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Updated: 06 मार्च, 2019 08:45 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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अयोध्या मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से खबर ऐसे वक्त आयी जब कम ही लोगों का ध्यान उधर रहा होगा. पुलवामा हमले के बाद तो हर कोई पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन और फिर सरहद पर तनाव के बीच जारी राजनीति में उलझ कर रह गया है.

सुप्रीम कोर्ट के रूख और जजों की टिप्पणी के बाद तो नहीं लगता कि अब किसी को देश की सबसे बड़ी अदालत से कोई गिला शिकवा बचा होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मसले पर मध्यस्थता की बात जरूर की है लेकिन जो कुछ भी कहा है वो तो राम मंदिर निर्माण के समर्थकों के मन की बात ही लगती है.

अयोध्या विवाद को लेकर जिन दो बातों पर सुप्रीम कोर्ट का जोर दिखायी दे रहा है, लोग चाहते तो वही थे - 'आस्था का मामला' और 'जल्द फैसला'. अब तो किसी को सुप्रीम कोर्ट से शिकायत नहीं होनी चाहिये.

ये आस्था का ही मामला है

सुप्रीम कोर्ट को अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला सुनाना है. 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट कर संबंधित पक्षों को दे देने का फैसला दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें हुई हैं - और उन्हीं पर देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का इंतजार है.

अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चलाने और संघर्ष करने वाले बरसों से एक ही दलील देते रहे हैं - ये जमीन के किसी टुकड़े का नहीं बल्कि आस्था का मामला है. यही दलील अदालतों में भी दी जाती है और बाहर भी. हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने एक याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की है कि यथास्थिति को हटाते हुए 67 एकड़ गैर विवादित जमीन को उन सभी को वापस देने की अनुमति दी जाये जो उसके मालिक हैं. बहरहाल, अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान ही लिया है अयोध्या विवाद सिर्फ किसी जमीन के टुकड़े के मालिकाना हक का केस नहीं है, बल्कि - "ये दिल, दिमाग और भावनाओं का मामला है."

भला अब और क्या चाहिये? जिस जन भावना की बात राम मंदिर का सपना देखने वाले किया करते रहे. जो बातें साधु संतों का समाज करता रहा. जो बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नेता हर मौके पर दोहराते रहे - सुप्रीम कोर्ट ने भी तो वही बातें कही हैं. ये बाद की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार क्या होगा. अगर मध्यस्थता की पहल से कोई नतीजा नहीं निकला तो फैसले का आधार देश के संविधान द्वारा बने कानून के जरिये जमीन ही हो सकती है फैसले का आधार बने, लेकिन अदालत ने जो तत्व की बात की है वो तो बहुत ही महत्वपूर्ण है. सुनवाई के दौरान पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस एसए बोबडे की टिप्पणी भी बेहद अहम रही, 'अतीत में क्या हुआ, उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है. किसने हमला किया, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद था? हम मौजूदा विवाद के बारे में जानते हैं. हमें सिर्फ विवाद के निपटारे की चिंता है.' सही बात है. वैसे भी लकीर पीटने से कोई फायदा तो है नहीं.

sc on ayodhyaसुप्रीम कोर्ट की नजर में अयोध्या मामला सिर्फ जमीन विवाद नहीं...

बीजेपी नेता उमा भारती ने भी मंदिर को लेकर आस्था की बातें ही दोहरायी है, 'जिस प्रकार मक्का में मंदिर नहीं बन सकता और वेटिकन में मस्जिद नहीं बन सकती, वैसे ही अयोध्या में मंदिर के सिवाय कुछ और नहीं बन सकता.'

अदालत जल्दी फैसला चाहती है

अयोध्या विवाद के साये में सुप्रीम कोर्ट को क्या क्या नहीं कहा गया. सुप्रीम कोर्ट पर फैसले में देर के आरोप लगाये गये. फैसले में देर होने से इंसाफ की हत्या की बातें होने लगी थीं. जब सुप्रीम कोर्ट से बाहर खबर आयी कि फैसला नहीं सुनवाई की अगली तारीख मिली है तो कोर्ट के बाहर प्रदर्शन होने लगे. संघ के नेताओं की ओर से जजों का घेराव करने और फैसले में रोड़े अटकाने वालों के खिलाफ हल्ला बोलने जैसे बयान सुनने को मिल रहे थे.

जब सुप्रीम कोर्ट ने नयी बेंच के गठन की बात की तब भी कई नेताओं ने गुस्से का इजहार किया. तब तो लोग और भी भड़क गये जब पता चला कि एक जज के छुट्टी पर होने से सुनवाई की एक और तारीख मिलने वाली है.

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से कानून बनाने की मांग किये थे. बाकी नेता भी कानून नहीं तो कम से कम कोई अध्यादेश लाने की ही मांग पर अड़े रहे. ये तब तक जारी रहा जब तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने साफ नहीं कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले सरकार की ओर से कुछ नहीं होने वाला.

ये सारे बवाल तभी जाकर थमे जब विश्व हिंदू परिषद और फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने घोषणा की कि चुनाव होने तक वो मंदिर मसले को छोड़ देंगे. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वो अयोध्या विवाद पर जल्द से जल्द फैसले के पक्ष में है.

भला अब और क्या चाहिये? अदालत ने तो आपसी बातचीत से मामला एक बार और सुलझाने का मौका दिया है. वैसे बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी की नजर में मध्यस्थता की कोशिश वक्त की बर्बादी है.

जब सुप्रीम कोर्ट की ओर से ही ऐसी बात कह दी गयी है फिर तो किसी को शक शुबहे की गुंजाइश नहीं होनी चाहिये.

मध्यस्थता की एक और कोशिश

अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने की अनेक कोशिशें हुई हैं. जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे तब भी अयोध्या विवाद को लेकर समझौते के लिए दोनों पक्षकारों की बातचीत का सिलसिला शुरू कराया गया था. तब तो एक अध्यादेश की भी तैयारी थी लेकिन राजनीति ने ऐसी करवट ली कि सारे प्रयास बेकार हो गये. वीपी सिंह के बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर ने भी जोरदार पहल की थी और माना जाता है कि वो काफी करीब थे लेकिन राजीव गांधी के समर्थन वापस लेते ही उनकी सरकार ही चली गयी.

अयोध्या विवाद पर मध्यस्थता की नाकाम कोशिश करने वालों श्रीश्री रविशंकर का नाम भी शुमार हो चुका है - श्रीश्री रविशंकर ने तो बड़े जोर शोर से प्रयास किये लेकिन कोई उन्हें मध्यस्थ मानने को तैयार ही नहीं हुआ - और आखिरकार उन्हें कदम पीछे खींचने पड़े.

लेकिन नाकामी का मतलब ये कत्तई नहीं होता कि एक और कोशिश न हो, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी उम्मीद के साथ मध्यस्थता का मौका देने की पहल की है. सुनवाई के दौरान बाबरी मस्जिद पक्षकार की तरफ से तो मध्यस्थता का विरोध नहीं हुआ, लेकिन हिन्दू महासभा, निर्मोही अखाड़ा और राम लला पक्ष ने मध्यस्थता का विरोध किया. मगर, बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नाम मांगे जाने पर पक्षकारों ने अपनी तरफ से नाम दे दिये हैं.

हिंदू महासभा की ओर से मध्यस्थों के जो नाम सुझाये गये हैं, वे हैं - पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनायक.

इसी तरह निर्मोही अखाड़ा की ओर से भी तीन नाम दिये गये हैं - सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज कुरियन जोसेफ, एके पटनायक और जीएस सिंघवी. एक महत्वपूर्ण बात और है कि मध्यस्थता के दौरान मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लग सकती है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि ये कोई गैग-ऑर्डर नहीं है, बल्कि एक सुझाव है.

मध्यस्थता को लेकर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है - और इसके बहुत जल्द सुनाये जाने की संभावना है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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