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Updated: 25 मई, 2018 10:54 AM
अंशुमान तिवारी
अंशुमान तिवारी
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वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ने और घरेलू पंपों पर पेट्रोल की कीमत 100 का आंकड़ा छूने के लिए तैयार है. अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सहकारी संघवाद की ये पहली अग्नि परीक्षा होगी. आज के समय में, ईंधन की मंहगाई को कम करने का त्वरित और अल्पकालिक उपाय सिर्फ राज्यों के हाथ में है, जिन्होंने पिछले चार सालों में सस्ते कच्चे तेल के बावजूद भारी टैक्स लगाए और खूब कमाई की है.

एक तरफ जहां उत्पाद शुल्क (Excise duty) में कटौती की मांग बढ़ रही है. वहीं नॉर्थ ब्लॉक बिना सोचे समझे किसी भी कदम को उठाने से परहेज कर रहा है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दामों में लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार देश में ईंधन की कीमतों पर लगाम लगाने का अल्पकालिक उपाय खोज रही है. इसके लिए उत्पादन शुल्क में कमी करना बेमानी है.

कच्चे तेल के दाम पिछले साढ़े तीन साल के अपने उच्चतम स्तर पर आने के करीब हैं. मांग में बढ़ोतरी, बड़े उत्पादकों की तरफ से आपूर्ति में कटौती और पश्चिम एशिया और वेनेजुएला में बढ़ते तनाव के कारण वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दामों में ये बढ़ोतरी देखी जा रही है. यहां तक कि चालू वर्ष के दौरान आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) को भी वैश्विक क्रूड की उपलब्धता में कमी का सामना करना पड़ सकता है.

कच्चे तेल के $100 प्रति बैरल का आंकड़ा छूने की संभावना इस बात का साफ संकेत है कि तेल की कम कीमतों वाले दिन अब लद गए हैं. चूंकि कीमतों में आगे भी बढ़ोतरी की संभावना है, ऐसे में उत्पाद शुल्क में बार-बार कटौती करना हमारी पहले से ही तनावग्रस्त वित्तीय स्थिति के लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेट्रोल और डीजल पर 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती से भी 280 अरब रुपये का राजस्व नुकसान हो सकता है. जो हमारे राजकोषीय घाटे में जीडीपी का 0.1 प्रतिशत की कमी करेगा.

crude oil, tax, stateवैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम अभी घटने की उम्मीद नहीं है

crude oil, tax, state वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम अभी घटने की उम्मीद नहीं है. यहां तक कि अगर केंद्र अगर एक बार भी उत्पाद शुल्क में कटौती करता है, तो राज्यों को इसकी भारी कीमत अदा करनी पड़ेगी.  पिछले चार सालों में कच्चे तेल की कम कीमतों के बाद, केंद्र और राज्यों ने ईंधन पर टैक्स वसूलने में एक दूसरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा की है.

आइए देखते हैं कि ईंधन के मामले में राज्य कैसे टैक्स चार्ज (1 मई, 2018 को) कर रहे हैं-

1) 9 राज्य- आंध्र प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना हैं जो पेट्रोल पर 30 से 39 फीसदी तक वैट चार्ज कर रहे हैं. दूसरे शब्दों में ये कह सकते हैं कि जब मोटर ईंधन पर कर लगाने की बात आती है तो बड़े राज्य इसमें बाकी राज्योंज को पीछे छोड़ देते हैं.

2) बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल भी 20 से 29 प्रतिशत वैट के साथ बहुत पीछे नहीं हैं.

3) गोवा, नागालैंड, चंडीगढ़ और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य / केंद्र शासित प्रदेश हैं जो 16-18 फीसदी के बीच पेट्रोल पर टैक्स ले रहे हैं.

4) डीजल के मामले में आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र-प्लस मुंबई, राजस्थान, पंजाब, ओडिशा, तमिलनाडु और तेलंगाना मोटर ईंधन पर 22 से 29 प्रतिशत वैट चार्ज कर रहे हैं.

5) बाकी के सारे राज्य डीजल पर 11.42 से 18.30 प्रतिशत वैट लगाते हैं.

राज्यों ने न सिर्फ केंद्र सरकार से तेल की कमाई (एक्साीइज ड्यूटी) का मोटा हिस्सा लिया, बल्कि अपना वैट लगाकर भी खुब पैसे बटोरे. इससे राज्यों का टैक्स प्रतिशत पेट्रोल पर 30 प्रतिशत और डीजल पर 20 प्रतिशत तक पहुंच गया. जो कि पेट्रोल पर 20 रुपये और डीजल पर 17 रुपये प्रति लीटर के औसत उत्पाद शुल्क के अलावा है.

कच्चे तेल की कीमतें जल्दी कम होने की संभावना नहीं है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है. प्रधान मंत्री मोदी, अल्पकालिक तौर पर 21 बीजेपी शासित राज्यों से पेट्रोल और डीजल पर अपने वैट में 5-10 फीसदी की कटौती करके टैक्स को औसतन 20 फीसदी और 15 फीसदी करने के लिए कह सकते हैं. अगर ये होता है तो बाकी राज्यों को भी ऐसा करने पर मजबूर होना होगा.

समय आ गया है जब पीएम मोदी की टीम उनके साथ मिलकर खड़ी हो जाए, ताकि मंहगाई के विस्फोगट और सियासी वज्रपात को थाम सके.

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लेखक

अंशुमान तिवारी अंशुमान तिवारी @1anshumantiwari

लेखक इंडिया टुडे के संपादक हैं.

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