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Updated: 09 अक्टूबर, 2019 04:03 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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कहते हैं कि हर कोई दुनिया बदलने के बारे में सोचता है लेकिन खुद को नहीं. लेकिन ये भी सच है कि समय के साथ खुद को भी बदल देने में ही समझदारी होती है. और ये समझदारी फिलहाल RSS में साफ नजर आ रही है. पिछले कुछ समय से अगर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भगवत की बातों को समझा जाए तो संघ की बदलती विचारधारा साफ-साफ नजर आती है. एक नहीं बल्कि तीन मुख्य बातों पर संघ ने अपनी सोच को बदला है. दशहरे पर RSS की स्‍थापना के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई प्रमुख मुद्दों पर संगठन के विचार स्‍पष्‍ट किए. और कई भ्रम दूर किए. और कई आलोचकों के मुंह बंद किए.

समलैंगिकता से परहेज़ नहीं

1998 में जब समलैंगिक संबंधों पर आधारित फिल्म 'फायर' रिलीज हुई थी तब विश्वहिंदू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस की संगठन फिल्म का विरोध कर रहे थे. उन्हें समलैंगिक संबंधों पर आपत्ति थी. लेकिन तब से लेकर अब तक संघ परिवार ने समलैंगिकता और यौन वरीयताओं पर अपना रुख में बदलाव किए हैं.

समलैंगिकता को लेकर नरमी साल 2016 में ही दिखाई दे गई थी, जब संगठन के तत्कालीन संयुक्त सचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि- 'जब तक समलैंगिकता समाज में दूसरे लोगों की जिंदगी को प्रभावित नहीं करती है, तब तक इसे अपराध नहीं मानना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि किसी व्यक्ति की यौन प्राथमिकता निजी और व्यक्तिगत मामला होता है.' हालांकि इस बयान के एक दिन बाद ही उन्होंने कहा था कि- 'समलैंगिकता को आपराधिक तो नहीं माना जा सकता, लेकिन इसका महिमामंडन भी नहीं किया जा सकता.'

mohan bhagwatसंघ परिवार ने समलैंगिकता और यौन वरीयताओं पर अपना रुख में बदलाव किए हैं

लेकिन 2016 में ही जब सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को रद्द करते समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था तब संघ प्रवक्ता अरुण कुमार ने आधिकारिक बयान में कहा था कि- 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते, लेकिन ऐसे रिश्ते को हम कुदरती नहीं मानते इसलिए ऐसे संबंधों का हम सपोर्ट नहीं करते.'

लेकिन इसी साल सितंबर में हुए Know The RSS कार्यक्रम में समलैंगिकता को लेकर पूछे गये सवाल पर मोहन भागवत ने इसे थोड़ा हटके माना लेकिन इसे असामान्यता तो बिलकुल नहीं कहा. उनका कहना था. पीटीआई के मुताबिक मोहन भागवत ने कहा, 'उन्हें एक आम इंसान के तौर पर पहचाना जाना चाहिए और समाज को उन्हें अपनाने की जरूरत है.' LGBT समुदाय के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से ये बड़ा बयान था.

1 अक्टूबर को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक पुस्तक विमोचन पर कहा था कि - 'अगर समाज में ऐसे मुद्दों पर मतभेद हैं, तो उन्हें शांति से और बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए. इस तरह के मुद्दों को फ्लैशप्वाइंट बनाने की आवश्यकता नहीं है.'

ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर इसे प्रगतिशील तरीके से देखा जा सकता है. संघ ने चाहे जिस वजह से अपने स्टैंड में तब्दीली की हो लेकिन वो तारीफ के काबिल है.

सिर्फ हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम भी

ये तो हर कोई जानता है कि आरएसएस की छवि हमेशा से ही मुस्लिम विरोधी और कट्टर हिंदू की रही है. गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध RSS के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की पुस्तक 'बंच ऑफ थॉट्स' में मुस्लिम समाज को शत्रु के रूप में संबोधित किया गया है. ऐसे में आरएसएस पिछले काफी समय से अपनी इस छवि को धोने के प्रयास कर रही है.

जब एक साल पहले 'भविष्य का भारत' कार्यक्रम में मोहन भागवत से मुस्लिमों के प्रति नफरत पर सवाल किया गया तो भागवत ने अपने जवाब से कई लोगों को हैरान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि- 'हम हिंदू राष्ट्र में विश्वास रखते हैं पर इसका मतलब ये नहीं कि हम मुसलमानों के खिलाफ हैं. हम वसुदेव कुटुंबकम में विश्वास रखते हैं, जहां सभी धर्म और पंथ का अहम स्थान है. हम कहते तो हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है लोकिन इसका मतलब ये नहीं कि इसमें मुस्लिम नहीं चाहिए. जिस दिन ये कहा जाएगा कि इस राष्ट्र में मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन ये हिंदुत्व नहीं रहेगा.'

विजयदशमी पर नागपुर में सालाना पथ संचलन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ अपने इस नजरिए पर अडिग है कि 'भारत एक हिंदू राष्ट्र' है. वहीं मॉब लिंचिंग पर भी अपनी बात प्रमुखता से रखी. उन्होंने कहा कि- संघ का नाम लिंचिंग की घटनाओं से जोड़ा गया, जबकि संघ के स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता. लिंचिंग जैसा शब्द भारत का है ही नहीं क्योंकि भारत में ऐसा कुछ होता ही नहीं था. मॉब लिंचिंग को लेकर कानून बनाए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि इन घटनाओं को पेश कर षड्यंत्र चलाया जा रहा है.

स्वदेशी ही नहीं, FDI भी

विजयदशमी पर नागपुर में भागवत ने यह भी कहा कि 'देश में आर्थिक मंदी नहीं है क्योंकि देश पांच प्रतिशत की दर से विकास कर रहा है. इसलिए इसकी चिंता करें, चर्चा न करें.' स्वदेशी की वकालत करते हुए मोहन भागवत ने सरकार को सुझाव देते हुए कहा कि 'हमारी ताकत और शर्तों के आधार पर दुनिया के साथ व्यापार संबंधों का निर्माण और विस्तार करें.'

उन्होंने ये भी कहा कि- 'कुछ लोगों का मानना है कि स्वदेशी का मतलब दुनिया से नाता तोड़ना है. लेकिन ऐसा नहीं है, देश व्यापार करते हैं और इससे उनके आपसी आर्थिक संबंध पहले से और मजबूत होते हैं. लेकिन जो देश पहले से स्वाबलंबी हैं उनके संबंध मजबूत होते हैं. उससे संबंध रखने में बाकी देशों को रस रहता है.'

उन्होंने स्वदेशी का जो मतलब बताया उससे उनके विचारों को समझा जा सकता है. मोहन भागवत ने कहा - 'अपनी शर्तों पर सब देशों से व्यापारिक संबंध बनाने का नाम है स्वदेशी'. उनकी इसी बात से समझ आता है कि वो स्वदेशी के साथ हैं और FDI से भी परहेज नहीं.

पिछले 10 वर्षों में भारत के सबसे बड़े सामाजिक सांस्कृतिक संगठन RSS को बदलते समय के हिसाब से आगे ले जाने का श्रेय संघ प्रमुख मोहन भागवत को ही जाता है. जिन्होंने बदलाव का स्वागत किया और उसे अपनाया. उन्होंने अक्सर कहा है कि आरएसएस किसी भी पुस्तक द्वारा निर्देशित नहीं है और यह बदलते समय के साथ अपनी स्थिति बदल सकता है. चाहे संघ की यूनिफॉर्म बदलना हो या फिर कट्टर विचार, पर बदलाव अच्छे हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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