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Updated: 15 फरवरी, 2019 12:01 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
  @girijeshv
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ये लेख पढ़ने से पहले बात दूं कि इसमें कड़वा सच है जो हो सकता है आपको क्रोध दिलाए लेकिन सच सच होता है. देश की सरकार की तीन गलतियां न होतीं तो आज शायद जैश-ए-मोहम्मद भारत में सीआरपीएफ जवानों की जान लेने में कामयाब न हुआ होता. या फिर कहें कि जैश-ए-मोहम्मद होता ही नहीं. लेकिन ये कहने से पहले हम आपको बता दें कि जैश कैसे आया और भारत में उसकी आतंकी भूमिका क्या है.

जैश का इतिहास

लाहौर में साल 2009 में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ही ली थी.

फरवरी, 2002 में कराची में मारे गए अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या का आरोप भी जैश-ए-मोहम्मद के सिर पर ही है.

13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर किए गए भारत के सबसे बड़े आतंकी हमले को भी जैश के आतंकियों ने ही अंजाम दिया.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा की बिल्डिंग के भीतर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ही बम ब्लाास्ट किया था. इस ब्लाएस्ट में 30 लोग मारे गए थे. इसके अलावा कश्मीर में पुलिसकर्मियों पर हमले समेत कई छि‍टपुट वारदातों को भी जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अंजाम देते रहे.

भारतीय एजेंसियां पठानकोट हमले का ज़िम्मेदार भी जैश को ही मानती हैं.

दक्षिणी कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद के कई सौ हथियारबंद आतंकी मौजूद हैं.

सबसे आगे बढ़कर आज कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के करीब 40 जवानों के काफिले को उड़ाने के पीछे भी जैश ही है.

pulwama attackपुलवामा आतंकी हमले में भारत के 40 जवान शहीद हो गए हैं

कैसे बना जैश

जैश की स्थापना के पीछे भी भारत की ही गलती है. ये गलती भी आपको बताएंगे लेकिन पहले जैश के बारे में बता दें.

जैश-ए-मुहम्मद एक पाकिस्तान बेस्ड आतंकी संगठन है, जिसे साल 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने स्थापित किया.

साल 2001 में अमेरिका ने जैश-ए-मोहम्मद को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया.

साल 2002 में पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद को बैन कर दिया.

साल 2003 में खबर आई जैश-ए-मोहम्मद के बंटवारे की, जो कथित तौर पर खुद्दाम-उल-इस्लाम और जमात-उल-फुरकान में बंट गया.

उसी साल जमात-उल-फुरकान के चीफ अब्दुल जब्बार ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ की हत्या की कोशिश की, जिसमें वह गिरफ्तार हो गया.

इसके बाद पाकिस्तान ने नवंबर 2003 में दोनों संगठनों, खुद्दाम-उल-इस्लाम और जमात-उल-फुरकान को बैन कर दिया.

शायद जैश न होता अगर अटल विहारी वाजपेयी की सरकार ने एक गलत फैसला न लिया होता. ये फैसला था 1999 में जैश की स्थापना करने वाले मौलाना मसूद अज़हर को रिहा करने का.

masood azhar is india's biggest ememyमौलाना मसूद अजहर भारत का सबसे बड़ा दुशमन है

हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने भारत सरकार के सामने 178 यात्रियों की जान के बदले में तीन आतंकियों की रिहाई का सौदा किया था. भारत सरकार ने यात्रियों की जान बचाने के लिए जिन तीनों आतंकियों को छोड़ने का फैसला किया था, उनमें से एक मसूद अजहर भी है. ये यात्री एयर इंडिया के विमान आईसी 814 में सवार थे.

तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, विदेश मंत्री जसवंत सिंह और प्रधानमंत्री अटलविहारी वाजपेयी की सरकार ने इन आतंकवादियों को छोड़ा. मामले में बाद में एक साक्षातकार में कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने नाराजगी के साथ स्पष्ट किया कि वह वर्ष 1999 में अपहृत आईसी 814 विमान के यात्रियों के बदले आतंकवादियों को छोड़ने के विरोधी थे और इस रिहाई ने भारत को 'कमजोर राष्ट्र' के रूप में पेश किया.

अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि उन्होंने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह को चेताया था कि बदले में किसी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए. जसवंत सिंह ने कहा कि देश कमजोर स्थिति में है, हम लड़ाई नहीं लड़ सकते.

पूर्व रॉ प्रमुख एएस दौलत द्वारा लिखित पुस्तक ‘कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स’ के विमोचन के मौके पर अब्दुल्ला ने कहा, कोई भी राष्ट्र बलिदान के बगैर नहीं बनता. यहां तक कि अगर आतंकवादियों ने मेरी बेटी को बंधक बनाया होता तो मैं एक भी आतंकवादी को रिहा नहीं करता.

रिहाई के बाद अजहर ने कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों से लड़ाई लड़ने के मकसद से जैश की स्थापना की. भारत हमेशा से कहता रहा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का जैश से करीबी संबंध है. अजहर को 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले में भी भारत की ओर से प्रमुख संदिग्ध बताया गया था. संसद पर हुए हमले में नौ सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि पांचों आतंकियों को मार गिराया गया था. उस वक्त भारत ने अजहर को सौंपने की मांग की थी, जिसे पाकिस्तान ने ठुकरा दिया था.

आज अज़हर भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है. और इसकी पूरी जिम्मेदारी उस गलत फैसले पर है जिसमें मसूद अज़हर को रिहा किया गया. हाल तक बीजेपी के साथ मिलकर कश्मीर की सरकार चला रही महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद को 1989 में गृहमंत्री बनाया गया था. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे.

pulwama attackमौलाना मसूद अजहर को अगर भारत ने न छोड़ा होता तो आज पुलवामा हमला न हुआ होता

एक दिन अचानक खबर आई कि आतंकवादियों ने उनकी बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया और सरकार को उसके बदले में पांच आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा. विरोध और प्रचार की आंधी में ये बात कहीं दब सी गई कि कैबिनेट की उस बैठक में सईद ने इस बात का विरोध किया था, लेकिन खुद प्रधानमंत्री वीपी सिंह इसके पक्ष में थे. आठ दिसंबर 1989 को रूबिया सईद का अपहरण जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) के आतंकियों ने अपहरण कर लिया.

रुबिया को छुड़ाने के बदले में पांच आतंकियों शेख अब्दुल हमीद, ग़ुलाम नबी बट, नूर मुहम्मद कलवाल, मुहम्मद अल्ताफ और जावेद अहमद ज़रगर को छोड़ा गया था. ये मामला कंदाहार अपहरण कांड के लिए नजीर बना. राष्ट्रवादियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि जब एक लड़की को आज़ाद कराने के ले 5 आतंकवादी छोड़े जा सकते हैं तो विमान में कैद सैकड़ों लोगों को बचाने के लिए 3 आतंकी क्यों नहीं. इस दबाव के कारण अपहरणकर्ताओं को अमृतसर से निकल जाने दिया गया और वो विमान तालिबान के शासन वाले कंधार हवाई अड्डे पर ले गए.

नरसिंह राव की पिलपिली नीति

पी वी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान आतंकवादियों ने कश्मीर में ही चरारे शरीफ की दरगाह को जला दिया. इसके साथ ही आठ सौ घरों को खाक कर दिया. मामला 1995 का है. सरकार ने आतंकवादियों को सुरक्षित निकल जाने का मौका दिया. इस सेफ पैसेज के कारण कश्मीर में आतंकवादियों के हौसले बढ़े.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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