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Updated: 29 जून, 2017 11:36 PM
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जीएसटी को लेकर भी नोटबंदी की ही तरह अफरातफरी के लिए तैयार रहना चाहिये. आइडिया तो अच्छा है, तैयारी भी पूरी है क्या? पहले ममता बनर्जी और अब तो कांग्रेस ने भी जश्न-ए-जीएसटी के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है.

लेफ्ट का सवाल है कि जब कारोबारी तबका विरोध कर रहा है फिर जश्न किस बात का. मामला सिर्फ इतना भर ही नहीं है, राष्ट्रपति चुनाव की तरह कांग्रेस इस मामले में बीजेपी की राजनीति में थोड़ी उलझी महसूस कर रही थी - और इसीलिए उसने सीधे व्यवस्था को टारगेट किया.

जश्न और विपक्ष का ऐतराज

जीएसटी के मुद्दे पर मोदी सरकार ने मुश्किलों भरा सफर तय किया है. बगैर सबके साथ के जीएसटी के मामले में शायद ही कोई विकास हो पाता. बीजेपी के रणनीतिकारों ने जिस तरीके से इसे अंजाम तक पहुंचाया, उनके लिए जश्न तो बनता है. हालांकि, जीएसटी को पास कराने में विपक्ष का सरकार को जो साथ मिला, उसे मिल कर जश्न मनाने का मौका तो नहीं मिल पा रहा.

सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने जीएसटी को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है. येचुरी ने पूछा है - जल्दबाजी क्यों की जा रही है? येचुरी का कहना है कि जब व्यापारी तबका इसके विरोध में इस कदर खड़ा है तो जश्न मनाने का आखिर औचित्य क्या है? ममता बनर्जी की टीएमसी और करुणानिधि की पार्टी डीएमके ने तो जश्न के बहिष्कार का पहले ही ऐलान कर दिया था. अब कांग्रेस भी यही रास्ता अख्तियार करने जा रही है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि बगैर पूरी तैयारी के इतने बड़े टैक्स सुधारों के लागू करने से अफरातफरी मचेगी. कांग्रेस का कहना है कि इससे व्यापारियों का नुकसान होगा. खास बात ये है कि जीएसटी पर सरकार का साथ देकर विपक्ष सारा क्रेडिट उसे अकेले लूटने नहीं देना चाहता.

narendra modi, pranab mukherjeeकिस बदलाव की बयार है...

ममता बनर्जी ने नोटबंदी के बाद इसे मोदी सरकार की एक और ऐतिहासिक गलती करार दिया है. ममता बनर्जी की दलील है कि ज्यादातर छोटे व्यापारी अभी इतने बड़े बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं.

30 जून की आधी रात को संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में जीएसटी लांच होने जा रहा है. संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार की तरफ से भेजे गए निमंत्रण पत्र में लिखा है- ‘राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की गरिमामय उपस्थिति में भारत के प्रधानमंत्री की ओर से जीएसटी के लांच के अवसर पर उपस्थिति प्रार्थनीय है.’ कांग्रेस को इस मामले में मोदी सरकार का यही रवैया नागवार गुजरा है.

क्या देश वाकई बदल रहा है?

जीएसटी लांच का कार्यक्रम रात 10.45 पर शुरू होगा जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के अलावा लगभग 100 हस्तियों को निमंत्रण भेजा गया है. इन हस्तियों में रतन टाटा, अमिताभ बच्चन और लता मंगेशकर शामिल हैं.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण भेजा था. संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने पूर्व प्रधानमंत्री से मंच पर मौजूद रहने की भी गुजारिश की थी. कांग्रेस इसी बात को लेकर असमंजस में थी, फिर भी उसने बहिष्कार का फैसला किया. मंच पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, लोक सभा स्पीकर सुमित्रा महाजन होंगी.

कांग्रेस को सबसे ज्यादा आपत्ति एक ही बात पर रही - राष्ट्रपति की मौजूदगी में भला प्रधानमंत्री जीएसटी लांच कैसे करेंगे? कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का सवाल था - 'राष्ट्रपति की मौजूदगी में जीएसटी की घोषणा प्रधानमंत्री कैसे कर सकते हैं? यह कतई सही नहीं है और अस्वीकार्य है.' देश की संवैधानिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद प्रधानमंत्री से ऊपर है. सरकार में सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का ही होता है जो तीनों सेनाओं का चीफ हैं. खास मौकों पर इस व्यवस्था और परंपरा की झलक भी हरदम देखने को मिलती है. गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के आयोजन इसकी मिसाल हैं. 26 जनवरी को परेड की सलामी राष्ट्रपति लेते हैं और प्रधानमंत्री विशेष रूप से उपस्थित होते हैं. 15 अगस्त को लाल किले के समारोह में राष्ट्रपति नहीं होते क्योंकि वहां प्रधानमंत्री को झंडा फहराना होता है.

कांग्रेस के ऐतराज का आधार यही है. उसने आपत्ति भी निमंत्रण पत्र पर लिखी बात के आधार पर दर्ज करायी है. क्या इसमें सरकार की कोई मंशा झलक रही है? क्या भविष्य में ऐसे किसी बड़े आधारभूत बदलाव की अपेक्षा और आशंका जतायी जानी चाहिये?

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसा चौथी बार हुआ जब वो राष्ट्रपति भवन की इफ्तार पार्टी में गैरहाजिर रहे. मालूम हुआ सुबह ही वो विदेश दौरे पर रवाना हो गये. हालांकि, 2015 में दिल्ली में होने के बावजूद उन्होंने इफ्तार में हिस्सा नहीं लिया. सिर्फ मोदी ही नहीं हंगामा तो इस बात पर है कि उनके मंत्रिमंडल का कोई सहयोगी भी इफ्तार में नजर नहीं आया. अब तो पूछा जाने लगा है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बाद अगले पांच साल तक इफ्तार का आयोजन होगा भी या नहीं?

जीएसटी लांच के निमंत्रण पत्र की शब्दावली कई आशंकाओं की ओर इशारा कर रही है. कहीं राष्ट्रपति भवन को भी मार्गदर्शक मंडल में तब्दील करने की तैयारी तो नहीं चल रही है?

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