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Updated: 29 दिसम्बर, 2019 06:58 PM
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2014 में बड़ा सियासी झटका खाने के बाद कांग्रेस ने 2019 के लिए काफी सपने सजा रखे थे. खास कर 2018 में तीन राज्यों में बीजेपी को बेदखल कर सरकार बना लेने के बाद तो जोश और भी हाई हो चुका था. आम चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने तो रायबरेली में बोल भी दिया कि 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अजेय माने जा रहे थे. ऐसा सोनिया गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था, लेकिन 'एरर ऑफ जजमेंट' हो गया और अमेठी वालों ने समझा दिया कि राहुल गांधी भी अजेय नहीं हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) बरसों से कांग्रेस में ट्रंप कार्ड मानी जाती रहीं, लेकिन मोदी लहर में वो कोई भी करिश्मा नहीं दिखा सकीं. हालत ये हो गयी कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी ठुकरा देने के बाद 'अंतरिम' तौर पर फिर से संभालनी पड़ी है.

कांग्रेस के लिए चुनावी राजनीति का हाल ये है कि सोनिया गांधी अंतिम वक्त में रैली रद्द कर देती हैं, राहुल गांधी रैली में ऐसी ऐसी बातें बोल देते हैं कि उनकी जगह प्रियंका गांधी को भेजना पड़ता है - सारी चीजें गड़बड़ हो जाती हैं. ऐसे में हमारी ओर से कांग्रेस के लिए कुछ जरूरी सलाह है, जिसे पार्टी 'रिजॉल्युशन 2020' (Resolution 2020) के तौर पर ले सकती है और ये सब बिलकुल मुफ्त है.

1. प्रियंका गांधी को फ्रंट-फुट पर खेलने की छूट दी जाये

2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस में महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया. प्रियंका गांधी की पहली औपचारिक राजनीतिक पारी पूरी तरह असफल रही. वो अमेठी में राहुल गांधी की हार को टाल नहीं सकीं.

ओपनिंग शॉट कामयाब हो ही जरूरी नहीं. आगे भी कोशिश जारी रह सकती है. प्रियंका गांधी वाड्रा फिलहाल वही कर भी रही हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों से वो दूर रहीं, लेकिन झारखंड के मैदान में जब राहुल गांधी ने 'रेप इन इंडिया' बवाल कर दिया तो, पाकुड़ में रैली के लिए प्रियंका गांधी को भेजा गया.

sonia gandhi, priyanka gandhi, rahul gandhiकांग्रेस के लिए 2020 संभलने का आखिरी मौका है

कांग्रेस के स्थापना दिवस के मौके पर पूरे देश में कांग्रेस नेता मैदान में उतरे थे. राहुल गांधी ने भी गुवाहाटी पहुंच कर जितने जोरदार हमले हो सकते थे, मोदी सरकार पर किये भी - लेकिन प्रियंका गांधी ने एक ही झटके में भाई को भी मीडिया की सुर्खियों से गायब कर दिया और खुद छायी रहीं. उन्नाव रेप कांड को लेकर भी प्रियंका गांधी ने यूपी का तूफानी दौरा किया और पूरा सियासी मैदान लूट लिया. सोनभद्र के मामले में भी प्रियंका ने दिखा दिया कि वो धरना देने के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से किसी भी मामले में कम नहीं हैं.

2020 में कांग्रेस के लिए बेहतर होगा, प्रियंका गांधी वाड्रा को इसी तरह आगे बढ़ कर राजनीति का खेल खेलने की पूरी छूट दे दे - अच्छा रहेगा.

2. राहुल गांधी आगे से लिखा भाषण ही पढ़ें

राहुल गांधी तो संसद से सड़क तक लिखे हुए नोट लेकर जाते रहे हैं. नोट देखकर ही सवाल पूछते हैं और कहानियां भी सुनाते रहे हैं. खुद ही इन बातों के बारे में बताते भी हैं - ये कोई बुराई नहीं है. आखिर सोनिया गांधी भी तो ऐसा ही करती हैं. मायावती जैसी नेता भी लिखे शब्दों से टस से मस नहीं होतीं. पढ़ने में कोई चूक हो जाये तो बात अलग है - वैसे भी अब हर कोई मोदी जैसा हो भी कैसे सकता है.

नये साल में अगर राहुल गांधी भी लिखा हुआ भाषण पढ़ने की आदत डाल लें तो खुद उनकी और पार्टी दोनों की सेहत के लिए अच्छा रहेगा. कम से कम झारखंड और रामलीला मैदान जैसी गलती और उसके बाद फजीहत तो नहीं होगी. झारखंड में राहुल गांधी के 'रेप इन इंडिया' और रामलीला मैदान में 'मैं राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी हूं' पर जो बवाल मचा सबने देखा ही है.

हां, अच्छा हो कोई नया भाषण लेखक की बजाये राहुल गांधी उसी व्यक्ति की सेवाएं लें जो सोनिया गांधी के भाषण लिखता है - कम से कम सोनिया गांधी के बयान कभी बचकाने तो नहीं रहे.

3. कांग्रेस अध्यक्ष नहीं, सोनिया गांधी UPA चेयरपर्सन की भूमिका में बनी रहें

सोनिया गांधी फिलहाल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं - और स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति होनी है तब तक उन्हें ये जिम्मेदारी भी निभानी है. बावजूद इसके सोनिया गांधी पर उससे भी पड़ी जिम्मेदारी है. बतौर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी कांग्रेस और विपक्ष के लिए अच्छी भूमिका निभा सकती हैं. ये कोई नया प्रयोग नहीं बल्कि दस साल तक का आजमाया हुआ कारगर नुस्खा है.

बार बार देखा जा चुका है कि विपक्षी नेताओं के बीच राहुल गांधी मिसफिट हो जाते हैं. विपक्ष के भी कई नेता राहुल गांधी को जूनियर मानते हैं और कांग्रेस के राजनीतिक वारिस होते हुए भी वो जेनरेशन गैप के शिकार हो जाते हैं.

महाराष्ट्र में बने विपक्षी गठबंधन से ये सीख सामने आयी है कि राहुल गांधी के मुकाबले सोनिया गांधी के साथ विपक्ष के लिए भी गठबंधन करना कम मुश्किल है. शरद पवार ने सारी बातचीत सोनिया गांधी से की और राहुल गांधी पूरे सीन से गायब रहे. नतीजा सामने है.

अगर सोनिया गांधी महाराष्ट्र और झारखंड जैसे प्रयोग दूसरे राज्यों में भी करें और प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस के फिर से खड़ा होने तक रिजर्वेशन छोड़ दें तो बात आराम से बन सकती है. झारखंड में हेमंत सोरेन ने आम चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व इसी शर्त पर स्वीकार किया था कि विधानसभा चुनाव में JMM ही गठबंधन का नेतृत्व करेगी - और ये फॉर्मूला फायदेमंद रहा.

4. अध्यक्ष अमरिंदर सिंह को बनाया जाये

राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से न हो. हाल फिलहाल राहुल गांधी के अध्यक्ष के रूप में पार्टी में लौटने की भी चर्चा रही है, लेकिन वो अपनी बात पर कायम हैं. वैसे भी राहुल गांधी को इतनी छूट तो मिलनी ही चाहिये कि वो जिम्मेदारियां निभाते हुए खुद के लिए भी स्पेस रख सकें. जिस तरह कुछ लोगों को काम करने की आदत होती है, छुट्टियां भी बहुत लोगों को वैसे ही पसंद होती हैं - राहुल गांधी को छुट्टियों के लिए पूरा विवेकाधिकार कोटा आवंटित कर देना चाहिये. आखिर ट्वीट-पॉलिटिक्स तो वो दक्षिण कोरिया की राजधानी पहुंच कर भी कर ही लेते हैं.

अब अगर फिर से अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी पर दबाव डाला जाता तो है तो ये बहुत नाइंसाफी होगी. सोनिया गांधी के लिए भी ज्यादा दिन तक कांग्रेस को ऐसे आगे ले जाना मुश्किल होगा. राहुल गांधी ये भी नहीं चाहते कि प्रियंका गांधी वाड्रा को भी कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाये.

ऐसे में कांग्रेस को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो बीजेपी नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से डट कर मुकाबला कर सके. जरूरत पड़ने पर मुंहतोड़ जवाब दे सके.

मोदी-शाह से लड़ने के लिए एक जरूरी शर्त ये भी है कि उस नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप न हों - ताकि कोर्ट कचहरी से लेकर CBI, ED और आयकर दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हों. मुश्किल तो ये है कि इस पैमाने पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी कोई भी फिट नहीं हो पा रहा है.

लेकिन ऐसा भी अंधेर नहीं है. कांग्रेस के पास कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा कद्दावर नेता भी है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की राष्ट्रवादी छवि पर बीजेपी की तरह से भी अभी तक किसी ने उंगली नहीं उठायी है - और फिलहाल वो ऐसी स्थिति में हैं कि पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार की तरह आसानी से सरकारी शिकार बनाये जा सकें.

5. हर चुनावी जिम्मेदारी प्रशांत किशोर को दी जाये

चुनाव प्रबंधन में भी कांग्रेस बार बार चूक जा रही है. कांग्रेस को चाहिये कि सारे पूर्वाग्रह ताक पर रख कर प्रशांत किशोर की तब तक सेवाएं ले जब तक उसमे मंजिल हासिल नहीं हो जाती. अब तो ये सबको मालूम है कि जगनमोहन रेड्डी से लेकर उद्धव ठाकरे तक प्रशांत किशोर की सलाहियत से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे लोकप्रिय नेता भी सत्ता बचाने के लिए प्रशांत किशोर की सेवाएं ले रहे हैं.

वैसे भी कांग्रेस के ताजा विरोध प्रदर्शनों में भी तो प्रशांत किशोर के सलाह की झलक मिल ही रही है. आखिर प्रशांत किशोर ने ही तो कहा था कि नागरिकात कानून और NRC के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में कांग्रेस के सीनियर नेता दिखायी नहीं देते - और उसके बाद ही कांग्रेस के तेवर बदले से लग रहे हैं.

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