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Updated: 22 मई, 2022 04:54 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अक्सर विदेशी आयोजनों में कंफर्ट जोन महसूस करते हैं. और अब तो लगता है ऐसे विदेशी दौरे को लकी चार्म भी समझने लगे हैं. पांच साल पहले भी गुजरात चुनाव से पहले रिहर्सल के लिए अमेरिका के दौरे पर गये थे - अब राहुल गांधी लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में पहुंचे हैं.

कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी गुजरात चुनाव (Gujarat Election 2022) से पहले के विदेश दौरे को लकी चार्म मानने लगे हैं. असफलता बहुत कुछ करा डालती है. हालत ये हो जाती है कि लोग बात बात में किस्मत कनेक्शन खोजने लगते हैं. अगर एक प्लेट गुम जाये और कोई कह दे कि एक बार घड़े में भी हाथ डाल कर देख लो तो बेहाल परेशान इंसान वो भी आजमाने लगता है. तभी तो उदयपुर में तीन दिन के नव संकल्प चिंतन शिविर के बाद भी राहुल गांधी अभी इधर उधर हाथ पैर मार रहे हैं.

ये भी विडम्बना ही है कि लंदन पहुंच कर भी राहुल गांधी पुराने किस्से ही सुना रहे हैं. लद्दाख में यूक्रेन जैसे हालात और चीन का जिक्र जैसे अरसे से करते आ रहे हैं, लंदन के 'आइडिया फॉर इंडिया' कार्यक्रम में भी वैसी ही बातें कही है. भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बादी से जूझ रहे श्रीलंका जैसा पहले भी बता चुके हैं - और केंद्र की मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का इल्जाम भी नया नहीं है.

राहुल गांधी के विदेशी धरती पर भारत की सरकार, बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर टिप्पणी को लेकर लोग कांग्रेस नेता को ट्रोल कर रहे हैं - और कई लोग तो जयचंद से भी तुलना कर रहे हैं. बीजेपी और केंद्र सरकार की तरफ से भी राहुल गांधी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की गयी है.

लंदन के कार्यक्रम में राहुल गांधी ने एक नयी बात जरूर कही है - ये है बीजेपी पर देश भर में केरोसीन (Kerosene) छिड़क देने का इल्जाम. ये भी कांग्रेस की तरफ से बीजेपी पर कोई नया इल्जाम नहीं, बस नये शब्द के साथ इसे नये कलेवर में परोसा गया है - ताकि ट्विटर पर ट्रेंड करे और चाय-पान की दुकानों पर चर्चा होने लगे.

ये भी समझने की जरूरत है कि राहुल गांधी ने तमाम आरोपों के बीच बीजेपी पर केरोसिन छिड़कने का आरोप यूं ही लगा दिया है या बहुत सोच समझ कर ऐसा किया गया है?

'केरोसिन' भी दुधारी तलवार ही है

राहुल गांधी को आखिर क्यों अपनी कहने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच की जरूरत पड़ने लगी है? ये ऐसा सवाल है, जिसका जवाब राहुल गांधी बगैर पूछे हमेशा ही देते रहते हैं, बीजेपी का नाम लेकर ही सही.

rahul gandhiराहुल गांधी ने कांग्रेस के गुजरात चुनाव कैंपेन की शुरुआत लंदन से कर दी है

लंदन जाकर भी राहुल गांधी ने बोलने को लेकर वैसी ही बात बोली है जैसी उदयपुर के चिंतन शिविर में कही थी. राहुल गांधी का कहना रहा कि लोगों को बोलने का अधिकार देना कांग्रेस के डीएनए में है, बीजेपी के कल्चर में नहीं है.

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में भी राहुल गांधी कहते हैं, 'बीजेपी तो आवाज दबा रही है... हम सभी की आवाज को सुनते हैं... हम लोगों को सुनने के लिए हैं.'

दावा अपनी जगह होता है और हकीकत अपनी जगह. ऐसे दावों का हकीकत से कभी कोई लेना देना नहीं होता. जब राहुल गांधी कांग्रेस में बोलने के अधिकार की बात करते हैं तो सवाल उठता है कि पंजाब में सुनील जाखड़ को क्यों नहीं बोलने दिया जाता? राहुल गांधी ये तो दावा करते हैं कि वो लोगों को सुनने के लिए हैं, लेकिन हार्दिक पटेल इंतजार करते ही रह गये कि टेक्स्ट मैसेज भेजने के बाद कभी राहुल गांधी उनकी समस्याएं भी सुनेंगे.

ऐसा भी नहीं कह सकते कि राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं की बिलकुल भी नहीं सुनते. हार्दिक पटेल और जब कांग्रेस में रहे तब हिमंत बिस्वा सरमा का मामला अलग रहा होगा. लेकिन राहुल गांधी सुनने के मामले में सेलेक्टिव अप्रोच रखते हैं - वो नवजोत सिंह सिद्धू की सुन लेते हैं, लेकिन सुनील जाखड़ की जरा भी नहीं सुनते. वो अशोक गहलोत की हमेशा सुनते हैं, लेकिन सचिन पायलट को सुनने के लिए उनके पास वक्त कम ही मिलता है.

ताजा लंदन दौरे में राहुल गांधी ने केरोसिन का जोर देकर जिक्र किया है - और लगे हाथ आगाह भी किया है कि लोग बीजेपी की राजनीति से बचने की कोशिश नहीं किये तो देश के सामने बहुत बड़ा संकट भी खड़ा हो सकता है.

...लेकिन राहुल गांधी ऐन उसी वक्त ये भूल जाते हैं कि सिर्फ वैसे ही नहीं राजनीति में भी 'केरोसिन' का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है - बिलकुल दुधारी तलवार की तरह.

लंदन से गुजरात चुनाव कैंपेन शुरू

अब तक कांग्रेस की तरफ से बीजेपी पर सांप्रदायिकता की राजनीति करने का जो आरोप लगाया जाता रहा है, राहुल गांधी का 'केरोसिन' अटैक भी उसी को आगे बढ़ा रहा है. बस आशंका ये है कि गुजरात चुनाव के दौरान ही सोनिया गांधी के बयान की तरह ये भी कहीं बैकफायर न कर जाये. ऐसी आशंका कि वजह देश का मौजूदा माहौल है. और कुछ नहीं.

लंदन के कार्यक्रम में राहुल गांधी से एक सवाल पूछा गया था - बीजेपी चुनाव जीत रही है और कांग्रेस चुनाव हार रही है, ऐसा क्यों है? वो भी तब जबकि बेरोजगारी के साथ साथ मंहगाई 15 फीसदी पर जा पहुंची है?

अपनी बात को समझाने के लिए राहुल गांधी ने जो भी बातें कही, वे बीजेपी और संघ के इर्द गिर्द ही घूमती रहीं. बोले कि देश में सामाजिक परेशानी आनी ही है. लगे हाथ ये उम्मीद भी जतायी कि ये निश्चित है कि देश में लोगों का विरोध बढ़ने वाला है. हालांकि, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ऐसी उम्मीदें न पालने के लिए कई बार आगाह भी कर चुके हैं.

राहुल गांधी ने कहा कि देश में बढ़ते धुव्रीकरण और मीडिया पर बीजेपी के पूरी तरह कंट्रोल के कारण ही ये सब हो रहा है. उदाहरण देकर समझाने का प्रयास भी किया, अगर आप पांच घंटे तक भारतीय न्यूज चैनल देख रहे हैं... आपको एक भी बार मोदी जी के अलावा कोई और नहीं दिखेगा. बीच बीच में ये भी बताते रहे कि कैसे ऐसी समस्याओं से निबटा जा सकता है. और कैसे कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ मिल कर गंभीर कोशिशें भी कर रही है.

राहुल गांधी का कहना रहा, 'हमारे देश में बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण है...' - और 'हमें ये भी स्वीकार करना होगा कि आरएसएस ने एक ऐसा स्ट्रक्चर बना दिया है... जो बड़ी आबादी के बीच फैल गया है.'

और फिर बीजेपी पर सबसे बड़ा हमला बोल दिया - "भारत की स्थिति इस वक्त ठीक नहीं है... बीजेपी ने देश में हर तरफ केरोसीन छिड़क दिया है... बस एक चिंगारी से हम सब बहुत बड़ी मुश्किल में होंगे."

राहुल गांधी भी, दरअसल, बीजेपी को वैसे ही घेरने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे बहुत पहले सोनिया गांधी ने गुजरात दौरे में किया था. फर्क बस ये है कि सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' बता डाला था - और अब राहुल गांधी बीजेपी पर केरोसिन छिड़कने का इल्जाम लगाकर मुद्दे को उसी तरीके से पिच करने की कोशिश कर रहे हैं.

निश्चित तौर पर केरोसिन की बात गुजरात चुनाव को ध्यान में रख कर कही गयी है. बल्कि ऐसे भी समझ सकते हैं कि केरोसिन के जरिये 2002 के गुजरात दंगों की नये सिरे से याद दिलाने की कोशिश हो रही है.

ऐसे माहौल में जब बनारस में ज्ञानवापी के शिवलिंग और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला अदालत में चल रहा है - ये बीजेपी को सांप्रदायिक राजनीति के नाम पर घेरने की नये सिरे से एक और कोशिश ही लगती है.

बीजेपी के रिएक्शन से भी यही बात साबित होती है. जब भी गांधी परिवार की तरफ से ऐसे किसी मुद्दे पर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश होती है - बीजेपी फौरन ही '84 में हुए दिल्ली के सिख दंगों का मुद्दा उठाकर धावा बोल देती है. अब भी ऐसा ही हो रहा है.

2020 के दिल्ली दंगों के बाद जब सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन जाकर ज्ञापन दिया था और केंद्रीय गृह मंत्री होने के नाते अमित शाह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल पूछे तो भी बीजेपी का बिलकुल ऐसा ही रिएक्शन था.

बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया का कहना है कि कौन केरोसिन लेकर घूम रहा है पूरा देश जानता है... आप तो 1984 से ही केरोसिन लेकर घूम रहे हैं... केरोसिन तो कांग्रेस पार्टी छिड़कती है... 1984 का जो नरसंहार हुआ, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कत्लेआम करवाया, उस वक्त केरोसिन को डालने वाले कांग्रेस के ही नेता थे.

बीजेपी प्रवक्ता कहते हैं, 'एक हताश कांग्रेस और उसके असफल नेता राहुल गांधी जब भी विदेशी की धरती पर जाते हैं... चाहे वो लंदन हो, अमेरिका हो, सिंगापुर हो उनके वक्तव्य कहीं न कहीं दर्शाते हैं कि कांग्रेस 1984 से लेकर अब तक देश में आग लगाने और सौहार्द्र बिगाड़ने में ही लगी है.'

सोशल मीडिया पर भी काफी लोग राहुल गांधी को ट्रोल कर रहे हैं. लोगों को गुस्सा इस बात से है कि राहुल गांधी देश में जो भी मन करता कहते, लेकिन विदेशी धरती पर ये सब क्यों कहा. अभी त्रिपाठी नाम के यूजर ने लिखा है, 'जयचंद कोई नाम या व्यक्ति नही ये एक उपाधि है जो समय समय पर अपने अधिकारी चुनती है... इस समय उसने राहुल गांधी को चुना है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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