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Updated: 12 अप्रिल, 2020 02:34 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कोरोना वायरस (Coronavirus) से जंग में भीलवाड़ा मॉडल की पूरे देश में खूब चर्चा हो रही है. हफ्ते भर से वहां के दो अफसरों की सूझबूझ की भी काफी तारीफ हो रही है. मार्च, 2020 में ही भीलवाड़ा की ही एक सरपंच का वीडियो भी देखा गया था जिसमें वो खुद ही स्प्रे मशीन लेकर गांव को सैनिटाइज कर रही हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भीलवाड़ा मॉडल (Bhilwara Model) की कामयाबी का क्रेडिट राहुल गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) को दे डाला है. सोनिया गांधी का दावा है कि राहुल गांधी के ही अलर्ट करने पर अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने सक्रियता दिखायी और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में सफल रही है. सोनिया गांधी के इस दावे पर कोटा अस्पताल में बच्चों की मौत की घटना यूं ही याद आ जाती है. वही घटना जिसके लिए मायावती कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को कोटा अस्पताल का एक बार दौरा कर लेने के लिए ललकार रही थी - लेकिन प्रियंका गांधी नहीं गयीं. तब भी जबकि उसी दौरान एक कांग्रेस नेता के घर शादी समारोह में शामिल हो आयीं. ये उन दिनों की बात है जब प्रियंका गांधी पूरे यूपी में CAA के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के घर जाकर मुसीबत की घड़ी में साथ खड़े होने का भरोसा दिलाने की कोशिश कर रही थीं.

सोनिया गांधी उसी अशोक गहलोत सरकार को कोरोना की जंग में बेहतरीन बता रही हैं जिस पर कोटा अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने सवाल उठाये थे. सचिन पायलट विशेष रूप से सोनिया गांधी के ही कहने पर हकीकत का पता लगाने दिल्ली से कोटा पहुंचे थे.

राहुल गांधी की तारीफ में पढ़े गये कसीदे कांग्रेस नेता तो धैर्य के साथ चुपचाप सुनते रहे, लेकिन भीलवाड़ा की सरपंच को ये बात बेहद नागवार गुजरी है - और सरपंच ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जतायी भी है.

राहुल गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट क्यों?

भीलवाड़ा में मार्च के महीने में ही 27 मामले कोरोना पॉजिटिव के पाये गये थे जिनमें दो की मौत भी हो गयी. एक अच्छी खबर ये है कि करीब एक हफ्ते से कोई नया केस सामने नहीं आया है - और कोरोना पॉजिटिव पाये गये लोगों में से 13 लोग ठीक भी हो चुके हैं. भीलवाड़ा मॉडल के चर्चा की यही असली वजह है. सुनने में ये भी आया है कि दूसरे राज्यों के सीनियर अफसर भी भीलवाड़ा मॉडल पर काम करने को लेकर अपने अपने हिसाब से तैयारी कर रहे हैं - अभी जगह जगह जो इलाके हॉट-स्पॉट के रूप में खोज कर सील किये जा रहे हैं उसकी प्रेरणा भीलवाड़ा मॉडल से ही ली गयी लगती है.

सवाल ये है कि राहुल गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट दिये जाने का आधार क्या है?

sonia gandhi and rahul gandhiराहुल गांधी को क्रेडिट देने में भी सोनिया गांधी ने देर कर दी

दरअसल, राहुल गांधी ने 12 फरवरी, 2020 को ही एक ट्वीट किया था जिसमें कोरोना वायरस से जुड़े खतरे को लेकर आगाह किया था. राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में द हॉर्वर्ड गजेट की एक रिपोर्ट का लिंक भी दिया था - जिसमें कोरोना वायरस की भयावहता का इशारा किया गया है. असल में यही वो ट्वीट है जो सोनिया गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट देने के लिए आधार बन रहा है.

बेशक राहुल गांधी ने कोरोना वायरस से जुड़े खतरे को लेकर बहुत पहले चेतावनी दी थी - लेकिन सवाल है कि राहुल गांधी की वॉर्निंग का असर सिर्फ भीलवाड़ा में ही क्यों हुआ?

भीलवाड़ा से पहले कोरोना संक्रमण रोकने को लेकर नागौर जिला प्रशासन के काम की काफी चर्चा रही. नागौर जिले की सीमा आस पास के सात जिलों से लगी हुई है - बीकानेर, जोधपुर, सीकर, अजमेर, चूरू, जयपुर और पाली. सभी सातों जिलों में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले सामने आ चुके थे लेकिन नागौर बचा रहा. नागौर में पहला मामला हफ्ते भर पहले आया है, जिसमें मुंबई में दूध का कारोबार करने वाला 55 साल का एक व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाया गया है. नागौर के कोरोना वायरस संक्रमण से बचे रहने का क्रेडिट जिले के कलेक्टर और एसपी को दिया जा रहा था - क्योंकि शुरू से ही वो फ्लैग मार्च कर लोगों को जागरुक करते रहे और सीमाओं पर आने जाने में पूरी सख्ती बरत रहे थे. कोरोना का जो पहला मामला आया है वो शख्स भी जांच में पॉजिटिव पाये जाने से 20 दिन पहले लौटा था, लेकिन सब ठीक था.

अगर भीलवाड़ा के साथ साथ नागौर को भी जोड़ लें तो पूरे राजस्थान में सिर्फ दो ही जिलों में कोरोना का असर कम क्यों रहा?

आखिर राजस्थान के बाकी जिलों पर राहुल गांधी के ट्वीट का कोई असर क्यों नहीं हुआ? जयपुर में सबसे ज्यादा मामले क्यों पाये गये जबकि अशोक गहलोत और सारे मंत्री अधिकारी वहीं रहते हैं. सोनिया गांधी की ये भी शिकायत है कि राहुल गांधी के सबसे पहले ट्वीट करने के बावजूद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. सोनिया गांधी की ये शिकायत बिलकुल वाजिब लगती है, लेकिन सवाल तो ये भी है कि राजस्थान से इतर कांग्रेस शासन वाले दूसरे राज्यों में कोई भीलवाड़ा क्यों नहीं बन सका?

ये सही है कि देश में लॉकडाउन लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह रहे - लेकिन पंजाब की हालत भी कहां सुधर पायी है. लगातार कर्फ्यू और सख्ती के बाद पंजाब में लॉकडाउन बढ़ाये जाने के बाद भी कोरोना के तीसरे स्टेज में पहुंचने की आशंका बन पड़ी है. कोरोना वायरस के तीसरे स्टेज में कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा रहता है. आखिर पंजाब और छत्तीसगढ़ में कोई भीलवाड़ा मॉडल क्यों नहीं बन पाया है - कहीं इसलिए तो नहीं कि अशोक गहलोत कैप्टन अमरिंदर सिंह और भूपेश बघेल के मुकाबले गांधी परिवार के ज्यादा करीबी माने जाते हैं.

राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ ही क्यों - महाराष्ट्र और झारखंड सरकार में भी तो कांग्रेस की हिस्सेदारी है. जब CAA का सपोर्ट करने को लेकर सोनिया गांधी की नाराजगी की बात उद्धव ठाकरे तक पहुंचायी जा सकती है, तो क्या राहुल गांधी के कोरोना अलर्ट को लेकर सोनिया गांधी के मन की बात महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री को नहीं समझायी जा सकती. वो भी तब जब पूरे देश में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में ही सामने आये हैं. झारखंड में भी तो कोरोना का कहर शुरू हो ही गया है. सिर्फ इतना ही नहीं, राहुल गांधी के सपोर्ट में सोनिया गांधी की दलील इसलिए भी बेदम लगती है - क्योंकि पहले से ही भीलवाड़ा मॉडल के किस्से मीडिया में छाये हुए हैं.

ये भीलवाड़ा मॉडल क्या है?

ये संभव था कि सोनिया गांधी ने भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट राहुल गांधी को पहले ही दे दिया होता तो कोई सवाल खड़ा नहीं होता, लेकिन इसमें भी कांग्रेस नेतृत्व ने बाकी मामलों की तरह थोड़ी देर कर दी.

जब भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा शुरू हुई तो पहला श्रेय वहां के कलेक्टर राजेंद्र भट्ट को श्रेय दिया गया. राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अफसर भट्ट 2007 में प्रमोशन से IAS बने थे और काफी दिनों से भीलवाड़ा के कलेक्टर हैं. भट्ट के साथ भीलवाड़ा के एक और अफसर आईएएस अफसर की भी चर्चा रही है टीना डाबी - 2015 की UPSC टॉपर टीना डाबी भीलवाड़ा में एसडीएम के तौर पर तैनात हैं.

हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में टीना डाबी ने बताया था कि किस तरह जिला प्रशासन ने फटाफट फैसले लिये और नतीजे नजर आने लगे. भीलवाड़ा की एसडीएम टीना डाबी ने बताया कि सबसे पहले तो लोगों को भरोसे में लिया गया और फिर भीलवाड़ा को पूरी तरह से आयसोलेट कर दिया गया. पहले से तो सतर्कता बरती ही जा रही थी, जैसे ही 25 मार्च को संपूर्ण लॉकडाउन लागू हुआ, दो घंटे के भीतर कलेक्टर भट्ट ने कर्फ्यू लगाने का फैसला किया.

द प्रिंट से बातचीत में राजेंद्र भट्ट कहते हैं कि उन्होंने कोई रॉकेट साइंस का इस्तेमाल नहीं किया, बस वक्त की जरूरत के हिसाब से कड़े फैसले लिये और उन पर सख्ती से लागू किया. हां, भट्ट बताते हैं कि राज्य सरकार के सामने जो भी डिमांड रखी मंजूरी देने में कोई हीलाहवाली नहीं की गयी.

दोनों अफसरों के साथ था भीलवाड़ा के देवरिया गांव की सरपंच किस्मत गुर्जर भी खासी चर्चा में रही हैं - खासकर तब जब गांव में घूम घूम कर स्प्रे करते हुए उनका वीडियो वायरल हुआ. वीडियो देख कर हर कोई हैरान था कि कैसे एक महिला सरपंच खुद ही गांव को सैनिटाइज करने निकल पड़ी है.

राहुल गांधी को सोनिया गांधी के क्रेडिट देने से सबसे ज्यादा नाराज किस्मत गुर्जर ही लगती हैं - सरपंच किस्मत गुर्जर का मानना है कि भीलवाड़ा मॉडल वहीं के लोगों की मेहनत और लॉकडाउन सख्ती से पालन करने का नतीजा है - न कि किसी और वजह से.

किस्मत गुर्जर के सोनिया गांधी पर बरस पड़ने की बड़ी वजह तो उनकी पॉलिटिकल लाइन भी है - सरपंच किस्मत गुर्जर ठहरीं कट्टर मोदी सपोर्टर और क्रेडिट लेने वाला कांग्रेस नेतृत्व. राजनीतिक लाइन अपनी जगह है लेकिन किस्मत गुर्जर का खुद स्प्रे मशीन लेकर गांव को सैनिटाइज करने निकल पड़ना अपनेआप में बेमिसाल है.

राहुल गांधी को क्रेडिट दिये जाने की कोई खास वजह भी हो सकती है. रह रह कर खबरें तो आती ही रहती हैं कि राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वापसी हो सकती है - लेकिन उनके जिद पर अड़े होने के कारण ये मुमकिन ही नहीं हो पाता. हो सकता है, कांग्रेस नेताओं के बीच राहुल गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट देकर उनकी दोबारा ताजपोशी को लेकर कोई माहौल तैयार किया जा रहा हो, लेकिन किसी और की मेहनत का माखौल उड़ा कर कोई और श्रेय भला कैसे हासिल कर सकता है - कांग्रेस नेतृत्व को ये कतई नहीं भूलना चाहिये कि गुमराह करके किसी का भरोसा हासिल करना काफी मुश्किल होता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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