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Updated: 10 जनवरी, 2022 06:35 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध (PM Security Breach) के मामले में दो पहलू स्पष्ट तौर पर उभर कर आये हैं. एक पहलू राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और दूसरा शुद्ध राजनीतिक. चुनावी माहौल को देखते हुए राजनीतिक दृष्टि से ये मुद्दा अलग से महत्वपूर्ण हो जाता है - और ये सिर्फ पंजाब तक ही सीमित नहीं है, यूपी सहित बाकी राज्यों में भी कांग्रेस इसे लेकर बीजेपी के निशाने पर रहने वाली है.

फिरोजपुर के रास्ते में हुई घटना पर प्रतिक्रियाओं में एक कॉमन बात ये भी आ रही है कि ऐसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिये. नहीं भी होती, अगर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के तंज भरे 'थैक्स' वाली खबर न्यूज एजेंसी एएनआई के जरिये नहीं आयी होती.

चरणजीत सिंह चन्नी ये लड़ाई खुद तो लड़ ही रहे हैं, ये ऐसा पहला मसला है जिस पर उनको पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का भी सपोर्ट हासिल हुआ है - लेकिन कांग्रेस में ही कई लोगों ने चन्नी को इस मुद्दे पर भी पंचिंग बैग बना लिया है.

सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी इस मुद्दे पर अलग अलग रवैया अपना रहे हैं. सोनिया गांधी का ध्यान जहां सुरक्षा के मसले पर नजर आता है, वहीं राहुल गांधी इसके राजनीतिक पहलू के साथ आगे बढ़ रहे हैं. सोनिया गांधी ने घटना के बाद मुख्यमंत्री चन्नी से बात कर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एक्शन लेने को कहा था, जबकि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सरहदों से जोड़ कर पेश किया और अलग से सवाल पूछ रहे हैं.

अब अगर पंजाब में सत्ताधारी पार्टी होने के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा पर घिरी कांग्रेस के बचाव के लिए राफेल डील (Rafael Deal) जैसा रवैया अपनाते हैं तो नतीजों का अंदाजा भी पहले ही लगा लेना चाहिये. ये तो तय है कि 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मामला चुनावी मुद्दा बनेगा ही - लेकिन ये भी जरूरी नहीं कि राफेल डील से अलग रिजल्ट देखने को मिले, भले ही राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' जैसे स्लोगन से परहेज ही क्यों न करें.

हर मर्ज की दवा एक ही नहीं होती

मुद्दा कोई भी हो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अटैक करते हैं एक चीज कॉमन होती है - जैसे मोदी और बीजेपी ने कांग्रेस और गांधी परिवार को 2014 में भ्रष्टचार का संरक्षक साबित किया, ठीक वैसे ही कांउटर करने की कोशिश होती है.

कोई नया तरीका खोजें राहुल गांधी: राहुल गांधी जो भी नारा देते हैं, चाहे वो 'सूट बूट की सरकार' हो या फिर 'चौकीदार चोर है', कोशिश एक ही लगती है, प्रधानमंत्री मोदी को भी भ्रष्टाचार का संरक्षक साबित करना.

narendra modi, rahul gandhi, sonia gandhiप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कांग्रेस के गले में फांस का पूरा इंतजाम कर लिया है

मोदी और राहुल के अप्रोच में एक बड़ा फर्क ये होता है कि राहुल गांधी कभी निजी तौर पर मोदी को भ्रष्ट नहीं कहते, उनका कहना होता है कि वो अपने कुछ दोस्तों को फायदा पहुंचाते हैं. मतलब, वो खुद फायदा नहीं उठाते. हो सकता है ये मोदी के उस बयान के प्रभाव का असर हो, जिसमें कहा था - मेरा क्या... फकीर हूं... झोला उठाके चल दूंगा.

जबकि मोदी गांधी परिवार को 'जेल गाड़ी' और 'बेल गाड़ी' कहते हुए भी संबोधित कर चुके हैं. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर 'रेनकोट पहन कर बाथरूम में स्नान करने' वाली टिप्पणी भी उसी फॉर्मैट में फिट होती है.

राजनीतिक लड़ाई भी लोहे को लोहा काटता है वाले तरीके से लड़ी जा सकती है, लेकिन शर्त ये भी है कि लोहा का गर्म होना जरूरी होता है. राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिये कि 2014 से पहले भ्रष्टाटार के तमाम आरोपों के चलते यूपीए सरकार निशाने पर आ गयी थी और सत्ता विरोधी लहर भी भारी पड़ी थी.

राहुल गांधी को ये याद रखना चाहिये कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता शिखर पर है और अब तक ऐसा कोई भी मुद्दा नहीं रहा है जिसे लेकर देश के आम लोग, बेहतर होगा बीजेपी समर्थक कहना, मोदी से नाराज हों - भले ऐसे में कोई ऐसा नेता जो खुद लोगों के बीच राजनीतिक वजहों से ही सही मजाक का पात्र बन चुका हो उसी तरीके से हमला कैसे बोल सकता है. अगर बोले भी तो बेअसर ही होना है. हो भी वही रहा है.

आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी अलग अलग तरीके से राफेल डील को लेकर काउंटर करते रहे. चुनावी रैलियों में वो अक्सर पूछा करते थे, 'अब इस सवाल का जवाब मिलना जरूरी है कि कांग्रेस के नेता जो शोर अभी कर रहे हैं... उसका मिशेल मामा से क्या कनेक्शन है?'

और जैसे ही मोदी ने नाम से पहले चौकीदार लगा लिया, राहुल गांधी का स्लोगन हल्का हो गया - और धीरे धीरे अप्रभावी होता गया. ध्यान रहे प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध के मामले में ये काम पहले ही हो चुका है. बीजेपी ने बड़े आराम से इसे सुरक्षा से जोड़ दिया है.

यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ ये सब 80-20 के फॉर्मूले पर समझाने लगे हैं - वे जो देश भक्त हैं और वे जो भारत विरोधी हैं. यूपी के मुख्यमंत्री का कहना है, 'कोई भारत विरोधी या हिंदू विरोधी तत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को स्वीकार नहीं करेगा.' वो तो आगे बढ़ कर यहां तक कहने लगे हैं, 'हिंदू विरोधी तत्व पहले भी मुझ पर भरोसा नहीं करते थे और आगे भी नहीं करेंगे - अगर मैं गर्दन काट कर ऐसे लोगों के सामने प्लेट में रख दूं तो मुझ ये भरोसा नहीं करेंगे.'

राहुल गांधी को अगर ये लड़ाई जीतनी है तो लोगों के मन में अपने प्रति भरोसा जगाना होगा - कोई नया और कारगर उपाय खोजना होगा और आगे से कभी भी, भूल कर भी गले मिल कर आंख मारने जैसे ब्लंडर से बचना ही होगा.

ये भी तो मोदी पर निजी हमले जैसा ही है: पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपनी तरफ से बार बार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसा बताया जा रहा है वैसा कोई खतरा था ही नहीं.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री चन्नी ने कहा, 'मैं कहते-कहते भी थक गया हूं कि क्या सिक्योरिटी थ्रेट हुआ था प्रधानमंत्री जी? मैं महामृत्युंजय का पाठ करा देता हूं...क्या बात कर रहे हो आप? कहां थ्रेट था? एक किलोमीटर तक कोई प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के पास नहीं था.'

कटाक्ष ही सही, एक तरफ मुख्यमंत्री चन्नी महामृत्युंजम मंत्र के जाप की बात करते हैं - और दूसरी तरफ सरदार पटेल का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी को नसीहत देने की भी कोशिश करते हैं - और तभी राहुल गांधी पूछने लगते हैं कि सरहदों पर राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में प्रधानमंत्री कब बोलेंगे?

आखिर ये प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमला ही तो है. ऐसा बोल कर राहुल गांधी बीजेपी को ये मौका तो दे ही देते हैं कि लोगों से वो कह सके कि कांग्रेस नेता को प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जरा भी फिक्र नहीं है. जैसे पुलवामा हमले को लेकर आम चुनाव के वक्त बीजेपी ने राहुल गांधी के बयानों को लेकर ही देश विरोधी कठघरे में खड़ा कर दिया था - कांग्रेस नेता नये सिरे से अपने राजनीतिक विरोधियों को वैसा ही मौका मुहैया करा रहे हैं.

ऐसी चीजों से बचा जा सकता था: चरणजीत सिंह चन्नी को ये नहीं भूलना चाहिये कि वो कांग्रेस नेतृत्व की कृपा की वजह से ही मुख्यमंत्री बने हैं. जब तक वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं, संविधान के हिसाब से पद और गोपनीयता की शपथ भी लिये हुए हैं.

अब एक मुख्यमंत्री अगर प्रधानमंत्री की सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर ऊल जुलूल बयान देगा तो कीमत भी तो चुकानी ही पड़ेगी. कहां ऐसे नाजुक मौके पर राजनीतिक रूप से करेक्ट बयान देना चाहिये और कहां चन्नी बचकानी बातें करने लगे हैं - अब अगर बीजेपी को बोलने का मौका मिल जाता है तो वो तो झेलना ही पड़ेगा.

जब चन्नी से पूछा गया कि क्या उनकी गांधी परिवार के साथ प्रधानमंत्री की सुरक्षा उल्लंघन के मुद्दे पर किसी से चर्चा हुई? मुख्यमंत्री का जवाब था - 'मैंने आपको पहले ही बताया था कि मैंने प्रियंका गांधी से बात की थी और यहां जो कुछ हुआ उसे बताया था.'

अब बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा का तो पूछने का हक बन जाता है, 'एक मौजूदा सीएम ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पीएम की सुरक्षा के बारे में जानकारी दी. क्यों? प्रियंका के पास कौन सा संवैधानिक पद है कि उन्हें पीएम की सुरक्षा के बारे में बताया गया है?'

बिलकुल सही बात है. एक बार सोनिया गांधी की बात होती तो चल भी जाता. सोनिया गांधी अंतरिम ही सही, कांग्रेस की अध्यक्ष की भूमिका में हैं, लेकिन प्रियंका गांधी तो प्रभारी भी पंजाब की नहीं बल्कि यूपी की हैं.

सोनिया गांधी के पास बड़ा मौका था

अव्वल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध का मामला कांग्रेस नेतृत्व को स्थानीय स्तर पर ही खत्म कर देना चाहिये था. प्रधानमंत्री मोदी ने तो बस छेड़ दिया था - और देखते देखते एक एक करके कांग्रेस नेता जाल में फंसते चले गये.

चन्नी को थैंक्स बोल कर प्रधानमंत्री मोदी ने एजेंडा तो सेट कर ही दिया था, लेकिन तब भी ऐसा नहीं था कि सारे विकल्प खत्म हो गये थे. भले ही अनुराग ठाकुर जैसे केंद्रीय मंत्री, सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हों, लेकिन सोनिया गांधी ने साफ तौर पर चन्नी को हिदायत दी थी नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और उनकी सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त होना चाहिये. सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री चन्नी से जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने को भी कहा था.

मुख्यमंत्री चन्नी के बहाने कांग्रेस नेता एक तरीके से नेतृत्व को ही टारगेट कर रहे हैं. सुनील जाखड़ से लेकर मनीष तिवारी तक - नाम ही तो चन्नी का ले रहे हैं, लेकिन निशाने पर कौन है? राहुल गांधी सहित वे सभी लोग जो प्रधानमंत्री की सुरक्षा को राजनीतिक तौर पर काउंटर करने के लिए अनाप शनाप बातें कर रहे हैं.

सोनिया गांधी को राहुल गांधी को भी डांट पिलानी चाहिये थी. ऐसे गंभीर मसले पर हल्की बातें करने के लिए. मुख्यमंत्री चन्नी से कहतीं कि डीजीपी सहित ड्यूटी में शामिल सभी अफसरों को सस्पेंड करने के साथ बर्खास्त करने की सिफारिश कर दें.

फिर भी लगता कि कहीं कोई कमी रह जा रही है तो सीधे चन्नी से ही इस्तीफा मांग लेतीं. मुद्दा ही खत्म हो जाता - और अगर नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री बना देतीं पंजाब कांग्रेस झगड़ा भी एक झटके में खत्म हो जाता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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