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Updated: 23 दिसम्बर, 2022 09:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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बीएमसी चुनाव की अभी दूर दूर तक कोई संभावना नहीं नजर आ रही है. वार्डों के परिसीमन का मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया है, लिहाजा फैसला होने तक कहीं कोई संभावना नहीं बनती. 2017 में बीएमसी के 227 वार्डों में चुनाव हुआ था, लेकिन महाविकास आघाड़ी की उद्धव ठाकरे सरकार ने उसमें 9 वार्ड बढ़ा कर 336 कर दिये थे. एकनाथ शिंदे सरकार आयी तो फैसला पलट दिया - और उसी को लेकर मामला कोर्ट में पहुंचा है.

फिर भी ये तो पक्का है कि चुनाव तो होंगे ही. देर चाहे जितनी भी हो जाये. ज्यादा देर हुई तो बीएमसी चुनाव के बाद अगले आम चुनाव और फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी ज्यादा अंतर नहीं बचेगा. ऐसे में अच्छा तो यही होगा कि चुनावी तैयारी अभी से चालू रहे - महाराष्ट्र में चाहे बीजेपी हो, शिवसेना के दोनों गुट हों या फिर कांग्रेस, एनसीपी सभी अपनी अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं.

और ये तैयारियां किस स्तर पर हो रही हैं? किस मंच से कौन सी बात उठायी जा रही है? कोई मुद्दा उठाये जाने के पीछे कौन सी रणनीति अपनायी जा रही है? ये सब जानना और समझना काफी दिलचस्प लगता है. एक तरफ ये मामला अदालत पहुंच जाता है, तभी ये देखने को मिलता है कि लोक सभा में जो बहस हो रही है, उसके जरिये महाराष्ट्र की राजनीति साधने की कोशिश चल रही है - और वो भी बीएमसी चुनाव की तैयारियों का हिस्सा हो सकता है.

हो सकता है ये सब एमसीडी चुनाव में बीजेपी को लगे झटके का असर हो, और अब बीएमसी चुनाव को लेकर एहतियाती उपायों के प्रयास शुरू हो गये हों. ऐसा ही एक वाकया लोक सभा में तब देखने को मिला, जब गृह मंत्री अमित शाह ड्रग्स को लेकर बयान दे रहे थे और बहस ज्वाइन करते हुए बीजेपी नेता मनोज तिवारी और शिंदे गुट के सांसद राहुल शेवाले ने सुशांत सिंह राजपूत केस का जिक्र छेड़ डाला - और बातों बातों में रिया चक्रवर्ती के बहाने उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे तक को लपेट लिया.

और फिर जैसे ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) मिले तो मीडिया ने ये भी पूछ लिया कि राहुल शेवाले ने जो मुद्दा लोक सभा में उठाया, महाराष्ट्र सरकार भी कोई एक्शन लेने वाली है क्या? एकनाथ शिंदे ने सीधे सीधे हामी तो नहीं भरी, लेकिन जो कुछ कहा उससे तो यही लगता है कि कुछ न कुछ एक्शन की तैयारी तो हो ही चुकी है. मुख्यमंत्री शिंदे ने मामले की ज्यादा जानकारी न होने की बात कही, लेकिन लगे हाथ ये भी बता दिया के मामला गंभीर लगता है - और पूरी छानबीन के बाद ही वो मीडिया से बात करेंगे.

सुशांत सिंह राजपूत केस या रिया चक्रवर्ती के बहाने आदित्य ठाकरे के मामले में तो नहीं, लेकिन बाद में एकनाथ शिंदे सरकार ने दिशा सालियान केस की फिर से जांच के लिए SIT यानी विशेष जांच टीम बना दिया है. चूंकि दिशा सालियान केस भी सुशांत सिंह राजपूत केस से जुड़ा हुआ है, इसलिए मान कर चलना होगा कि जांच का दायरा भी बड़ा हो सकता है - और आदित्य ठाकरे की भूमिका को लेकर बीजेपी विधायक नितेश राणे के बाद सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह की मांग तो ठाकरे परिवार की मुश्किलें बढ़ाने वाली ही है.

सुशांत सिंह राजपूत (SSR Case) की मौत के बाद खूब राजनीतिक खेल खेले गये. तब भी निशाने पर आदित्य ठाकरे (Aditya Thackray) आये थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर बेटे को बचाने के आरोप भी लगे थे. बिहार के रास्ते सीबीआई जांच की गुंजाइश बनायी गयी, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी बिहार चुनाव में मुद्दा नहीं बनाया जा सका - अब अगर आदित्य ठाकरे के खिलाफ जांच के संकेत दिये जा रहे हैं तो ये चुनावी हथकंडा ही तो लगता है, चुनाव खत्म होते ही ये मामला भी वैसे ही ठंडे बस्ते में चला जाएगा जैसे रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ्तारी की आशंकाएं खत्म हो जाती हैं.

SSR केस के बहाने निशाने पर ठाकरे परिवार

नशाखोरी और उसके कारोबार पर चर्चा के दौरान बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने मुंबई और फिल्म इंडस्ट्री को लेकर अपने अनुभव शेयर किये. मनोज तिवारी ने समझाया कि किस तरह युवाओं, कलाकारों और अदाकारों को नशे की गिरफ्त में लेने के लिए कैसी कैसी साजिशें चल रही हैं - और सुशांत सिंह राजपूत को इसी वजह से हमे खोना पड़ा.

aditya thackeray, uddhav thackeray, eknath shindeआदित्य ठाकरे को मुंबई पुलिस की जांच से थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन सीबीआई को तो अब तक कुछ मिला नहीं.

और उसी बहस में मुंबई साउथ सेंट्रल सांसद राहुल शेवाले ने सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच के बहाने आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे तक को लपेट लिया. राहुल शेवाले ने इल्जाम लगाया कि ठाकरे परिवार की तरफ से सुशांत सिंह राजपूत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती के फोन पर 44 फोन कॉल किये गये थे. बिहार पुलिस की जांच का हवाला देते हुए राहुल शेवाले ने दावा किया कि ये फोन AU नाम से किया गये थे - और बिहार पुलिस का ही हवाला देते हुए राहुल शेवाले ने ये भी दावा किया कि AU का मतलब आदित्य और उद्धव ही है.

केस की जांच को लेकर सवालों के बीच राहुल शेवाले ने ये भी पूछ डाला कि रिया चक्रवर्ती महाराष्ट्र के किसी बड़े नेता के संपर्क में थीं, ये बात सच है क्या?

राहुल शेवाले का कहना था, उस वक्त तीन स्तरों पर जांच चल रही थी. मुंबई पुलिस और बिहार पुलिस अपनी तरफ से जांच पड़ताल कर रही थीं, और सीबीआई की अलग जांच चल रही थी. और सवाल था, सीबीआई जांच का स्टेटस क्या है? क्या सुशांत की मौत को लेकर सीबीआई किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकी है?

लोक सभा में राहुल शेवाले के आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे पर ये गंभीर इल्जाम लगाये जाने के बाद शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे) गुट के सांसद आक्रामक हो गये. ये सांसद स्पीकर से मांग करने लगे कि ठाकरे परिवार पर लगाये गये आरोपों का संज्ञान न लिया जाये और सदन के कामकाज की सूची से बाहर रखा जाये. उद्धव ठाकरे गुट के सांसदों की ये मांग लोक सभा स्पीकर ने स्वीकार भी कर ली - और राहुल शेवाले के आरोपों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया.

SSR के नाम पर कब तक राजनीति होगी?

बिहार चुनाव 2020 से पहले बीजेपी को पूरी उम्मीद थी कि सुशांत सिंह राजपूत चुनावी मुद्दा बन सकते हैं. साथ ही, उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता था.

जब बीजेपी को लगा कि महाराष्ट्र सरकार तो सीबीआई जांच कराने से रही, तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिफारिश भेज दी. तब वो बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा हुआ करते थे. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और संयोग से अदालत ने भी जांच के लिए हरी झंडी दिखा दी.

देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव के लिए भेजे जाने के पीछे बड़ी वजह तो सुशांत सिंह राजपूत केस ही था. लेकिन जब ये समझ में आ गया कि केस का चुनावी फायदा नहीं मिल सकता, तो सब शांत हो गये. पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले भी ये मुद्दा उठाने की कोशिश हुई थी. तब रिया चक्रवर्ती को बंगाल की बेटी के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया था, लेकिन वहां भी चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा सका - अब बीएमसी चुनाव में ये मुद्दा बनेगा या नहीं ये तो नहीं कह सकते, लेकिन ये तो तय है कि इसके बहाने ठाकरे परिवार को थोड़ा परेशान तो किया ही जा सकता है.

तब भी बीजेपी सीधे सीधे ठाकरे परिवार को टारगेट नहीं कर रही थी, बल्कि ये ठेका कभी शिवसेना के मुख्यमंत्री रहे नारायण राणे और उनके बेटे नितेश राणे को दे दिया गया था. सीबीआई जांच की बात शुरू होते ही, नितेश राणे ने ट्विटर पर लिखा था, 'बेबी पेंग्विन तू तो गयो.' नारायण राणे फिलहाल केंद्रीय मंत्री हैं और उनके बेटे नितेश राणे महाराष्ट्र में बीजेपी के विधायक.

अब नितेश राणे सुशांत सिंह राजपूत केस में सच का पता लगाने के लिए आदित्य ठाकरे के नार्को टेस्ट की मांग करने लगे हैं. नितेश राणे का कहना है कि वो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से मांग करेंगे कि दिशा सालियान की मौत के मामले की दोबारा जांच शुरू करायी जाये. नितेश राणे का कहना है कि 8 और 9 जून की रात में क्या हुआ था, उसकी जांच की जानी चाहिये. ये मांग नितेश राणे सुशांत सिंह राजपूत केस के सिलसिले में कर रहे हैं.

अब तो सुशांत सिंह के पिता केके सिंह भी नितेश राणे की मांग का सपोर्ट कर रहे हैं. न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में केके सिंह का कहना रहा, 'मैंने खबरों में देखा... आदित्य ठाकरे का नाम आ रहा था... सच्चाई का पता एसआईटी की जांच में लगेगा - आदित्य ठाकरे का नार्को टेस्ट होना चाहिये.'

केके सिंह कहते हैं, 'ये बहुत पहले होना चाहिये था, लेकिन सरकार दूसरी थी इसलिए नहीं किया गया... ये फैसला सही है... पिछली सरकार में जांच सही से इसलिए नहीं हुई - क्योंकि उनके लोग मामले में शामिल थे.'

आप अक्सर देखते होंगे कि सुशांत सिंह राजपूत केस ट्विटर पर ट्रेंड करता रहता है. सुशांत के चाहने वाले उनको हमेशा याद कर सकते हैं, लेकिन उनकी मौत के बहाने राजनीति कब तक चलती रहेगी? आखिर ये चुनावी राजनीति का प्रोपेगैंडा नहीं है, तो क्या है?

'डर्टी पालिटिक्स' फिर से

जब ये सब चल रहा था कि आदित्य ठाकरे को भी सामने आना पड़ा था - और इसे 'डर्टी पॉलिटिक्स' करार देते हुए आदित्य ठाकरे ने कहा था कि परिवार को बदनाम करने की कोशिश हो रही है, जो बंद होनी चाहिये. ऐसा लगता है, महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर वैसा ही माहौल बनाने की कोशिश होने लगी है.

ताजा प्रकरण पर भी आदित्य ठाकरे का रिएक्शन आ गया है. राहुल शेवाले को लेकर आदित्य ठाकरे कहते हैं, 'मैं केवल इतना कहूंगा कि आपको और अधिक प्यार करता हूं... वो जो अपने घर के प्रति, अपनी पार्टी के प्रति वफादार नहीं है... ऐसे व्यक्ति से हमें कोई उम्मीद नहीं है.'

आदित्य ठाकरे ने निजी मामलों से परहेज के बहाने अपनी तरफ से थोड़ा इशारा भी किया है, 'मैं उस कीचड़ में नहीं जाऊंगा जिसमें वो हैं... हम साफ हैं और ऐसे बेबुनियाद आरोपों का जवाब देना जरूरी नहीं है... मैं किसी की निजी जिंदगी में नहीं जाना चाहता लेकिन उसे एहसास होना चाहिये कि हमने उनकी शादी को कैसे बचाया है.'

शिवसेना में बगावत के बाद पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए जूझ रहे आदित्य ठाकरे और उनके परिवार को 'डर्टी पॉलिटिक्स' फेस करने के लिए फिर से तैयार रहना होगा - और अगर कानूनी तौर पर कुछ खास नहीं बचा है तो राजनीतिक तरीके से भी मुकाबला करना होगा.

आदित्य ठाकरे का ये भी दावा है कि राजनीतिक विरोधियों की तरफ से ये सब महाराष्ट्र से जुड़े मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है - वास्तव में ऐसा है क्या?

क्या ये मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है

आदित्य ठाकरे ने लगे हाथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का इस्तीफा भी मांग लिया है. उनका कहना है कि ये सब एकनाथ शिंदे के भूमि घोटाले से ध्यान बंटाने की कोशिश हो रही है. राज्यपाल के इस्तीफे की मांग तो पुरानी ही है.

छत्रपति शिवाजी को गुजरे जमाने का हीरो बताने को लेकर उद्धव ठाकरे के साथ साथ महाविकास आघाड़ी के सभी नेता राज्यपाल को हटाने की मांग कर रहे हैं. आदित्य ठाकरे इस प्रसंग में भी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं - और पूछा भी है, 'क्या वे इस मुद्दे को उठाकर राज्यपाल को बचाने की कोशिश कर रहे हैं?'

हाल ही में ऐसी ही मांगों को लेकर महाविकास आघाड़ी के नेताओं ने हल्ला बोल मार्च किया था और रैली भी हुई थी. हल्ला बोल मार्च में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के साथ रश्मि ठाकरे का सड़क पर उतरना भी खासा चर्चित रहा. मतलब, एकनाथ शिंदे और बीजेपीके के खिलाफ विपक्षी गठबंधन सोशल मीडिया और मीडिया के बाद सड़क पर उतर कर लड़ने को भी तैयार हो चुका है - और जाहिर ये सब देवेंद्र फडणवीस हों या फिर एकनाथ शिंदे गुट के नेता किसी भी चैन से रहने तो देगा नहीं.

अंधेरी ईस्ट सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी की जो फजीहत हुई है, वो भी सबने देखा ही है. उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ा और कोर्ट की सख्ती के बाद ही नामांकन दाखिल हो सका - और फिर जिस तरीके से बीजेपी उम्मीदवार के नामांकन वापस लेने के लिए माहौल बनाया गया, वो भी सबके सामने ही है.

मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश तो हर सरकार करती है. जो आरोप पहले उद्धव ठाकरे की सरकार पर लगते रहे, वे ही अब एकनाथ शिंदे सरकार पर लग रहे हैं - और उसके पीछे बीजेपी का सपोर्ट है और मिल जुल कर उद्धव ठाकरे की राजनीति को मिट्टी में मिलाने की कोशिश. राजनीतिक दुश्मनी की ये नींव तभी पड़ी थी जब उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से हाथ छुड़ा कर कट्टर विरोधी रहे एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना लिया था.

एकनाथ शिंदे के जरिये बीजेपी ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना को टुकड़ों में तो बांट ही दिया, अब नेस्तनाबूद करने की कवायद चल रही है - और ऐसे मुकाबले में उद्धव ठाकरे या आदित्य ठाकरे कोई अकेले नेता नहीं हैं, राहुल गांधी से लेकर नीतीश कुमार तक सभी ऐसी ही तरकीबों के लिए जूझ रहा है ताकि बची खुची जमीन को बचाया जा सके.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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