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Updated: 30 मई, 2016 07:00 PM
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विधानसभा चुनावों का नया दौर शुरू होने में अभी छह महीने से ज्यादा वक्त का फासला है. लोक सभा में लुढ़कने और बिहार में थोड़ा संभलने के बाद कांग्रेस एक बार फिर मुहं के बल गिरी है जिस पर पु्ड्डुचेरी का मरहम भी बेअसर समझ आ रहा है.

नतीजा ये हुआ है कि कांग्रेस के रिवाइवल को लेकर हर कोने से कोई न कोई सुझाव 10, जनपथ पहुंच रहा है. सुझाव देने वालों में सबसे आगे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह है.

घर वापसी क्यों नहीं?

19 मई को पांच राज्यों में कांग्रेस की हार की खबर आते ही दिग्विजय सिंह ने सर्जरी की सलाह दी. इस बीच कांग्रेस में एक खेमा पुराने नेताओं को पार्टी में वापस लाने की वकालत करने लगा.

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पुराने कांग्रेसियों की घरवापसी के पक्षधर नेताओं का तर्क है कि राज्यों में मजबूत नेताओं की कमी का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है. वैसे भी हाल फिलहाल क्षेत्रीय दल लोगों में अपनी पैठ बढ़ाते जा रहे हैं जो राष्ट्रीय पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है.

दिग्विजय के अलावा भी कांग्रेस कुछ नेताओं की राय है कि अगर पुराने कांग्रेसी एक बार फिर से एक छत के नीचे आ जाएं तो कांग्रेस मेनस्ट्रीम में मजबूती के साथ वापसी कर सकती है.

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आइडिया तो ठीक है मगर...

जिन नेताओं को कांग्रेस में लाने की सलाह दी जा रही है उनमें महाराष्ट्र के क्षत्रप माने जाने वाले शरद पवार, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, झारखंड में बाबूलाल मरांडी, पंजाब में मनप्रीत बादल, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी और हरियाणा में कुलदीप बिश्नोई का नाम शामिल है. संभव है, बाद में इसमें उत्तराखंड से विजय बहुगुणा और अरुणाचल प्रदेश से कलिखो पुल का नाम भी जोड़ दिया जाए.

दिग्विजय का ये आइडिया है तो बेजोड़, लेकिन इसके लिए नौ मन तेल का इंतजाम भी हो पाएगा, इस पर शायद ही कोई ऐसा हो जिसे शक न हो.

साइड इफेक्ट का क्या?

पहला सवाल तो ये है कि घरवापसी के लिए भला कौन तैयार होगा? और जो तैयार होगा उसकी शर्तें भी कुछ न कुछ होंगी तो उसे कैसे पूरा किया जाएगा?

ममता बनर्जी जब चुनावों से पहले सोनिया गांधी से मुलाकात कर रही थीं और उनके नेता भी बातचीत कर रहे थे तो कांग्रेस ने अहमियत नहीं दी. अब जब वो मजबूती के साथ सत्ता में वापस हो चुकी हैं तो भला कांग्रेस से क्यों हाथ मिलाएंगी? अगर ममता तैयार भी हो जाएं तो क्या कांग्रेस उसके लिए तैयार होगी? ममता कांग्रेस में वापसी के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी भी तो मांग सकती हैं क्योंकि बाकी सब तो उन्हें हासिल है ही. अगर कभी तीसरे मोर्चे की सरकार बनी तो मुमकिन है वो प्रधानमंत्री पद की दावेदार भी हों. अब ममता को कांग्रेस हैंडल कैसे करेगी?

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जहां तक शरद पवार की बात है वो चुनाव न लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं. कांग्रेस में शामिल होने पर वो सुप्रिया सूले के लिए महाराष्ट्र में सीएम की कुर्सी मांग सकते हैं. ये भी संभव है कि वो अपने लिए कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी की मांग कर बैठें. पवार यूपीए में कांग्रेस के साथी हैं लेकिन नीतीश के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को खुला समर्थन भी दे चुके हैं.

इसी तरह अपने पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे जगनमोहन रेड्डी खुद आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पहले से ही दावेदार हैं.

जहां तक कुलदीप बिश्नोई, मनप्रीत बादल और बाबूलाल मरांडी की बात है तो उनकी कोई बड़ी शर्त नहीं हो सकती. इसी तरह विजय बहुगुणा और कलिखो पुल मजबूरी में ही कांग्रेस से अलग हुए हैं. कलिखो पुल तो जब तब खुद को कांग्रेसी ही बताते रहते हैं.

पुराने कांग्रेसियों को वापस लाने की बात भी एक तरह से नेतृत्व को गुमराह करने वाला ही सुझाव है. कांग्रेस की ताजा समस्या दिल्ली से बाहर नहीं बल्कि 24, अकबर रोड की कमान को लेकर है जिसका फैसला 10, जनपथ के भीतर ही होना है - और उसमें शायद ही किसी की सुझाव का कोई मतलब हो. कांग्रेस जब तक नेतृत्व को लेकर एक कदम आगे और दो कदम पीछे करती रहेगी - उसके हाल में कोई सुधार नहीं होने वाला. एक कद्दावर कांग्रेसी ने ही कहा था कि दलितों के घरों में जाकर खाने और ठहरने से कांग्रेस का कल्याण नहीं होने वाला. कार्यकर्ता और कोटरी से बाहर के नेता क्या चाहते हैं अगर नेतृत्व को ये बात समझ आ गई तो सर्जरी क्या शायद किसी दवा की भी जरूरत न पड़े.

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