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Updated: 05 अगस्त, 2021 10:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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यूपी बीजेपी की नेता रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) काफी गुस्से में हैं. उनका गुस्सा स्वाभाविक भी है. उनकी पार्टी में उस नेता को शामिल कर लिया गया है जो उनके ही घर में आग लगाने के आरोप में जेल जा चुका है - और ये आग लगाने वाली बात कोई मुहावरा नहीं है.

अयोध्या के रहने वाले जितेंद्र सिंह बबलू (Jitendra Singh) जिले के बीकापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. अब वो बीएसपी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं - जितेंद्र सिंह बबलू को बीएसपी के बाहुबली नेता के तौर पर जाना जाता रहा है. जितेंद्र सिंह के साथ दो और बीएसपी नेताओं और एक कांग्रेस नेता ने बीजेपी ज्वाइन किया है. चुनावों से पहले ऐसा पहले भी होता आया है.

रीता बहुगुणा जोशी ने जितेंद्र सिंह के बीजेपी ज्वाइन करने पर कड़ी आपत्ति जतायी है - और पार्टी आलाकमान जेपी नड्डा (JP Nadda) तक शिकायत लेकर पहुंचने की बात कही है. रीता बहुगुणा जोशी चाहती हैं कि बीजेपी जितेंद्र सिंह के मामले में भूल सुधार करे.

रीता बहुगुणा का रिएक्शन तो विरोधी दलों जैसा ही है - जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली बीजेपी अपराधियों को पार्टी में शामिल कर रही है, लेकिन वो सिर्फ इतना ही बोल रही हैं कि जितेंद्र सिंह ने आपराधिक गतिविधियों से जुड़े तथ्य छुपाये हैं, जिसकी जानकारी पार्टी नेतृत्व को नहीं होगी.

जितेंद्र सिंह के खिलाफ जिस केस को लेकर रीता बहुगुणा सवाल खड़े कर रही हैं वो बारह साल पुराना वाकया है, जब वो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की अध्यक्ष हुआ करती थीं. लखनऊ के हुसैनगंज थाने में 5 जुलाई 2009 को रीता बहुगुणा के घर में आग लगाने की FIR दर्ज करायी गयी थी - और दो साल बाद जब जांच में नाम आया तो जितेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाद में जितेंद्र सिंह जमानत पर छूट गये. जिस वक्त ये घटना हुई उस वक्त रीता बहुगुणा खुद भी मुरादाबाद जेल में बंद थीं.

वैसे शिकायत में कहेंगी क्या?

रीता बहुगुणा जोशी का बयान तो यही बता रहा है कि वो बीजेपी नेतृत्व के फैसले पर सवाल उठा रही हैं. राष्ट्रीय न सही, यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह पर तो ये बात लागू होती ही है.

बीजेपी सांसद को उम्मीद है कि पार्टी के सीनियर नेता अपनी भूल सुधारेंगे और जितेंद्र सिंह बबलू को बाहर का रास्ता दिखाएंगे - लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि कौन सी भूल हुई है?

पूर्व बीएसपी विधायक जितेंद्र सिंह के बीजेपी में शामिल होने पर रीता बहुगुणा की प्रतिक्रिया रही, 'मैं हैरान हूं क्‍योंकि ये वही शख्‍स है जिसने जुलाई 2009 में मेरा घर जलाया था... उस वक्त मैं मुरादाबाद जेल में बंद थी.'

कुछ मीडिया रिपोर्ट को देखने पर जितेंद्र सिंह का मामला भी दूसरे दलों के वैसे ही नेताओं जैसा लगता है जो कार्रवाई के डर से अपनी पार्टी छोड़ कर भगवा धारण कर लेते हैं - ऐसा ही आरोप तृणमूल कांग्रेस में घर वापसी कर चुके मुकुल रॉय पर भी लगा था जब वो बीजेपी ज्वाइन किये थे. घोटालों के आरोपियों की सूची में नंदीग्राम सीट से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी का भी है, जिसे लेकर हाई कोर्ट में भी सवाल उठा था, लेकिन सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बोल दिया था कि वो राजनीतिक सवालों के जवाब नहीं देंगे.

rita bahuguna joshi, jp naddaरीता बहुगुणा के लिए जितेंद्र सिंह से ज्यादा जरूरी अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाना है

2019 के आम चुनाव से पहले जब कांग्रेस छोड़ कर टॉम वडक्कन ने बीजेपी का दामन थाम लिया तो उनका एक पुराना ट्वीट वायरल हो गया - बीजेपी ज्वाइन करने के महीने भर पहले ही टॉम वडक्कन ने तंज भरा ट्वीट किया था.

4 फरवरी 2019 को टॉम वडक्कन ने ट्विटर पर लिखा था, 'एक बार आप बीजेपी ज्वाइन कर लीजिये... आपके सारे पाप, अपराध धुल जाते हैं.' 14 मार्च 2019 को टॉम वडक्कन बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में मंच पर भगवा चोला धारण कर लिये थे.

मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि जितेंद्र सिंह भी उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों, माफिया और अपराधियों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ सरकार के एक्शन से डरे हुए थे. जितेंद्र सिंह को भी डर लगने लगा था कि अन्य अपराधियों की तरह उनकी भी इमारतें ढहा न दी जायें - और सरकार की तरफ से कानूनी कार्रवाई न शुरू हो जाये. बतातें हैं कि जितेंद्र सिंह ने बीजेपी के कई नेताओं से मुलाकात कर बचाव की गुहार लगायी - और बीजेपी ज्वाइन करने की पेशकश भी की. कुछ दिन की भाग दौड़ के बाद जितेंद्र सिंह बीजेपी नेतृत्व को अपनी तरफ से नफा नुकसान समझाने में कामयाब रहे - और काम बन गया.

रीता बहुगुणा का कहना है कि जितेंद्र सिंह को बीजेपी से बाहर करने के लिए वो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलेंगी और यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से मुलाकात कर समझाएंगी कि कैसे नेतृत्व को अंधेरे में रखा गया है. इसलिए जरूरी है कि जितेंद्र सिंह को दी गयी बीजेपी की सदस्यता रद्द कर दी जाये.

लेकिन सवाल उठता है कि रीता बहुगुणा की शिकायत का आधार क्या होगा - जेपी नड्डा और स्वतंत्रदेव सिंह से मिल कर भी यही बताएंगी कि ये वही शख्स है जो उनके घर में आग लगाने के आरोप में जेल जा चुका है. फैक्ट तो सही हो सकता है, लेकिन क्या ये पॉलिटिकली भी करेक्ट होगा?

आखिर इससे पहले रीता बहुगुणा ने कब ऐसी आवाज उठायी है? जिन नेताओं पर बीजेपी पहले भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है, लेकिन पार्टी ज्वाइन कर लेने पर खामोश हो जाती है - और आगे बढ़ कर बचाव भी करने लगती है कि आरोप ही तो लगे हैं, कोर्ट से सजा तो हुई नहीं है.

ऐसे आरोप तो बीजेपी हिमंत बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं पर भी लगाती रही है. 2017 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर 700 एकड़ जमीन हड़पने का आरोप लगाया था - और फिर बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने ट्विटर पर लिखा कि मुख्यमंत्री ने तथ्यों और सबूतों के आधार पर ही आरोप लगाया होगा, इसलिए अविलंब कार्रवाई होनी चाहिये. तब सिंधिया गुना से कांग्रेस के सांसद थे और राहुल गांधी, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे - लेकिन अब तो सब कुछ बदल चुका है.

रीता बहुगुणा का दर्द समझा जा सकता है. मुश्किल ये है कि जितेंद्र सिंह पर उनके आरोप भी निजी हैं और राजनीति में निजी दुश्मनी हर वक्त टिकाऊ भी तो नहीं होती. हालांकि, ये कोई पहला मामला नहीं होगा - यूपी में ही बीजेपी बीएसपी से आकर भगवा स्वीकार करने वाले बाबू सिंह कुशवाहा के मामले में भूल सुधार कर चुकी है.

भूल सुधार भी करती है बीजेपी!

बीएसपी से बीजेपी में आये जितेंद्र सिंह के खिलाफ तो रीता बहुगुणा निजी वजहों से अकेली आवाज बन कर रह गयी हैं, लेकिन कभी मायावती के बेहद करीबी सहयोगी रहे बाबू सिंह कुशवाहा को लेकर कई बीजेपी नेताओं ने खूब बवाल किया था - और तब विरोध की एक मजबूत आवाज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रहे. तब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से बीजेपी के सांसद हुआ करते थे.

ये तब का वाकया है जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे - और ऐसे मामलों में हमेशा ही आगे नजर आने वाले बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने सीबीआई और केंद्र सरकार से सबूतों के साथ शिकायत दर्ज करायी थी. किरीट सोमैया का आरोप था कि बाबू सिंह कुशवाहा और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के परिवार के लोगों ने दर्जनों कपंनियां बना कर बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और घोटाला किया. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का तो आरोप रहा कि कुशवाहा को बीजेपी में शामिल कराने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा हुआ और तब वो सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे.

NRHM यानी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला रह रह कर कभी भी मायावती की मुसीबत बढ़ा देता है. 2014 के बाद भी सीबीआई अचानक पूछताछ के लिए नोटिस भेज देती है और बीएसपी नेता राजनीतिक साजिश के आरोप लगाकर शोर मचाती हैं. मायावती सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्टाचार के आरोप में लंबे समय तक जेल में भी रहे हैं.

बाबू सिंह कुशवाहा को 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ज्वाइन कराया गया था - और नितिन गडकरी की दलील रही कि कुशवाहा को फायदा सोच कर खास रणनीति के तहत पार्टी में लाया गया है. बीजेपी को उम्मीद रही कि बाबू सिंह कुशवाहा की वजह से पार्टी को चुनावों में ओबीसी वोट तो मिलेंगे ही, उनको मायावती के खिलाफ राजनीतिक हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाएगा.

मालूम हुआ कि बाबू सिंह कुशवाहा के मामले की संघ मुख्यालय नागपुर तक को जानकारी रही, लेकिन आडवाणी और जोशी जैसे तब के सीनियर बीजेपी नेता ऐसी बातों से नावाकिफ रहे - तभी योगी आदित्यनाथ ने अपने अंदाज में विरोध करना शुरू कर दिया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तब बाबू सिंह कुशवाहा के बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर जो कुछ कहा था उनमें तीन शब्दों पर खास जोर रहा - 'शरारतपूर्ण, दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण', लगे हाथ योगी आदित्यनाथ ने यहां तक धमकी दे डाली थी कि अगर कुशवाहा बीजेपी से बाहर नहीं किये गये तो वो पार्टी भी छोड़ सकते हैं.

योगी आदित्यनाथ ने तब साफ तौर पर कहा था, 'हम इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते कि जिन्हें हत्या का अभियुक्त बनाना चाहिए... उनके प्रति हमदर्दी दुर्भाग्यपूर्ण है... ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद स्थिति है - हमें सोचना पड़ेगा कि ऐसी स्थिति में हम सार्वजनिक जीवन में रहें या राजनीति से अलग हो जायें?'

गोरखपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस कर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि बाबू सिंह कुशवाहा स्वास्थ्य विभाग में घोटालों के लिए जिम्मेदार हैं - जिसके चलते इस क्षेत्र में सैकड़ों बच्चों की मृत्यु हुई.'

जब बीजेपी नेतृत्व के लिए अंदर ही उठे विरोध को मैनेज करना मुश्किल होने लगा तो बाबू सिंह कुशवाहा पर ही मामला छोड़ दिया गया - वस्तुस्थित और हालात की गंभीरता को समझते हुए बाबू सिंह कुशवाहा ने खुदी बीजेपी से अलग हो जाने की घोषणा कर दी. तब जाकर बवाल शांत हुआ.

अब अगर रीता बहुगुणा बीजेपी नेतृत्व के दरबार में पेश होकर शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करती हैं तो खुद भी वैसे ही जवाब सुनने को मिल सकते हैं जैसा राजनीतिक विरोधियों के सवाल उठाने पर बीजेपी की तरह से जवाब दिया जाता है - हो सकता है, रीता बहुगुणा से इतर सोच कर बीजेपी को अपनी छवि के लिए जितेंद्र सिंह का मामला भी बाबू सिंह कुशवाहा जैसा लगे तो संभव है, एक बार फिर भूल सुधार हो जाये.

सिंधिया-हिमंता जैसी हैसियत सबकी तो हो नहीं सकती?

बाबुल सुप्रियो राजनीति से संन्यास लेने के अपने फैसले से अब हाफ यू-टर्न ले चुके हैं - कह रहे हैं सांसद बने रहेंगे लेकिन राजनीति नहीं करेंगे. जैसे कहना चाहते हों, पानी में तो रहेंगे लेकिन मगरमच्छ को दोस्त बनाने की कोशिश करेंगे.

बाबुल सुप्रियो का हृदय परिवर्तन बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने के बाद हुआ है - और अब वो समझा रहे हैं कि सांसद एक संवैधानिक पद है, जिस पर बगैर राजनीति किये भी रहा जा सकता है.

यूपी बीजेपी की नेता रीता बहुगुणा जोशी की स्थिति तो पहले से ही बाबुल सुप्रियो जैसी नजर आती है. रीता बहुगुणा जोशी और बाबुल सुप्रियो में कॉमन बात ये है कि दोनों ही बीजेपी के सांसद हैं - और दोनों ही राजनीति से दूर हैं. बाबुल सुप्रियो तो खुद ऐसा होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन रीता बहुगुणा जोशी को तो बीजेपी ने ही राजनीति से दूर कर दिया है.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले जिन नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन किया था उसमें रीता बहुगुणा भी शामिल रहीं - और चुनाव जीतने के बाद योगी सरकार में उनको भी मंत्री बनाया गया, लेकिन दो साल बाद ही बीजेपी ने 2019 में रीता बहुगुणा सहित कुछ नेताओं को लोक सभा का टिकट दे दिया. रीता बहुगुणा सांसद तो बन गयीं, लेकिन बाकी राजनीति खत्म हो गयी.

बाबुल सुप्रियो के साथ भी ऐसा ही हुआ. 2019 में दूसरी बार आसनसोल से लोक सभा चुनाव जीत कर मोदी सरकार में मंत्री बने, लेकिन फिर रीता बहुगुणा की ही तरह दो साल बाद पश्चिम बंगाल चुनाव में विधानसभा का टिकट दे दिया गया - बाबुल सुप्रियो चुनाव हार गये और जब मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल की बारी आयी तो इस्तीफा भी मांग लिया गया.

अपनी राजनीतिक जिंदगी के जिस मोड़ पर रीता बहुगुणा या बाबुल सुप्रियो खड़े हैं - ऐसा भी नहीं कि सिर्फ ये दोनों ही हैं. बीजेपी में आने के बाद ऐसे कई नेता हैं जिनका कोई नाम लेवा नहीं हैं. ताजातरीन उदाहरण तो मुकुल रॉय ही हैं जो शुभेंदु अधिकारी को मिलते तवज्जो से परेशान होकर ममता बनर्जी की शरण में ही लौट जाना ही बेहतर समझा.

लेकिन हर किसी की किस्मत मुकुल रॉय जैसी भी तो नहीं होती. दिल्ली में अरविंदर सिंह लवली तो बीजेपी में जाने के बाद भी कांग्रेस में लौट आते हैं, लेकिन रीता बहुगुणा के लिए तो जैसे रास्ते ही बंद हो चुके हैं.

वैसे भी हर किसी की हैसियत और किस्मत हिमंत बिस्वा सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसी तो होती नहीं - टॉम वडक्कन जरूर प्रवक्ता बने हुए हैं, लेकिन कर्नाटक में एसएम कृष्णा तो जैसे गायब ही हो गये. लोक सभा चुनाव हार कर भी कांग्रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे पंजाब समस्या सुलझाने के लिए प्रभारी बनाये जाते हैं. राज्य सभा भेजे जाते हैं और नेता भी बना दिये जाते हैं, लेकिन एसएम कृष्णा का कहीं अता पता नहीं है. जब एसएम कृष्णा कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे तो मल्लिकार्जुन खड़गे गृह मंत्री हुआ करते थे.

अभी तो हाल यही है कि रीता बहुगुणा जोशी भी बाबुल सुप्रियो की तरह संवैधानिक पद पर बनी हुई हैं - और संसद सदस्यता की मियाद भी दोनों की एक साथ ही खत्म होगी. देखना है मिलने पर रीता बहुगुणा के साथ भी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का व्यवहार बाबुल सुप्रियो जैसा ही रहता है या अलग?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

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