचने से पहले इसे लेकर हुई एक बैठक में अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने शिरकत की. लेकिन, दोनों नेताओं में बातचीत छोड़िए, दुआ-सलाम तक नहीं हुई. दरअसल, कांग्रेस आलाकमान के लिए राजस्थान एक विकट समस्या बनता जा रहा है. और, कांग्रेस दो पाटों के बीच पिसती नजर आ रही है. और, ऐसा लगता है कि सचिन पायलट का दबाव कहीं कांग्रेस का गुब्बारा ही न फोड़ दे.

Sachin Pilot pressure politics over Chief Minister post not good for Congress Ashok Gehlot in Rajasthan and Bharat Jodo Yatraसचिन पायलट गुर्जर नेता हैं. और, राजस्थान में लंबे समय से गुर्जर सीएम की मांग की जा रही है.

गुर्जर नेता के जरिये पायलट की राहुल गांधी को चुनौती

राजस्थान में गुर्जर आबादी करीब 6 प्रतिशत है. और, गुर्जर मतदाताओं का प्रभाव करीब 40 सीटों पर है. यही कारण है कि गुर्जर नेता विजय सिंह बैंसला ने सीधे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को रोकने की धमकी दे दी. विजय सिंह बैंसला ने कहा कि 'मौजूदा कांग्रेस सरकार का एक साल बचा है. अब सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो आपका (राहुल गांधी) स्वागत है, नहीं तो हम विरोध करेंगे. हमने गुर्जर मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए वोट दिया था. हमारे कुछ समझौते हुए थे. जिन पर काम नहीं हो रहा है.'

दरअसल, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अगले महीने राजस्थान में पहुंचने वाली है. और, इससे पहले गुर्जर नेता का विरोध कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. क्योंकि, राजस्थान में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. और, अगर गुर्जर मतदाता कांग्रेस के पाले से खिसक जाएगा. तो, कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने की संभावना बन जाएगी. वैसे भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का राजस्थान में अधिकांश रूट गुर्जर मतदाताओं के प्रभाव वाली विधानसभा सीटों से गुजरेगा. तो, शक्ति प्रदर्शन करने में सचिन पायलट शायद ही कोई कोताही बरतेंगे.

आसान शब्दों में कहें, तो सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. और, अब तो पायलट गुट के साथ ही गहलोत गुट के भी कुछ विधायक मुखरता और दबी आवाज में सचिन के पक्ष में होने की आवाज उठाने लगे हैं. वैसे, सचिन पायलट भी माहौल को गर्म रखने के लिए भारत जोड़ो यात्रा में सक्रिय दिख रहे हैं. और, गहलोत गुट पर दबाव बनाने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ अपनी तस्वीरें साझा करते रहते हैं. वैसे, संभावना जताई जा सकती है कि भारत जोड़ो यात्रा के खत्म होने के साथ ही राजस्थान को लेकर फैसला आ सकता है. क्योंकि, तब तक गुजरात के कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत को संभवतया हार का जिम्मेदार घोषित किया जा सकता है. जिसके बाद सचिन पायलट की राह आसान हो सकती है. लेकिन, इसमें भी कुछ अड़चने हैं.

कांग्रेस आलाकमान के आगे कुआं और पीछे खाई

राजस्थान के सियासी संकट को खत्म करने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उम्मीदवार बनाया जाना तय हुआ था. और, इसी वजह से राजस्थान के तत्कालीन प्रभारी अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को पर्यवेक्षक बनाकर सूबे में भेजा गया था. लेकिन, सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की आशंका के चलते गहलोत गुट के विधायकों ने बगावत कर दी. हालांकि, बाद में अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मिलकर माफी मांगी. और, ये माफी शायद कबूल हो गई. क्योंकि, न अशोक गहलोत की कुर्सी पर कोई खतरा नजर आया. और, न ही बगावत पर नोटिस पाने वाले 3 करीबियों पर कोई कार्रवाई हुई. जिसके बाद गुजरात के प्रभारी के तौर पर अशोक गहलोत एक्टिव हो गए. इतना ही नहीं, गहलोत ने नोटिस पाए विधायकों को ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की जिम्मेदारियां भी सौंप दीं.

कांग्रेस आलाकमान के सामने असल समस्या ये है कि अगर वो अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की कोशिश करता है. तो, राजस्थान में गहलोत गुट के विधायक बगावत कर देंगे. संभव है कि पार्टी टूटने तक की नौबत आ जाए. वहीं, सचिन पायलट की मांगें न मानने पर भी कांग्रेस सरकार पर खतरा बना ही रहेगा. क्योंकि, पायलट के नेतृत्व में पहले ही एक बार बगावत हो चुकी है. और, अगर सचिन पायलट की मांगों को लगातार दरकिनार किया गया. तो, संभव है कि वह भी हिमंत बिस्वा सरमा की राह पर चल पड़ें. क्योंकि, राजस्थान में भाजपा के साथ जाने पर उनके पास मुख्यमंत्री बनने का मौका रहेगा. जो कांग्रेस में रहते फिलहाल नामुमकिन नजर आ रहा है. आसान शब्दों में कहें, तो अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान के सामने आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति बनी हुई है. और, अगर दबाव की राजनीति ज्यादा समय तक चली तो कांग्रेस का गुब्बारा भी फूट सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय