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Updated: 30 सितम्बर, 2016 08:48 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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LOC पार पाक अधिकृत कश्मीर में मौजूद आतंकी कैंपों पर आर्मी कमांडो के धावा बोलने की खबर आई तो सरसंघचालक मोहन भागवत की खुशी जुबान पर आ गई. दिल्ली में कश्मीर के महान शैव दार्शनिक आचार्य अभिनव गुप्त की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने बहुत संक्षिप्त शब्दों में आर्मी के ऑपरेशन की तारीफ की.

भागवत ने कहा 'हम सबको जिस बात की प्रतीक्षा थी, वह काम हो गया. इस कार्रवाई के बारे में श्री श्री रविशंकर ने जो भी प्रशंसा की है उन सबके साथ मैं खुद को जोड़ता हूं. लोग कहेंगे कि आचार्य अभिनव गुप्त के कार्यक्रम से इस बात का क्या लेना देना, तो मेरा कहना है कि दोनों बातें आपस में जुड़ी हैं, इन्हें अलग कर नहीं देखा जा सकता.' मोहन भागवत के इस संक्षिप्त संकेतात्मक भाषण ने ही सैकड़ों की तादाद में श्रोताओं को जोश से भर दिया. सभागार भारत माता की जय के नारों से गूंज उठा. सरसंघचालक मोहन भागवत के पहले श्री श्री रविशंकर लोगों का जोश जगा चुके थे. उन्होंने भाषण शुरु करते हुए ही कहा कि जो कार्रवाई आर्मी ने की है, उसके लिए जवानों को, प्रधानमंत्रीजी को बधाई. श्री श्री ने ये भी साफ किया कि भारत में शस्त्र और शास्त्र दोनों को साथ लेकर चलने की परंपरा रही है.

बगैर शस्त्रों के शास्त्र कभी सफल नहीं होते. लंबे समय के बाद हमारी आर्मी ने दुश्मनों को बताया है कि शस्त्र और शास्त्र से जुड़ी भारत की परंपरा क्या है? आतंकवादियों को कुचले बगैर शांति की बातें बेकार हैं, इसलिए हम सैनिकों की इस कार्रवाई के समर्थन करते हैं.

मोहन भागवत ने अपने भाषण में श्री श्री रविशंकर की बातों का पूरा समर्थन किया और ये भी साफ किया कि उरी में आतंकवादियों के हमले के बाद से ही देशभक्त लोगों को इस बात की प्रतीक्षा थी कि आर्मी मुंहतोड़ जवाब कब देती है?

आजतक संवाददाता से अनौपचारिक बातचीत में आरएसएस से जुड़े एक बड़े केंद्रीय नेता ने उरी हमले के फौरन बाद साफ किया था, 'सैनिकों की शहादत आतंकवादियों के साथ उन अलगाववादियों के लिए भी मौत का फरमान है जो परदे के पीछे आतंकवादियों से हाथ मिलाकर रखते हैं. परदे के सामने निर्दोष युवाओं के हाथ में पेट्रोल बम और पत्थर थमाते हैं, जो दिन-रात भारत के खिलाफ जहर उलगना ही अपना दीन-ईमान समझ बैठे हैं, ऐसे तत्वों को जल्द ही मतलब समझ आ जाएगा कि बेवजह आर्मी के कैंप पर पत्थर मारने या आतंकवादी भेजने का अंजाम क्या होता है? अब ऐसे तत्व अगर ये समझते हैं कि भारत की ओर से सख्ती या भारतीय सुरक्षा बलों की कठोर कार्रवाई के वक्त पाकिस्तान की आर्मी या पाकिस्तान की परमाणु ताकत भारत को मुश्किल में डालेगी तो उन्हें समझना चाहिए कि आर्मी जब तय कर लेगी, उसी दिन गुलाम कश्मीर के टेरर कैंपों पर धावा बोलने से देश पीछे नहीं हटेगा.’

तब इस सवाल का जवाब भी मिला था कि सैनिक कार्रवाई होगी या नहीं और अगर होगी तो कब होगी? क्या इस मामले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर केंद्र सरकार को कोई सुझाव दिया गया है?

आरएसएस के केंद्रीय नेता का कहना था, 'इसमें सलाह या सुझाव देने जैसी कोई जरुरत हम नहीं समझते. सरकार को आरएसएस का स्टैंड पता है. कश्मीर में देशविरोधियों और आतंकवादियों का दमन करने के काम में देश की जनता की ओर से जिस तरह के समर्थन की जरुरत सरकार के सामने होगी, उसमें मदद देने में आरएसएस हमेशा साथ खड़ा रहा है.'

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सवाल है कि क्या आरएसएस की ओर से एलओसी के पार आतंकी कैंपों पर हमले का सुझाव सरकार को दिया गया था?

आरएसएस के बड़े केंद्रीय नेता के अनुसार, हम तो शुरू से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मौजूद आतंकी कैंपों पर चढाई के समर्थक रहे हैं. पूर्व में भी केंद्र सरकार को आरएसएस की प्रतिनिधि सभा ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर सुझाव दिया था कि सेना और सुरक्षा बलों को कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने के संदर्भ में कार्रवाई के मामले में निर्णय लेने और उसके क्रियान्वयन की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए. उन्हें ये भी स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकवादियों के प्रशिक्षण केंद्र को नष्ट कर सकें.

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 सर्जिकल स्ट्राइक से पहले आरएसएस से भी हुई थी कोई बात?

आरएसएस नेता के मुताबिक, 'पहले हमारे प्रस्ताव पर पूर्व की केंद्र सरकार ने कार्रवाई नहीं की लेकिन अब जबकि पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार केंद्र में है तो हमारी चिरप्रतिक्षित मांग को उन्होंने कार्रवाई में बदल कर ये सिद्ध कर दिया है कि वह जैसे को तैसा की नीति पर अमल करना जानते हैं. ध्यान रखिए कि ये शुरुआत है, अगर आतंकी हमले नहीं रुके तो आतंक की कमर तोड़ने तक आर्मी की कार्रवाई सीमोल्लंघन करते हुए जारी रहेगी. या तो पाकिस्तान हमेशा के लिए सुधर जाएगा या फिर आतंकवाद की मौतगाह बन जाएगा.'

पाक अधिकृत कश्मीर में आर्मी के ऑपरेशन का असर कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादियों पर कितना पड़ेगा और पाकिस्तान अब कश्मीर में आतंकी हमलों को किस रूप में संचालित करेगा, इस सवाल पर भी आरएसएस की निगाहें गड़ गई हैं. आरएसएस से जुड़े थिंक टैंक और बौद्धिक समूहों ने कश्मीर में सांस्कृतिक सरोकार जगाने से लेकर पाकिस्तान के विभाजन तक की रणनीति पर सक्रियता से काम शुरु कर दिया है.

आरएसएस प्रेरित जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर से जुड़े और आचार्य अभिनव गुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति से जुड़े एक्टिविस्ट आशुतोष भटनागर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग भारत समर्थक हैं. लोगों को पता है कि पाकिस्तान और कट्टरपंथी इस्लाम के प्रभाव में आने वाले उन देशों के अंदुरुनी हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं जहां शत प्रतिशत आबादी मुसलमान हैं.

ऐसे में भारत ही वह मुल्क है जो इस्लाम के भीतरी मतभेदों और तमाम विभिन्नताओं को समेटकर तमाम मत-मजहबों-संप्रदायों के साथ एकजुट रह सकता है. इस विचार को हमें आगे बढ़ाने और उन लोगों को समझाने की जरुरत है जो कहीं से पाकिस्तान के प्रभाव में हैं. दूसरी ओर आरएसएस से जुड़े इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन ने दिल्ली में बलोचिस्तान के मसले पर गंभीर चिंतन-मंथन सत्र का आयोजन कर संकेत दे दिया है कि कश्मीर में आतंकवाद बढ़ाने का खामियाजा पाकिस्तान को सबसे पहले बलूचिस्तान के जरिए भुगतना होगा.

इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन ने 1 अक्टूबर को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में बलोच नेशनेलिटी-इंटरनल कोलोनाइजेशन ऑफ बलोचिस्तान बाई पाकिस्तान के मुद्दे पर सेमिनार में कई प्रमुख बलोच नेताओं को आमंत्रित किया है.

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इनमें वर्ल्ड बलोच वोमेन फोरम की प्रमुख नाएला कादरी बलोच, बलूचिस्तान की आजादी के संघर्ष से जुड़े बड़े नेता मज़दक दिलशाद बलोच, बलोच मूल के विश्व प्रसिद्ध लेखक डॉ. तारिक फतेह, फ्री बलोच मूवमेंट से जुड़ी बलोच रिपब्लिकन पार्टी के तमाम नेता शामिल हैं. साफ है कि भारत सरकार के बाद बलूचिस्तान की आजादी के आंदोलन को आरएसएस ने भी हवा देना तय कर लिया है और दिल्ली में आजाद बलोच मूवमेंट को ताकत देने की कमान भी आरएसएस के थिंक टैंक ने हाथ में ले ली है.

लेकिन बलूचिस्तान से पहले सवाल उठता है कि कश्मीर में पत्थरबाज अलगाववादी आंदोलन का क्या होगा? आरएसएस के केंद्रीय नेता के अनुसार, 'कश्मीर में अब आगे जो कुछ होगा, वह अलगाव और आतंक को सख्ती से कुचलने के लिए होगा. पाकिस्तान और अलगाववादियों के रुख पर हमारी नजर है. वो ये अच्छी तरह समझ लें कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत एक कदम भी पीछे हटाने वाला नहीं. हमें इस आशंका को लेकर कोई फिक्र भी नहीं कि घाटी में खून-खराबा बढ़ जाएगा तो इस बार खून देशविरोधियों का ही बहेगा. ध्यान रखिए कि दिल्ली में मोदी सरकार है.'

बात यहीं खत्म नहीं होती. वो आगे कहते हैं, 'आखिर अब तक जो आतंकवादियों ने खून बहाया है, उससे ज्यादा खून तो नहीं बहेगा. हमारा कश्मीर के साथ हजारों साल पुराना रिश्ता है. जो इस रिश्ते को मानकर देश के साथ गले लगकर रहेंगे, उनका सम्मान होगा और जिन्हें पाकिस्तान का पिट्ठु बनकर आर्मी और सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने है और देश विरोधी नारे लगाने हैं, उनके इलाज का सूत्र भी आर्मी ने पीओके के आतंकी कैंपों पर हमला कर दे दिया है. अलगाववादियों से बातचीत और शांति स्थापना के दूसरे प्रयासों के नाकाम रहने पर जो सबसे अच्छा विकल्प हमें दिखाई देता है, वो यही है कि सैनिकों की कमरबंद पेटियों में कसमसाती गोलियों को बंदूक की नाल से दनदनाते हुए आगे बढ़ने का रास्ता दे दिया जाए तो चंद महीनों में ही घाटी में शांति लौट आएगी.'

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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