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Updated: 31 मार्च, 2020 11:40 AM
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जैसे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपनी मां सोनिया गांधी से थोड़ा हटकर राजनीति करने की कोशिश करते हैं, वैसे ही उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) भी रह रह कर कुछ-कुछ नये प्रयोग करती रहती हैं. कभी इंडिया गेट पर कैंडल मार्च तो कभी सोनभद्र पहुंच कर धरना तो कभी CAA का विरोध करने वालों से पुलिस एक्शन के बाद मुलाकात को एक लाइन में रख कर देखें तो ऐसा ही लगता है. जो काम प्रियंका गांधी ने अभी अभी किया है वो बीते सारे आइडिया से पूरी तरह अलग है - और ऐसा लगता है जैसे राजनीति की नई इबारत लिख रहे हों. ये सच है कि पूरा देश कोरोना वायरस के आतंक (Coronavirus India) के चलते संकट के दौर से गुजर रहा है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि राजनीति थमी नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकार की घोर आलोचना के बाद भले ही कांग्रेस नेता अब समर्थन जताने लगे हों, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बीजेपी सरकारों के बीच आरोप प्रत्यारोप खुलेआम हो रहा है.

बहाना भले ही पलायन कर रहे दिहाड़ी मजदूर हों, लेकिन प्रियंका गांधी का मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को पत्र लिखने को मानवीय पहलू के नजरिये से देखा जा सकता है, लेकिन मौजूदा दौर में कोई सामान्य राजनीतिक घटना तो नहीं ही लगती - वो भी तब जबकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अंबानी बंधुओं से लगातार 'सोशल डिस्टैंसिंग' बना कर चल रहे हों.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने मुकेश अंबानी को पत्र लिखा है

29 मार्च को देश के मोबाइल कंपनियों को दो-दो पत्र भेजे गये हैं. एक पत्र कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की तरफ से और दूसरा दूरसंचार नियामक संस्था TRAI की तरफ से - अब ये संयोग है या प्रयोग लेकिन दोनों ही पत्रों में लगभग एक जैसी ही गुजारिश है - और उसका मकसद है लॉकडाउन के चलते लोगों के मोबाइल बंद न हो जायें.

प्रियंका गांधी ने ये पत्र व्यक्तिगत तौर पर मुकेश अंबानी सहित चार मोबाइल कंपनियों के प्रमुखों को लिखा है जो सार्वजनिक तौर पर ट्विटर पर देखा जा सकता है, जबकि TRAI ने सभी मोबाइल सर्विस कंपनियों से कहा है. TRAI ने मोबाइल सर्विस देने वाली कंपनियों से प्रीपेड ग्राहकों की वैलिडिटी बढ़ाने को कहा है ताकि लोगों को एक दूसरे से संपर्क में कोई मुश्किल न खड़ी हो.

प्रियंका गांधी वाड्रा लिखती हैं, 'प्रिय श्री अंबानी जी. मैं आपको देश भर में पलायन कर रहे लाखों मजदूरों के संदर्भ में मानवीय आधार पर यह पत्र लिख रही हूं जो भूख, प्यास और बीमारियों से जूझते हुए अपने परिवार और घर पहुंचने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. मैं जानती हूं कि संकट के इस घड़ी में अपने देशवासियों की मदद करना हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी है.'

priyanka gandhi, mukesh ambaniक्या प्रियंका गांधी की पार्टीलाइन राहुल गांधी से अलग जा रही है?

मुकेश अंबानी को संबोधित प्रियंका वाड्रा के पत्र में आगे लिखा है, 'एक तरीका है जिससे आपकी कंपनी जियो टेली कम्युनिकेशन मौजूदा हालात में सकारात्मक फर्क डाल सकती है. बहुत सारे लोग जो अपने घर जा रहे हैं उनके मोबाइल रिचार्ज खत्म हो चुके हैं . इसका मतलब है कि वो अपने परिजनों को कॉल नहीं कर सकते और न ही उनके कॉल रिसीव कर सकते हैं. पत्र की आखिरी लाइन है - 'मुझे आपसे सकारात्मक जवाब की उम्मीद है - अभिवादन सहित...'

प्रियंका गांधी ने ऐसे ही पत्र एयरटेल के प्रमुख सुनील भारती मित्तल के साथ साथ वोडाफोन और बीएसएनएल प्रमुखों को भी लिखा है और सेवाएं एक महीने तक मुफ्त मुहैया कराने की अपील की है.

कोरोना वायरस से उपजे संकट के बीच लोगों की मदद के नाम पर कांग्रेस की राजनीति पत्र और ट्विटर तक ही सीमित लगती है. लोगों की मदद के लिए पत्र तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी लिख रहे हैं लेकिन वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख रहे हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं. हाल ही में सोनिया गांधी ने रायबरेली की डीएम शुभ्रा सक्सेना को पत्र लिख कर लोगों को कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क, सैनिटाइजर और सभी जरूरी सामान उपलब्ध कराने को कहा था. सोनिया गांधी ने लिखा था, 'कोरोना आपदा से मदद के लिए जिलाधिकारी मेरी सांसद निधि से जितने भी फंड की जरूरत हो, निर्गत कर सकती हैं. मैं इसकी संस्तुति करती हूं.' हाल ही की एक बात ये भी है कि रायबरेली जागरुक मंच की तरफ से सोनिया गांधी के पोस्टर लगाये गये थे जिसमें सांसद को लापता बताया गया था.

पहले तो राहुल गांधी से लेकर पी. चिदंबरम और रणदीप सिंह सुरजेवाला तक मोदी सरकार पर कोरोना को लेकर हमलावर रहे और लगातार सवाल भी पूछते रहे, लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद खामोश हो गये. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में लॉकडाउन को लेकर लिखा, 'मुझे संदेह है कि सरकार इसे और बढ़ा सकती है.' हालांकि, कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने ऐसी खबरों को बकवास करार देते हुए कहा है कि फिलहाल सरकार का ऐसा कोई प्लान नहीं है.

रही बात प्रियंका गांधी वाड्रा के मुकेश अंबानी को लेकर लिखे पत्र की तो, सवाल ये है कि क्या इसे अंबानी के प्रति कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से बदलाव या नरमी के रूख का इशारा समझा जाना चाहिये?

राहुल गांधी के निशाने पर रहे हैं अंबानी बंधु

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जबान पर एक स्लोगन अक्सर सुनने को मिलता रहा - सूट बूट की सरकार. काफी दिनों तक राहुल गांधी ऐसा बोल कर मोदी सरकार को टारगेट किया करते रहे. सूट-बूट की सरकार कहना तो राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम वाले सूट पहनने के बाद ही शुरू किया था, लेकिन जब तब वो समझाते भी कि वो ऐसा क्यों कहते हैं. राहुल गांधी अक्सर मोदी सरकार पर अंबानी और अडाणी ग्रुप को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते रहे. यहां तक कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में भी राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को अंबानी-अडानी का लाउडस्पीकर बता रहे थे. उसी दौरान हुए महाराष्ट्र चुनाव में राहुल गांधी ने कहा था कि देश की इकनॉमी जनता चलाती है, न कि अंबानी और अडाणी.

मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी को लेकर तो राहुल गांधी ज्यादा ही आक्रामक रहे हैं. आम चुनाव में राफेल डील को लेकर राहुल गांधी हमेशा ही अनिल अंबानी का नाम लेते रहे और अपनी बात को जोर देने के लिए नारा भी गढ़ डाले थे - 'चौकीदार चोर है.' तब राहुल गांधी कहा करते रहे, 'अनिल अंबानी कर्ज में हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री ने 30 हजार करोड़ रुपये उनकी जेब में डाले... युवा बेरोजगार हैं और प्रधानमंत्री अंबानी की चौकीदारी कर रहे हैं.'

जब यस बैंक का घोटाला सामने आया तो एक बार फिर अनिल अंबानी का नाम उछला. कॉर्पोरेट लोन लेने वालों की सूची में अंबानी ग्रुप का भी नाम लिया गया था. तब लोक सभा में प्रश्नकाल के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, 'प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि जिन लोगों ने हिन्दुस्तान के बैंकों से चोरी की है उनको पकड़कर लाऊंगा. मैंने प्रधानमंत्री जी से पूछा कि वे 50 लोग कौन हैं? और मुझे इसका जवाब नहीं मिला.' यस बैंक विवाद में प्रियंका गांधी का नाम आने पर कांग्रेस को जवाब देना पड़ा था, जब ईडी की जांच में राणा कपूर को पेंटिंग बेचे जाने का मामला सामने आया.

बाकी लोग तो कोरोना वायरस के आने के बाद सोशल डिस्टैंसिंग बना कर चल रहे हैं, राहुल गांधी तो अंबानी बंधुओं के साथ ऐसा तभी से कर रहे हैं जब से मोदी सरकार केंद्र में आयी है. अब तक शायद ही ऐसा कोई मौका आया हो जब खुद राहुल गांधी या उनके साथी कांग्रेस नेता 'सूट-बूट की सरकार' या 'चौकीदार चोर...' जैसे नारे न लगाते रहे हों - फिर अचानक ये बदलाव कहां से आया कि कांग्रेस के ही एक महासचिव ने अंबानी को पत्र लिख डाला है.

ये ठीक है कि पत्र गरीबों की मदद के लिए लिखा गया है, लेकिन इस देश में राजनीति भी तो सबसे ज्यादा गरीबों के नाम पर ही हुई है. गरीबी हटाओ के नारे के साथ चुनाव जीते गये हैं - ये बात अलग है कि न गरीबी मिटी न गरीबों की संख्या ही घटी. उलटे अमीर और गरीब की खाई भी बढ़ती गयी.

होने को तो ये भी हो सकता था कि प्रियंका गांधी ट्विटर पर सभी मोबाइल कंपनियों से एक अपील जारी कर कहतीं कि वे कोरोना वायरस के चलते परेशान और पलायन करते लोगों और गरीबों को ध्यान में रखते हुए एक महीने के लिए मोबाइल की इनकमिंग और आउटगोइंग यूं ही चलते रहने दें और मुसीबत के वक्त रिचार्ज करने से छूट दे दें - लेकिन प्रियंका गांधी ने ऐसा नहीं किया. प्रियंका गांधी ने बाकायदा अलग अलग सीधे सीधे संबोधित कर पत्र लिखा है. हो सकता है किसी एक को लिखा जाता तो राजनीतिक विरोधी निशाना बनाते ही, ये तय था. ये भी हो सकता था कि अगर पत्र सिर्फ अंबानी को लिखा जाता तो भी वैसी ही राजनीति देखने को मिलती.

राजनीति में कहते जरूर हैं कि कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता, लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के शासन काल में एक बड़े ग्रुप के मालिक को जेल जाना ही पड़ा था. सरकार के नरम रुख के लिए काफी कोशिशें हुईं लेकिन बात नहीं ही बनी.

आम चुनाव में मुकेश अंबानी ने कांग्रेस उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा के सपोर्ट में वीडियो बयान तक जारी किया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद कांग्रेस के नाराज नेताओं की सूची में मिलिंद देवड़ा का नाम भी शुमार हुआ था - लेकिन सचिन पायलट और जितिन प्रसाद जैसे बाकी नेताओं की तरह वो भी कांग्रेस में बने हुए हैं.

अंबानी को लिखे गये प्रियंका गांधी के पत्र पर सवाल उठे तो भले ही कांग्रेस कोरोना संकट की दुहाई दे, लेकिन राजनीति कहीं थमी है क्या - ऐसा होता तो अरविंद केजरीवाल बनाम योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार की सियासी जंग में दोनों पक्षों के समर्थकों के बीच आरोप-प्रत्यारोप देखने को कतई नहीं मिलता. राजनीति हमेशा मौका देखती है, मानवीय पहलू से सियासत का कोई सरोकार नहीं होता.

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