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Updated: 18 जुलाई, 2021 02:13 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी पार्टी में आरएसएस समर्थक नेताओं को बाहर जाने का अल्टीमेटम दे दिया है. राहुल गांधी ने कांग्रेस (Congress) पार्टी के सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं के साथ एक ऑनलाइन मीटिंग में कहा कि बहुत सारे लोग हैं, जो डर नहीं रहे हैं. वे कांग्रेस के बाहर हैं. वे सब हमारे हैं और उनको अंदर लाओ. जो हमारे यहां डर रहे हैं, उन्हें बाहर निकालो. अगर आरएसएस के हो, तो जाओ-भागो, मजे लो. जरूरत नहीं है तुम्हारी. हमें निडर लोग चाहिए. यह हमारी विचारधारा है.

खैर, राहुल गांधी की 'निडरता' पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ जितनी मुखरता से राहुल गांधी लगातार बोलते रहे हैं, शायद ही इस मामले में कोई और उन्हें टक्कर देता हो. यहां ये बताना जरूरी है कि निडरता का ये पैमाना खुद राहुल गांधी ने ही अपने लिए सेट किया है. या इसे ये भी कह सकते हैं कि उन्हें लगता है कि निडर होने का पैमाना यही है. वैसे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पीएम मोदी के खिलाफ मुखरता से बयान देती हैं. लेकिन, वो हाल ही के समय में एक्टिव हुई हैं और उनकी इस मुखरता में नंदीग्राम से हार की निराशा ज्यादा झलकती है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी के 'आरएसएस के हो' वाले बयान का इशारा सीधे तौर पर मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की ओर ही रहा. तमाम मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का उदाहरण दिया. खैर, राहुल गांधी ने अल्टीमेटम दे दिया है, तो माना जा सकता है कि जल्द ही कांग्रेस से कई लोगों का पत्ता कट सकता है. लेकिन, सबसे अहम सवाल ये है कि राहुल गांधी क्यों समझना नहीं चाहते कि राजनीति में गलतियां 'UNDO' नही होतीं.

कांग्रेस में कौन से नेता आरएसएस से डरते हैं?

राहुल गांधी के कई करीबी नेताओं (ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद) ने हाल ही में कांग्रेस से किनारा कर लिया था. एक बात बहुत आसानी से कही जा सकती है कि इन नेताओं के कांग्रेस छोड़ने की वजह सत्तालोभ ही है. लेकिन, दल-बदल के पीछे आरएसएस का डर कहीं से भी कारण नजर नहीं आता है. एक बात ये भी है कि तकरीबन इन सभी नेताओं की सर्जिकल स्ट्राइक, धारा 370, राम मंदिर, चीन से जुड़े मामलों पर राय राहुल गांधी से जुदा रही है. तो, क्या ये मान लिया जाए कि कांग्रेस में रहने के लिए पार्टी के नेताओं को देश से जुड़े मामलों पर भी कांग्रेस का राजनीतिक स्टैंड लेना होगा? क्योंकि, राहुल गांधी की नजर में तो ये आरएसएस का डर ही है, जो इन नेताओं की राय बदल रहा है. लेकिन, सत्ता के लिए विचारधारा को त्यागने की रवायत तो कई दशकों चली आ रही है. इसमें आरएसएस का क्या रोल है, ये समझना थोड़ा मुश्किल है.

लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने, कई राज्यों में सत्ताधारी पार्टी से सहयोगी की भूमिका में आने के साथ कई राज्यों में विफलता का स्वाद चखने के बाद भी कांग्रेस और राहुल गांधी इस बात को समझने के लिए तैयार नही हैं कि इसके पीछे गलती आरएसएस की नही, उनकी खुद की है. उदाहरण के तौर पर अगर पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सियासी नूराकुश्ती चल रही है, तो इसके पीछे आरएसएस के डर को वजह नही बताया जा सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए. हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपा का दामन थामा और असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी पा ली. इन तमाम लोगों के कांग्रेस छोड़ने का सीधा सा कारण पार्टी में उनके कद को महत्व न मिलना रहा. और, इन गलतियों के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए राहुल गांधी कहीं से भी तैयार नहीं दिखते हैं.

सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद राहुल गांधी कहते नजर आए कि अगर वो कांग्रेस में रहते, तो मुख्यमंत्री बन सकते थे. लेकिन, सवाल जस का तस है कि जब कांग्रेस में थे, तब राहुल को इस बात का ख्याल क्यों नहीं आया. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का चेहरा था. लेकिन, उस समय सिंधिया को दरकिनार करते हुए पार्टी और गांधी परिवार के पुराने विश्वासपात्र कमलनाथ को गद्दी सौंप दी गई. जिसके कुछ समय बाद सिंधिया ने भाजपा का झंडा बुलंद किया और कमलनाथ की सरकार ताश के पत्तों की तरह ढह गई. इसी तरह हिमंता बिस्वा सरमा के मामले में भी राहुल गांधी ने उनसे मुलाकात के दौरान अपने डॉग पिड्डी में ज्यादा रुचि दिखाई. इसका फायदा आज पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में भाजपा को मिल रहा है. सिंधिया और सरमा को लेकर किए गए इस गलत फैसले की जिम्मेदारी किसी की भी बने, आरएसएस की तो नहीं बनती है.

एक बात तो तय मानी जा सकती है कि राहुल गांधी के अंदर से 'बॉर्न टू रूल' वाला सिंड्रोम मिटना आसान नहीं है.एक बात तो तय मानी जा सकती है कि राहुल गांधी के अंदर से 'बॉर्न टू रूल' वाला सिंड्रोम मिटना आसान नहीं है.

राहुल गांधी को सीखना होगा गलतियों की जिम्मेदारी लेना

एक बात तो तय मानी जा सकती है कि राहुल गांधी के अंदर से 'बॉर्न टू रूल' वाला सिंड्रोम मिटना आसान नहीं है. कांग्रेस पार्टी का एक बड़ा नेता ये हमेशा ही भूल जाता है कि राजनीतिक दल किसी अकेले के दम पर नहीं बनते और चलते हैं. लेकिन, राहुल गांधी या यूं कहें कि कांग्रेस को लगता है कि लोगों के जाने से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन, शरद पवार, ममता बनर्जी, जगन मोहन रेड्डी जैसे तमाम नाम सामने हैं, जो कांग्रेस से अलग होकर आज संबंधित राज्यों में कांग्रेस से बड़ा दल बन चुके हैं. राहुल गांधी का आरएसएस वाला बयान फिर से वही गलती दोहराने का इशारा कर रहा है. माना जा सकता है कि राहुल गांधी के कांग्रेस से बाहर जाने का रास्ता दिखाने वाले बयान के निशाने पर सबसे पहले जी-23 (G-23) नेता ही होंगे. राहुल गांधी से असहमति जताने का दंड इन्हें देर-सवेर मिलना ही है.

कहीं पढ़ा था कि अगर आपसे कोई गलती हो जाए, तो दो मिनट आंखें बंद करो और ये सोचो कि इस गलती की जिम्मेदारी किस पर डाली जा सकती है. ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी ने भी शायद ये लाइनें पढ़ ली हैं. तभी पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने और इसकी जिम्मेदारी से बचने के लिए उन्होंने अपने 'एस्केप वेलोसिटी' वाले फॉर्मूला की तर्ज पर नया आरएसएस वाला 'एस्केप प्लान' बना लिया है. पहले की गई गलतियों से सीख न लेते हुए राहुल गांधी इन्हें फिर से दोहराने जा रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी को समझना होगा कि राजनीति में गलतियां 'UNDO' नही होतीं. सिंधिया और सरमा के उदाहण उनके सामने हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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