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Updated: 18 दिसम्बर, 2022 04:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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महाराष्ट्र की राजनीति में शह मात का खेल तेज होने लगा है. ये बीएमसी चुनावों की नजदीक आ रही तारीख की वजह से भी हो सकता है, लेकिन और भी कई कारण हैं जिन्हें लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बीजेपी विपक्ष के निशाने पर हैं.

ये सिलसिला तो शिवसेना में बगावत और महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शुरू हो गया था, लेकिन छत्रपति शिवाजी को लेकर हाल के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के बयान ने आग में घी का काम किया है - और अब तो उनको हटाये जाने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है.

राज्यपाल को हटाने सहित कई मांगों को लेकर विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी के नेताओं ने हल्ला बोल मार्च (MVA Halla Bol March) भी निकाला है और रैली भी हुई है. रैली में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और आदित्य ठाकरे के साथ साथ एनसीपी नेता शरद पवार और अजीत पवार, महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के अलावा कांग्रेस और एनसीपी के कई नेता पहुंचे थे.

MVA के मार्च और रैली को काउंटर करने के मकसद से बीजेपी की तरफ से माफी मांगो प्रदर्शन भी किया गया - ये लोग संजय राउत और एक अन्य शिवसेना नेता के बयानों को लेकर अपना विरोध जता रहे थे.

बाकी चीजें तो वहीं रहीं जो काफी दिनों से देखने को मिल रही हैं, महाविकास आघाड़ी के हल्ला बोल में बस एक ही नयी बात थी - और वो थी, रश्मि ठाकरे (Rashmi Thackeray) की मौजूदगी. रश्मि ठाकरे, उद्धव ठाकरे की पत्नी हैं और आदित्य ठाकरे की मां.

ऐसे भी कह सकते हैं कि उद्धव ठाकरे पूरे परिवार के साथ सड़क पर उतरे थे. रश्मि ठाकरे की ये मौजूदगी भी महज रस्मअदायगी जैसी नहीं थी, बल्कि कई जगह तो वो आगे आगे नजर आयीं. ऐसा लग रहा था जैसे वो मोर्चा संभाल रही हों.

बालासाहेब ठाकरे की बहू का सड़क पर उतर कर बीजेपी और शिवसेना से बगावत कर मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे के खिलाफ ये हल्ला बोल महाराष्ट्र की राजनीति में खास असर दिखाने वाला है या उद्धव ठाकरे की तरफ से पार्टी को बचाने के लिए ये आखिरी दांव आजमाया जा रहा है?

रश्मि ठाकरे का मोर्चा संभालना

पूरा ठाकरे परिवार तो नहीं, लेकिन मातोश्री के तीनों जाने पहचाने चेहरे एक साथ सड़क पर नजर आये तो आस पास की नजरों एक तरफ फोकस हो जाना भी स्वाभाविक ही था - और उसमें में मेन फोकस रश्मि ठाकरे रहीं.

rashmi thackeray, uddhav thackeray, aditya thackerayक्या रश्मि ठाकरे शिवसेना के उद्धव ठाकरे वाले खेमे की कमान हाथ में लेने वाली है?

ऐसा भी नहीं कि रश्मि ठाकरे को पहली बार किसी सार्वजनिक समारोह में देखा गया हो. उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी रश्मि ठाकरे को खासा एक्टिव देखा गया है. अपनी तरफ से एकनाथ शिंदे को घेरने के लिए रश्मि ठाकरे ने भी कम कोशिशें नहीं की है.

बहरहाल, महाविकास आघाड़ी का हल्ला बोल मार्च जब जेजे अस्पताल के पास से शुरू हुआ तो उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और रश्मि ठाकरे साथ ही निकले. मार्च के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पहुंचते पहुंचते रश्मि ठाकरे को कई बार आगे बढ़ कर नेतृत्व करने वाले अंदाज में भी देखा गया.

रश्मि ठाकरे के पीछे पीछे सैकड़ों महिलाएं भी चल रही थीं. ध्यान देने वाली बात ये रही कि रश्मि ठाकरे ने न तो बाकी नेताओं के साथ कोई भाषण दिया, न ही मीडिया से कोई अलग से ही बात की, लेकिन पूरे कार्यक्रम के दौरान हर निगाह उनके इर्द गिर्द ही टिकी रही.

कहते हैं कि उद्धव ठाकरे के सामने मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव एनसीपी नेता शरद पवार ने रखा था, लेकिन मानसिक तौर पर तैयार करने में सबसे बड़ी भूमिका रश्मि ठाकरे की ही रही. बीच में जब उद्धव ठाकरे बीमार पड़े और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा तो रश्मि ठाकरे को खुद कमान संभालनी पड़ी थी.

उद्धव ठाकरे तो बीमार थे और आदित्य ठाकरे बच्चे, लेकिन सत्ता के केंद्र में रह कर भी रश्मि ठाकरे को शिवसेना में चल रही बगावत की भनक तक क्यों नहीं लगी - ये सबसे बड़ा सवाल है. हालांकि, एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र छोड़ कर असम पहुंच जाने के बाद रश्मि ठाकरे ने अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.

जब उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से कुछ नहीं हो पा रहा था तो रश्मि ठाकरे ने बागी विधायकों की पत्नियों से संपर्क करना शुरू किया, लेकिन जब सामने सत्ता का लालच हो तो भला पुराने संबंध और दोस्ती राजनीति में मायने रखती है क्या?

शिवसेना के बंट जाने और हाथ से सत्ता फिसल जाने के बाद से रश्मि ठाकरे को हर मौके पर मजबूती से डटे हुए देखा गया है - लेकिन हल्ला बोल रैली में जिस तरह वो सड़क पर निकली हैं, उसका असर आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है.

जब शिंदे के इलाके में पहुंचीं रश्मि ठाकरे: सितंबर, 2022 में जब नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के पंडाल जगह जगह लगे थे और वे राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनने लगे थे, तभी रश्मि ठाकरे भी ठाणे पहुंची थीं.

ठाणे से ही एकनाथ शिंदे आते हैं और उसे शिवसेना का पुराना गढ़ माना जाता है. शिवसेना के बड़े कद्दावर और सम्मानित नेता रहे आनंद दिखे का ठाणे में बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है - और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी आनंद दिखे के ही शिष्य माने जाते हैं.

और मौके की अहमियत को समझते हुए ही रश्मि ठाकरे ठाणे पहुंच कर शिवसेना के ठाणे मुख्यालय आनंद आश्रम भी गयीं - और आनंद दिघे को श्रद्धांजलि अर्पित की. रश्मि ठाकरे के दौरे को लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा भी रही.

हल्ला बोल की जरूरत क्यों?

हाल फिलहाल तो महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा विवाद पर ही राजनीति काफी उबल रही है. ऐसे भी समझ सकते हैं कि इस मुद्दे पर अमित शाह को सामने आकर संयम बनाये रखने की अपील करनी पड़ी है - और इसकी एक बड़ी वजह कर्नाटक में बीजेपी और महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन की सरकार होना भी है.

महाराष्ट्र में विपक्ष ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले को लेकर अपमान जनक टिप्पणियों का विरोध कर रहा है - और छत्रपति शिवाजी पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बयान को लेकर उनको जल्द से जल्द हटाने की मांग कर रहा है.

दरअसल, 9 नवंबर, 2022 को औरंगाबाद के मराठवाड़ा विश्वविद्यालय में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने छत्रपति शिवाजी को गुजरे जमाने का हीरो बता डाला था. भगत सिंह कोश्यारी ने छत्रपति शिवाजी की तुलना में नितिन गडकरी को नये जमाने का हीरो बता दिया.

भगत सिंह कोश्यारी का कहना था, 'स्कूल में पढ़ते थे तो हमारे टीचर हमसे पूछते थे कि आपके पसंदीदा नेता कौन हैं? हम अपनी पसंद से सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी के नाम लेते थे... आज अगर आपसे कोई पूछे कि आपके पसंदीदा नेता कौन हैं, तो आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है... महाराष्ट्र में ही मिल जाएंगे... शिवाजी तो पुराने युग की बात है, नये युग की बात कर रहा हूं - डॉक्टर अंबेडकर से लेकर नितिन गडकरी तक यहीं मिल जाएंगे.'

तभी से राज्यपाल के बयान को लेकर उद्धव ठाकरे आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं. हल्ला बोल मार्च से पहले ही उद्धव ठाकरे ने लोगों से अपील की थी कि जो लोग महाराष्ट्र से प्यार करते हैं वे उनके साथ मार्च में जरूर शामिल हों.

उद्धव ठाकरे तो भगत सिंह कोश्यारी को हटाने की मुहिम ही चला रहे हैं, शरद पवार का कहना है कि वो ऐसी शख्सियत का अपमान कर रहे हैं जिससे ऊपर हमारे लिए कोई चीज नहीं है - और ऐसे तमाम मुद्दों को लेकर उद्धव ठाकरे शिंदे सरकार पर हमलावर हो गये हैं.

उद्धव ठाकरे कहते हैं, महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद में शिंदे सरकार जिस तरह से काम कर रही है वो हैरत में डालने वाला है... आज वो हमारे कुछ गांव मांग रहे हैं... कल वो इससे भी ज्यादा कुछ की डिमांड करेंगे तो भी सरकार चुप बैठी रहेगी.

और फिर उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद में चुनावी ऐंगल खोज कर धावा बोल देते हैं, गुजरात में चुनाव थे तो महाराष्ट्र के प्रोजेक्ट गुजरात चले गये... अब कर्नाटक में चुनाव हैं तो सूबे का बहुत कुछ कर्नाटक को दे दिया जाएगा.

कहते हैं, महाराष्ट्र के गौरव के साथ हम समझौता नहीं करेंगे. और जो ऐसा करने की कोशिश करेंगे उनको हम घुटनो के बल ला देंगे. ये बालासाहेब ठाकरे की असली शिवसेना है.

शह-मात का खेल कैसा चल रहा है?

जैसे पहले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी महाविकास आघाड़ी सरकार को लेकर दावे किये जाते रहे, आज कल एकनाथ शिंदे की गठबंधन सरकार को लेकर भी वैसी ही बयानबाजी शुरू हो गयी है - उद्धव ठाकरे को लेकर किये गये दावे तो सच साबित हुए, एकनाथ शिंदे सरकार का क्या होगा?

एनसीपी के एक नेता का दावा है कि महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन अधिवेशन के बाद एकनाथ शिंदे सरकार गिर जाएगी. शीतकालीन सत्र 19 दिसंबर से शुरू होने जा रहा है. पहले तो ये भी सुनने में आ रहा था कि सत्र से पहले शिंदे सरकार का दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार भी हो सकता है.

स्थानीय मीडिया के मुताबिक, एनसीपी नेता अमोल मिटकरी का तो यहां तक कहना है कि सरकार को लेकर जो बात वो कह रहे हैं, उसकी जानकारी डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को भी है. अमोल मिटकरी का ये भी दावा है कि शिंदे समर्थक तीन विधायक एनसीपी के संपर्क में हैं.

शिंदे समर्थक नेता उदय सामंत का कहना है कि महाराष्ट्र के 10-12 विधायक नये साल में उनके साथ आ सकते हैं. उदय सामंत का भी दावा है कि नये साल में बड़ा धमाका करेंगे.

बहती गंगा में मौका मिले तो हाथ धो ही लेना चाहिये. मगर ये चीज हजम करना मुश्किल हो रहा है कि शिंदे खेमे के विधायकों को एनसीपी में जाने से भला क्या मिलेगा? अगर उनके शिवसेना में लौट जाने की बात होती तो दलील भी दमदार लगती. एक पल के लिए गंभीरता से सोचा भी जा सकता था - लेकिन काउंटर अटैक में शिंदे गुट की तरफ से जो दावा किया जा रहा है वो तो मजाक जैसा बिलकुल नहीं लगता.

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शरद पवार और एकनाथ शिंदे की मुलाकात नींद हराम करने वाली तो है ही!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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