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Updated: 05 जून, 2019 12:39 PM
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Lok Sabha Election 2019 की हार के बाद से ही ये बातें उठने लगी हैं कि Congress पार्टी परिवारवाद के कारण इस कगार पर पहुंच गई. Rahul Gandhi से लेकर नेहरू, इंदिरा, संजय, राजीव, सोनिया, प्रियंका सभी को इसमें घसीटा गया क्योंकि ये सभी पार्टी का हिस्सा रहे हैं. पर कांग्रेस पार्टी में गांधी के अलावा और कुछ हो भी नहीं सकता है. ये कांग्रेस की नींव ही है. इसे किसी ट्रस्ट के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. Rahul Gandhi Resignation को लेकर भी बहुत सी बातें सामने आईं, फिर उनका इस्तीफा खारिज कर दिया गया, लेकिन अगर राहुल गांधी जाते हैं और कोई और कांग्रेस का अध्यक्ष बनता है तो भी क्या उस अध्यक्ष के पास वो पावर और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का वो भरोसा रहेगा जो राहुल गांधी के पास अभी है? क्या उसके पास कांग्रेस पार्टी को चलाने की सत्ता रहेगी? कांग्रेस पार्टी भाजपा की तरह नहीं है जहां नींव में एक संगठन अलग है और बाकी पार्टी में ऊपरी अध्यक्षता बदलती रहती है. कांग्रेस पार्टी असल में एक बिजनेस की तरह है जिसे एक परिवार की अधीनता मिली हुई है और उसके ही मार्गदर्शन में कार्यकर्ता आए हैं.

लोगों ने वोट भी सालों तक उसी परिवार के आधार पर दिए हैं. अब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन तब भी मामला गांधी परिवार से ही होकर गुजरता है. कांग्रेस में अगर कोई और अध्यक्ष बनता है तो भी पावर गांधी परिवार के पास ही रहेगी. सीताराम केसरी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह के दौर में जो समस्याएं खड़ी हुई थीं वही दोबारा खड़ी होंगी अगर गांधी परिवार के अलावा कोई और कांग्रेस की बागडोर संभालता है तो. कांग्रेस अभी भी आगे बढ़ सकती है और उसमें भी गांधी परिवार शामिल होगा, लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि राहुल गांधी अपने सामने उन 10 गलतियों को मान लें जो उनसे हुई हैं.

Rahul Gandhi अभी भी कांग्रेस को उबार सकते हैं, लेकिन उन्हें ये 10 गलतियां माननी होंगी.Rahul Gandhi अभी भी कांग्रेस को उबार सकते हैं, लेकिन उन्हें ये 10 गलतियां माननी होंगी.

1. मेरी राजनीतिक परिभाषा गलत है..

राहुल गांधी ने अपने जीवनकाल में कई चुनाव हारे हैं और उन्हें राजनीति में आए हुए 15 साल हो चुके हैं और उन्हें ये मानना होगा कि पिछले 10 सालों से तो यकीनन उनकी राजनीति गलत रही है. ये शुरुआत 2009 से ही शुरू हो गई थी. क्योंकि 2009 में जब कांग्रेस और भी ज्यादा बड़े वोट शेयर के साथ दोबारा सत्ता में आई थी तब क्रेडिट मनमोहन सिंह की नीतियों को नहीं दिया गया था जब्कि वो समय भारत के बढ़ने का था. भारत ने उस समय मनमोहन सिंह की नीतियों से काफी कुछ हासिल किया था, लेकिन उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के अलावा पार्टी ने और कुछ भी नहीं किया. ये गलत था.

2. राहुल गांधी को हार की जिम्मेदारी लेनी होगी, लेकिन इस्तीफा कोई हल नहीं है..

राहुल गांधी के इस्तीफे की बात से ऐसा लग रहा था कि या तो वो निराश हो गए हैं या फिर वो गुस्से में है. परिवारवाद का ताना शायद उन्हें असर कर गया है और इसीलिए शायद राहुल गांधी को इस्तीफे का तरीका समझ आ रहा है. ये गुस्सा दिखाने का समय नहीं है. अब राहुल का इस्तीफा ये संदेश भी दे सकता है कि उन्हें विरोधियों की बात लग गई है और वो सोच रहे हैं कि अगर कोई उन्हें अध्यक्ष बने नहीं देखना चाहता है तो वो खुद हट जाएंगे.

3. राहुल गांधी को भारत के विकास की राजनीति पर ध्यान देना होगा..

2004 का चुनाव भाजपा बहुत कम मार्जिन से हारी थी. तब कांग्रेस ने ये ध्यान रखा था कि इंडिया शाइनिंग की वजह से भाजपा हारी है. राहुल गांधी ने अपने भाषणों में कहा एक तरफ वो इंडिया है और एक तरफ आप लोग हो जिनका कुछ नहीं हुआ. फिर यूपीए के 10 सालों के बाद 2014 से फिर से यही शुरू हो गया. अब लोगों ने सवाल पूछना शुरू कर दिया है कि आखिर उनकी इस हालत का जिम्मेदार कौन है क्योंकि कांग्रेस ने इतने साल सत्ता संभाली. ये राहुल गांधी की गलती थी कि हर बात के लिए विपक्षी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया.

4. राहुल गांधी को मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव के मामले की गंभीरता समझनी होगी..

राहुल गांधी को ये मानना होगा कि नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के साथ कांग्रेस की तरफ से गलती की गई है. हां, राहुल गांधी इतिहास में नहीं जा सकते हैं, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी के दौर से ही गलती चली आ रही है. अब नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की राजनीति को वापस से कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बनाना होगा.

5. कांग्रेस मेनिफेस्टो की गलती माननी होगी

कांग्रेस मेनिफेस्टो जो कहता था कि कश्मीर में सेना कम कर दी जाएगी, या Armed Forces special powers Act को खारिज कर दिया जाए, Sedition Law को खत्म कर दिया जाए, ये सब कांग्रेस की गलती थी. ये कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रवाद नहीं था.

6. राहुल गांधी खुद पार्टी की विचारधारा निर्धारित नहीं कर सकते

राहुल गांधी ने कांग्रेस को बहुत गहरी विचारधारा की समस्या में लाकर खड़ा कर दिया है. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी राष्ट्रवादी कहे जा सकते हैं. कांग्रेस पार्टी अब वामपंथी कही जा सकती है, लेकिन क्या राहुल इंदिरा गांधी की तरह राष्ट्रवादी और कन्हैया कुमार की तरह वामपंथी हो सकते हैं? राहुल गांधी वामपंथी हैं, लेकिन वो लोकप्रिय वामपंथ नहीं बना पाए. न ही राष्ट्रवाद ठीक से बता पाए. ऐसे में सॉफ्ट नैश्नलिस्ट की छवि सामने आई जो शायद JNU के किसी नेता में भी मिल जाएगी. राहुल गांधी ये कह सकते थे कि भाजपा NIA का इस्तेमाल कर रही है किसने NIA का गठन किया? राहुल गांधी ये कह सकते थे कि बालाकोट में सुरक्षा एजेंसी ने बताया कि कहां आतंकी छुपे हैं तो वो एजेंसी कहां से आई? ऐसे में भी राहुल गांधी ने सॉफ्ट राष्ट्रवाद दिखाया. ऐसे में बहुमत की गुंजाइश नहीं बचती है और अल्पसंख्यक उन्हें सीरियस नहीं समझते हैं.

7. भाजपा को मिटाने की बात करना बिना सोचे समझे..

इंडिया टुडे के इंटरव्यू में राहुल गांधी से पूछा था कि मोदी की सबसे बड़ी ताकत क्या है और राहुल गांधी ने कहा था कि वो उसे पूरी तरह से मिटा देंगे. पार्टी ऐसा कर सकती है, कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, लेकिन क्या बिना हथियार के कोई जंग जीती जा सकती है? कांग्रेस पार्टी भाजपा को भ्रष्टाचार के मामले में पीछे नहीं कर सकती. बिलकुल ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि कांग्रेस की छवि भ्रष्टाचार को लेकर सही नहीं है. मोदी को राफेल के मामले में घेरने की कोशिश राहुल के लिए काफी नहीं थी. चौकीदार चोर है भी काफी नहीं था और ये उल्टा पड़ गया.

राफेल और चौकीदार चोर है, पर पूरी पार्टी की जिम्मेदारी थोपना सही नहीं था. ये काफी इसलिए भी नहीं था क्योंकि कोई सबूत उनके पास नहीं था. अगर उन्हें ये करना भी था तो तीन-चार साल पहले करना था.

8. राहुल गांधी राजनीति में 'बेचारे' नहीं हो सकते..

वो अपनी पार्टी में से किसी और को चुन सकते हैं जो बेचारे या लोगों की सहानुभूति वाली राजनीति कर सकें, लेकिन राहुल गांधी को जिस तरह के विशेषाधिकार प्राप्त हैं वो ऐसा नहीं कर सकते. वो मोदी की तरह खुद को फकीर या चौकीदार नहीं बता सकते. लोगों की सहानुभूति के लिए उन्हें कुछ अलग करना होगा. वो अपने परिवार के बलिदान याद दिला सकते हैं पर बेचारे बनकर वोट नहीं ले सकते. कैंपेन बदलनी होगी.

9. मंदिर जाने का मतलब ये नहीं कि आप हिंदुओं को समझते हैं

बिना हिंदूवाद को समझे, बिना उनकी समस्याओं को समझे, बिना कुछ जाने आप खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण साबित करके वोट नहीं हासिल कर सकते. अब भारत में हिंदुओं की समस्याओं को समझना बहुत जरूरी है. भाजपा इसका जीता जागता उदाहरण है. भारत में सेक्युलर राजनीति का ठीकरा सिर्फ मुसलमानों के सिर नहीं फोड़ा जा सकता है और 80% हिंदुओं को नजरअंदाज करना बहुत बड़ी भूल होगी.

10. उन्हें मानना होगा कि उन्होंने जीत का बिगुल जल्दी बजा दिया

राहुल गांधी ने राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की जीत को खुशी बना लिया और वो ये भूल गए कि वहां कांग्रेस की जीत का कारण सत्ता-विरोधी लहर भी हो सकती है. मध्यप्रदेश में 15 साल की सरकार के बाद भी कांग्रेस की जीत कम वोटों से हुई है और राजस्थान जहां चीफ मिनिस्टर से पब्लिक बहुत ज्यादा नाराज थी वहां भी राहुल गांधी को लगा कि कांग्रेस की जीत मतलब लोकसभा की जीत है. उन्हें ये चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए था कि मोदी स्थानीय स्तर पर भी बहुत ज्यादा मजबूत हैं.

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