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Updated: 16 अगस्त, 2020 09:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) और अशोक गहलोत दोनों को चुप रहने को कहा गया है. कांग्रेस नेतृत्व ने साफ तौर पर बोल दिया है कि जो हुआ वो हुआ, आगे से सार्वजनिक तौर पर ऐसी वैसी कोई भी बयानबाजी नहीं होनी चाहिये. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का ये मैसेज संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने विधायकों की मीटिंग में दिया. ये मैसेज विधानसभा सत्र से पहले ही दे दिया गया था और ये अशोक गहलोत समर्थक विधायकों की शिकायत पर हुआ है.

महीने भर से सचिन पायलट के खिलाफ आक्रामक रूख अख्तियार किये हुए अशोक गहलोत को पहली बार सचिन पायलट की तारीफ करते सुना गया है. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उस विभाग के एक काम की तारीफ जरूर की जिसका काम वो डिप्टी सीएम रहते देखा करते थे - मनरेगा. हालांकि, मनरेगा ऐसी चीज है जिसके लिए दिल पर पत्थर रख कर भी अशोक गहलोत तारीफ कर सकते हैं - क्योंकि ऐसी बातें सीधे दिल्ली दरबार में पहुंच जाती हैं.

आलाकमान से शिकायत भले ही अशोक गहलोत समर्थक विधायकों ने की हो, लेकिन ज्यादा आक्रामक तो वही देखे गये हैं. जितना भी भला-बुरा कहना था अशोक गहलोत कहते रहे और सचिन पायलट ने या तो अपना पक्ष रखा या अपना स्टैंड साफ किया. वैसे मैसेज तो सबके लिए होता है और सब पर लागू भी होता है.

विधानसभा सत्र के बाद आखिरी कतार में कुर्सी दिये को लेकर भी सचिन पायलट ने रिएक्ट तो संभल कर ही किया, लेकिन उसके साथ ही एक ऐसी महत्वपूर्ण बात की जो सीधे सीधे कांग्रेस नेतृत्व से जुड़ जाती है - रोड मैप. रोड मैप को लेकर सचिन पायलट भी वही मुद्दा पकड़ रहे हैं जिसकी बदौलत कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे - कमलनाथ पर तो फर्क नहीं पड़ रहा था और कांग्रेस नेतृत्व भी अनसुना कर दे रहा था. सचिन पायलट वही लाइन पकड़ कर सिर्फ अशोक गहलोत नहीं बल्कि कांग्रेस नेतृत्व को भी घसीट चुके हैं.

सिंधिया के रास्ते बढ़ रहे सचिन पायलट

याद कीजिये फरवरी, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने और धरना देने की बात कही थी - और यही बात दोनों के आमने सामने आने की पहली बड़ी वजह बना. तब न तो राहुल गांधी और न ही सोनिया या प्रियंका गांधी को ये एहसास हो पाया कि नतीजे कैसे हो सकते हैं. 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की और फिर बीजेपी ज्वाइन कर लिये.

राहुल गांधी की वजह से ही सही, लेकिन बरसों साथ में काम करते करते सचिन पायलट और सिंधिया दोस्त बन गये और ये भावना ट्विटर पर भी देखने को मिली थी. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी तो सचिन पायलट ने ट्वीट कर कहा था कि उसे टाला जा सकता था और बाद में जब सचिन पायलट की बगावत की खबर आयी तो सिंधिया ने पुराने दोस्त कह कर घटना पर दुख जताया था. राजनीतिक घमासान के बीच ही सचिन पायलट ने पहली बार इंडिया टुडे के सवाल पर बताया कि पिछले 6 महीने से उनकी सिंधिया से कोई बात नहीं हुई है.

13 फरवरी को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने टीकमगढ़ में एक सभा में गेस्ट टीचरों से कहा था - मैनिफेस्टो हमारे लिए हमारा ग्रंथ बनता है. सब्र रखना. और अगर उस मैनिफेस्टो का एक-एक अंक पूरा न हुआ, तो आपके साथ सड़क पर, अकेले मत समझना, आपके सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा.'

sachin, rahul, scindiaसचिन पायलट ने चुनावी वादे की याद दिलाकर कांग्रेस नेतृत्व की कमजोर नस पकड़ ली है

सचिन पायलट भी शुरू से ही ये लाइन पकड़े हुए हैं. ये बात सचिन पायलट ने इंडिया टुडे को दिये इंटरव्यू में भी कही थी, 'मैं किसी विशेष शक्ति या विशेषाधिकार की मांग नहीं कर रहा हूं. मैं बस इतना चाहता था कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने चुनावों में जो वादे किए थे - उन्हें पूरा करने की दिशा में काम किया जाये.'

राहुल गांधी से मुलाकात से पहले प्रियंका गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं से बातचीत में सचिन पायलट ने लंबी चौड़ी डिमांड रखी थी. उनमें से कुछ मांगें और सभी शिकायतें सचिन पायलट ने प्रियंका गांधी की मौजूदगी में राहुल गांधी के सामने कहीं. राहुल गांधी ने सारी बातें इत्मीनान से सुनी भी. आश्वासन भी दिया और फिर सोनिया गांधी की सहमति से तय हुआ कि तीन सदस्यों की एक कमेटी बनेगी और उसी की सलाह पर आगे का फैसला होगा. कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से पहले से ही साफ कर दिया गया था कि मुलाकात जिसे 'वापसी' के तौर पर पेश किया गया, बगैर किसी शर्त के ही होगी.

सचिन पायलट को जब लगा कि बाकी बातें मनवानी मुश्किल है तो वो एक मुद्दे पर फोकस हो गये - चुनावी वादे. बीच बीच में वो मीडिया को दिये अलग अलग इंटरव्यू में भी इस बात पर जोर देते दिखे थे कि राहुल गांधी ने कांग्रेस की तरफ से राजस्थान की जनता से 2018 के चुनावों में जो वादे किये थे वे तो पूरे होने ही चाहिये.

राहुल गांधी के नाम के साथ जोड़ते हुए सचिन पायलट ने चालाकी से कांग्रेस की ये कमजोर नस पकड़ ली है. मुलाकात में चुनावी वादों को पूरा करने की सचिन पायलट की मांग से राहुल गांधी के असहमत होने का कोई मतलब भी नहीं था. भला सचिन पायलट की ये डिमांड राहुल गांधी खारिज करते भी तो कैसे.

विश्वास मत के बाद मीडिया से बातचीत में सचिन पायलट ने बाकी बातों के बीच मेन मुद्दा भी बता डाला, 'जो मुद्दे उठाये जा रहे थे उन सभी मुद्दों के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है - मुझे पूरा विश्वास है कि रोडमैप का ऐलान समय पर कर दिया जाएगा.'

अब तो तय मान कर चलना चाहिये कि जब भी मौका मिलेगा सचिन पायलट रोड मैप की याद दिलाते रहेंगे. अगर कोई हीलाहवाली हुई तो निश्चित तौर पर सचिन पायलट फिर से इसे मुद्दा बनाएंगे - अगर राहुल गांधी ने मुंह फेर लिया तो ये कांग्रेस के खिलाफ जाएगा और आने वाले चुनावों में जवाब तो देना ही होगा.

...तब तक चुप रहें

जैसलमेर के होटल में अशोक गहलोत समर्थक विधायकों ने केसी वेणुगोपाल से सचिन पायलट और उनके गुट के विधायकों के खिलाफ भड़ास तो निकाली ही थी कई शिकायतें भी की थी. जब केसी वेणुगोपाल ने वो बातें सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बतायीं तो कहा गया कि जो कुछ हुआ वो हुआ आगे से सार्वजनिक तौर पर कोई बयानबाजी नहीं होनी चाहिये. यहां तक कि ऐसा कोई इंटरव्यू भी किसी को नहीं देने की जरूरत है.

विधानसभा सत्र से पहले जब सचिन पायलट भी अपने विधायकों के साथ मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो बाकी बातों के बीच केसी वेणुगोपाल ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी का मैसेज भी बता दिया. उस दिन तो अशोक गहलोत ने कहा कि 19 विधायकों के बगैर भी वो बहुमत साबित कर लेते और बाद में सचिन पायलट ने भी सीट आखिरी छोर पर रखने पर सुना दिया कि जब तक वो हैं तब तक सरकार को कोई खतरा नहीं है - लेकिन अब अशोक गहलोत के रूख में थोड़ा बदलाव देखने को मिला है.

अशोक गहलोत ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपनी सरकार के सबसे बड़े काम का श्रेय उस विभाग को दिया जो डिप्टी सीएम की पोस्ट से हटाये जाने से पहले तक सचिन पायलट संभालते रहे. अशोक गहलोत ने बताया कि देश भर में सबसे अधिक राजस्थान सरकार ने किसी भी विभाग में सफलता पायी है तो वो है मनरेगा. मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आता है और ये विभाग सचिन पायलट के पास ही था. ये बात और है कि अशोक गहलोत ने विभाग को लेकर सचिन पायलट का नाम नहीं लिया.

अशोक गहलोत को तो ऐसा मैसेज तब भी दिया गया था जब मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर सचिन पायलट को सरकार गिराने की साजिश में शामिल बताया था. फिर भी वो नहीं रुके और बाद में निकम्मा, नकारा और कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपने वाला तक कह डाला.

लगता है दोबारा मिले मैसेज का लहजा थोड़ा सख्त है. भले ही फरमान अशोक पायलट ग्रुप की शिकायत पर सुनाया गया हो, लेकिन लागू तो सभी पर बराबर ही होगा. वैसे भी तब तक तो चुप रहना ही पड़ेगा जब तक रोड मैप सामने नहीं आ जाता है - क्योंकि उसके बाद तो संभव नहीं लगता कि सचिन पायलट चुप रह पाएंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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