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Updated: 25 फरवरी, 2019 07:01 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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हाल ही में रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी फेसबुक पोस्ट कुछ ऐसा लिखा, जिससे ये कयास लगाए जाने लगे कि प्रियंका गांधी के राजनीति में आने के बाद अब उनकी भी एंट्री हो सकती है. अभी तो इस बात की भी पुष्टि नहीं हो पाई थी कि वह राजनीति में आ रहे हैं या नहीं कि इसी बीच उनके नाम के होर्डिंग तक लग गए हैं. ये होर्डिंग मुरादाबाद की गलियों में लगे हैं, जिस पर लिखा है- 'रॉबर्ट वाड्रा जी, मुरादाबाद लोकसभा से चुनाव लड़ने के लिए आपका स्वागत है.' ये पोस्ट मुरादाबाद युवक कांग्रेस की तरफ से लगाए गए हैं, जिसके बाद अब ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर वाड्रा राजनीति में आ गए तो वह मुरादाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे.

मुरादाबाद में ही रॉबर्ट वाड्रा का घर है, जो प्रियंका गांधी की ससुराल भी है. अगर इस सीट पर रॉबर्ट वाड्रा खड़े होते हैं तो कांग्रेस और प्रियंका गांधी की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाएगी. लेकिन सवाल ये है कि क्या रॉबर्ट वाड्रा यहां से जीतेंगे? क्या यहां उनकी इतनी लोकप्रियता है कि लोग उन्हें अपना नेता चुनेंगे? चलिए एक नजर डालते हैं मुरादाबाद लोकसभा सीट के चुनावी समीकरण पर और जानने की कोशिश करते हैं कौन जीत सकता है यहां से.

रॉबर्ट वाड्रा, कांग्रेस, मुरादाबाद, लोकसभा चुनाव 2019मुरादाबाद की गलियों में रॉबर्ट वाड्रा के बड़े-बड़े होर्डिंग लग गए हैं.

कांग्रेस का खराब रिकॉर्ड

अगर आजादी के बाद लगातार तीन लोकसभा चुनावों को छोड़ दें तो इस सीट पर कांग्रेस का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है. उस दौरान कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी थी, इसीलिए उसका जीतना भी लाजमी ही था. लेकिन बाद के चुनावों में कांग्रेस एक बार 1984 में जीती, जब इंदिरा गांधी की मौत के बाद लोगों की सहानुभूति मिली और दूसरी बार 2009 में जीती, जब इस सीट पर पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन खड़े हुए. पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हालत इतनी खराब रही की जमानत तक जब्त हो गई. कांग्रेस की प्रत्याशी बेगम नूर बानो को सिर्फ 19,732 यानी 1.75 फीसदी वोट मिले.

बेहद अहम सीट, लेकिन जीतना मुश्किल

सबसे पहले तो मुरादाबाद में रॉबर्ट वाड्रा का घर है, जिनके राजनीति में आने और मुरादाबाद से ही चुनाव लड़ने के कयास लगाए रहे हैं. दूसरी बात ये कि मुरादाबाद कांग्रेस की नवनिर्वाचित महासचिव प्रियंका गांधी की ससुराल है. इन दोनों ही वजहों से कांग्रेस के लिए ये सीट बेहद अहम है. हालांकि, प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी मिली है, लेकिन वह पश्चिमी यूपी की मुरादाबाद सीट पर सीट हासिल करने के लिए भी हर संभव कोशिश करेंगी. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुमान लगाया है कि उसे यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से करीब 26 सीटों पर विजय हासिल होगी और बताया जा रहा है कि उसमें मुरादाबाद भी शामिल है. खैर, भले ही रॉबर्ट वाड्रा मुरादाबाद को अपने घर की सीट समझ कर चुनाव में खड़े हा जाएं, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस का रिकॉर्ड कुछ खास नहीं रहा है.

मुस्लिम प्रत्याशियों का रहा है दबदबा

मुरादाबाद वो लोकसभा सीट है, जहां से अधिकतर बार मुस्लिम प्रत्याशी ने जीत हासिल की है. आजादी के बाद से अब तक इस सीट पर सिर्फ 6 बार गैर-मुस्लिम उम्मीदवार जीता है, बाकी 11 बार यहां से मुस्लिम प्रत्याशी ने ही विजय पताका फहराई है. फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है, जिसका पूरा श्रेय जाता है मोदी लहर को, जिसके चलते 2014 में पहली बार यहां कमल खिला और कुंवर सर्वेश कुमार सिंह सांसद चुने गए. अब अगर 2019 के लोकसभा चुनाव को इस लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस का इस बार भी जमानत बचाना मुश्किल लग रहा है. सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई है. जाहिर है भाजपा और सपा की लड़ाई में कांग्रेस का दावा तीसरे क्रम पर चला जाएगा. भाजपा भी इस सीट पर पहली बार जीती है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में सपा ने मुरादाबाद सीट पर 3 बार कब्जा किया है. इस बार तो सपा और बसपा ने गठबंधन ही कर लिया है, जिसके चलते वोट सपा के पक्ष में जा सकते हैं.

क्या है इस सीट का इतिहास?

मुरादाबाद लोकसभा सीट पर अब तक कांग्रेस, जनसंघ, जनता दल, रालोद और सपा का कब्जा रहा है और जब तक जनता दल रही तब तक इस सीट पर उसका दबदबा था. अब यहां सपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला चलता है. 1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस ही जीती और दो बार विजयी रही. 1967 और 1971 में इस पर भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की. इमरजेंसी के बाद जब 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल जीत गई और 1980 में दोबारा जनता दल ने विजय हासिल की.

1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस की लहर चली और ये सीट एक बार फिर कांग्रेस के खाते में चली गई. 1989 और 1991 में फिर से जनता दल ने मुरादाबाद लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया. 1996 और 1998 में ये सीट सपा के खाते में चली गई. 1999 में कांग्रेस से टूटकर बनी जगदंबिका पाल की अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की और 2004 में दोबारा सपा ने इस पर कब्जा कर लिया. जब 2009 के चुनाव हुए तो पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीते, लेकिन 2014 में मोदी लहर के सामने कोई नहीं टिक सका और यहां भाजपा ने जीत का परचम लहरा दिया.

पिछली बार ये रहे थे परिणाम

2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के कुंवर सर्वेश कुमार जीते थे, जिन्हें कुल 4,85,224 वोट (43 फीसदी) मिले थे. दूसरे नंबर पर रही थी समाजवादी पार्टी, जिसके उम्मीदवार डॉ. एसटी हसन को कुल 3,97,720 वोट (35.3 फीसदी) मिले थे. तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के हाजी मोहम्मद याकूब थे, जिन्हें 1,60,945 वोट (14.3 फीसदी) मिले थे. टॉप 3 में कांग्रेस कहीं नहीं थी. चौथे नंबर पर भी पीस पार्टी के इंजीनियर मोहम्मद इरफान रहे, जिन्हें 25,840 वोट (2.29 फीसदी) मिले. अगर नोटा को छोड़ दें तो 2014 के लोकसभा चुनाव की रेस में कांग्रेस आखिरी नंबर पर थी, जिसे 19,732 वोट (1.75 फीसदी) मिले.

यूपी की मुरादाबाद लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख वोटर हैं, जिनमें लगभग 52 फीसदी हिंदू हैं और 47 फीसदी मुस्लिम. जिस तरह इस सीट पर अधिकतर समय मुस्लिम प्रत्याशी ही जीते हैं, उसी तरह वोटिंग में कम होने के बावजूद मुस्लिम वोट किसी भी प्रत्याशी की जीत-हार में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. अभी तक तो कांग्रेस खुद को सेक्युलर पार्टी की तरह प्रोजेक्ट करती थी, लेकिन अब जनेऊ से लेकर गोत्र और शिवभक्ति तक से कांग्रेस भी छवि हिंदू बन रही है. वहीं दूसरी ओर, सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया है. ऐसे में कांग्रेस को पूरी जी-जान से कोशिश करनी होगी, क्योंकि पिछली बार के लोकसभा चुनाव में सपा दूसरे और बसपा तीसरे नंबर पर थी, जबकि कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई थी. समीकरण पिछली बार जैसे रहे तो सपा-बसपा का गठबंधन होने की वजह से ये सीट सपा के पाले में जा सकती है. वैसे भी, राजनीति में आने का एक सही समय होता है. मनी लॉन्डरिंग में फंसे रॉबर्ट वाड्रा इन दिनों ईडी के दफ्तर के चक्कर ही काट रहे हैं. ऐसे में अगर वह राजनीति में घुसकर चुनाव लड़ने की सोचते हैं तो बेशक ये फैसला कांग्रेस के खिलाफ ही जाएगा.

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