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Updated: 20 दिसम्बर, 2019 04:27 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर विपक्षी खेमे में अरसे से एक संकोच देखने को मिला है. ऐसा लगता है राहुल गांधी को विपक्ष के कई नेता अपने रास्ते का रोड़ा मानते हैं - और जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ विपक्ष के मजबूती से खड़े होने की बारी आती है, वो खड़ा होने से पहले ही जमीन पर गिर पड़ता है.

जो नेता खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं उन्हें राहुल गांधी एक प्रतियोगी लगते हैं और वे कन्नी काट जाते हैं. ऐसे भी नेता हैं जो खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं मानते लेकिन राहुल गांधी को जूनियर मानकर उनके साथ काम करने को राजी नहीं हो पाते. ये वही नेता हैं जिन्हें सोनिया गांधी से कभी कोई दिक्कत नहीं होती.

सोनिया गांधी की तरह ही आम चुनाव के दौरान शरद पवार (Sharad Pawar) का नाम भी आगे बढ़ाया गया क्योंकि समझा गया कि उनकी भी प्रधानमंत्री पद में दिलचस्पी नहीं थी. आम चुनाव के नतीजे से पहले आये एग्जिट पोल के बाद भी टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू खासे एक्टिव थे. नायडू विपक्षी नेताओं की मीटिंग बुलाना चाहते थे. ममता बनर्जी से कोलकाता जाकर मुलाकात से पहले वो दिल्ली में राहुल गांधी से भी मिले - लेकिन ममता बनर्जी तैयार न हुईं. वैसे नतीजे आने के बाद तो सारी कवायद ही बेकार और बेमानी हो गयी.

महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार में शामिल होने के लिए कांग्रेस को राजी कर शरद पवार (Sharad Pawar for United Opposition) ने बड़ा एक्सपेरिमेंट किया है और अब वो इसे आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं. NRC और नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों के बीच जामिया की घटना पर उद्धव ठाकरे के बयान से शरद पवार का भरोसा बढ़ा है - लेकिन लगे हाथ एनसीपी नेता ने राहुल गांधी को लपेटे में ले लिया है.

पवार को राहुल टिकाऊ क्यों नहीं लगते?

शरद पवार ने एक ही साथ सोनिया गांधी की तारीफ और राहुल गांधी की खिंचाई की है. एक तरफ वो विपक्ष के नेताओं के साथ सोनिया गांधी की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात को उम्मीद भरी नजर से देखते हैं, लेकिन तभी राहुल गांधी का विदेश दौरा शरद पवार को अच्छा नहीं लगा है. शरद पवार ने नाम तो नहीं लिया है, लेकिन एनसीपी नेता की टिप्पणी में टारगेट पर राहुल गांधी साफ साफ नजर आ रहे हैं.

राहुल गांधी पर शरद पवार की टिप्पणी उनके विदेश दौरे को लेकर आयी है. राहुल गांधी के विदेश दौरे की जानकारी तब सामने आयी थी जब झारखंड कांग्रेस के नेताओं को बताया गया कि चुनाव प्रचार की तारीखें उनके विदेश दौरे से टकरा रही हैं - और वो मुश्किल से एक दिन का ही समय दे पाएंगे. वैसे राहुल गांधी एक दिन से ज्यादा टाइम दिये - और 'रेप इन इंडिया' बोल कर बवाल भी करा डाले. राहुल गांधी के विदेश दौरे की औपचारिक जानकारी भी कांग्रेस अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की तरह ही आयी.

राहुल गांधी ने बताया है कि वो आधिकारिक यात्रा पर हैं, फिर भी शरद पवार को ये खटक रहा है. हो सकता है शरद पवार को अपेक्षा रही हो कि राहुल गांधी मोदी सरकार को घेरने के लिए मिले मौके पर पूरा फायदा उठा पाते. राहुल गांधी के साथ तस्वीर में सैम पित्रोदा भी नजर आ रहा हैं, फिर तो ये प्लान भी सैम पित्रोदा ने ही तैयार किया होगा - और शरद पवार के लिए तो उनके पास रेडीमेड जवाब भी है - 'हुआ तो हुआ!'

शरद पवार की ताजा बातों से ये तो लगता है कि देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दरम्यान उनके मन में कई बातें चल रही हैं. वो कहते भी हैं, ‘इस तरह के संकेत हैं कि देश के कुछ हिस्सों में भाजपा-विरोधी भावनाएं उमड़ रही हैं.’

माहौल में राजनीतिक अवसर भी शरद पवार जैसे अनुभवी नेता निश्चित तौर पर दूर तक दिखायी पड़ रहा होगा. जिस तरह से महाराष्ट्र में सरकार बनाने में शरद पवार ने अपना जौहर दिखाया, उससे ये तो संकेत मिल ही रहे थे कि नजर तो उनकी अब सीधे दिल्ली पर ही होगी और इस बात का साफ साफ इजहार भी उन्होंने कर दिया है, लेकिन इसमें कई पेंच भी दिखायी दे रहे हैं. शरद पवार की बातों से तो ऐसा लगता है, राहुल गांधी को लेकर भी उनकी ऐसी ही राय बनी हुई है.

शरद पवार का कहना है, ‘लोगों को ऐसे बदलाव के लिए विकल्प की जरूरत है और ऐसे विकल्प को देश में टिकना होगा.’

rahul gandhi with sharad pawarकहीं शरद पवार के मिशन दिल्ली में राहुल गांधी रोड़ा तो नहीं बन रहे हैं?

संभव है शरद पवार सिर्फ विकल्प की बात करते तो कई नेताओं की तरफ ध्यान जाता, लेकिन 'देश में टिकना होगा' बोल कर तस्वीर साफ कर दी है - राहुल गांधी के अलावा ये बात किसी और पर फिट ही नहीं होती.

जब तस्वीर पूरी तरह साफ हो चुकी है, फिर तो सवाल भी सहज तौर पर उठ खड़ा होता है - क्या राहुल गांधी को विपक्षी एकता के रास्ते में शरद पवार रोड़ा समझने लगे हैं?

महाराष्ट्र में जो महाविकास अघाड़ी बना है - उसमें राहुल गांधी का जीरो-रोल रहा. खुद शरद पवार ने ही एक इंटरव्यू में इस बारे साफ इशारा किया था. शरद पवार का कहना था कि राहुल गांधी से तीन-चार महीनों से उनकी कोई बात नहीं हुई है - और ये बात गठबंधन बनने के महीने भर के भीतर की है. ये सब तो यही संकेत दे रहा है जैसे शरद पवार की कल्पना के विपक्षी गठबंधन में राहुल गांधी का कोई रोल नहीं है - क्या राहुल गांधी को शरद पवार धीरे धीरे दरकिनार करने के बारे में सोच रहे हैं?

पवार के मन में क्या चल रहा है?

शरद पवार जितने निराश राहुल गांधी के विदेश दौरे को लेकर हैं, उतनी ही उम्मीद उन्हें सोनिया गांधी के नेतृत्व में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विपक्षी नेताओं की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) से मुलाकात को लेकर है, कहते भी हैं, ‘ऐसा लगता है कि गैर-भाजपाई दल एक जैसे मुद्दों पर साथ आ रहे हैं.’ हालांकि, एनसीपी नेता का मानना है कि विपक्ष का कोई संगठित ढांचा खड़ा करना इतना जल्दी आसान नहीं है. इसके लिए थोड़ा वक्त चाहिये होगा.

शरद पवार को भी लगता है कि विरोध के इस रूप की कल्पना उन्हें भी नहीं थी, ‘ऐसी उम्मीद थी कि अशांति कुछ राज्यों तक सीमित रहेगी.’ अब सवाल ये उठता है कि आखिर शरद पवार मन ही मन किस तरह की रणनीति पर काम कर रहे हैं?

1. क्या उद्धव ठाकरे को आगे करने का इरादा है: नागरिकता संशोधन कानून पर लोक सभा में सपोर्ट और राज्य सभा में शिवसेना के बहिष्कार को लेकर कांग्रेस ने तो नाराजगी जतायी थी, लेकिन एनसीपी की तरफ से ऐसी कोई रिएक्शन, सूत्रों के हवाले से ही सही, नहीं आया था. उद्धव ठाकरे का जामिया की घटना की तुलना जलियांवाला बाग से करना शरद पवार को अच्छा लगा है. कहते हैं, ‘अगर उन्होंने ऐसा कहा है, तो ऐसा लगता है कि हम सही रास्ते पर हैं और हमारी सरकार लंबे समय तक चलेगी.’

ऐसा तो नहीं कि शरद पवार अब राहुल गांधी या विपक्षी खेमे की ममता बनर्जी या मायावती की जगह उद्धव ठाकरे को विकल्प के तौर पर पेश करने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं?

ये तो है कि उद्धव ठाकरे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूत विकल्प के तौर पर पेश किये जा सकते हैं. उद्धव ठाकरे को जेल और बेल वाले राजनीतिक खेल में भी उलझाना संघ और बीजेपी के लिए मुश्किल होगा. महाराष्ट्र में जब सरकार बनाने की कोशिशें चल रही थीं तो संजय राउत ने कहा था कि वहां कोई दुष्यंत चौटाला नहीं हैं, जिनके पिता जेल में हों.

2. क्या सुप्रिया सुले को लेकर कोई योजना है: शरद पवार की पार्टी और परिवार में झगड़े का एक ही बिंदु है, उनकी विरासत कौन संभाले - सुप्रिया सुले या अजित पवार. हाल की उठापटक के बावजूद शरद पवार ने अजित पवार को हाथ से फिसलने नहीं दिया है. अब तक शरद पवार झगड़ा बचाने और एनसीपी को बनाये रखने के लिए एक खास फॉर्मूला अप्लायी करते आये हैं - अजित पवार महाराष्ट्र में सुप्रिया सुले दिल्ली में जमी रहें.

अगर एनसीपी का दबदबा बढ़ा और विपक्ष की ओर से किसी एक नाम पर लोग तैयार नहीं हुए तो शरद पवार की पहली कोशिश होगी कि वो सुप्रिया सुले के नाम पर सबको राजी करने की कोशिश करें - वैसे अभी तो ऐसी कोई संभावना दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रही है.

3. क्या खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं: आम चुनाव से पहले शरद पवार ने विपक्ष के सभी नेताओं के सामने कह दिया था कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. तब और अब के राजनीतिक हालात में काफी फर्क है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले शरद पवार के सामने ED का FIR वैसे ही मुश्किल बन कर आया था जैसा पी. चिदंबरम या डीके शिवकुमार के लिए होगा, लेकिन उनकी राजनीतिक रणनीति कारगर साबित हुई. वो नये सिरे से मिशन में जुट गये और न सिर्फ एनसीपी को फिर से लड़ाई में ला दिया, बल्कि अब तो माना जाता है कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार का रिमोट शरद पवार के ही हाथ में है.

अगर अनुकूल हालात में कोई ऐसी संभावना दिखायी दे जो सपने जैसी हो तो किसका मन नहीं डोल जाएगा. राहुल गांधी को दरकिनार करने की एक वजह ये भी तो हो सकती है. है कि नहीं?

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