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Updated: 16 जून, 2021 12:36 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोरोना काल में जब योगी आदित्यनाथ और केंद्र की मोदी सरकार दबाव में थी, ऐसे में यूपी चुनाव (UP assembly election 2022) से पहले विपक्ष ने राम मंदिर ट्रस्ट (Ram Janam Bhoomi trust) पर जमीन घोटाला करने का आरोप लगाकर बीजेपी और RSS दोनों को राहत की सांस दी है. जी हां, इन आरोपों के बहाने भाजपा और संघ उन मुद्दों पर लौट सकते हैं, जिनमें उनका दबदबा है. जमीन घोटाले का आरोप इसलिए भी बीजेपी के लिए मददगार साबित हो रहा है, क्योंकि आरोप उसी तरह खोखले साबित हो रहे हैं, जैसे राफेल डील घोटाले का मामला.

2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले राम मंदिर का मामला एक बार फिर से सियासी चर्चाओं का केंद्र बन गया है. समाजवादी पार्टी के नेता तेज नारायण पांडेय और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह समेत कांग्रेस ने राम मंदिर के लिए जमीन खरीद मामले (Ram Mandir land scam) में दो करोड़ की जमीन चंद मिनटों बाद 18.5 करोड़ में खरीदने के आरोप लगाते हुए इसकी जांच करवाने की मांग की है. हालांकि, आरोप लगाने वाले नेताओं को भी इस सौदे की हकीकत का अंदाजा है. जिस जमीन को लेकर यह मामला गरमाया है, उसके मालिक ने कुछ साल पहले तब की बाजार दर के अनुसार इसे दो करोड़ रु में बेचने का करार किया हुआ था. अब जबकि मंदिर ट्रस्ट ने इस जमीन को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई तो पहले ये उन लोगों को बेची गई, जिनसे दो करोड़ रु का करार था. और फिर उनसे यही जमीन आज की बाजार दर, यानी 18.5 करोड़ में यह जमीन खरीदी गई. राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने घोटाले के इन आरोपों को राजनीतिक दलों की साजिश बताया है. यदि ये राजनीतिक साजिश है भी, तो क्या विपक्ष इसका फायदा उठा पाएगा? कहीं उसने अंजाने में बीजेपी के हाथ फिर से राम मंदिर का चुनावी हथियार तो नहीं थमा दिया?

राम जन्मभूमि ट्रस्ट पर लग रहे इन आरोपों का सीधा असर 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है.राम जन्मभूमि ट्रस्ट पर लग रहे इन आरोपों का सीधा असर 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है.

आरएसएस के लिए आपदा में अवसर!

राम जन्मभूमि ट्रस्ट पर लग रहे इन आरोपों में भले दम न हो, लेकिन इसका 2022 के चुनाव में फायदा उठाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने कमर कस ली है. विपक्ष का कयास है कि राम जन्मभूमि ट्रस्ट पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath) और आरएसएस को कमजोर करेंगे. भाजपा और संघ ने मिलकर पूरे देश में 'समर्पण निधि' अभियान चलाकर करोड़ों लोगों से राम मंदिर निर्माण के लिए दान एकत्र किया था. अब जबकि आरोपों की सच्चाई भी सामने आ गई है तो संघ घर घर जाकर ये बताने की कोशिश करेगा कि किस तरह समाजवादी पार्टी औेर कांग्रेस ने अपना मंदिर विरोधी रवैया अब तक छोड़ा नहीं है. हिंदुत्व विरोध में अंधी ये पार्टियां मनगढ़ंंत आरोप गढ़कर राम मंदिर पर कलंक लगाना चाहती हैं. संघ ये भी बताएगा कि सपा और कांग्रेस हमेशा से राम मंदिर के लिए धन इकट्ठा करने का  विरोधी रहा है, और अब उनका असली चेहरा सामने आ गया है. विपक्ष का सहमा-सहमा सा कैंपेन तो सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित है, लेकिन संघ इन आरोपों के पीछे की साजिश को घर घर ले जाने का अभियान चला सकता है. 

उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.

योगी आदित्यनाथ को मिल गया चुनावी हथियार!

कोरोना संकट के कारण योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार काफी दबाव में है. बावजूद इसके संघ और भाजपा संगठन के बीच जारी बैठकों के दौर के बाद ये तय कर लिया गया है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ ही गोरखनाथ मठ के महंत भी हैं, जिसकी राम मंदिर आंदोलन में बड़ी भूमिका रही है. लेकिन, इस बार उनके लिए राम मंदिर का मुद्दा उठाना कठिन हो रहा था. लेकिन वो मुश्किल अब विपक्ष ने आसान कर दी है. हालांकि, फिलहाल उन्होंने सिर्फ राहुल गांधी के एक ट्वीट पर अपनी चुप्पी तोड़ी है.

योगी आदित्यनाथ अभी इस मामले को पकने देना चाहते हैं. वे इसे राफेल डील के आरोपों जैसा बनने देना चाहते हैं. ताकि चुनाव पास आते ही विपक्ष पर पूरी ताकत से हमला बोला जा सके. वे सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दलों को हिंदुत्व विरोधी करार देते आए हैं. जमीन घोटाले के आरोप लगने के बाद सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो की बाढ़ आ गई है, जिसमें विपक्षी दलों के नेता राम मंदिर विरोधी बयान देते नजर आ रहे हैं. विपक्ष ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का मौका भाजपा और योगी आदित्यनाथ को घर बैठे दे दिया है.

आरोपों पर अखिलेश 'नरम', लेकिन AAP 'गरम'

यूपी की सियासत में राम मंदिर की भूमिका क्या है, ये समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के बयान से ही साफ हो जाता है. पूर्ववर्ती सपा सरकार में मंत्री रहे तेज नारायण पांडेय के अयोध्या में जमीन खरीद में घोटाले के आरोपों पर 'आज तक' से बात करते हुए अखिलेश यादव ने केवल इतना ही कहा कि राम मंदिर निर्माण में अगर भ्रष्टाचार की खबरें आएं, तो कम से कम ट्रस्ट के सदस्यों को पद से इस्तीफा देना चाहिए. अखिलेश यादव अच्छी तरह से जानते हैं कि राम मंदिर से जुड़े मामले पर ज्यादा मुखर होने से उनका नुकसान होना तय है. समाजवादी पार्टी सरकार के राज में कारसेवकों पर गोली चलवाने का दाग ये दल अब तक भुगत रहा है. इससे सपा को सिर्फ नुकसान होता.

वहीं, उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती है. यूपी में आम आदमी पार्टी के पास फिलहाल खोने के लिए कुछ नहीं है. पंचायत चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा था. वहीं, इन आरोपों पर कायम रहते हुए AAP को थोड़ा-बहुत राजनीतिक फायदा मिलना तय है. अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद AAP नेता संजय सिंह अपने घर पर हुए हमले की जानकारी साझा करते हुए अपनी हत्या होने की आशंका नहीं जताते. संजय सिंह ने जमीन खरीद मामले पर दावा करते हुए कहा था कि जमीन का दाम हर सेकेंड लाखों में बढ़ा है. मामले की जांच कराकर भ्रष्टाचारियों को जेल में डाला जाए.

आम आदमी पार्टी नेताओं के आरोपों की गंभीरता सर्वविदित रही है. मंदिर ट्रस्ट के वकील संजय सिंह पर मानहानि का दावा करने की वकालत कर रहे हैं, और यह भी कह रहे हैं इन्हें इस बार माफी मांगने पर भी बख्शा न जाए. इस मामले का आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह है. लेकिन, जो राम मंदिर का कोरोना के कारण पीछे चला गया था. वो जमीन घोटाले के आरोपों के कारण ही सही, अब फिर से सियासत के पटल पर आ गया है. रस्साकशी जारी है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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