New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 अप्रिल, 2022 08:18 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
  @arvind.mishra.505523
  • Total Shares

राजस्थान में अगले साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. अभी यहां अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है. हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार बनने के बाद से ही कई बार उन्हें अपनी पार्टी के भीतर के असंतोष से ही चुनौती मिलती रही है तथा इसका लाभ भाजपा को मिलने की संभावना है. क्योंकि 1993 से यहाँ हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड चला आ रहा है. ऐसे में ट्रेंड के अनुसार 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सत्ता में आना माना जा सकता है. राजस्थान में बीते दो दशकों से वसुंधरा राजे बीजेपी की एकक्षत्र नेता हैं जो यहां दो बार मुख्यमंत्री का पद भी संभाल चुकी हैं. लेकिन पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि वसुंधरा राजे और बीजेपी के केंद्रीय नेताओं में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. हाल ही में बीजेपी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने कहा कि 'कोई गहलफहमी नहीं रहे, सबसे बड़ा संगठन होता है, पार्टी में गुटबाजी और खेमेबाजी नहीं चलेगी'. इस बयान को वसुंधरा राजे से जोड़कर देखा जा रहा है.

Rajasthan, Rajasthan Election, Congress, Ashok gehlot, Chief Minister, vasundhara Raje Scindia BJP, Sachin Pilotराजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश बीजेपी अध्य्क्ष सतीश पूनिया के बीच खींचतान चल रही है.

राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश बीजेपी अध्य्क्ष सतीश पूनिया के बीच खींचतान चल रही है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन वसुंधरा राजे इसके विरोध में आ गयी थी जिसके कारण इनके करीबी मदन लाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया था.

इस बार भी विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी नेतृत्व एक बार फिर पार्टी को वसुंधरा राजे के प्रभाव से बाहर लाकर, सबको साथ लेकर चुनाव मैदान में जाने की कोशिश में है. और इसी के तहत पार्टी ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को प्रदेश में सक्रिय रखा है. वैसे भी वसुंधरा राजे को अडवाणी खेमे का माना जाता है और जब से 2014 में मोदी - शाह कि जोड़ी केंद्र में आया तब से वसुंधरा राजे के साथ इनका खटास बढ़ता गया.

चूंकि राजस्थान में वसुंधरा राजे का कद काफी बड़ा है और पार्टी को उनको रोक पाना मुश्किल हो सकता है. कहा जाता है कि वसुंधरा राजे का संबंध कांग्रेस के नेताओं से भी अच्छे हैं. ऐसे में अगर वसुंधरा राजे को अगर साइडलाइन किया गया तो वो कहीं बीजेपी के लिए येदियुरप्पा न बन जाएं?

खनन घोटाले के आरोपों को लेकर बीजेपी के दबाव में येदियुरप्पा 2012 में कर्नाटक भाजपा और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और अपनी पार्टी 'केजेपी' गठित की. इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि येदियुरप्पा की पार्टी सिर्फ छह सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी लेकिन वोट शेयर 10 प्रतिशत था जो बीजेपी को हराने केलिए काफी था. इस प्रकार येदियुरप्पा के कारण बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था.

जिस तरह से राजस्थान में बीजेपी को स्थापित करने में वसुंधरा राजे का हाथ माना जाता है ठीक उसी प्रकार कर्नाटक में चार बार के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके येदियुरप्पा को दक्षिण भारत में कमल खिलाने का श्रेय जाता है. यानि दोनों ने अपने -अपने राज्य में बीजेपी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया.

वसुंधरा राजे का गिनती जल्द हार न मानने वाले नेताओं में होता है. पिछले पांच साल से प्रदेश में बीजेपी ने दूसरे नेताओं को उभारने की काफी कोशिशें की हैं, लेकिन वसुंधरा राजे के सामने उसकी हर कोशिशें फेल ही हुई हैं. ऐसे में अगर बीजेपी वसुंधरा राजे के जगह प्रदेश में किसी और नेता को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करता है तो इसका खामियाज़ा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है.

ये भी पढ़ें -

कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद प्रशांत किशोर का हाल भी राहुल गांधी जैसा न हो जाये!

Ram navmi Violence: आखिर भारत में 'संवेदनशील इलाके' बनाए किसने हैं?

बंगाल या महाराष्ट्र नहीं, बिहार उपचुनाव का रिजल्ट भाजपा की चिंता बढ़ाने वाला है

लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय