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Updated: 26 मई, 2019 10:40 AM
सीमा गुप्ता
सीमा गुप्ता
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बीजेपी की शानदार जीत के साथ, राजनीतिक पंडित जातिगत गणित को सुलझाने, समझाने, और उसकी व्याख्या करने में व्यस्त हैं, जो आश्चर्यजनक रूप से इस बार काम नहीं कर सका. भारत की राजनीति को हमेशा ही जाति के चश्मे से देखा गया है. इसके लिए एक प्रसिद्ध कहावत भी है 'जात ना पुछो साधु की'. लेकिन अब मोदी ने गरीबों के लिए इसका अनुसरण किया.

मोदी नाम की सुनामी ने कई लोगों को धो डाला जिसकी गर्जना आने वाले कई सालों तक सुनाई देगी. लेकिन मोदी के लिए वो एक मात्र जाति जिसने काम किया वो थे गरीब. उज्ज्वला योजना जैसी तमाम योजनाएं जिन्होंने वास्तव में भाजपा को एक शानदार जीत दिलाई.

गरीब महिलाएं और परिवार का पेट पालने के लिए उनकी "चूल्हे" के साथ रोज रोज की जद्दोजहद ने मोदी को वास्तव में 'बाहुबली' बना दिया. अमित शाह और मोदी ने सही समय पर सही काम किया. महिलाओं के वोट पाने की रणनीति में एक और अभियान काम आया, वो था स्वच्छ भारत अभियान जिसके तरत शौचालय का निर्माण किया गया था. वो शौचालय जिनके न होने की वजह से महिलाओं को खुले में शौच करने में शर्मिंदगी महसूस होती थी.

modi and poorsमोदी ने महिलाओं की दो बड़ी समस्याओं पर सोचा और काम किया

गरीबों ने मोदी को 'मसीहा' की तरह प्यार दिया. ये वो 'बाहुबली' है जिसने भारत के नंबर एक दुशमन पाकिस्तान को भी डरा दिया. आतंकवाद की समस्या तो सभी सरकारों के समय पर थी लेकिन मोदी ने अपना '56 इंच का सीना' दिखाया. बालाकोट स्ट्राइक ने कई आतंकवादियों के सफाए का दावा किया लेकिन उसे साबित करने के लिए गरीब और आम आदमी को कोई सबूत नहीं चाहिए था. विपक्ष ने भले ही इसकी मांग की हो लेकिन ये उनके विश्वास को हिला नहीं पाया.

मोदी के भाषणों पर किए गए विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में अपने सभी भाषणों में कितनी होशियारी और रणनीति बनाकर गरीबों पर ही सारा ध्यान केंद्रित किया था. यूपी में उन्होंने सपा-बसपा महागठबंधन की काट के लिए 'गरीब' शब्द का इस्तेमाल 153 बार किया था. बिहार में इस शब्द का इस्तेमाल 86 बार किया गया, पश्चिम बंगाल में "दीदी" शब्द 175 बार बोला गया तो 98 बार गरीब शब्द का इस्तेमाल किया. 'गरीब चायवाला' ने बखूबी काम किया, ये शब्द सही मायने में लोगों के साथ जुड़ गया. 2014 में जो सपना उन्होंने जनता को बेचा था, पिछले पांच सालों में भी उन्होंने वही बांटा.

modi winsमोदी को जीत दिलाने वालों में गरीब ही मुख्य रहे

हालांकि ये भी सच है कि बीजेपी ने जातिगत उठापटक के लिए रणनीतियां बनाईं जिससे उनके "गरीब कार्ड" में इजाफा हुआ. बूथ और गठबंधन के मास्टर अमित शाह ने पिछले पांच सालों में देश भर में घूम घूमकर यही सब तो किया.

मोदी के पक्ष में काम कर रही 'गरीबों' की इस ताकत का अंदाजा मुख्य विपक्षी दलों को काफी देर के बाद हुआ. राहुल गांधी की "न्याय" योजना को समझ पाने का लोगों को समय ही नहीं मिल सका. इस बीच काले धन के वादों और नोटबंदी के नकारात्मक प्रभावों को खत्म करने के लिए, मोदी के पास 2000 रुपए वाली पेंशन योजना और आयुष्मान योजना आ चुकी थी.

अंत में मैं कह सकती हूं कि लोगों की रक्षा के लिए खड़े हुए इस अनुसूचित जाति के गरीब चायवाले 'बाहुबली' के लिए 'सब माफ़'. 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' ही सही नारा है जो मोदी के लिए सफल रहा.

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सीमा गुप्ता सीमा गुप्ता @seema.gupta.9028

लेखक आजतक में न्यूज एडिटर हैं

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