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Updated: 14 नवम्बर, 2021 03:38 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पार्टी के एक कार्यक्रम में 'हिंदू धर्म और हिंदुत्व' के बीच का फर्क समझाने की कोशिश की. इस कार्यक्रम में राहुल गांधी ने दार्शनिक अंदाज में हिंदू धर्म (Hinduism) और हिंदुत्व (Hindutva) की विचारधारा के बीच अंतर को बताया. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व और हिंदू धर्म दोनों अलग-अलग अवधारणाएं हैं. हिंदुत्व और हिंदू धर्म में अंतर है. यह एक सरल तर्क है - अगर आप हिंदू हैं, तो आपको हिंदुत्व की जरूरत क्यों है? आपको इस नए नाम की आवश्यकता क्यों है? राहुल गांधी ने कहा कि क्या हिंदू धर्म किसी सिख या मुस्लिम को पीटने के बारे में बताता है. मैंने उपनिषद पढ़े हैं. मैंने ऐसा नहीं पढ़ा. लेकिन, हिंदुत्व में निश्चित रूप से ऐसा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राहुल गांधी ने परोक्ष रूप से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद द्वारा हिंदुत्व की तुलना कुख्यात इस्लामिक आतंकी संगठनों ISIS और बोको हराम से करने का बचाव किया है. कहना गलत नहीं होगा कि 'हिंदू धर्म और हिंदुत्व' पर राहुल गांधी की दार्शनिकता कांग्रेस के लिए सिरदर्द ही बनेगी.

Rahul Gandhi statement on Hinduism and Hindutvaराहुल गांधी अपने बयान में सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी के विचारों के समकक्ष खड़े नजर आते हैं.

क्या सच में कांग्रेस की विचारधारा 'सुंदर गहना' है?

देश में कांग्रेस की जिस विचारधारा को स्थापित करने की बात राहुल गांधी कर रहे हैं, क्या उसमें सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) और राशिद अल्वी जैसे नेताओं की व्यक्तिगत राय भी समाहित हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने अपनी नई किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' में हिंदुत्व की तुलना इस्लामिक आतंकी संगठनों से तो की ही है. सलमान खुर्शीद की 1984 के सिख दंगों को लेकर राय भी अब लोगों के सामने आ गई है. दरअसल, 1986 में आई सलमान खुर्शीद की किताब 'एट होम इन इंडिया: अ रीस्टेटमेंट ऑफ इंडियन मुस्लिम्स' के अनुसार, देश के विभाजन के दौरान हिंदुओं और सिखों द्वारा किए गए 'गुनाहों' का फल उन्हें 1984 के सिख दंगों में भुगतना पड़ा. वहीं, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर संभल में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी (Rashid Alvi) ने भी हिंदुत्व पर सवाल खड़े किए हैं. राशिद अल्वी ने 'जय श्रीराम' का नारा लगाने वालों की तुलना कालनेमि राक्षस से की है. कांग्रेस की विचारधारा को कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं के विचारों से अलग नहीं माना जा सकता है.

राहुल गांधी ने वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में आयोजित चार दिवसीय 'एआईसीसी ओरिएंटेशन कार्यक्रम' को ऑनलाइन तरीके से संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस की विचारधारा (Ideology) अनंत शक्ति वाले एक 'सुंदर गहने' की तरह है. राहुल गांधी ने इस कार्यक्रम में कांग्रेस की विचारधारा को लेकर बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहीं. लेकिन, सवाल ये है कि क्या सच में कांग्रेस की विचारधारा 'सुंदर गहना' है? क्योंकि, सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी जैसे इस्लामिक धर्मांध नेताओं की सोच को जनता कहीं न कहीं कांग्रेस से जोड़कर देखेगी ही. इन नेताओं की भर्त्सना करने की जगह राहुल गांधी का ये कहना कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व में फर्क है. और, हिंदू धर्म में कहीं भी मुस्लिमों (Muslim) और सिखों के खिलाफ हिंसा की बात नहीं है. लेकिन, हिंदुत्व में ऐसा होता है. सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी सरीखे नेताओं की सोच का इशारों-इशारों में समर्थन करना नजर आता है. एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस इन नेताओं के विचारों को निजी राय बताकर किनारा कर सकती है. लेकिन, इससे कांग्रेस के सामने अपनी विचारधारा को स्पष्ट करने में मुश्किल पैदा हो जाएगी. 

कांग्रेस की विचारधारा है क्या?

राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस (Congress) की विचारधारा के पास जनहित के मुद्दों, अनुच्छेद 370, आतंकवाद से लेकर राष्ट्रवाद तक सभी सवालों के जवाब हैं. लेकिन, ऐसा कहीं से भी नजर नहीं आता है. धारा 370, सर्जिकल स्ट्राइक, सीएए, राम मंदिर, तीन तलाक समेत हर मुद्दे पर कांग्रेस वैचारिक रूप से कमजोर ही दिखाई पड़ी है. 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन और मंडल कमीशन ने जो उठापटक मचाई थी. कांग्रेस उस दौर में ही राजनीति में पिछड़ने की ओर बढ़ चली थी. जाति और धर्म के बीच बंटे हुए लोगों के बीच कांग्रेस खुद को स्थापित करने वाली विचारधारा के साथ सामने नहीं आ सकी. मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने बहुसंख्यक हिंदू आबादी से जुड़े राम मंदिर सरीखे भावनात्मक मुद्दों से ना केवल दूरी बनाई. बल्कि, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में धीरे-धीरे राज्यों में भी कमजोर होती चली गई. यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक बता दिया.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के उभार के साथ देशभर में हिंदुत्व की विचारधारा को व्यापक समर्थन मिला है. जिसके बाद कांग्रेस ने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को अपनाने की कोशिश की. लेकिन, उसमें भी कामयाब नहीं हो सकी. 2014 के बाद राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली सफलता इसका बहुत सीधा सा उदाहरण है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो रहीम के दोहे 'एकै साधे, सब सधैं' पर चलते हुए भाजपा ने बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच धीरे-धीरे अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाया. जाति के नाम पर बंटे लोगों को भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर एक किया. लेकिन, कांग्रेस इस पूरे दौर में खुद को वैचारिक रूप से शून्यता की ओर ले जाती हुई दिखाई दी. सत्ता से बाहर होने के दबाव में पार्टी हित के लिए राज्यों के चुनाव में कट्टर इस्लामिक विचारधारा वाले सियासी दलों से गठबंधन से लेकर देशहित के मुद्दों पर बंटी हुई विचारधारा ने कांग्रेस के लिए खाई खोद दी. सलमान खुर्शीद, राशिद अल्वी और राहुल गांधी वाला हालिया घटनाक्रम कांग्रेस की विचार शून्यता का एक छोटा सा उदाहरण भर है. 

हिंदुत्व के नाम पर बहुसंख्यक हिंदुओं पर आरोप?

राहुल गांधी ने हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच का अंतर बताकर बहुसंख्यक हिंदुओं में उस उदारवादी वोटबैंक को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया है, जो पहले से ही भाजपा के खिलाफ है. देश के हर राज्य में कांग्रेस के लिए सियासी हालात ऐसे नही हैं कि मतदाता सीधे कांग्रेस के पाले में खड़े हो जाएंगे. इस स्थिति में राहुल गांधी ने अपने जिस उपनिषद ज्ञान के सहारे हिंदू धर्म और हिंदुत्व में भेद बताया है, वह सीधे तौर पर हिंदुओं पर मॉब लिंचिंग वाली विचारधारा के समर्थन करने का आरोप जैसा लगता है. क्योंकि, मॉब लिंचिंग पर तो आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं. वैसे, मॉब लिंचिंग की बात की जाए, तो ऐसा करने वालों के खिलाफ कानून भी अपना काम कर ही रहा है. इस विचारधारा के लोगों की संख्या को बहुत ज्यादा नहीं माना जा सकता है. लेकिन, हिंदुत्व के नाम पर भाजपा (BJP) की विचारधारा को नफरत भरा बताने के चक्कर में राहुल गांधी ने एक तरह से हिंदुओं पर ही आरोप लगा दिया है.

खैर, 'हिंदू धर्म और हिंदुत्व' पर राहुल गांधी की दार्शनिकता का असर अगले साल होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में सामने आ ही जाएगा. लेकिन, एक बात तय है कि भाजपा जिस तरह से राहुल गांधी, सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी के बयानों को एक साथ जोड़कर 'संयोग नहीं प्रयोग' के तौर पर प्रचारित कर रही है, वो कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनना तय है. क्योंकि, यूपी चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बंटवारे के सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री पहले ही करवा चुके हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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