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Updated: 11 मार्च, 2017 05:20 PM
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भाजपा का वनवास आखिर खत्म हुआ और केसरिया रंग से यूपी रंग गया है. अमित शाह और मोदी मैजिक ने हिंदी बहुल राज्य को अपने कब्जे में ले लिया ही लिया. यूपी में लोगों के मन में अब मोदी ही छाए हुए हैं, लेकिन क्या ये सिर्फ मोदी का मैजिक था या फिर अखिलेश यादव किन्हीं कारणों से जनता जनर्दन को इम्प्रेस करने में नाकाम रहे हैं? कुछ भी हो बबुआ का राजअभिषेक अब ना हो पाएगा.

तो चलिए उन कारणों पर नगर डालते हैं जो अखिलेश की हार के लिए काफी हद तक जिम्मेदार रहे...

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1. यूपी के लड़के: एक बात तो तय है कांग्रेस-सपा गठबंधंन सपा की हार में एक बड़ा कारण माना जाएगा. कांग्रेस 2014 के बाद से सभी इलेक्शन हारी है (कुछेक को छोड़ दिया जाए तो). राहुल गांधी ने कोई साफ रणनीति ना तो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बनाई और ना ही अमित शाह के खिलाफ बना पाए. फिलहाल तो मोदी भारतीय राजनीति के लिए अजेय साबित हो रहे हैं. ऐसे में अखिलेश यादव को राहुल गांधी की तरफ मुड़ने की जगह मुस्लिम वोटों पर ध्यान देना चाहिए था.

राहुल गांधी और अखिलेश गठबंधंन ने बीजेपी के खिलाफ काम करने की जगह उसके हक में काम कर दिया और बीजेपी ने इसे अपनी राजनीतिक ध्रुविकरण के लिए इस्तेमाल किया. यूपी इलेक्शन में जी-जान लगाकर कवरेज करने वाले राजदीप सरदेसाई ने भी ये समझाया कि कैसे यादव और अल्पसंख्यकों का सपोर्ट जो राहुल-अखिलेश के लिए था सिर्फ ध्रुवियकरण को बढ़ाने के काम आया.

इस गठबंधंन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदुत्व गठबंधंन का नतीजा कुछ ऐसा हुआ है कि यूपी में सवर्ण जाती के वोट एक जगह इकट्ठे हो गए हैं और ज्यादातर पिछड़ी जाती और जाटव, दलित भी कुछ इसी लाइन में खड़े दिख रहे हैं. हिंदुत्व राजनीति में एंटी-मुस्लिम प्रचार प्रसार और उम्मीद मोदी के लिए एक नया कॉम्बिनेशन बना है. इस बार यूपी का वोटर एक ही नशे में चूर है.

2. नोटबंदी को कोसना: पीएम मोदी का 500 और 1000 रुपए के नोट बैन करने का फैसला भले ही लोगों के लिए थोड़ा नासाज साबित हुआ हो, लेकिन इसने पीएम मोदी की छवि एक ऐसे लीडर के तौर पर बना दी थी जो कड़े फैसले लेने से डरता नहीं है और देश के हित के लिए अपनी कुर्सी की फिक्र नहीं करता है.

लोगों ने माना कि इस फैसले के बाद क्या अमीर, क्या गरीब हर कोई लाइन में खड़ा है और ये हमारे देश के हित के लिए लिया गया फैसला है. साथ ही, मोदी की ये अपील की लोग इस फैसले को सर आंखों पर बैठा रहे हैं. मोदी ने लोगों को ये मानने पर मजबूर कर दिया कि निजी तकलीफ और आर्थिक रुकावटों के आगे भी इस फैसला का कोई अच्छी असर होगा.

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हालांकि, उत्तर प्रदेश की राजनीति में पार्टियां ये अंदाजा नहीं लगा पाईं कि मोदी का ये फैसला जनता कैसे ले रही है और इसी कश्मकश में नोटबंदी को कोसना शुरू कर दिया. मोदी ने अखिलेश और मायावती के इसी मुद्दे को आड़े हाथों लिया और कहा कि ये लोग करप्शन के पहरेदार हैं. ये भी एक वजह हो सकती है अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश की सत्ता हारने की.

3. सपा का घमासान: तीसरी वजह हो सकती है सपा का अंदरूनी घमासान जिसमें इलेक्शन शुरू होने से पहले ही अखिलेश यादव और चचा शिवपाल ने अपनी दाल गलानी शुरू कर दी थी और शायद यही कारण है कि दाल कुछ ज्यादा ही गल गई. टिकट बांटने को लेकर शुरू हुआ ये घमासान सपा के लिए जहां एक ओर पब्लिसिटी का कारण बना वहीं दूसरी ओर शिवपाल यादव जो दागी मंत्री गायत्री प्रजापति को सपोर्ट कर रहे थे और अखिलेश को ये नागवार गुजरा. अखिलेश ने दोनों को ही अपनी पोस्ट से हटा दिया.

अखिलेश और शिवपाल के बीच का युद्ध इतना आगे बढ़ गया कि नई पार्टी बनने की बात हो गई और अंदरूनी बातें सामने आईं कि शिवपाल समाजवादी पार्टी के भले के लिए काम कर रहे हैं. अखिलेश पार्टी वर्करों को एक करने में असमर्थ रहे और इलेक्शन ने ऐसा मोड़ ले लिया. जब तक अखिलेश अपनी गलती समझ पाते तब तक मोदी इस बात का फायदा उठा चुके थे.

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