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Updated: 01 जून, 2022 06:49 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बड़ा ही दुर्लभ अवसर होता है जब राजनीति में मिलती-जुलती पृष्ठभूमि से आये लोग एक दूसरे का किसी न किसी प्रसंग में जिक्र करते हैं या अपनी राय जाहिर करते हैं - उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव के राहुल गांधी से जुड़े एक पुराने प्रसंग के जिक्र के बाद योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी काफी हद तक ऐसी ही है.

खास बात ये है कि ये सारी चर्चा यूपी विधानसभा के भीतर सदन के पटल पर हुई हैं, न कि किसी चुनावी रैली में - जहां राहुल राहुल गांधी नहीं हो सकते थे. कम से कम चर्चा के दौरान. राहुल गांधी वायनाड से लोक सभा सदस्य हैं, जबकि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

सूबे की शिक्षा व्यवस्था को लेकर अखिलेश यादव ने एक पुराना किस्सा सुनाया जब वो भी यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे - और सदन में ठहाकों के बीच खुद ही बताया कि कैसे एक प्राइमरी स्कूल में एक बच्चे ने उनको राहुल गांधी (Rahul Gandhi) समझ लिया था.

बाद में अखिलेश यादव की तमाम बातों का जवाब देते हुए योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने बताया कि कैसे राहुल गांधी और अखिलेश यादव में उनको कोई फर्क नहीं समझ में आता है. ऐसा महज इसलिए नहीं कि दोनों ही योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधी हैं, योगी आदित्यनाथ के मुताबिक - दरअसल, कुछ मुद्दों पर उनको दोनों ही नेताओं की राय या रवैया, जो भी कहें, एक जैसा ही लगता है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि के हिसाब से देखें तो तीनों ही नेताओं में बहुत ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिलता है - हां, सफलता और असफलता के पैमाने पर निश्चित तौर पर बहुत बड़ा फासला नजर आता है.

योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव की नजर में राहुल गांधी: राहुल गांधी के बारे में कुछ कहने से पहले योगी आदित्यनाथ ने दुष्यंत कुमार की एक कविता पढ़ी थी क्योंकि उनके निशाने पर अखिलेश यादव पहले थे. योगी आदित्यनाथ बोले, 'नेता प्रतिपक्ष अपने बजट भाषण में मुद्दों को बढ़ाते हुए कुछ ऐसी बातें कह गये जिसका खामियाजा प्रदेश अतीत में भोग चुका है, इस पर मैं दुष्यंत कुमार की पंक्तियां कहूंगा - कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं.'

rahul gandhi, yogi adityanath, akhilesh yadavदरवाजे अलग अलग भले रहे हों, लेकिन राजनीतिक राह एक ही है!

दरअसल, योगी आदित्यनाथ का ये कटाक्ष अखिलेश यादव के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के साथ हुई गर्मागर्म बहस के दौरान तू-तड़ाक को लेकर रहा. फिर योगी आदित्यनाथ ने बच्चों की निश्छलता का हवला देते हुए अखिलेश यादव की उस बात का जवाब दिया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था, 'मैं एक बार एक स्कूल में गया... और एक बच्चे से पूछा कि मुझे जानते हो? बच्चे ने कहा - हां, आप राहुल गांधी हैं.'

योगी आदित्यनाथ की उस वाकये पर टिप्पणी रही, 'बच्चे भोले-भाले होते हैं, लेकिन मन के सच्चे होते हैं... जो बोला होगा वो बहुत सोच समझकर ही बोला होगा... वैसे भी आपमें और राहुल गांधी में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है... बस एक फर्क है - राहुल देश के बाहर देश की बुराई करते हैं और आप उत्तर प्रदेश के बाहर प्रदेश की बुराई करते हैं.'

1. विरासत की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से परिवारवाद की राजनीति पर हमला बोलना शुरू कर दिया है. जैसे यूपी चुनाव के दौरान मोदी के निशाने पर अखिलेश यादव हुआ करते थे, अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों के हिसाब से राहुल गांधी ही टारगेट पर फिट बैठते हैं. बिहार चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव और राहुल गांधी दोनों ही प्रधानमंत्री मोदी सहित सारे बीजेपी नेताओं के निशाने पर रहे. पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी को ममता बनर्जी का भतीजा होने के नाते बीजेपी की तरफ से लगातार निशाना बनाया जाता रहा है.

राजनीतिक विरासत की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो अखिलेश यादव उसी समाजवादी पार्टी के नेता हैं जिसकी स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की थी - और राहुल गांधी भी गांधी परिवार के वारिस होने के नाते कांग्रेस सांसद से लेकर अध्यक्ष तक बने. अभी वो कांग्रेस अध्यक्ष नहीं भी हैं तब भी कांग्रेस के कामकाज में उनके दखल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.

लेकिन विरासत की राजनीति के पैमाने पर परखने की कोशिश हो तो योगी आदित्यनाथ भी कहीं से पीछे नजर नहीं आते. आखिर वो भी तो इसीलिए राजनीति में आये क्योंकि गोरक्षपीठ के प्रमुख रहे महंत अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया - और अपना संसदीय क्षेत्र भी राजनीतिक विरासत के साथ सौंप दिया था.

बेशक योगी आदित्यनाथ पांच बार लोक सभा चुनाव जीतने के बावजूद केंद्र की एनडीए सरकार की दोनों सरकारों में से किसी में भी मंत्री नहीं बन सके, लेकिन अपनी बदौलत दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बने ही हैं. ये ठीक है कि यहां तक पहुंचने के लिए योगी आदित्यनाथ ने अलग से अपना राजनीतिक जनाधार कायम करने के लिए हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना की और उसका फायदा उठाया.

फिर तो अगर राजनीतिक पृष्ठभूमि के पैमाने पर देखा जाये तो ये तीनों ही विरासत की ही राजनीति करते हैं.

2. हक भी तो बनता ही है

राहुल गांधी कुछ हद तक अपवाद नजर आते हैं, लेकिन अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ ने अपने अपने हक की अलग अलग वक्त पर लड़ाई भी लड़ी है - अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी पर कब्जे के लिए, जबकि योगी आदित्यनाथ यूपी में बीजेपी की राजनीति पर काबिज होने के लिए.

जैसे अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में चाचा शिवपाल यादव के प्रभाव को किनारे कर समाजवादी पार्टी पर कब्जा जमा लिया, करीब करीब वैसे ही आज की तारीख में योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी नेतृत्व के मार्गदर्शन की परवाह न करते हुए अपनी मर्जी से सरकार चलायी - और सत्ता में वापसी के बाद तो किसी के पास कुछ बोलने की वजह भी नहीं बची है. आगे जो भी हो, लेकिन फिलहाल तो योगी आदित्यनाथ की मर्जी के बगैर परिंदा भी कहीं पर नहीं मार सकता है.

राहुल गांधी इस मामले में काफी अलग लगते हैं. ऐसा शायद इसलिए भी क्योंकि न तो चुनावी राजनीति और न ही सत्ता की राजनीति में ही राहुल गांधी की कोई दिलचस्पी है - और ये बात भी राहुल गांधी ने कुछ ही दिन पहले खुद ही बतायी थी. अगर राहुल गांधी चाहते तो 2004 से 2014 के बीच किसी भी समय देश के प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन वो तो कांग्रेस अध्यक्ष भी तब बने जब पार्टी सत्ता से बाहर हो चुकी थी - और अगले ही आम चुनाव में हार के बाद इस्तीफा दे डाले.

3. जातिवाद की राजनीति

राहुल गांधी जातिवाद की राजनीति में भी अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ से अलग खड़े होते हैं. जहां तक मुस्लिम तुष्टिकरण के बीजेपी के आरोपों का सवाल है, राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक ही छोर पर खड़े मिल सकते हैं.

अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के पुराने दायरे और प्रभाव क्षेत्र से जैसे आगे निकल चुके हैं, योगी आदित्यनाथ का भी वैसा ही हाल है. समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव को पिछड़ों का नेता माना जाता रहा है, लेकिन अखिलेश यादव तो अब सिर्फ यादवों के नेता बन कर रह गये हैं.

वैसे तो बीजेपी के साथ योगी आदित्यनाथ का रिश्ता गठबंधन साथी जैसा ही रहा है, लेकिन जातिवाद के सवाल पर वो दो कदम आगे बढ़े मिलते हैं. बीजेपी को पहले सवर्णों की पार्टी समझा जाता रहा, लेकिन अब वो पिछड़ों और दलितों को भी साध लेने में कामयाब नजर आती है. अब बीजेपी से अगर कोई वोट बैंक दूर है तो वो सिर्फ मुस्लिम समुदाय है.

अब तो योगी आदित्यनाथ भी वैसे ही ठाकुरों के नेता समझे जाने लगे हैं जैसे अखिलेश यादव अपनी यादव बिरादरी के. ऐसा भी नहीं कि योगी आदित्यनाथ यूपी की राजनीति में ऐसा पहली बार कर रहे हों क्योंकि राजनाथ सिंह सहित ऐसे भी नेता रहे हैं जिनका स्वजातीय राजनीति में अंदर तक पैठ देखी जाती रही है.

योगी आदित्यनाथ पर तो ठाकुरवाद की राजनीति से बीजेपी नेतृत्व इस कदर परेशान रहा है कि ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए समय समय पर जरूरत के हिसाब से इंतजाम करने पड़े हैं - और योगी आदित्यनाथ का ब्राह्मण विरोध तो एक जमाने में बीजेपी को भी झेलना पड़ा है. ये बात अलग है कि हालात की मजबूरी के चलते योगी आदित्यनाथ की पुरानी लोक सभा सीट से एक ब्राह्मण रवि किशन सांसद हैं. भोजपुरी स्टार को चुनावों के दौरान उनके पूरे नाम रवि किशन शुक्ला के साथ पेश किया गया था.

फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभूषण की एक टिप्पणी काफी मौजूं लगती है, "जैसे लालू यादव ने एक समय यादव नेताओं को सारी यूनियनों से खींचकर बिहार में आंदोलनों की जड़ खोदी थी, वही काम योगी आदित्यनाथ अभी यूपी में राजपूतों के जरिये करने में जुटे हैं - अंततः इससे ये जातियां ही कमजोर पड़ती हैं."

पत्रकार चंद्रभूषण अपनी टिप्पणी को लेकर लोगों के सवाल पर मिसाल के साथ जवाब भी देते हैं, "जिस तरह अभी भारतीय किसान यूनियन को योगी आदित्यनाथ ने तोड़ा है, वैसे ही लालू यादव ने बिहार की शक्तिशाली कर्मचारी यूनियन को तोड़ा था."

4. राजनीति में एंट्री

एंट्री के हिसाब से देखें तो योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव और राहुल गांधी तीनों ही छह साल की अवधि के दौरान राजनीति में आये - हालांकि, सक्रिय राजनीति के अनुभव की बात करें तो योगी आदित्यनाथ सबसे सीनियर माने जाएंगे - और उम्र के लिहाज से अखिलेश यादव सबसे छोटे जबकि राहुल गांधी सबसे बड़े हैं.

5 जून, 1972 को जन्म लेने वाले योगी आदित्यनाथ 1998 में गोरखपुर से पहली बार लोक सभा पहुंचे थे. ये तभी की बात है जब केंद्र में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी - और 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार एनडीए की सरकार बनी तो योगी आदित्यनाथ की लोक सभा में लगातार पांचवीं पारी थी.

1 जुलाई, 1973 को जन्म लेने वाले अखिलेश यादव दो साल बाद कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव के जरिये 2000 में लोक सभा सांसद बने थे. वो उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के सीट छोड़ देने की वजह से कराया गया था.

और 19 जून, 1970 को पैदा हुए राहुल गांधी पहली बार अमेठी से 2004 में लोग सभा सांसद बने थे. राहुल गांधी से पहले अमेठी से सोनिया गांधी सांसद हुआ करती थीं, लेकिन राहुल गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने के लिए वो रायबरेली शिफ्ट हो गयीं. तभी से राहुल गांधी अमेठी से लोक सभा पहुंचते रहे, लेकिन 2019 में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से हार गये. फिलहाल राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं.

5. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी

प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी के मामले में अभी तक अखिलेश यादव ही राहुल गांधी और योगी आदित्यनाथ से अलग देखे जा सकते हैं. क्योंकि 2019 में भी समझा गया कि वो चुनावी गठबंधन की वजह से मायावती को देश का प्रधानमंत्री बनाये जाने की कोशिश कर रहे थे. मुलायम सिंह यादव को लेकर तो बताया ही गया है कि उनके पास प्रधानमंत्री बनने का मौका आया था, लेकिन वो चूक गये. जाहिर है, मुलायम सिंह यादव के मन में भी ये तो होगा ही कि अखिलेश यादव एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनें.

आगे क्या होगा, अभी तो कोई नहीं कह सकता है, लेकिन राजनीतिक हालात तो ऐसे बन चुके हैं कि अखिलेश यादव के लिए फिलहाल उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना भी मुश्किल हो रहा है. 2022 के यूपी चुनाव में अखिलेश यादव ने लड़ाई तो लड़ी, लेकिन समाजवादी पार्टी बहुमत से काफी दूर रह गयी.

यूपी जैसा तो नहीं, लेकिन देश में भी कांग्रेस की हालत थोड़ी ही बेहतर है. फिर भी कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी ही बने हुए हैं. और राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस का यही रिजर्वेशन बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है.

योगी आदित्यनाथ को तो पहले से ही उनके समर्थक पीएम मैटीरियल मान कर चलते हैं. रह रह कर जो सर्वे या ओपिनियन पोल होते रहे हैं, नरेंद्र मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ को ही लोग प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बड़ी पसंद बताते हैं. ऐसा भी हुआ है कि एक सर्वे में मोदी के बाद अमित शाह को भी योगी आदित्यनाथ पीछे छोड़ चुके हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

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