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Updated: 05 अप्रिल, 2017 02:47 PM
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यूपी सरकार ने अपनी कैबिनेट की पहली ही बैठक में किसानों की कर्जमाफी का वादा पूरा कर दिया. लेकिन इसमें कितनी हकीकत है और कितना फसाना ये तर्कों और आंकड़ों के जाल में फंस गया है.

बैंकों से एक लाख रुपये तक के कर्जदार किसानों के लिए ऋण माफी का ऐलान हुआ है. इसके लिए सरकारी खजाने पर 36 हजार 359 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. यानी छोटे और सीमांत किसानों की कुल तादाद 86 लाख में 36 हजार करोड़ से भाग देने पर हर एक किसान के हिस्से 16 हजार रुपये से थोड़ा ज्यादा की हिस्सेदारी आती है.

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अब यूपी के किसानों का आंकड़ा देखें तो कुल दो करोड़ 34 लाख किसान हैं. इनमें से लगभग दो करोड़ 15 लाख छोटे और सीमांत किसान हैं. इस संख्या में एक करोड़ 85 लाख यानी करीब 80 फीसदी सीमांत और बाकी बचे 13 फीसदी छोटे किसानों की हिस्सेदारी है. सीमांत किसान के पास औसतन 0.45 से 0.50 हैक्टेयर जमीन है. ऐसे में वो जमीन को गिरवी भी रखें तो 50 हजार रुपये से ज्यादा का कर्ज तो उसे मिल ही नहीं सकता.

उत्तर प्रदेश में 64 लाख 14 हजार किसानों का शेड्यूल्ड बैंकों से कुल कर्ज 86 हजार 241 करोड़ रुपये है. सहकारी बैंकों को भी शामिल करें तो इनसे 6000 करोड़ रुपये का ऋण. यानी कुल 92 हजार 241 करोड़ रुपये का कर्ज. सरकार ने माफी का ऐलान किया सिर्फ 36 हजार 359 करोड़ रुपये का कर्जा.

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला की प्रतिक्रिया तो ये रही कि उत्तर प्रदेश में खेती और किसानों के आंकड़ों की रोशनी में फसली कर्ज भी दो किस्म का है. एक तो फसली और दूसरा मियादी यानी टर्म लोन. अब ज्यादातर किसान ट्रैक्टर, बैल या फिर छोटे थ्रेशर के लिए ही लोन लेते हैं. क्योंकि फसल खराब भी हुई तो किराये पर ये मशीनें देकर कुछ भरपाई कर सकें. उसकी माफी या सब्सिडी का कोई प्रावधान इसमें नहीं है.

यानी ऋण माफी के लिए भी ऐसे ऐसे प्रावधान के पेचो खम हैं कि कर्जे के कोल्हू में पिस रहे छोटे खेतिहरों में से नौ मन तेल तो कम ही किसानों के पास होगा. फिर तो राधा भी सरकार की ही नाचेगी.

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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