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Updated: 12 मार्च, 2023 05:53 PM
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दरअसल राजनीति हमेशा से परसेप्शन बैटल रही है और इस बैटल में लग रहा था अब मामला उन्नीस बीस का है; परंतु "उनके" ब्रितानिया दौरे ने अठारह इक्कीस के समीकरण को पुनर्स्थापित कर दिया है. एक बार फिर वही कहना पड़ रहा है कि "उनकी" बातों के गजब अंदाज हैं; जब भी बोलें लाज ही आए. ढुलमुल भाषणों, सवालों के बेतुके जवाबों और औचित्य हीन कथनों से उन्होंने न केवल खुद को बेवकूफ बनाया है, बल्कि अपने पार्टी के कुछ सहयोगियों को भी असमंजस की स्थिति में डाल दिया है. 

"उनकी" दस दिनों की विदेश यात्रा ने इतना स्टफ दे दिया है देश की राजनीति को कि वही 2024 चुनाव तक मुद्दे बनेंगे. शुरुआत भी हो चुकी है. सत्ताधारी पार्टी  'उनपर' जमकर निशाना साध रही है और माइलेज ले भी लेगी बशर्ते उनके झूठ, आधे-अधूरे और मनगढ़ंत बातों पर बीजेपी कोई गंभीर कानूनी कार्यवाही कर मामले को ओवरकिल ना कर दे. "उन्होंने" बहुत कुछ अनर्गल कहा लेकिन जब वे उद्दंड हुए, थोड़ी बहुत जो गुंजायश बची भी थी बचाव की, ख़त्म हो गई.

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एक बुजुर्ग की कही बातों पर 'उनकी' भौहें तन गई. बुजुर्ग ने कहा था, ''आपकी दादी इंदिरा गांधी ने हमेशा मुझे आशीर्वाद दिया. वह मेरे लिए बड़ी बहन की समान थीं. वह एक शानदार महिला थीं. वह एक बार यहां लंदन आईं थीं. यहां प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे मोरारजी देसाई को लेकर सवाल पूछा गया कि उनका क्या अनुभव रहा? तब उन्होंने साफ कह दिया कि मैं यहां कुछ भी भारत के आंतरिक मामलों को लेकर नहीं बोलना चाहती हूं. लेकिन आप लगातार भारत पर हमले कर रहे हैं जिनको लेकर काफी नाराजगी है देश में. मुझे विश्वास है कि आप अपनी दादी की उन बातों से कुछ सीखेंगे जो उन्होंने यहां कही थी. क्योंकि मैं आपका शुभचिंतक हूं और मैं आपको प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता हूं.'' इस दौरान उनकी विद्रूप हंसी साफ़ दृष्टिगोचर हो रही थी और 'उनकी' उद्धंडता ही थी कि वे बुजुर्ग को नसीहत देने लगे.

हां, एक कन्वर्सेशन जिसे "उन्होंने" वायरल किया और जिसे 'उनके' सिपहसालार भी खूब क्वोट कर रहे हैं, उसकी तह में जाएं तो "वे" स्वयं एक्सपोज़ हो जाते हैं. मालिनी मेहरा उनसे पूछ रही हैं, "मैं अपने देश की स्थिति के बारे में बहुत दुखी महसूस कर रही हूं. मेरे पिता आरएसएस में थे और उन्हें इस पर गर्व था लेकिन अब वह इस देश को नहीं पहचान पाते हैं. हम अपने देश को कैसे सशक्त बना सकते हैं?'' जबकि सच्चाई यह है कि मालिनी के पिता अब जीवित ही नहीं हैं. मालिनी मेहरा बनाम दिल्ली सरकार केस में जानकारी मिलती है कि उनके पिता की 2 मार्च 2011 को ही मृत्यु हो गई थी. इसके अलावा सच्चाई पब्लिक डोमेन में है कि वह वर्ष 2003 में ही अपने पिता को स्वयं से अलग कर चुकी थी. आज 20 वर्ष बाद मालिनी को उन्हें याद करने की जरूरत क्यों पड़ गई? संघ को निशाने पर लेने के लिए दिवंगत पिता का भी इस्तेमाल कर लिया; कितना शर्मनाक है?

हालांकि मालिनी मेहरा के पिता का आरएसएस से जुड़े होने का कोई प्रमाण नहीं है. कहने को कहा जा सकता है कि आरएसएस विश्व का एक सबसे बड़ा संगठन है इसलिए इतने बड़े संगठन में किसी विशेष व्यक्ति का जुड़ना या ना जुड़ना उल्लेखित रहता भी नहीं है. लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि जो मालिनी मेहरा अपने पिताजी को आगे रखकर कथित महान नेता के एजेंडा को साधने में उनकी मदद कर रही हैं वह वर्ष 2003 से ही अपने पिता के खिलाफ ही रही हैं. तब मालिनी ने ये भी कहा था कि उनके पिता ने वर्ष 1989 के बाद सार्वजनिक रूप से अपने नाम का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था, जब वह ब्रिटेन में दिवालिया हो गए थे.

जबकि उनके पिता अपनी बेटी की इस बात से इनकार करते थे कि वह कभी दिवालिया थे. मालिनी ने तो पिता की निंदा इस हद तक की थी कि उनका तो इतिहास ही गुमराह करने वाला एवं भ्रामक रहा है और वह ऐसी स्थिति में नहीं है कि किसी को ईमानदारी या शासन के बारे में व्याख्यान दे सकें. और 'चौकीदार चोर है' की तर्ज पर सबसे ज्यादा आपत्तिजनक टिप्पणी "उन्होंने" कर डाली कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगता है कि मुसलमान और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिक हैं.' यह एक और निराधार बयान है जिसकी जितनी भी निदा की जाए, कम है. आज जब पंजाब और अन्य जगहों पर छोटे लेकिन खतरनाक रूप से सर उठाते आतंकवादी तत्व खालिस्तान की मांग को पुनर्जीवित करने और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, 'उन्होंने'  ऐसा संदर्भ क्रिएट कर अपनी पार्टी के भविष्य को और गर्त में धकेल दिया है.

अब "वे" और उनकी फ़ौज कितना भी सन्दर्भों का जिक्र कर सफाई दें मसलन 'वे' सवालों का जवाब दे रहे थे या 'उनके' कहे की गलत व्याख्या की जा रही है, सवाल है ऐसा बोलना ही क्यों कि कोई आपके हिसाब से 'गलत' लेकिन औरों के हिसाब से 'सही' व्याख्या करने की जुर्रत करे. जहां तक भारत में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए यूएस और यूरोपीय देशों का मुख तकने की बात है, 1975 में उनकी दादी के कार्यकाल में ही न्यायपालिका, मीडिया और लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर सबसे बड़ा और बुरा हमला आपातकाल लागू करके किया गया था.

और भी खूब आधारहीन बातें की 'उन्होंने', जिन्हें अनर्गल प्रलाप सिद्ध करने में बीजेपी को कोई मुश्किल नहीं हो रही है. चीन, पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर भी 'उनका' विमर्श 'पल में तोला पल में माशा' सरीखा रहा. शायद इसलिए मज़ाक मजाक में बहुत कुछ इंगित कर दिया जाता है, मसलन सेल्फ गोल. तो मानो कप्तान ने स्वयं ही सेल्फ गोलों की झड़ी सी लगा दी है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद, जैसा उन्होंने स्वयं भी कहा था कि 'वे' अपने पहले वाले 'को' मार चुके हैं, अब 'उन्होंने' नया अवतार लिया है, लगने लगा था कांग्रेस में एक धीर, गंभीर, सच्चा राजनेता अवतरित हुआ है. परंतु वही ढाक के तीन पात वाली बात हुई है. तमाम कांग्रेसी फूट-फूटकर बयान दे रहे हैं और कांग्रेस गुमनामी की राह पर अविरल चली जा रही है.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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