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Updated: 08 जुलाई, 2015 04:24 PM
परवेज़ सागर
परवेज़ सागर
  @theparvezsagar
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कट्टर हिंदूवादी तेवर दिखाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस रमजान में पहली बार इफ्तार पार्टी देकर सबको हैरान कर दिया. शनिवार को दिल्ली में यह इफ्तार पार्टी हुई. इस पार्टी में देश की मुस्लिम हस्तियों के साथ ही कई देशों के मुस्लिम राजदूतों ने शिरकत की. संघ से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इस रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया था. संघ के इस रोज़ा इफ्तार को मुसलमानों के करीब आने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. मगर इसके पीछे सियासत से इनकार नहीं किया जा सकता.

संघ के नेताओं ने इस इफ्तार पार्टी का प्रचार ये कह कर किया कि इसके पीछे कोई राजनीतिक गणित नहीं है. इस तरह के आयोजन का मकसद मुस्लिम समाज के भीतर संघ को लेकर सालों से चली आ रही गलतफहमी को दूर करना है. साथ ही पूरी दुनिया को ये संदेश भी देना है कि हिन्दुस्तान में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच आपसी भाईचारा है. मगर संघ की ये बातें पहली नजर में गले नहीं उतरती. संघ हमेशा से ऐसा संगठन रहा है जो अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों के लिए जहर उगलता रहा है. चाहे वो बच्चे पैदा करने को लेकर हो या फिर मदरसों को लेकर. अक्सर संघ की तरफ से भड़काने वाले बयान आते रहे हैं.

अब ऐसे में हिंदू कट्टरपंथियों और भाजपा के कई नेताओं को अचानक से संघ का यह मुस्लिम प्रेम समझ नहीं आ रहा है. क्योंकि संघ समर्थित भाजपा खुद दूसरे राजनीतिक दलों पर इफ्तार पार्टी को लेकर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाती रही है. इसलिए उनका इफ्तार पार्टी देना अजीब लग रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. संघ के वरिष्ठ प्रचारक और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश ने उत्तर प्रदेश के लिए तो रोज़ा इफ्तार पार्टियों की एक लंबी सूची बना डाली है. योजना है कि यूपी के मुस्लिम बाहुल्य जिलों में लगातार रोज़ा इफ्तार के कार्यक्रम किए जाएंगे. इसकी शुरुआत मुरादाबाद जिले से की जा चुकी है. ईद के बाद कई शहरों में ईद मिलन के कार्यक्रम भी किए जाने की योजना है. खास बात ये है कि इस मिशन को गैर सियासी दिखाने के लिए संघ ने बीजेपी के मुस्लिम मोर्चा को इस आयोजन से अलग रखा है. ताकि दूसरे सियासी दलों को उन पर अंगुलियां उठाने का मौका न मिल सके.

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संघ के रोज़ा इफ्तार कार्यक्रम में कई मुस्लिम देशों के राजदूत शामिल हुए

पहले बिहार और फिर उत्तर प्रदेश राज्य में विधान सभा चुनाव होंगे. इन दोनों ही राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद प्रभावित करने वाली है. यहां सरकार बनाने में मुस्लिमों का अहम रोल होता है. दोनों ही राज्यों में बीजेपी को क्षेत्रिय दल कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं. संघ के नेता चाहे जो भी कहें लेकिन संघ की इस इफ्तार नीति को चुनावी राजनीति से जोड़कर देखा जाना लाजमी है. बीजेपी भी इस तरह की कोशिश कर रही है. उनकी अधिकांश रैलियों में जानबूझकर मुस्लिमों को लाया जाता है. उन्हें नई टोपियां दी जाती हैं. ताकि वे भीड़ में अलग नजर आएं. शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा के मुस्लिम चेहरे हैं. शाहनवाज बिहार से आते हैं तो नकवी का ताल्लुक उत्तर प्रदेश से है. शाहनवाज सुन्नी हैं, तो नकवी शिया समुदाय से आते हैं. बीजेपी ने मुस्लिमों के दोनों बड़े फिरकों को साधने की तैयारी की है. संघ भी इसी कोशिश को दूसरे रास्ते से अंजाम दे रहा है.

संघ की मुसलमानों को करीब लाने की यह कोशिश नई नहीं है. 2002 में संघ को ये बात समझ आ गई थी कि मुस्लिमों को साथ लेकर चलना सियासी तौर पर बुरा नहीं है. संघ के तत्कालीन प्रमुख के.एस. सुदर्शन ने उसी साल मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन कर दिया था. तभी से यह संगठन देशभर में चुपचाप अपना काम कर रहा है. मोदी के सत्ता में आ जाने के बाद जो माहौल बना उसमें संघ ने अपनी नीति को आगे बढ़ाते हुए मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश तेज कर दी है. रोज़ा अफ्तार और ईद मिलन के कार्यक्रम उसी का हिस्सा हैं. पीएम मोदी भी इस काम (तथाकथित मुस्लिम तुष्टीकरण) में पीछे नहीं हैं. ईद से ठीक पहले यानी 17 जौलाई को वे रोज़ा इफ्तार का आयोजन कर सकते हैं. और वो भी कश्मीर में... आगे-आगे देखिए होता है

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लेखक

परवेज़ सागर परवेज़ सागर @theparvezsagar

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में असोसिएट एडिटर हैं.

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