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Updated: 24 फरवरी, 2019 06:52 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से ही ट्वीट कर लोगों से 'मन की बात' सुनने की अपील की थी. कार्यक्रम को विशेष बताते हुए आगाह भी किया था - 'आप बाद में न कहना कि पहले नहीं बताया'. 53वें 'मन की बात' के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने इसे चुनाव तक के लिए विराम दे दिया है.

'मन की बात' के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में वापसी का विश्वास जताते हुए कहा कि अब मई महीने के आखिरी सप्ताह में चुनाव के बाद बात होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मार्च, अप्रैल और मई की भावनाओं को तब ही व्यक्त करूंगा.

मन की बात के साथ ही लगता है प्रधानमंत्री मोदी ने पुराने नारों को भी सहेज कर रख दिया है क्योंकि नया स्लोगन है - 'मोदी है तो मुमकिन है'.

सत्ता विरोधी लहर की काट है नया स्लोगन

2019 में बीजेपी के चुनाव प्रचार में अब नया स्लोगन सुनाई देगा - 'मोदी है तो मुमकिन है'.

प्रधानमंत्री मोदी ने ये स्लोगन राजस्थान के टोंक में दिया और कई बार इसे दोहराया भी. सूबे के डिप्टी सीएम सचिन पायलट के इलाके में पहुंचे प्रधानमंत्री अपनी सरकार की एक एक उपलब्धि बताते हुए कविता की तरह आखिर में तुकबंदी कर रहे थे - 'मोदी है तो मुमकिन है'. 2018 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने भी राजस्थान से ही अपना पसंदीदा नारा शुरू किया था - 'चौकीदार चोर है'. पुलवामा हमले के बाद से राहुल गांधी ने ये नारा होल्ड कर रखा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार की पांच उपलब्धियां नये स्लोगन के साथ बताईं -

1. कोई सोच सकता था कि ऐसी सरकार आएगी, जो गरीब की रसोई से धुआं खत्म करने के लिए काम करेगी? लेकिन उज्ज्वला योजना के तहत राजस्थान में लगभग 50 लाख गैस कनेक्शन देकर हमने ये भी संभव कर दिखाया. ये भी काम हुआ है - क्योंकि 'मोदी है तो मुमकिन है'.

2. हमारी सरकार ने वर्षों से लटकी 'वन रैंक-वन पेंशन' योजना को लागू किया और 20 लाख पूर्व सैनिकों को लगभग 11 हजार करोड़ रुपये एरियर के रूप में दे भी दिए. ये काम भी इसलिए हुआ - क्योंकि 'मोदी है तो मुमकिन है'.

3. कोई सोच सकता था कि सिर्फ 1 रुपया महीना और 90 पैसे प्रतिदिन के प्रीमियम पर गरीबों को 2-2 लाख रुपये का बीमा सुरक्षा कवच मिलेगा? लेकिन ये भी हुआ है और राजस्थान के करीब 70 लाख गरीब इससे जुड़े हैं. ये हुआ - क्योंकि 'मोदी है तो मुमकिन है'.

4. बीते साढ़े चार साल में आप सभी के आशीर्वाद से ऐसे अनेक काम थे जिनके बारे में सिर्फ चर्चाएं होती थीं. अब जब ये बातें जमीन पर उतर गई हैं, तब एक विश्वास जगा है कि 'मोदी है तो मुमकिन है'.

5. केंद्र में पहले जो बिना बहुमत वाली सरकारें थीं उनकी अपनी मजबूरी थी. आपने जो मजबूत सरकार साढ़े 4 वर्ष पहले बनाई, उसने ये हौसला दिखाया और आज गरीबों को 10 फीसदी का आरक्षण हकीकत बन गया है. ये काम इसलिए हुआ है - क्योंकि 'मोदी है तो मुमकिन है'.

अयोध्या मसले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने वाली थी तो संघ और बीजेपी नेताओं के अलावा हिंदूवादी संगठनों ने खूब शोर मचाया. कभी कानून तो कभी अध्यादेश की मांग होने लगी थी. माहौल ऐसा बनाया गया कि चुनाव से पहले मंदिर बन नहीं सकता तो निर्माण तो शुरू ही हो जाएगा. नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट तक को भी नहीं बख्शा. मंदिर निर्माण न होने देने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की. जब अदालत में सुनवाई शुरू होने की बारी आई तो पहले ही पलट गये - चुनाव तक मंदिर आंदोलन स्थगित रहेगा. मंदिर पर यू टर्न लेने के बाद संघ अब राष्ट्रवाद का एजेंडा आगे बढ़ाते हुए बीजेपी को सत्ता वापस दिलाने में जुटा हुआ है.

narendra modi, yogiवाकई मुमकिन है क्या?

केंद्र में बीजेपी की सरकार के पूरे पांच साल प्रधानमंत्री मोदी और उनके साथी-सपोर्टर 'सबका साथ सबका विकास' दोहराते रहे. फिर मालूम हुआ 2019 के लिए नारा गढ़ा गया है - 'साफ नीयत सही विकास'. ये नारा भी काफी दिनों तक चला लेकिन काफी दिनों से सुनाई नहीं दे रहा था. अब शुरू हुआ है 'मोदी है तो मुमकिन है' - तो क्या अब ये समझाने की कोशिश है कि बस ये स्लोगन याद रखिये और बाकी बातें भूल जाइए? 'अच्छे दिन...' भी भूलना होगा क्या?

ऊपर से बीजेपी भले ये जताने की कोशिश करे कि 2018 के विधानसभा चुनावों से उसके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन ऐसा है नहीं. विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने ऐसा कोई उपाय नहीं छोड़ा था जो संभव था. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों राज्यों में बीजेपी को सत्ता विरोधी फैक्टर भारी पड़ा - और केंद्र में सरकार होने के चलते ये डबल हो जा रहा था.

बीजेपी अब इस कोशिश में जुटी है कि आम चुनाव में विधानसभा चुनाव जैसा हाल न हो - और यूपी में तो हरगिज नहीं. वैसे यूपी में बीजेपी के सामने चुनौतियां पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ गयी हैं.

नया स्लोगन इसी सत्ता विरोधी फैक्टर को काटने की कोशिश करता लगता है जिसमें ब्रांड मोदी पर फिर से भरोसा जताया गया है - और एक बार फिर सपने दिखाने की कोशिश की जा रही है. काफी कुछ 'अच्छे दिन...' जैसा ही.

...और जब डबल सत्ता विरोधी फैक्टर हो!

दो हफ्ते के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं. 11 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी वृंदावन और नोएडा गये थे और 15 फरवरी को झांसी. 22 जनवरी को प्रधानमंत्री ने अपन संसदीय क्षेत्र वाराणसी का दौरा किया था और उसके बाद सीधे गोरखपुर पहुंचे - पूरे किसान पैकेज के साथ. मोदी ने 'किसान सम्मान निधि योजना' को गोरखपुर में लॉन्च किया.

कांग्रेस की कर्जमाफी की काट में मोदी सरकार ये स्कीम लेकर आयी है. गोरखपुर से ही मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अलग अलग राज्यों के किसानों से बात की और विपक्ष को किसानों के मामले में राजनीति करने से बाज आने के लिए चेतावनी दी - 'किसानों का शाप आप की राजनीति को तहस नहस कर देगा'.

यूपी में बीजेपी के लिए गोरखपुर के अति महत्वपूर्ण होने की बहुत सारी वजहें हैं -

1. पूर्वांचल की कई सीटों पर असर होगा: दरअसल, गोरखपुर सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका भर नहीं है, वहां से पूर्वांचल की कई लोक सभा सीटें प्रभावित होती है. अब तक योगी आदित्यानाथ इसी बात का फायदा उठाते रहे हैं, लेकिन इस बार दांव उल्टा पड़ गया है.

योगी आदित्यनाथ तीन तीन उपचुनाव हार चुके हैं. गोरखपुर, फूलपुर और कैराना. योगी की सबसे ज्यादा उपयोगिता मंदिर अभियान को लेकर रही जिसे फिलहाल रोक दिया गया है. कानून व्यवस्था से लेकर योगी का शासन प्रशासन सवालों के घेरे में है. उपलब्धियों के नाम पर अयोध्या और प्रयागराज है. अयोध्या में दिवाली और शहर का नया नामकरण. यही हाल प्रयागराज में कुम्भ और शहर का नया नामकरण.

2. यूपी गठबंधन की चुनौती: समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन की नींव गोरखपुर उपचुनाव से ही पड़ी और कामयाबी का सिलसिला कैराना तक चला. मायावती और अखिलेश यादव के हाथ मिलाने के बाद गोरखपुर से प्रधानमंत्री मोदी लोगों का मूड बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

3. प्रियंका गांधी भी मोर्चे पर: कांग्रेस ने मैदान में प्रियंका गांधी वाड्रा को भी उतार दिया है. प्रियंका को लाकर कांग्रेस गोरखपुर और वाराणसी में बीजेपी पर दबाव तो बढ़ाना ही चाहती है, आस पास की सीटों पर भी कांग्रेस का आधार मजबूत करने की कोशिश है.

गोरखपुर में बीजेपी की एक बड़ी चुनौती पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी भी है. गोरखपुर में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की जबरदस्त लड़ाई है. गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी की हार में इसका भी काफी योगदान रहा. प्रधानमंत्री मोदी ने मंच पर योगी आदित्यनाथ के साथ साथ उनके परम विरोधी शिव प्रताप शुक्ला को भी बैठा रखा था. शुक्ला को राज्य सभा भेजने के बाद मंत्री बनाकर बीजेपी ने ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की है - और प्रधानमंत्री मोदी उसी को मजबूत करने में लगे हैं.

ये सब भी तभी संभव हो पा रहा है जब मंच पर मोदी मौजूद हैं - कह सकते हैं 'मोदी है तो मुमकिन है'. नये स्लोगन के साथ प्रधानमंत्री मोदी सारी निगेटिव चीजों को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं.

ऐसा लगता है जैसे पांच साल सरकार चलाने के बाद मोदी उसी मोड़ पर पहुंच गये हैं जहां 2014 में खड़े थे. तब उन्होंने 'अच्छे दिन...' का सपना दिखाया था. अब एक बार फिर सपने दिखा रहे हैं. वो कह रहे हैं कि बाकी बातें भूल जाइए. विपक्ष जो भी सवाल उठाता है उसे भूल जाइए. हमने मंदिर बनाने की बात की थी लेकिन अब चुनाव तक नहीं कर रहे हैं इसलिए आप भी भूल जाइए. विपक्ष राफेल पर शोर मचा रहा है, उसे भूल जाइए. विपक्ष रोजगार के सवाल उठा रहा है उसे भूल जाइए. किसानों को समझा रहे हैं कि विपक्ष नयी स्कीम के बारे में झूठा प्रचार कर रहा है.

कहते हैं, विपक्ष की बातें इसलिए भूल जाइए क्योंकि वो पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है और सिर्फ एक बाद याद रखिये - 'मोदी है तो मुमकिन है'. पांच साल पहले चुनावों में मोदी ने खुद के नाम पर वोट मांगे थे, नये स्लोगन में फिर से 2014 की छाप नजर आ रही है. दुनिया गोल है. गोल तो शून्य होता है. सिफर भी कहते हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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