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Updated: 20 जुलाई, 2021 03:44 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly election 2022) के मद्देनजर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) फिर से तैयारियों में जुट गई हैं. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के कांग्रेस का CM फेस होने की चर्चाओं का दौर भरपूर चल रहा था. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू से लेकर मुस्लिम वोटों को साधने में लगे वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद भी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस (Congress) के अकेले चुनाव लड़ने का दंभ भर रहे थे. लेकिन, इन तमाम चर्चाओं पर प्रियंका गांधी के एक अनौपचारिक बयान ने फुल स्टॉप लगा दिया है.

प्रियंका गांधी ने पत्रकारों के साथ 'ऑफ द रिकॉर्ड' बातचीत में संकेत दिया कि यूपी में कांग्रेस गठबंधन के लिए तैयार है. दावा किया जा रहा है कि उन्होंने कहा कि वी आर ओपन माइंडेड. हमारा मकसद भाजपा को हराना है और गठबंधन के लिए हमारे विकल्प खुले हुए हैं. लेकिन, गठबंधन पर दूसरी पार्टियों को भी हमारी तरह ही ओपन माइंडेड होकर सोचना होगा. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि गठबंधन को लेकर कोई भी समझौता पार्टी हितों की कीमत पर नहीं होगा. इस बयान के बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस और सपा एक साथ आ सकते हैं.

प्रियंका गांधी ने पत्रकारों के साथ 'ऑफ द रिकॉर्ड' बातचीत में संकेत दिया कि यूपी में कांग्रेस गठबंधन के लिए तैयार है.प्रियंका गांधी ने पत्रकारों के साथ 'ऑफ द रिकॉर्ड' बातचीत में संकेत दिया कि यूपी में कांग्रेस गठबंधन के लिए तैयार है.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से ऊपर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी को तरजीह दे रहे हों. लेकिन, यूपी में भाजपा के सामने मुख्य विपक्षी दल के तौर पर फिलहाल सपा (SP) ही नजर आ रही है. गठबंधन को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि वो छोटे राजनीतिक दलों से ही गठबंधन करेंगे. इस स्थिति में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 केवल कांग्रेस ही नहीं प्रियंका गांधी के लिए भी बड़ी चुनौती है. सवाल उठना लाजिमी है कि यूपी में प्रियंका गांधी ने गठबंधन के संकेत तो दे दिए हैं, लेकिन कांग्रेस का साथ कौन देगा?

सपा और AAP की खिचड़ी में कैसे लगेगा कांग्रेस का तड़का

अखिलेश यादव और आप (AAP) सांसद संजय सिंह की मुलाकात के बाद से ही सियासी गलियारों में सपा और आप के बीच गठबंधन वाली खिचड़ी पकने की खबरें आम हो चुकी हैं. दावा यहां तक किया जाने लगा है कि सपा और आप का गठबंधन लगभग तय हो गया है. दरअसल, यूपी में आम आदमी पार्टी फिलहाल अपनी राजनीतिक जमीन खोज रही है, तो उसे सपा का सहारा मिलना 'डूबते को तिनके का सहारा' जैसा है. जहां ये गठबंधन सपा को भाजपा विरोधी वोट दिलाने में मदद करेगा. वहीं, आप पर वोटकटवा पार्टी का तमगा लगने से भी बच जाएगा. अखिलेश यादव पहले ही कांग्रेस और बसपा से दूरी बनाए रखने की घोषणा कर चुके हैं, तो इस गठबंधन की खिचड़ी में कांग्रेस का तड़का कैसे लगेगा?

तीन दशक से यूपी में सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस को लेकर शायद प्रियंका गांधी ने मान लिया है कि पार्टी यहां सिमटती जा रही है. वैसे, काडर वोट को छोड़ दिया जाए, तो कांग्रेस के पास कोई खास जनाधार नजर नहीं आता है. पंचायत चुनाव के नतीजों से भी स्थिति काफी साफ हो जाती है. फिलहाल, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी यूपी में छोटे राजनीतिक दल की भूमिका में आ चुकी है. इस लिहाज से कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन मूर्तरूप में आ सकता है. प्रियंका गांधी के कांग्रेस हित को देखते हुए ये संभावनाएं तभी बन पाएंगी, जब कांग्रेस को विधानसभा सीटों की सम्मानजनक संख्या मिले.

क्या पीके निभाएंगे 'सारथी' की भूमिका

बीते दिनों चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी. चर्चा थी कि ऑनलाइन माध्यम से इस मुलाकात में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी हिस्सा लिया था. इस बैठक के बाद पंजाब में सुलह का फॉर्मूला देने से लेकर प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने तक के दर्जनों कयास लगाए जा रहे थे. सियासी गलियारों में इस चर्चा ने भी जोर पकड़ा था कि 2017 की तरह ही प्रशांत किशोर इस बार भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए विकल्पों को खोजने में मदद करेंगे. हालांकि, पीके का साथ कांग्रेस के लिए सकारात्मक नहीं रहा था. लेकिन, पीके ने ये जरूर कहा था कि वो प्रियंका गांधी के संपर्क में रहेंगे. इस स्थिति में प्रियंका गांधी का गठबंधन को लेकर दिया गया बयान यूपी में एक बार फिर से प्रशांत किशोर की एंट्री पर मुहर लगाता दिख रहा है.

2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करने पर कांग्रेस के खाते में 105 सीटें आई थीं. लेकिन, कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी छूने में कामयाब नहीं हो सकी थी. इस बार अखिलेश यादव ने पहले ही बड़े दलों के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया है. तो, प्रशांत किशोर के सामने भी कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें दिलाने की चुनौती होगी. सपा का आरएलडी और आप के साथ गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है. खबर है कि प्रशांत किशोर जल्द ही अखिलेश यादव से मुलाकात कर सपा और कांग्रेस के गठबंधन को अमली जामा पहनाने की कोशिश करेंगे. वैसे, अखिलेश यादव के छोटे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन के प्रण को देखकर एक बात तय मानी जा सकती है कि यूपी में कांग्रेस छोटा राजनीतिक दल साबित होने वाला है.

सपा-कांग्रेस गठबंधन होने पर क्या होगा असर?

अकेले अपने दम पर कांग्रेस के लिए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की राह आसान नहीं है. अमेठी से हार के बाद उत्तर प्रदेश से तकरीबन किनारा कर चुके राहुल गांधी का असर सूबे में खत्म होने की कगार पर है. इससे इतर कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने कांग्रेस में नई जान फूंकने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. लेकिन, धरातल पर परिस्थितियां कांग्रेस के अनुकूल नही हैं. प्रियंका गांधी खुद कहती नजर आई हैं कि सूबे में कांग्रेस कमजोर हुई है. इस स्थिति में हो सकता है कि सपा के साथ फिर से गठबंधन बनाने का प्रयास सफल हो जाए. लेकिन, सपा-कांग्रेस का गठबंधन होगा या नहीं, ये पूरी तरह से अखिलेश यादव पर निर्भर करेगा. और, अखिलेश यादव 'छोटे राजनीतिक दलों' से ही गठबंधन पर अटल दिख रहे हैं.

अगर सपा-कांग्रेस गठबंधन बनता है, तो इसका सबसे ज्यादा असर बसपा पर पड़ेगा. पहले से ही सूबे की सियासत में हाशिये पर चल रही बसपा पूरी तरह से किनारे पर लग जाएगी. सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को झटका लगेगा. दरअसल, सपा-कांग्रेस गठबंधन के रूप में भाजपा से नाराज चल रहे वोटबैंक को एक निश्चित ठिकाना मिल जाएगा. सूबे की सियासत में लंबे समय तक ब्राह्मण वोटबैंक कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है. योगी सरकार में ब्राह्मणों के उत्पीड़न को लेकर भरपूर माहौल भी बनाया जा चुका है. इस स्थिति में भाजपा के लिए एकजुट विपक्ष बड़ी चुनौती बन सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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