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Updated: 12 अक्टूबर, 2019 06:19 PM
विकास कुमार
विकास कुमार
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तमिलनाडु के महाबलीपुरम में एक बार फिर पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकात हो रही है. इस मुलाकात में बातचीत का एजेंडा तो साफ नहीं है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार की मुलाकात में सबसे अहम मुद्दा है व्यापार. दरअसल, अमेरिका ने चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ रखा है, तो भारत के खिलाफ भी कई तरह की व्यापारिक सख्तियां बरत रहा है. अर्थव्यवस्था में गिरावट दोनों देशों के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह बन गई है. दोनों ही देश व्यापार के मामले में अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करना चाह रहे हैं, ताकि अमेरिका के 'ट्रेड वार' जैसी ब्लैकमेलिंग से बचा जा सके. खासकर चीन को इसकी जरूरत ज्यादा है. इसलिए चीन भारत के साथ मिलकर अमेरिका से निपटना चाहता है. इस बात की तस्दीक भारत में चीन के नये राजदूत सुन वेईडांग ने खुद की. उन्होंने कहा कि 'एकतरफावाद और संरक्षणवाद' के खिलाफ लड़ाई में चीन भारत की मदद चाहता है. इसके लिए चीन भारत में अपना एक्सपोर्ट बढ़ाना चाहता है और व्यापार को 200 अरब डॉलर तक ले जाना चाहता है.

xi jinping and narendra modiदोनों ही देश व्यापार के मामले में अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करना चाह रहे हैं

इधर भारत में चीन के साथ व्यापार घाटे को लेकर काफी चिंता है. अभी दोनों देशों के बीच व्यापार 95 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है जो जल्दी ही 100 अरब डॉलर का आंकड़ा भी छू लेगा. वित्त वर्ष 2018-19 में दोनों देशों के बीच 88 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर तक पहुंच गया. चीन से भारत मुख्यत: इलेक्ट्रिक उपकरण, मेकेनिकल सामान, कार्बनिक रसायनों आदि का आयात करता है. वहीं भारत से चीन को मुख्य रूप से, खनिज, दवाई, गहने और कपास आदि का निर्यात करता है. भारत चीन में अपने निर्यात को बढ़ाने और आयात को कम करने की कोशिश में लगा हुआ है. भारत पिछले 4-5 सालों से चीन पर व्यापार घाटे को कम करने और निवेश बढ़ाने के लिए लगातार दबाव बना रहा है.

चीन पर भारत के दबाव का दिख रहा है असर

चीन से व्यापार घाटे को पाटने के लिए भारत ने चीन को इसी साल अप्रैल में 380 उत्पादों की सूची भेजी है, जिनका चीन को निर्यात बढ़ाया जा सकता है. इनमें मुख्य रूप से आईटी, बागवानी, कपड़ा, केमिकल, दवाईयां और डेयरी उत्पाद शामिल है. इन क्षेत्रों में भारत मजबूत स्थिति में है और विश्व में उसकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है जबकि चीन के बाजारों में भारत के इन उत्पादों की पहुंच बहुत कम है. वहीं भारत चीन से अधिक से अधिक निवेश भी चाहता है. क्योंकि, चीन अपने विदेशी निवेश का मात्र 0.5 प्रतिशत ही भारत में निवेश करता है, इसलिए भारत इसे बढ़ाने की मांग कर रहा है. इसी का नतीजा है कि पिछले तीन साल में भारत में चीन का निवेश बहुत तेज़ी से बढ़ा है, आज यह आठ अरब डॉलर से भी ज्यादा हो गया है. वहीं चीन ने भारत में कुल 20 अरब डॉलर निवेश करने का वादा किया है. लेकिन ये फिर भी अपर्याप्त है. भारत चीन से कम से कम 50 अरब डॉलर निवेश चाहता है.

xi jinping and narendra modi चीन अपने विदेशी निवेश का मात्र 0.5 प्रतिशत ही भारत में निवेश करता है

भारत के लगातार दबाव का ही नतीजा है कि पिछले दो दशक में पहली बार 2018-19 में चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में भी कमी आई है. चीन के बाजार तक भारत की अधिक पहुंच के कारण पिछले वर्ष भारत से चीन को निर्यात बढ़कर 18 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वर्ष 2017-18 में 13 अरब डॉलर था. चीन से भारत का आयात भी 76 अरब डॉलर से कम होकर 70 अरब डॉलर रह गया. यानी एक साल में व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर कम हो गया. मई 2018 को भारत ने चीन के सॉफ्टवेयर बाजार का लाभ उठाने के लिए वहां दूसरे आईटी गालियारे की शुरुआत भी की, जिससे वहां भारत के आईटी कारोबार में भी तेजी आई है.

कैसे कम होगा व्यापार घाटा?

जब तक हम उन उत्पादों के बाजार में नहीं घुसेंगे जिनका चीन बड़े पैमाने पर आयात करता है, तब तक व्यापार घाटे को पाटना मुश्किल है. मसलन, चीन तकरीबन 450 अरब डॉलर का इलेक्ट्रिकल मशीनरी, 97 अरब डॉलर का मेडिकल उपकरण और 125 अरब डॉलर का लौह अयस्क आयात करता है. भारत इनमें कहीं नहीं है. भारत को इन चीजों के उत्पादन और निर्यात पर जोर देना होगा.

इसी तरह भारत को व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन पर लगातार दबाव बनाए रखने की जरूरत है. इस समय चीन के बाद भारत के लिए दुनिया का नया कारखाना बनने का जो मौका दिखायी दे रहा है, उसे तेज करना होगा. भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है. आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, केमिकल्स और धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं. आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं. इन्हें चीन से जोड़ना होगा. चीन से मुकाबला करने के लिए भारत को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करनेवाले देश के रूप में पहचान बनानी होगी. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना होगा. चीन की तरह भारत को भी गुड गवर्नेंस की स्थिति बनानी होगी, तभी हम व्यापार के मोर्चे पर चीन को टक्कर दे पाएंगे.

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लेखक

विकास कुमार विकास कुमार @100001236399554

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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