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Updated: 19 मई, 2022 06:20 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राज ठाकरे (Raj Thackeray) अब भी एक करिश्माई नेता की तरह ही परफॉर्म कर रहे हैं - उद्धव ठाकरे भले ही उनको नकली-ठाकरे साबित करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन अकेले में वो भी मानते होंगे कि राज ठाकरे के 'लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा' मुहिम का कितना ज्यादा असर हुआ है. राज ठाकरे के भगवा शाल और लाल तिलक वाली तस्वीरें आने के बाद से उद्धव ठाकरे अपने समर्थकों को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि महज रंग-रूप धारण कर लेने से कोई बाल ठाकरे नहीं बन सकता.

राज ठाकरे की मुहिम से ही 'हनुमान चालीसा' उधार लेकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश में नवनीत राणा और उनके पति को जेल तक की हवा खानी पड़ी, जबकि राज ठाकरे अब एक कदम आगे बढ़ा कर औरंगजेब के मकबरे के पीछे पड़ गये हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में ये मुद्दा AIMIM सांसद अकबरुद्दीन ओवैसी के फूल चढ़ाने के बाद शुरू हुआ है. ऊपर से अकबरूद्दीन ओवैसी ने राज ठाकरे के खिलाफ कमजोर धाराओं में केस दर्ज किये जाने पर भी सवाल खड़े किये थे.

अब राज ठाकरे अपने अयोध्या दौरे की तैयारी में लगे हैं, लेकिन उससे पहले अपनी एक और रैली के जरिये अपनी बात कहना चाहते हैं. बताते हैं कि पुणे में 21 मई को रैली करने के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तरफ से अनुमति मांगी गयी थी, लेकिन फिर एप्लीकेशन वापस ले लिया गया - क्योंकि रैली की कोई नयी तारीख तय करनी है.

राज ठाकरे के अयोध्या दौरे को काउंटर करने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) नेतृत्व की तरफ से भी अयोध्या भ्रमण का कार्यक्रम बनाया जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, अगर उद्धव ठाकरे का कार्यक्रम नहीं बन पाया तो आदित्य ठाकरे भी चाचा राज ठाकरे से पहले अयोध्या का दौरा कर सकते हैं.

असल में ये सब हिंदुत्व की राजनीति पर शह और मात के बड़े खेल का हिस्सा है. बीजेपी (BJP) पहले से ही उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व पर सवाल उठाती रही है - और अब राज ठाकरे उसी को अपने तरीके से हवा दे रहे हैं.

बावजूद ये सब होने के राज ठाकरे की अयोध्या यात्रा को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. बीजेपी के एक सांसद का कहना है कि वो राज ठाकरे को यूपी में घुसने नहीं देंगे. दरअसल, वो उत्तर भारतीयों पर राज ठाकरे के पुराने स्टैंड के लिए माफी मांगने पर अड़े हुए हैं - और ऐन उसी वक्त अयोध्या के बीजेपी सांसद का कहना है कि वो राज ठाकरे का तहे दिल से स्वागत करेंगे.

राज ठाकरे का विरोध और सपोर्ट - ये सांसद क्या अपने मन से कर रहे होंगे? क्या बीजेपी नेतृत्व की मर्जी के बगैर ये संभव है?

दिसंबर, 2017 में बीजेपी में अपनी बात कहने की मनाही को मुद्दा बनाकर तो नाना पटोले ने पार्टी ही छोड़ दी थी. तब नाना पटोले महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया लोक सभा सीट से बीजेपी के सांसद हुआ करते थे - और आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने किसी को बोलने ही नहीं दिया जाता है. नाना पटोले फिलहाल महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.

परदे के पीछे समर्थन और खुला विरोध

बीजेपी राज ठाकरे के पक्ष में खुल कर तो नहीं आती, लेकिन महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस मौका देख कर एक बात कहते जरूर हैं, 'जो लोग लाउडस्पीकर हटाने से डरते हैं, वो दावा करते हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के समय वो वहां मौजूद थे.'

और गुस्से में उद्धव ठाकरे अपनी रैली में रिएक्ट करते हैं, '... जरा उम्र तो देखो... कितना बड़बड़ाता है.'

raj tahckerayराज ठाकरे और बीजेपी का रिश्ता कितना लंबा चलने वाला है?

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे 5 जून को अयोध्या जाने वाले हैं. साथ ही ये खबर भी आयी थी कि अयोध्या दौरे के वक्त राज ठाकरे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी कर सकते हैं.

यूपी के ही कैसरगंज से बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने योगी आदित्यनाथ को सलाह दी है कि वो राज ठाकरे से तब तक न मिलें, जब तक वो उत्तर भारतीयों के अपमान के लिए माफी नहीं मांग लेते. बीजेपी सांसद ने चेतावनी दी है कि वो राज ठाकरे को अयोध्या में घुसने नहीं देंगे क्योंकि एमएनएस नेता ने उत्तर भारतीयों का काफी अपमान किया है.

बृजभूषण शरण सिंह को जेडीयू का भी समर्थन मिला है. जेडीयू ने भी राज ठाकरे के अयोध्या दौरे का विरोध करने की बात कही है. जेडीयू के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अनूप सिंह पटेल ने बृजभूषण शरण सिंह से इसी सिलसिले में मुलाकात भी की है. अनूप सिंह पटेल की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि जेडीयू की तरफ से बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के साथ मिल कर 5 जून को राज ठाकरे को काला झंडा दिखा कर विरोध किया जाएगा.

बीजेपी के दो सांसद आमने-सामने: राज ठाकरे के अयोध्या दौरे को लेकर बीजेपी के दो सांसद आमने सामने भिड़ते लगते हैं. अयोध्या से बीजेपी सांसद लल्लू सिंह अपने ही साथी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के विरोध के फैसले पर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन अपनी तरफ से वो राज ठाकरे के स्वागत की बात कह रहे हैं.

बीजेपी सांसद लल्लू सिंह का कहना है कि राज ठाकरे पर हनुमान जी की कृपा हुई है, इसलिए वो प्रभु श्रीराम की शरण में आ रहे हैं - और ज भी भगवान राम की शरण में आएगा, अयोध्या के राम भक्त होने के नाते हम उनका हार्दिक स्वागत करेंगे. वैसे भी राज ठाकरे की हनुमान चालीसा मुहिम का यूपी में काफी असर दिखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो कुछ लोगों ने अपने छतों पर लाउडस्पीकर ही लगा लिया था.

फिर मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर पर योगी आदित्यनाथ सरकार की सख्ती के बाद राज ठाकरे ने भी काफी तारीफ की थी. तारीफ में यहां तक कह गये कि यूपी में योगी सरकार है, जबकि महाराष्ट्र में भोगी सरकार है.

बृजभूषण शरण सिंह ने अपने विरोध और राज ठाकरे के उत्तर भारतीयों के खिलाफ पुराने स्टैंड को भगवान श्रीराम से जोड़ दिया है. बीजेपी सांसद का कहना है कि भगवान राम भी उत्तर भारतीय थे - और राज ठाकरे ने भगवान राम के वंशज उत्तर भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार किया है, इसलिए जब तक राज ठाकरे भगवान राम के वशंजों से यानी उत्तर भारतीयों से अपने दुर्व्यवहार के लिए माफी नहीं मांग लेते तब तक वो उनको अयोध्या में नहीं घुसने देंगे.

राज ठाकरे पर बीजेपी का स्टैंड क्या है

1. क्या राज ठाकरे का भी बीजेपी वैसे ही इस्तेमाल कर रही है जैसे अब तक बिहार में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान - और यूपी में अब मायावती का करने लगी है?

ऐसा लग रहा है कि बीजेपी को राज ठाकरे के एमएनएस में भी शिवसेना जैसी संभावना नजर आ रही है - और राज ठाकरे को बीजेपी उद्धव ठाकरे के विकल्प के तौर पर देख रही है.

2. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे में फर्क ये है कि शिवसेना के पास पहले से स्थापित संगठन है और कार्यकर्ता भी हैं. राज ठाकरे अभी तक खुद को शिवसेना की तरह स्थापित नहीं कर पाये हैं - और बीजेपी को शिवसेना जैसा भरोसा मनसे पर नहीं हो रहा होगा.

तो क्या बीजेपी राज ठाकरे को पार्टटाइम सहयोगी मान कर चल रही है? और उद्धव ठाकरे को लेकर बीजेपी को अब भी फुलटाइम सहयोगी के रूप में लौटने की उम्मीद खत्म नहीं हुई है? नीतीश कुमार को मिसाल रख कर देखने पर यही लगता है.

क्या ये समझा जाये कि जब तक उद्धव ठाकरे हार नहीं मान लेते और घर वापसी के फैसले की घोषणा नहीं कर देते, बीजेपी यूं ही राज ठाकरे पर परदे के पीछे प्यार-दुलार लुटाती रहेगी?

3. क्या बीजेपी नेतृत्व भी चाहता है कि राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के साथ अपने पहले के दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगें?

अगर ऐसा नहीं है तो आखिर बृजभूषण शरण सिंह कैसे राज ठाकरे के विरोध के अपने रुख पर लगातार कायम हैं?

4. राज ठाकरे के लिए उत्तर भारतीयों से माफी मांगना जोखिम भरा हो सकता है. ऐसा करने पर उनके मराठी-मानुष सपोर्टर नाराज हो सकते हैं.

राज ठाकरे फिलहाल जिस दौर से गुजर रहे हैं, शिवसेना की राजनीति में भी ये मोड़ आ चुका है. शिवसेना की राजनीति भी मराठी मानुष से ही शुरू हुई थी, लेकिन जब बीजेपी के साथ हिंदुत्व की राजनीति में आगे बढ़ने का फैसला किया तो मराठी मानुष पॉलिटिक्स पीछे छूट गयी - क्या राज ठाकरे मौजूदा दौर में ऐसा करने की हिम्मत जुटा सकते हैं?

5. सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी के सपोर्ट सिस्टम के बावजूद राज ठाकरे को अपना राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल नजर नहीं आ रहा है? जाहिर है, अगर राज ठाकरे के मन में ऐसी कोई आशंका होगी तो निश्चित तौर पर वो अपने लिए सोच समझ कर कोई रणनीति तैयार कर रहे होंगे.

कौन किसका इस्तेमाल कर रहा है?

जैसा राहुल गांधी ने मायावती पर सीबीआई, ईडी और पेगासस के दबाव में बीजेपी के सपोर्ट का दावा किया था, राज ठाकरे को 2019 में मिले ईडी के नोटिस को लेकर उनके राजनीतिक विरोधी बीजेपी से वैसे ही डर की बातें करते रहे हैं.

क्या राज ठाकरे के बीजेपी के फायदे वाली लाइन पर राजनीतिक रणनीति पर काम करने की यही वजह हो सकती है?

बीजेपी ने जैसे यूपी चुनाव में मायावती का इस्तेमाल किया, वैसे ही 2015 के बिहार चुनाव में जीतनराम मांझी और 2020 में चिराग पासवान का नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल किया था - लेकिन 2022 के पंजाब में चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कम से कम इस मामले में बीजेपी के लिए मांझी की ही तरह फिसड्डी साबित हुए. असदुद्दीन ओवैसी को भी ऐसे ही बीजेपी के मददगार के तौर पर जाना जाता है. बिहार चुनाव में ओवैसी को भी 5 सीटें मिली थीं, लेकिन पश्चिम बंगाल में वो पूरी तरह फेल रहे, लेकिन तेलंगाना नगर निगम में ओवैसी की बदौलत ही बीजेपी सफल रही थी.

बड़ा सवाल अब ये है कि बीजेपी राज ठाकरे का इस्तेमाल कर रही है - या राज ठाकरे बीजेपी के सपोर्ट सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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